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हॉट हॉट माँ: मैं सुन्न पड़ गई थी, पर फिरसे कैसे थिरकने लगी

 माँ बनना और सेक्स, लैंगिकता, सेक्सीनेस। हम यह शब्द एक ही साँस में/एक ही वाक्य में अक्सर नहीं सुनते हैं। क्या माँ बनने के बाद एक औरत का हसरतें रखना या आकर्षक रहना, सब बंद हो जाता है? (जवाब: जी नहीं)। पूजा पांडे ज़िन्दगी के इस मुकाम से जुड़े 'क्यों' और 'कैसे' के बारे में लिखती हैं और बताती हैं कि उन्होंने इस बारे में क्या किया। साथ साथ, और माँओं की सेक्स लाइफ पे आधारित एक इरॉटिका की पूरी किताब के बारे में जानकारी भी पेश करती हैं। दूर क्षितिज पे दिखने वाला क्या एक समुंद्री जहाज़ है वह? मैं आपको बताती हूँ कि जच्चा होना कैसा लगता है, और एक गड़बड़ाए नशे से इसका कोई वास्ता नहीं है (कहीं यह अच्छी ट्रिप/अच्छा नशा तो नहीं है?)। जब एक बच्चा आपके अंदर से निकला हो, और वो  बस बिल्कुल  बच्चा हो, तो सही में आपको ऐसा लग सकता है कि आप कहीं विस्मरण /अँधेरे में अपने आप को खोते जा रहे हैं, कुछ शरीर के बाहर होने वाले अनुभव जैसे जिसका वादा एक ड्रग ट्रिप करती है, फ़र्क ये कि इस ट्रिप में वो रोमांच का वादा नहीं है। आप एक ऐसी अजीब नयी दुनिया के निवासी हो जाते हैं जो ना सिर्फ अनजान है, लेकिन सही मायनों में आक्रामक है। आप अपने आप को झटपटाते हुए देखते हैं, फिर गिरते हुए, और फिर झटपटाते हुए - और आपके बस से बाहर आपकी लाचार आत्मा, शून्य के विचारों में खो जाते हैं।   आपका अपना शरीर - जिसे आपने अपना समझा था और जिसपर आपको लगता था कि आपका वश है, जो कुछ समय पहले तक आपकी सुनता था - अचानक से एक थकी, हैरान, परेशान और चिंतित गठरी में तब्दील हो चुका है। निप्पल्स/चूची एक ऐसे गोले पर विराजमान होकर दूध पेश कर रहे हैं जिसे आप अब पहचान तक नहीं सकते (यह गोला आपका शरीर है)। एक ऐसे ज़रूरतमंद व्यक्ति को जिसे आप पूरे दिल-ओ-जान से प्यार करते हैं लेकिन उसे समझ नहीं सकते। और यूं भी नहीं लगता कि कुछ समय बाद आप उसे समझ पाएंगे। आप उस ७-वर्षीय बच्चे को पहचानते जानते हैं जिसका शानदार व्यक्तित्व है, जिससे आप बातचीत कर पाएंगे? ज़िन्दगी के मकसद के बारे में, तितलियों की खूबसूरती के बारे में, एक पानी भरे गड्ढे में पैर रखने से जो आवाज़ होती है उस बारे में, और अगर पसंदीदा आम जैसी कोई चीज़ है तो उस बारे में? यह जो आपके सामने है, वह उस इंसान से सात साल दूर है। स्तब्धता, प्रोत्साहन की गंभीर कमी, किसी भी कामना की गैरमौजूदगी, कमज़ोर कर देने वाली अनिश्चितता- अपनी शय्या के नए साथियों से मिलिए। आप सोच रहे होंगे कि क्या यह वह स्थिति है, जिसका सब ज़िक्र करते हैं, तो क्या इससे पलटा/बदला नहीं जा सकता? क्या यह अपरिवर्तनीय है? और क्या यह स्थायी है? हाँ, वे सब आपको वहीँ रखने की कोशिश ज़रूर करते हैं। आपको वहीँ दबाए रखने की। जच्चा  औरत को कितनी आसानी से आघात किया जा सकता है । हर चीज़ जो वह कर सकती है, कर सकती थी या शायद करे, इसके बारे में वह संदेहयुक्त हो गयी होती है...ऎसी औरत हमारी पितृसत्ता से रंगी संस्कृति से आसानी से घायल हो सकती है, वह पितृसत्ता समाज उस खाली स्लेट सी जच्चा पर वार करने को मचलता होगा। उन कमज़ोर पलों के ना पहले ना ही बाद में मैंने इस बात को इतनी गहराई से महसूस किया है। वह माँ बनने की शुरुआत के क्रूर दिन जो आपको अपने से जुड़ी हर बात पे शक करने पर मजबूर कर देते हैं। ऐसी बातें जिनमें आप खुद विश्वास करने लगते हैं, अपने अनाकर्षक शरीर और मन के बारे में,जिनमें बाहरी दुनिया भी हामी भरती है। "ज़ाहिर सी बात है, तू पहले के जैसे काम नहीं कर सकती, यार। इतनी लेट नाइट्स थोड़ी करेगी अब।" "वाह! सोचो! इतनी नन्ही सी जान, हर चीज़ के लिए तुम पर निर्भर। हर चीज़ के लिए!" "शायद तू आंटी को हर दिन कुछ घंटों के लिए आने को कह सकती है? ब्रेक मिल जायेगा तुझे।" "शायद तुम अपने बॉस को समझा सकती हो। मुझे यकीन है कि वह समझ जाएगा।" "मुझे उम्मीद है कि तुम अब भी अपनी डाइट पे ध्यान दे रही हो। अगर बच्चे को कॉलिक/उदरशूल है, इसका मतलब है कि तुमने कुछ फालतू खाया था।" "बच्चे की देखभाल से तुम्हें काफी तनाव होगा, नौकरी का तनाव भी सर पे क्यों लेना है?" "वह कितना हैंड्स-ऑन पिता है, यार। तुम कितनी लकी हो। लेकिन आखिर वह कितना कर सकता है?" "वह स्ट्रेच मार्क्स? ओह, वह कभी पूरी तरह से जाते नहीं हैं।" "तुम यह निर्णय लो। तुम जानती हो कि बच्चे की भलाई किस में है। आखिर तुम उसकी माँ हो।”   मैंने जितनी बातें सुनी हैं, नेक इरादों से दी गयी, पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाली सलाह जो मुझे दी गयीं, उनमें यह आखरी वाली ने मुझे एकदम क्रोधित कर दिया। कि उस पल से जब वह इंसान तुम्हारे अंदर से बाहर निकला तुमने जैसे अपने आसपास पवित्रता की एक आभा पैदा कर ली है,  और रातों-रात यह आभा तुम्हें सर्वज्ञानी बना देती है। मन होता है कि मैं उनसे कहूँ - कि असल में मैं जानती हूँ कि मेरे लिए क्या सबसे अच्छा है  - साहित्य अवार्ड और बहुत सारे ओर्गास्म्स (कामोन्माद) तो सबसे प्रमुख हैं, लेकिन लिस्ट लंबी है। अगर आप पानी के ऊपर सर रखने में कामयाब रहे तो  आपको एहसास होने लगता है कि यह बहुत बड़ी साज़िश है: सारी माओं को कुर्सी पे बिठा दो, उन्हें सूपर-बीइंग्स (शक्तिशाली, ख़ास ताकतों वाले लोग) बना दो, ताकि वह कभी असली दुनिया में वापस कदम ना रखें। हमें हमारी देवीयाँ पसंद है ना? हम उनकी पूजा करते हैं, ताकि उनसे निपटना आसान हो जाए। उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, सेक्स से जुड़ी भी नहीं। "तुम्हारा पति तुम्हें पहले जैसे कभी वापस नहीं चाहेगा, डिअर। तुम्हारे ऐसे शरीर को देख कर, कौन तुम्हें चाह सकता है? अच्छा ही है कि तुम बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहोगी - सेक्स का ख़याल तो तुम्हारे दिमाग में दूर दूर तक ना होगा। हम्म। तब मैंने यूं सोचा था। हाह! तब से अब तक मैं यह ही कह रही हूँ। क्योंकि मैंने कुछ ही समय में खुद को पिंक फ्लॉयड को बाहर फेंकते हुए पाया, और खुद को जस्टिन टिम्बरलेक जैसे 'सेक्सी-बैक-इंग' करते हुए पाया। जो आत्मविश्वास मुझे लगा मैंने कहीं खो दिया था, मेरे शरीर और दिमाग से जुड़ी हुई चाह, ज़रुरत और कामना - मेरी व्यक्तिगत भावनाओं के सैलाब के थमने पर ज़बरदस्त तरह से लौटीं। कामुकता की उस रंगावली में मुझे अपना रास्ता तय करना था, काम में नए चुनौतिओं से, ज़िन्दगी में - अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को नए रूप से सन्दर्भित करना था, हर जगह - ऑफिस से लेकर बैडरूम तक। मैं आखिर अपने माँ के निरंतर दोहराये हुए शब्दों का अर्थ समझ गयी - "यह माँ बनना एक औरत का पुनर्जन्म होता है, बेटा।” आपको एहसास होता है कि हमारा जीवन मृत्यु की छाया में किस तरह पनपता है...जब आप अपनी, अपनी माँ की, अपने पसंदीदा मासी की और नानी - जिन्हें आप खो चुके हैं - की छवि को रेंगते, चलते, कूदते हुआ देखते हैं (और आखिरकार 'शेप ऑफ़ यू' पर नाचते हुए देखते हैं)। इतनी चीज़ें हैं जिनको आप हलके में से नहीं ले सकते, ज़िन्दगी में कितना कुछ है जीने के लिए, साँस लेने के लिए। यही जीने की ऊर्जा आप में चाह पैदा करती है, आपको और चाहने पे मजबूर करती है, और आपसे ऐसा काम करवाती है जो आपने पहले कभी नहीं किये हों। मुझे पता है कि मैं इस पे ज़ोरों से काम कर रही हूँ, और जी हाँ, मुझे तो यह काफी मिल भी रही है !   और मैं अकेले नहीं हूँ - यह सफर दुनिया की हर माँ लेती हैं, इसका अनुभव करती है और खुद इसे निर्धारित करती है । माँऐं जो समझ सकती हैं कि कौनसी चीज़ें उनके रोंगटे खड़े कर देती हैं, उन्हें उत्साहित करती हैं, उन्हें संतुष्टि पहुँचाती हैं, उन्हें खुशी देती हैं - इतनी आवाज़ें कि उनसे एक पूरी किताब भर जाए। 'इफ मॉम्स हॅप्पी' नामक किताब में छोटी कहानियां हैं जो कामुकता को मातृत्व की दृष्टी से देखती हैं, और मातृत्व को कामुकता की दृष्टी से भी। इस हौसला बढ़ाने वाले प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने का मुझे मौका मिला, और उपन्यास के रूप में एक लज़ीज़ पकवान तैयार करने का (ऐसा होता तो फिर क्या होता वाली सिचुएशन के बारे में )। मदर्स डे वीकेंड के ठीक आसपास। दि हॉट मामास क्लब। हाँ, मैं तैयार हूँ। एजेंट्स, तो हो जाए एक झलक इस किताब के कुछ पन्नों की?   टॉक्स इन माय टिकर - पूजा पांडे "देखो घड़ी की सुई के कांटे तात्कालिकता की मांग करते हैं। मैं उस हिलते हुए कांटे की दासी हूँ। समीर और मैं दोनों, वक्त के मोहताज हैं, अपने बॉल-और-चैन दिनचर्या के। मेरा शरीर अब उन टिक और टाक़ के हिसाब से चलता है। कुछ रातें ऐसी भी होती हैं जब मैं रसिक को किताब पढ़के सुनाती हूँ, और डॉक्टर सेउस (बच्चों की किताब की एक शृंखला) के किरदार मेरे गंदे दिमाग के गंदे रंगों में रंग जाते हैं। मिस्टर और मिसेज जे.कारमाइकेल क्रोकस की तरह, मुझे मालूम है कि मेरे टॉक में टिक हैं, और समीर के टिक में टॉक। और बच्चे को कहानी पढ़ते समय मैं यह जानती हूँ कि इस किताब को पढ़ना उस रात मेरी आखरी नादान गतिविधि होगी। जल्द ही, मेरा नंगा शरीर समीर के शरीर में गुंथ जाएगा, चाँद की रौशनी में लिपटे हुए, जो हमारे महीन परदों से गुज़र कर आ रही है, वह परदे जो हमने ऐसे ही लगा दिया थे, और क्योंकि हम १५वे मंज़िल पर रहते हैं, और कोई हमें देख नहीं सकता।” "आज रात हम उस कला से भरी क्विकी (जल्दी की जाने वाली सेक्स की क्रिया) के गुरू बन जाएंगे। यह स्वाद से भरी संतुष्टि है - यह जानते हुए कि हम यह साथ कर पाए। हम ना सिर्फ ख़ुशी को मिले, या उससे अकस्मात टकराए, लेकिन हमनें उसे छीना, उसकी मांग की, उसके लिंग और भगशेफ को पकड़ते हुए खुशी को हार मान कर हमारे पास आने को और कामोन्माद का रूप लेने को मजबूर किया।” दि ट्रेडमिल ब्रेंड़ी फॉक्स "यह वह हसीन पल है जब शॉन का मुंह मेरे शरीर को कंठास्थि से मेरे स्तन और पेट तक चखते हुए नीचे  की ओर जाता है, और मैं पूरी तरह से खुल जाती हूँ, अपेक्षा से अस्थिर। आखिर सब धुल जाता है - काम और स्कूल और फुटबॉल प्रैक्टिस और पियानो लेसंस और होमवर्क की जद्दो-जहद -सब बिस्तर से सरक के चुप चाप दरवाज़े के बाहर चले जाते हैं। मेरा दिमाग टू-डू लिस्ट और फॅमिली कैलेंडर से अपने आप को रिहा कर लेता है और आनंद से बने एक नरम तकिया पे अपना स्थान ढूंढ लेता है।”   प्रेग्नेंट पॉज जेनिफर डी. मुनरो "इस गर्भावस्था के लिए हम एक अरसे से रुके थे। नहीं तो जिस पट्टी पे मैंने पिशाब की थी उसे मैं अपने जीवन के सबसे खुशहाल दिन की निशानी के तौर पे क्यों रखती? तो मुझे नहीं लगा था कि ऐसा दिन आएगा जब अपने तनाव के बाँध को तोड़ते वक्त मुझे अपने अंदर भरे गुस्से का सामना करना पड़ेगा - जिसे मैंने खुद से भी छिपाया था। मेरे अंदर नाराज़गी का एक टिब्बा था, जो हम दोनों को एक दूसरे से उतना ही अलग रख रहा था जितना बीमारी, क्षयिता , डर, और डॉक्टर की चेतावनियों । फकिंग ने उन सब दीवारों को गिरा दिया, और मुझे एक कम्पस की तरह अपने संतुलन को पाने में मदद की। जैसे मेरा शरीर केंद्र से बाहर हो चुका था, संतुलन खो चुका था, वैसे ही मेरा मन और मेरी खुद की छवि भी रास्ता भूल गए थे। मुझे अपने यिन के लिए यैंग की सख्त ज़रुरत थी। मुझे उसका विशाल, खुला हुआ, नंगा, विवश शरीर अपने नीचे चाहिए था, बिलकुल वैसे जैसे मैं खुली और विवश थी मिशनरी-पोजीशन सेक्स करते हुए (आदमी औरत के ऊपर), मेरे नितंब को एक तकिये पे रख कर, ताकि शुक्राणु अपनी वीरतापूर्ण यात्रा कर सकता, जिससे मेरे अंदर इस जीवन की रचना हुई। मैं चाहती थी कि वह मेरे धक्कों के नीचे काँपे, एक पराये जंतु को अपना शरीर सौंपने से मेरी शुद्धि के लिए।”   प्रकाशन विवरण नाम: "इफ मॉम्स हॅप्पी - कामुक माँओं की कहानियाँ" संपादक - ब्रैंडी फॉक्स प्रकाशक: कैच प्रेस प्रकाशन तारीक: १ मई, २०१७ कहाँ खरीदें:

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  पूजा पांडे, लेखिका और संपादक, नयी दिल्ली में रहती और काम करती हैं। वह अक्सर अपनी सात-साल की बेटी को अपनी ज़िन्दगी का प्यार मानती हैं। उनकी बेटी का नाम अहाना है और उनका इरादा है की मदर्स डे वह वही चीज़ें करके बिताएंगे: कुछ होमवर्क, थोड़ा शेप ऑफ़ यू पर डांस, और ढेर सारी बातें।
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