जब मैं ग्यारह साल की थी, एक नया गाना निकला था जो बहुत आसानी से गुनगुनाया जा सकता था, जो बड़ा मशहूर हुआ, जो हर एक भारतीय म्यूजिक चैनल पर लगातार दिखाया जाने लगा और जो बड़ी तेज़ी से गानों में अव्वल नंबर की ओर दौड़ता गया! फाल्गुनी पाठक के उस गाने, “याद पिया की आने लगी”, का एक प्यारा और सादा, थोड़ा सा फ़िल्मी विडियो था जिसमें चार सहेलियाँ बड़ी उत्तेजना से डांडिया की रात बाहर जाने के लिए अपने कपड़े और डांस के स्टेप चुनती हैं। उसमें रीया सेन गज़ब की सेक्सी दिख रही थी और उसके ड्रेस के फटने पर उसे उसका राजकुमार बचाता है। वह ऐसा कैसे करता है? केवल रीया की हेयरपिन से और उसके बाल खुले छोड़ने से। उस राजकुमार ने उस जादूई हेयरपिन से गाड़ी का बंद दरवाज़ा भी खोला! वही मेरी जवानी का वह क्षण था जब मुझे पता चला कि लंबे, खुले छोड़े हुए बालों में जादुई शक्ति है। मुझे यह भी साफ़ साफ़ याद है कि उन चार लड़कियों में से एक लड़की लड़के जैसे दिख रही थी। उसे ऐसा दिखना बिल्कुल सहज लग रहा था, और उससे बड़ी फाल्गुनी जो विडियो में गायिका और कथावाचिका की भूमिका निभा रही थी, भी वैसी ही थी।
मेरा फाल्गुनी के गानों के सब विडियो के साथ लगाव बना, लेकिन मुझे पता नहीं कैसे। गानों का संगीत तो मज़ेदार था ही, लेकिन उन सब विडियों को देखकर मुझे कुछ ऐसा लगा जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती थी।
अब जो मैं वह दिन याद करती हूँ मुझे ताज्जुब होता है कि कैसे मैंने मेरे अंदर की क्वीर भावनायें पहचानी नहीं, जो साफ़ नज़र आ रही थीं! शायद वैसे हुआ क्योंकि उस समय मैंने यह स्वीकार नहीं किया था कि मैं क्वीयर थी। मुझे वह शब्द भी पता नहीं था और उस ख़्याल को बराबर से समझती भी नहीं थी। लेकिन मैं उस भावना को जानती थी जो किसी अनकहे ढंग से उन सब विडियो में मौजूद थी और उससे मेरा लगाव था।
पहले विडियो के बाद वह लड़के जैसे दिखने वाली लड़की दोबारा नहीं आयी। लेकिन फाल्गुनी हर विडियो में आती और उसका किरदार और भी महत्त्वपूर्ण होता गया। हर एक विडियो में एक जैसा तर्क इस्तेमाल किया गया है। एक नायिका है, अपनी सहेलियों के साथ, और वह बड़ी सुंदर दिखती है। और फाल्गुनी, नायक की भूमिका निभाती है, नायिका के साथ रोमानी नायक बनकर नहीं, पर रक्षक के भेस में। जिस तरह पहले विडियो में नायक ने हेयरपिन के सहारे नायिका की परेशानी सुलझायी थी, अब फाल्गुनी आती है, कभी साउंड मिक्सर के भेस में, कभी डांस टीचर के भेस में या फिर कभी (क्वीर) सिंडरेल्ला की (क्वीर) फेयरी गॉडमदर के भेस में।
वह हर बार आफ़त में उलझी हुई लड़की को बचाती है। या तो वह लड़की के प्रेमी को भाने वाला ड्रेस चुनने में मदद करेगी, या अकेलापन दूर करने में, या फिर कोई और मदद। चोरी-छिपे कुछ यूँ हो जाता है कि अभिनेता, गाने में बहुत कम समय के लिये दिखाई देता है, जैसे वह सिर्फ़ नाम के वास्ते उस गाने में मौजूद है। और उन दोनों पर कॅमेरा केंद्रित करने के बाद, कॅमेरा हर बार फाल्गुनी पर जाता है, ताकि हमें सदा याद रहे कि असली हीरो कौन है।
उसके बड़े मशहूर गाने ,“मेरी चुनर उड़ उड़ जाए”, का उदाहरण लीजिये। इसकी मूल कहानी ऐसी है कि एक छोटी लड़की (आएशा टाकिया) को उसके घर से दूर एक बड़े घर में एक खूसट वार्डन के साथ रहने के लिये भेजा जाता है। अजीब बात यह है कि वह बार बार अपने शहर की फाल्गुनी को याद करती रहती है, उसे डांस के स्टेप सिखाती हुई, और सच कहें तो ऐसा लगता है कि वह दोनों एक दूसरे के प्यार में हैं। बाद में आएशा एक साड़ी पहनी हुई दूसरी औरत के ख़्वाब देखती हुई पाई जाती है। यह औरत सिर्फ तब आती है जब आएशा अकेली होती है, और वह एक गोल मटोल ख़्वाबों की सहेली जैसी है। उस विडियो में एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान भी है, लेकिन सभ्य बातचीत के अलावा वो उस कहानी में क्या किरदार निभा रहा है, अस्पष्ट है। शीघ्र ही उसे गायब कर दिया जाता है, और आएशा टाकिया के ख़्वाबों में आने वाली सभी औरतें उसकी जगह लेती हैं। किसी अंजान कारण से उस विडियो में एक याक भी है।
“ओ पिया”, उसके दूसरे गाने में, फाल्गुनी एक मर्सेड़ीज़ गाड़ी, जो लगता है उसी की है, में से उतरती हुई पाई जाती है, एक सफेद रंग का सूट पहने हुए। उस ज़माने में और देखा जाए तो -अब के ज़माने में भी- मुझे नहीं लगता और कोई भारतीय नारी होगी जो इतनी शान और आराम से उस किस्म के कपड़े पहनती होगी!
फाल्गुनी की यह प्रतिमा ने मुझे बहुत ख़ुश किया, चूंकि मुझे भी वैसे कपड़े पहनने का मन था, अपने अंदर के किसी मरदाने तार को छेड़ने का। लेकिन कुछ और भी था, जो और भी दबा हुआ था और जिसे मैं इन कहानियों में पहचान सकती थी।
हर एक विडियो में, फाल्गुनी लगभग हर बार ख़ुद को फ्रेंड ज़ोन - दोस्त के रोल- में ढकेलते हुए पाई जाती है - भले ही लड़की उसकी दीवानी ही क्यों ना हो। चूंकि वह अक्सर कहानी के बीच में ना होकर उसके सिरे में रहती है - थोड़ी बहुत कथावाचिका, कभी कभार एक ख़्वाब जैसी, कहानी के एक आधे अधूरे हिस्से जैसी ... यह सब बहुत अस्पष्ट है, लेकिन हम वह महसूस कर सकते हैं।
मैं इस बात को सौ प्रतिशत समझ सकती थी चूंकि मेरी किशोरावस्था के अधिकतर सालों में मेरी चहेती सहेलियों के मामलों में मैं ख़ुद को फ्रेंड ज़ोन करती थी। यही नहीं, अगर मुझे अच्छी लगने वाली लड़की को कोई लड़का अच्छा लगता, तो मैं यह सुनिश्चित करने कि उसे वो लड़का मिले, हद से बाहर जाती। उन दोनों की एक दूसरे से मुलाकात कराके, या ज़रूरत होने पर दोनों की सिफारिश करके मैं यहकर गुज़रती थी। अगर ऐसा करने से मेरे दिल को ठेस पहुँचाने वाला दर्द होता तो मैं उसे भी बरदाश्त करती, चूंकि मुझे सच में ऐसे लगता था कि मेरे उस प्यार की अपनी कोई जगह नहीं थी। मैं ऐसी कोई प्रेम कहानी नहीं जानती थी जिधर ऐसा हुआ हो, और शायद ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। शायद मुझे इस बात का खुलासा ख़ुद के साथ भी नहीं करना था - या फिर, तब नहीं कर सकती थी।
फाल्गुनी के गानों ने समलैंगिक आकर्षण, नातों और संबंधों को साकार किया, बिना उनके बारे में कुछ स्पष्ट रूप से कहकर, वो भी विषमलैंगिक आकर्षण, नातों और संबंधों की दुनिया के साथ, और इनकी आवाज़ मेरे ज़हन में गूँजती रही। इन कहानियों के आकार ने मेरी भावनाओं को अपनी जगह दिलाई। उन सब विडियो ने एक लड़की का लड़के सा बन के रहना एक मामूली बात बना दी, बिना ज़नाना तौर तरीकों को अपनाने वालियों का महत्त्व कम किये । ‘फ़ेम’, ‘टॉमबॉय’, ‘बुच’ - कोई भी किसी भी मिश्रण में क्वीयर हो सकता था - उसे आँकने की या ‘एक बाज़ू चुनने’ की भी ज़रूरत नहीं थी। जब मैं वह सब विडियो देख रही थी तब मुझ पर मेरी सच्चाई के बारे में बात करने का कोई दबाव नहीं था, लेकिन अंदर ही अंदर मुझे वह वह सब देखने में बड़ा मज़ा आता और मैं उनसे जुड़ सी जाती। इस मुफ़्त के मज़े के ज़रिये मैंने सूक्ष्म रूप से अपने अंदर के अस्तित्व और भावनाओं की दुनिया में आनंद उठाना सीखा।
फल्गुनी की आवाज़ और उसके दिखावे में एक अनअपेक्षित, गज़ब का फ़र्क भी है। अगर आपको यह नहीं पता हो कि वह कैसी दिखती है तो आपके अनुमान में वह बहुत नारी सुलभ होगी - ठीक उसके विडियो की सब नायिकाओं जैसी। और अगर आपने कभी उसे गाते हुए नहीं सुना हो तो आप यह समझेंगे कि वह बड़ी फसादी किस्म की होगी। सच तो यह है कि वह बेहद शिष्ट है और काफी शर्मीली लगती है। नायिकाओं के संग स्क्रीन पर दिखने में उसे कोई ऐतराज़ नहीं, उस समय की दूसरी गायिकाओं के विपरीत, जो हरदम चाहती कि कोई हृष्ट-पुष्ट मर्द उन पर फ़िदा होते हुए दिखाई दे (हालांकि मुझे ये भी लगता है कि हर एक की चाहत अपनी जगह ठीक है!)।
मुझे फाल्गुनी इसलिये भी भाती थी क्योंकि वह अपने शरीर और वज़न को लेकर भी एकदम निश्चिंत थी। ऐसा लगता कि उसे दुबली पतली या सेक्सी होने की कोई ज़रूरत नहीं लगती थी और यह सच है कि वह ख़ुद जैसे रहकर भी लोगों के ध्यान को आकर्षित कर पाई है । जबकि अपनी छवि में वह शायद क्वीयर है, लेकिन आम जनता के लिये यह बात कोई मायने नहीं रखती। वहाँ वो मुख्यत: अपने काम के लिये जानी जाती है, नवरात्री डांडिया जलसों की हद से ज़्यादा लोकप्रिय गायिका के रूप में।
वह साबित करती है कि आप हमेशा क्वीयर रहकर भी अपने काम में दूसरी विशेषताएँ भी ज़ाहिर कर सकते हैं। मुझे यह बात बेहद पसंद है कि डांडिया की रानी होने के बावजूद भी, फाल्गुनी ने कभी घाघरा चोली नहीं पहनी है। यह बात भी मुझे प्रेरित करती है कि वह अपने पहनावे में इतनी सुखी है और किसी भी हालत में वह उसे नहीं बदलती। उसके कपड़े उसी का एक अंग है। मुझे इस बात पर हँसी आती है कि जबकि अब तक हमें उस बात की आदत हो जानी चाहिये थी, मीडिया वाले अब भी उसे उसकी ‘स्टाइल’ पर टोकेने से कभी पीछे नहीं हटते । लेकिन चूंकि वह अपने अपने आप में इतनी सुखी है, उसके बारे में व्यंग्यपूर्ण बात करने से, मीडिया ख़ुद अपनी सकीर्ण सोच का खुलासा करती है, और फाल्गुनी पर कोई असर नहीं होती और वह प्यार से हँसती हुई दिखती है ।
उसके एक इंटरव्यू में एक संवाददाता ने चालाकी से उससे पूछा - “या स्टेज पर या उसके बाहर, आप हर बार शर्ट या पँट/ जीन्ज़ पहनी हुई होती हो। क्या आपने कभी पारंपरिक डांडिया कपड़े, जैसे की घाघरा चोली पहनने के बारे में सोचा है?” उसका उत्तर था, “मैंने ज़िंदगी में कभी घाघरा चोली नहीं पहनी है। घाघरा चोली तो बहुत दूर की बात है, मैंने सलवार कमीज़ भी कभी नहीं पहनी है। मैं उसकी आदी नहीं हूँ।” उस संवाददाता ने उसी अंदाज़ में पूछा - “यह स्टाइल आपके पहनावे का चिह्नक कैसे बना?” और फाल्गुनी ने कहा - “जब मैं बच्ची थी, तब भी मैं स्कूल यूनिफाॅर्म इसलिये पहनती थी चूंकि मेरे पास और कोई चारा नहीं था। स्कूल के बाहर मैं मेरे शर्ट, पँट और जीन्ज़ में ही हरदम सुखी थी। मैंने कुछ और पहनने के बारे में सोचा ही नहीं। जब मैं बड़ी हो रही थी, तब मेरी बहनों ने मुझे हरदम शर्ट और पँट पहनाए। अब मुझे लगता है कि यही मेरी वेशभूषा है; यही ड्रेस है मेरा। मुझे नहीं लगता कि मैं कभी घाघरा चोली पहनूंगी।”
उसके लिंग के क्वीयर होने की स्वाभाविकता ऐसी है कि आप उसे बेझिझक स्वीकारते हो। और उसके बारे में सबसे हर्षित करने वाली, मादक बात यह है कि जनता ने बिना कोई प्रश्न पूछे उसके दिखावे को अपनाया और स्वीकारा है, ठीक उसके सुशील व्यक्तित्व जैसे, बिना पलक झपकाये।
जब मैंने छोटे बाल रखना शुरू किया और शर्ट और मरदाने टी शर्ट पहनना शुरू किया तब लोग मुझे ‘फाल्गुनी’ के नाम से बुलाने लगे। कुछ साल बाद लोगों को यह बताने पर कि मैं एक द्विलिंगी औरत हूँ, मैं समझ गयी कि यह शब्द सामान्य भारतवासियों में समलैंगिक या मरदानी स्त्रियों के लिये इस्तेमाल किया जाता है। और यह अपमानजनक शब्द नहीं है।
मैं यह जानती हूँ चूंकि भारत फाल्गुनी से बेहद प्यार करता है। डांडिया के दिनों उसके प्रशंसकों का वातोन्माद बेमिसाल है और उसे उसके डांडिया के कार्यक्रमों के लिये करोड़ों रुपये मिलते हैं। इतने सालों बाद भी फाल्गुनी के विडियो लोगों की याददाश्त में बने हुए हैं। जिन विडियो में म्युझिक कंपनियों ने फाल्गुनी को नज़रअंदाज़ किया वह भूली जा चुकी हैं ।
मैं तो सिर्फ इस बात की सराहना करती हूँ कि वह हरदम अपने समय से बहुत आगे रही। उसका अपरंपरागत दिखावा और उसका खुल्लम खुल्ला स्टाइल अब तक किसी गायिका में देखे नहीं गये है। वह अपने बलबूते एक ‘राॅक स्टार’ बनी है, हालांकि इस बात को लोगों ने स्वीकारा नहीं हैं। लोगों में इतना घुलमिलने के बावजूद वह अपने बारे में इतना संभलकर कदम रखती है कि जैसे सभी ख़ूबसूरत लोगों के साथ होता हैं हम उसके बारे में बस अनुमान लगाते रहते हैं, लेकिन हमें वाकई में कुछ पता नहीं चलता!
मैं ख़ुश हूँ कि वह इतनी मशहूर है और सब लोगों ने उसे स्वीकारा है। इतने विभिन्न लोग उसके प्रशंसक हैं कि वह लड़के जैसी दिखने वाली लड़की जो दूसरों से अपनी भावनाएँ छिपाती है, वह भी खुले आम फाल्गुनी की प्रशंसा कर सकती है, बिना इस डर के कि कोई उसकी आलोचना करेगा। इस प्रकार, शायद हौले हौले, उस लड़की की भी चुनर उड़ उड़ जाएगी ताकि और लोगों के सामने उसे ख़ुद जैसे बने रहने का आराम मिलेगा।
काश फाल्गुनी साल भर चैनलों पर और दूसरे माध्यमों के ज़रिये और दिखाई देती, उन लोगों की सहायता करने के लिये, जो ख़ुद की पहचान से जूझ रहे हैं। या शायद फाल्गुनी जैसी और महिलाएँ होतीं। ऐसी शख़्सियत जो ख़ुद जैसे बने रहने में सुखी और ख़ुश है और जिन्हें देशभर मान्यता मिली है। जिनकी स्टाइल असली स्टाइल है, और सिर्फ एक दिखावा नहीं। यह तो झूम कर नाचने लायक बात है, है ना?
गर्व से और खुलके अपनी लैंगिकता का ज़िक्र करतीं द्विलिंगी कार्यकर्ता, सोनल ग्यानी ज़ी टी वी के ‘कनेक्टेड हम तुम’, बॉलीवुड फ़िल्म ‘W’ और दस्तावेज़ी ‘पर्पल स्काइज’ में पेश आने के लिये ज़्यादा मशहूर है। फ़िलहाल वोह पारोदेवी पिक्चर्स में क्रिएटिव एसोसिएट है।
हर नवरात्री फाल्गुनी मुझे एहसास दिलाती कि क्वीर होना एकदम कूल है
काश फाल्गुनी साल भर चैनलों पर और दूसरे माध्यमों के ज़रिये और दिखाई देती, उन लोगों की सहायता करने के लिये, जो ख़ुद की पहचान से जूझ रहे हैं।
सोनल ज्ञानी द्वारा
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…