हमने फिल्म आखिर नहीं देखी और आज भी वह मुझे रह रह कर इस बात की याद दिलाती रहती हैं कि मैं उन्हें नहीं ले गयी। कभी-कभी हमारी कुछ बातचीत से मुझे लगता है कि शायद उन्हें मेरे लैंगिक रूप से सक्रिय होने के बारे में मालूम है, लेकिन इस बात को वह मानना नहीं चाहतीं । यही एक संभावना हो सकती है। शायद सच्चाई से जूझने का यह उनका अपना तरीका है। लेकिन यह बातचीत, किताबें और फिल्में हमें धीरे-धीरे उस दिन के करीब ले जाती हैं जब मैं खुलकर और बिना किसी झिझक के उनसे अपने अनुभव और भावनाएँ बयान कर सकती हूँ। यह तरीके सिर्फ उनको चौंकाने के लिए नहीं हैं। वह मुझे किस नज़र से देखती हैं, यह मेरे लिए मायने रखता है। मैं मज़ाक में कहती रहती हूँ कि दुनिया को मेरी सच्चाई जानने की ज़रूरत नहीं, लेकिन मैं यह ज़रूर चाहूँगी कि मेरी अम्मा मेरे सच को जाने। उनसे बात करते-करते, हम उनके मन में बसे अपने बच्चों के काल्पनिक रूप और हमारे असल रूप के बीच की दूरी को कुछ हद तक कम कर पाए हैं। अम्मा को हमें समझने में दिलचस्पी और हमसे जुड़ने की क्षमता ने हमारे बीच के रिश्ते को मज़बूत बनाया है।इसने हमें भरोसे के आधार पे बने एक खुले और प्यारे रिश्ते को और बेहतर बनाने का मौका दिया है। यही वजह है कि मैं आसानी से उनसे बात कर पाती हूँ, और अपने विचारों को व्यक्त कर सकती हूँ, बिना इस बात की परवाह किए कि वह किस तरह की धारणा बनाएंगी। आज, अम्मा, मेरी बहनें और मैं अक्सर सेक्स, अन्तरंग रिश्तों में सत्तागिरी, और कंडोम और दूसरे गर्भ निरोधकों के बारे में खुल के बात करते हैं। बातचीत को हम अब फुसफुसाते हुए नहीं करते। मुझे उम्मीद है कि एक दिन मुझे डॉक्टर के सामने अपनी बात करने के लिए किसी गुप्त कोड की ज़रुरत नहीं पड़ेगी और अम्मा को राज़ पहले से ही मालूम होगा। श्रीनिधि राघवन एक फेमिनिस्ट हैं जिनको किताबें पढ़ने का शौक है। वह एक अंतर्मुखी इंसान हैं जो लोगों के हक़ के लिए वकालत करती हैं और औरतों एवं लड़कियों के हक़, समानता और लैंगिकता के बारे में लिखती हैं। वह कविताओं में सुख ढूंढती हैं। आप उनका दूसरा लेख 'एक भारतीय सेक्स शिक्षक की डायरी' यहाँ पे पढ़ सकते हैं।
अम्मा, अब हमें बात कर लेनी चाहिए।
Discuss sex with your parents? Tell them that you are sexually active? Nope, not happening. But Srinidhi managed to do so. Read to find out how THE TALK took place between Srinidhi and her mother!
श्रीनिधी राघवन द्वारा लिखित
हाल ही में, एक क़रीबी दोस्त ने मुझे ईरानी लेखिका, मार्जेन सत्रापी की खूबसूरत चित्रों से भरी किताब 'एम्ब्रॉइडरीज़' भेजी। मैं इस किताब को पहले पढ़ चुकी थी लेकिन मेरे पास अपनी खुद की कॉपी नहीं थी। मैं इसे फिर से पढ़ने के लिए उत्साहित थी। कुछ ही घंटों में मैंने इसे पढ़ डाला। (मैं इसकी जितनी तारीफ़ करूँ, कम होगी, यानी इसे ज़रूर पढ़िए।) पहली बार जब मैंने यह किताब पढ़ी थी, (जो काफी साल पहले की बात है), तब मैं इसे अम्मा को पढ़ने के लिए देने की हिम्मत भी नहीं कर सकती थी। पिछले कुछ सालों में हालात बदल गए हैं। मैंने किताब उनके हवाले कर दी और कहा, "यह बहुत ही खूबसूरत किताब है। इसमें बहुत सी ईरानी औरतों ने सेक्स और अपनी ज़िंदगियों के बारे मैं बात की है। पढ़ कर बताना कैसी लगी।”
[https://agentsofishq.com/uploads/2022/08-August/02-Tue/Amma-its-time-for-the-talk_1720%20%2813%29.jpg]]
कुछ दिनों बाद, मैंने किताब को उस जगह पड़े हुए देखा जहाँ माँ अक्सर मेरी किताबों को पढ़ने के बाद रख देती थीं। ज़्यादातर वह किताब ख़त्म करके उसपर अपनी राय देती हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। मैंने उनसे पूछा कि उन्हें किताब कैसी लगी। "ठीक थी। दिलचस्प है , इन औरतों को इतना खुलकर बात करते हुए देखना।", उन्होंने कहा।
अम्मा और मैंने अपने लिए एक नया पैटर्न विकसित किया था। मैं ऐसी किताबें ढूँढती जिनका वह आनंद ले सकतीं, सच कहूँ तो, ऐसी किताबें जो उनको शायद चौंका सकती थीं और उनको इस उम्मीद से देती कि हम बाद में उन मुद्दों पर चर्चा कर सकेंगे। नारीवाद। सेक्स। मिथकों में सेक्स। समलैंगिक औरतें। प्यार के वैकल्पिक रूप। सिंगल रहना। यह व्यवस्था हमारे लिए काम कर रही थी। यह किताबें असहज मुद्दों को मेरी माँ तक पहुँचाने का काम कर देती थीं और वह मुझसे और किताबों पर मेरी सलाह लेती रहीं। यह पहली बार नहीं था कि हमें सेक्स के बारे में ज़रूरी चर्चा करने का मौक़ा मिला था। लगभग ५ साल पहले, अम्मा को मेरे बैग की कोने वाली जेब में एक कंडोम मिला था। कंडोम खुला हुआ था, और अपने पैकेट में नहीं था। मुझे यूँ लग रहा था जैसे कोई दुर्घटना धीमी गति (स्लो मोशन) में घट रही हो। जब उन्होंने मुझसे कहा कि वह मेरे बैग में कुछ ढूँढ रही थीं और उसके बाद पूरे दो दिन तक मुझसे नज़रें चुराती रहीं, मेरा शक यकीन में बदलने लगा कि उन्हें कंडोम मिल गया था। वह भी इस बात को छेड़ने से हिचकिचाती रहीं, शायद यह जानने के डर से कि उनकी सबसे छोटी बेटी लैंगिक रूप से सक्रिय थी। मैं उनसे इस बारे में बात करना चाहती थी ताकि हम आखिरकार मेरे अन्तरंग जीवन पे पड़े परदे को हटा सकें ।मैं उल्टा घबरा के शुतुरमुर्ग बन गयी। इस उलझन को सुलझाने के लिए मैंने अपनी बहनों से फोन पे कॉनफ़्रेन्स के द्वारा बात की। वो इतना हँसी कि हँसी के ठहाकों के बीच उनके शब्द कहीं खो गए। जब माँ बिना जाने रह नहीं पायीं, तो उन्होंने आखिरकार बात को छेड़ ही दिया। "मुझे एक..." वह रुकीं और फिर बोलीं, "खुला कंडोम मिला, तुम्हारी कोने वाली जेब में।" शब्दों को खोजते हुए मेरे चेहरे से रंग उतर गया, और मैंने कोशिश की कि मेरा मुख मंडल एकदम अभिव्यक्ति शून्य हो -पोकर फेस। मुझसे झूठ बोला नहीं जाता, लेकिन ऎसी स्थिति में मेरे पास और कोई चारा नहीं था। "अर्रे, यह तो 'ए' और मेरे पानी के गुब्बारे वाले प्रयोग में इस्तमाल हुआ था," मैंने कहा। उनहोंने अपनी आँखों को छोटा करते हुए मेरी ओर देखा, जैसे कि वह हमेशा देखतीं हैं, जब उन्हें मुझपर शक होता है। किस्मत से उन्होंने और सवाल नहीं पूछे लेकिन उस दिन के बाद काफी समय तक हमारे बीच एक बेआराम माहौल बना रहा। एक हद तक परम्परागत घर में बड़े होते हुए, सेक्स पर पाबंदी नहीं थी लेकिन कोई इस विषय को छेड़ता भी नहीं था। हमारे परिवार में चार औरतें हैं, मेरे पिता और हमारी 'डॉगेस'। लेकिन हमने कभी सेक्स को लेकर वह एक जरूरी बात नहीं की। हमहमारे कुत्ते- डॉग्गस - के लिबिडो को लेकर बहुत मज़ाक बनाते मगर इंसानों के बीच सेक्स तक विषय कभी पहुँचा ही नहीं। कभी-कभी, बातचीत में कहीं से यह बात निकल आती, लेकिन खुद से जुड़ी सेक्स विषयी बातों से हम अपने आप को किसी तरह बचा लेते। कभी-कभी हम रेप के सन्दर्भ में बात करते, ज़्यादातर उसके फिल्मों या किताबों में वर्णन को लेकर। यह बातचीत आमतौर पर अम्मा के साथ होती थी - हमेशा हमारे घर की चार दीवारों के अंदर, फुसफुसाते हुए। मैं गायनेकॉलेजिस्ट-स्त्रीरोग विशेषज्ञ - के पास जा रही थी, तो वह भी मेरे साथ चल पड़ीं। उन्होंने इस बात का मज़ाक उड़ाया कि उनकी पीढ़ी की औरतें प्रेग्नेंट होने के पहले कभी गायनेकॉलेजिस्ट के पास नहीं जाती थीं। मैंने जवाब दिया कि अब समय बदल गया है और यह अच्छी बात है कि हम गायनेकॉलेजिस्ट के पास अपने स्वास्थ की जांच करवाने आए हैं। उन्होंने मेरी हाँ में हाँ मिलाई। उन्होंने मेरे साथ रुकने की और डॉक्टर से सभी किए गए टेस्ट्स को लेकर बात करने की ज़िद्द की। दूसरी ओर, मैंने वेटिंग रूम से डरते हुए अपने फ्रेंड को एक मेसेज भेजा। मैं इस बात को लेकर चिंतित थी कि अम्मा को अनजान रखके, मैं किस तरह से डॉक्टर को अपने लैंगिक रूप से सक्रिय होने के बारे में बता सकती थी। कोई गुप्त पलक झपकाने वाला कोड़ क्यों नहीं था? या फिर एक पहले से निश्चित संख्या में टेबल पर थपथपाना यह संकेत देने के लिए कि - "मैं लैंगिक रूप से सक्रिय हूँ और इस बात की अम्मा को कोई खबर नहीं है।" जब हम डॉक्टर के क्लिनिक से बाहर निकले, मैं सोचने लगी कि आखिर अम्मा से मैंने अब तक यह बात क्यों छिपाई थी। वह क्या बात थी जो मुझे ऐसा करने से रोक रही थी? जैसे हम दूसरे मुद्दों पे बातचीत करते थे, वैसे ही इस बात को लेकर क्यों नहीं? हाँ, मुझे लगता है कि अपने बच्चों से सेक्स के बार में बात करना आवश्यक है। लेकिन वयस्क होने पर यह बात अपने माता-पिता से कैसे की जाए? इस पेचीदा बात को अपनी अम्मा के सामने पेश करने की मैं पिछले एक साल से कोशिश कर रही हूँ, और हर बार मैं सही शब्दों की तलाश में पीछे रह जाती हूँ। हम दोनों इस बारे में खुलकर और ईमानदारी से कैसे बात करें? बिना झूठ बोले या किसी घुमावदार तरीके का सहारा लिए। सुरक्षा, लैंगिक आनंद और सेक्स की क्रिया को लेकर हम कैसे बातचीत करें? ऐसे भी दिन होते हैं जब मुझे लगता है कि हम इस मामले में कुछ आगे बढ़ पाए हैं। लेकिन मैं समझती हूँ कि मेरी शादी हो जाने पर, बातचीत का रुख और रंग दोनों बदल जाएँगे, और मैं बिना डरे या परवाह किए उनसे बात कर पाऊँगी। अम्मा को भी मेरी बहनों से इस बारे में बात करना ज़्यादा आसान लगता है। मैं उनके साथ ईमानदारी का रिश्ता चाहती थी, इस लिए उनसे बात करने के नए तरीके ढूंढती रही। अम्मा और मेरे लिए, सेक्स के बारे में बात करने के लिए सिर्फ किताबें ही एक ज़रिया नहीं थीं। करीब एक साल पहले, हैदराबाद में एक फेमिनिस्ट संस्था के साथ काम करते हुए, हमने एक दो-दिन का फिल्म फेस्टिवल आयोजित किया था। हम फिल्मों की विस्तृत श्रृंखला दिखाने वाले थे, और मैं इस बात से काफी उत्साहित ही। मेरी बड़ी बहन उस समय शहर में थी और उसे 'ऍक्सेक्स' नामक डाक्यूमेंट्री देखनी की इच्छा थी। 'ऍक्सेक्स' लैंगिकता और विकलांगता पे बनी एक शानदार फिल्म है। इस फिल्म में अलग-अलग विकलांगताओं से ग्रस्त औरतें, प्यार, सेक्स और ज़िन्दगी के बारे में बात करती हैं। मेरी बहन और मेरा यह मानना था कि अम्मा को यह फिल्म देखनी चाहिए। वह ५२ मिनट तक औरतों को अपने अनुभवों के बारे में खुलकर बात करते हुए देखती रहीं। यह फिल्म स्पष्ट रूप से सेक्स और कामुकता से जुड़े औरतों के अनुभवों से संबंधित है। इन औरतों की कहानियों में बसी तसवीरें और कविताएँ हमें अपने पूर्वाग्रहों और 'नॉर्मल' के विचारों पे सवाल उठाने के लिए मजबूर कर देती हैं। यह फिल्म, दया के चश्मे लगाए बिना, शरीर के अनेक रूपों का जैसे जश्न मनाती है। फिल्म के बाद, दर्शकों का गुट, विकलांगताओं से ग्रस्त व्यक्तिओं की लैंगिकता पर छाई हुई चुप्पी पे चर्चा करने के लिए इकठ्ठा हुआ। अम्मा ने बात नहीं की। ऐसा लग रहा था कि वह फिल्म को लेकर विचार कर रही थीं। काफी दर्शकों ने फिल्म के पहले अपने खुद के पूर्वाग्रहों और विकलांग लोगों को देखने के अपने नज़रिए पे बात की। अम्मा मेरे जैसे अंतर्मुखी स्वाभाव की हैं। फिल्म को समझने के लिए अम्मा ने कुछ वक्त लिया और फिर हमसे पूछा, "समलैंगिक औरतें सेक्स कैसे करती हैं?" मेरी बहन ने तुरंत उन्हें समझाने की कोशिश की। मैं कुछ दिन सोचती रही कि इस बातचीत को मैं आगे कैसे बढ़ा सकती हूँ। फिर एक दिन मैंने लैपटॉप अम्मा को थमा दिया और हँसते हुए बोली, "इंटरनेट के पास तुम्हारे सवाल का जवाब है। तुमको पढ़ना चाहिए।" मैं जानती हूँ कि लोग अक्सर इस सवाल को बेहुदा ढंग से पूछते हैं। लेकिन उनके इस सवाल से हमें एक मौका मिला था, जहाँ हम उनसे लिंग-योनि प्रवेश के सीमित फ्रेम से परे सेक्स के बारे में बात कर सकते थे।
[[ फिल्मों और किताबों की सहायता से हमारे सेक्स पे बात करने के ढंग में बदलाव आया है। अम्मा ने 'मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ' देखने की ज़िद्द की। मैंने उन्हें बताया कि फिल्म में काफी विशद) सेक्स सीन थे। इस बात का उन्होंने चिढ़ के जवाब दिया था , "तो?"
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