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मायूस और अकेला, मैं बेदिल कैसे बन गया!

What memories can a unexpected apology from a childhood bully bring up?

हाल ही में हमारे साथ स्कूल में पढ़ने वाले बैचमेट का मेसेज आया| उसने हमारा हाल चाल पूछते हुए सिम्पल सा ‘हेल्लो’ भेजा था | यह कोई ऐसा मेसेज नहीं था, जिससे आपके पसीने छूटने लगे| पर हम परेशान हो गए, दरअसल यहाँ मसला कुछ और ही था| उसका हेल्लो साधारण था, पर उसकी आवाज़ हमें हमारे अतीत में ले गयी| जब हम चौदह साल के थे| इस आवाज़ ने हमें हाई स्कूल के समय, बहुत सताया था| इस आवाज़ के मालिक, हमें गालियाँ देने वाला, ताने कसने वाला और ज़ोर दिखाने वाला हमारा गुंडा क्लासमेट था| उसके एक हेल्लो ने वो सारी यादें ताज़ा कर दीं| और तो और, हमारा पूरा दिन बर्बाद कर दिया| हमने उन घावों को भरने की काफ़ी कोशिश की थी | हमारे साथ जो हुआ था, उसे भुलाने की कोशिश की थी | आज उस एक हेल्लो ने सब कोशिशों पर टंकी भर पानी उड़ेल दिया था | हमने हफ़्तों तक उसके मेसेज का रिप्लाई नहीं किया| हमारे अतीत के इस भूत ने हमें दर्द और घाव के अलावा कुछ नहीं दिया था| उससे बात करने की सोच भर से, हमारे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी थी| शर्म और गुस्से की एक मिली जुली लहर, हमें बुरी तरह से हिलाने लगी |    स्कूल के समय की एक घटना याद आई| जब हम पी.टी. क्लास के दौरान, क्रिकेट खेल रहे थे | हम यूं ही कंफ्यूज और बेडौल से बच्चे थे  | हमारी अजीबो गरीब चाल, और बार बार  कैच ना ले पाने की वजह से,  मैच ही रुक गया था| बाकी खिलाड़ी तंग आ चुके थे | हमारा स्कूल उतना प्रगतिशील या मॉडर्न नहीं था| और ये मैच एक तरफ लड़कों की टीम, और दूसरी तरफ, लड़कियों की टीम, के बीच खेला जा रहा था | लड़कों के टीम की इज़्ज़त हमारे हाथों में थी, हमको मैच जीतना ही था | हमें अच्छी तरीके से याद है, हम लड़कों के बड़े से झुण्ड में बीचोबीच खड़े हुए थे | उनमें से कोई भी हमें  टीम में नहीं लेना चाहता था| सब हमारा मज़ाक उड़ा रहे थे| जिसकी शुरुआत उसी गुंडे क्लासमेट ने की | हमारे दौड़ने का स्टाइल, लड़कियों सा था | जिसके कारण उसने हमें छक्का बुलाना शुरू कर दिया था| हम वहीँ ग्राउंड में सिमट के बैठ गए | आँखें में आंसूं उमड़ रहे थे, वो आंसूं जो गिरते, तो वो लड़के जो कुछ कह रहे थे, उनकी वो बात पक्की हो जाती | “छक्का”, ये शब्द हमसे जुड़ गया, और अगले 6 साल,  हमारे लिए पार्क में पी.टी. क्लास जाना,  नर्क बन गया | हम फिर से वैसे असहाय और वल्नरेबल नहीं फील करना चाहते थे | सिर्फ़ तानों और गालियों की बात नहीं थी | जिन लड़कों पे दादागिरी की जाती, उनको गालियों के साथ साथ, जेंडर को लेके, विकृत टेढ़ी मेढ़ी सोच के सारे आरोप भी सहने पड़ते | यह इंसान हमारे अतीत के उन अंशुमान को जानता था, जो हम अब नहीं हैं | तबसे इतने साल बीत चुके| फिर भी इस इंसान की आवाज़ से ही हम इतना परेशान हो गए थे - ये देख के, हम और परेशान हो गए | इसका मतलब था कि उन लड़कों की दादागिरी अब भी हमें सता रही थी, हम उससे आगे नहीं बढ़ पाए थे | हमने महीनों बाद, उसके मेसेज का जवाब दिया | उसने तुरंत रिप्लाई किया, काफ़ी लंबा सा रिप्लाई | हमें थोड़ा सरप्राइज तो हुआ| पूरा मेसेज ‘खुद के ऊपर काम करने’ और ‘जवाबदेही’ जैसे शब्दों से भरा पड़ा था | यह पढ़ कर हमें और गुस्सा आया | सच बोलें,  हमने आज तक वो मेसेज पूरा नहीं पढ़ा है और शायद कभी पढ़ेंगे भी नहीं| भले ही उसे कितना ही अपने गुनाह का एहसास हो, हमें उसका 'सॉरी' नहीं सुनना था, और उसको माफ़ करने का भार भी अपने सर नहीं लेना था | उदार दिल से ये नहीं कहना था कि ‘कोई बात नहीं, हम दोनों ही बच्चे थे(हालांकि हम बच्चे ही थे)’ पर हमें उसे माफ़ करके उसे संतुष्टि देने का बिल्कुल मन नहीं था | जवाब देके ,हमें वो बात ख़त्म भी नहीं करनी थी | हम मानते हैं कि हमें उसे यूं सता के थोड़ी तस्सली तो मिल रही थी| उसका स्वाद कड़वा सा था, फिर भी, तसल्ली थी | उसे इस बात का एहसास दिलाने के लिए, हमने अपने मेसेज नोटिफिकेशन को ऑन कर दिया| ताकि उसे मालूम हो, कि हमने मेसेज पढ़ लिया है और हमें उसकी बातों से घंटा फ़र्क पड़ता है| उसे ज़िन्दगी भर खुद की गलतियों के बनाये हुए अंधे कुएं में तड़पने दो- हमारे अंदर से ये  आवाज़ आयी, जैसे हम कोई शहनशाह  थे, जो अपना फरमान सुना रहे थे |        मुंबई के ज़्यादातर अंग्रेजी स्कूल जैसे, हमारे स्कूल में भी सामाजिक उंच नीच का चलन था | इसमें आर्थिक स्तर और जात तो देखे ही जाते थे, ये भी देखा जाता था कि आप किस हद तक, जन्म पे दिए गए अपने जेंडर रोल को निभा रहे हो | जब स्कूल में थे, तो हमारे पर  क्लास के बाकी लड़कों जैसा बनने का बहुत प्रेशर था | बाकी लड़कों के मुकाबले, हम थोड़ा कम ‘मर्दाना’ थे | हमें ये भी समझ आ गया था, कि हम जब और लड़कों जैसे बर्ताव करेंगे, तभी हमें स्वीकारा जाएगा | तब हर कोई हमारी तारीफ़ करेगा, हमें सराहा जाएगा, तभी हमारा यूं मज़ाक बनाना बंद होगा | स्कूल में लड़का होने का मतलब काफी साफ़ साफ़ था : भिड़ना, उससे दोस्ती यारी रखना , फुटबॉल और कुश्ती (डब्ल्यू. डब्ल्यू.ई.) का सुपर फ़ैन होना| लंच ब्रेक में दूसरे लड़कों से लड़ाई करने में महारत| अपने स्कूल के लिए स्पोर्ट्स के प्राइज़ जीतना | ये सब करने पे आप लड़के कहलायेंगे| जैसे जैसे हम बड़े हुए, एक बात का एहसास हुआ | कि और लोगों को ऐसा नहीं लगता था कि वो अपना रोल ‘निभा’ रहे हैं | जैसा हमें हर दिन निभाना पड़ता था | इससे हम खुद को एक गलत सन्देश देने लगे | एक गलत सोच | हमें लगा कि अगर हम मर्दाना लड़के का रोल करने में मेहनत करते रहे, तो एक न एक दिन, वो रोल हमारा नैचुरल हिस्सा बन जाएगा | हमें पता था कि हम एक आदर्श लड़के होने का रोल बहुत मुश्किल से निभा रहे हैं | कि ये एक झूठ है| और जब तक हम स्वाभाविक तरीके से इस रोल को नहीं निभा पाएंगे, तब तक ओवर- एक्टिंग लगेगी | अगर हम सबको, खासतौर पर लड़कों को अपनी स्वाभाविक मर्दानगी का एहसास नहीं करा पाए, तो हमारा मज़ाक बनना  बंद नहीं होगा | चाहे हम जहां भी जाएँ | हमारे पर  ताने कसना या ज़ोर ज़बरदस्ती करना बंद नहीं होगा | खासतौर पे, पी. टी. क्लास में, जहाँ किसी की छोटी सी कमज़ोरी की नुमाइश, ज़ोरो शोरों से होती है | हमें समझ आ गया था, कि लड़का होना, कोमल होने के बिल्कुल विपरीत होता है| मर्दानगी दिखाने के लिए आक्रामक होना पड़ता है | हमपे दादागिरी करने वाले सारे, लड़के ही तो थे | तो हमें लगा कि हम भी किसी पे दादागिरी करते हैं, तो शायद इससे हम लड़के कहलायेंगे | लड़की को तंग करना बेकार था| क्योंकि वो तो वैसे ही कमज़ोर सेक्स होने के लिए मशहूर थीं| और अगर हमें  मर्द होने का ठप्पा चाहिये था, तो फिर अपने से कमज़ोर को छेड़ने से बात नहीं बननी थी|  हमारी इस समस्या का समाधान हमारे क्लास के नए एडमिशन के रूप में हुआ| ये इंसान हमारे जैसे थे| जन्म पे लड़के के रूप में पहचाने गए थे, पर लड़के वाले कोई गुण नहीं थे| ना ताकत थी, न मर्दानगी की झलक | पर एक बात में हमसे अलग थे | उन्हें अपने नाज़ुक या लड़की जैसा बर्ताव करने में कोई शर्म नहीं आती थी| किसी और जगह पे या किसी और, दयालु समय में,  हम दोनों अच्छे दोस्त बन सकते थे| एक दूसरे के साथ अपने अनुभव बाँट सकते थे| एक दूसरे की लाइफ़ में मदद कर सकते थे|   पर स्कूल अक्सर दयालु जगह नहीं होती है, स्कूल के दिन बहुत लोगों के लिए एक दर्दनाक समय होता है | खैर, हमें तो हमारा टारगेट मिल चुका था| जैसे ताने हमने सुने थे, उतने ही तीखे और दिल छलनी करने वाली बातें हमने इस इंसान को सुनाईं | वही गाली, वही मज़ाक | उसको नीचा दिखाके  और चोट पहुंचाके, अपने क्लास के लड़कों को ये जताया कि हम भी उनमें से ही एक हैं | और ऐसा ही हुआ, हमें अब स्वीकारा गया| अब हम उनके साथ इस नयी हस्ती  के नामर्द होने पर ठहाके मारते थे| पीछे मुड़कर देखते हैं तो एक बात समझ में आती है | जिन बातों के लिए हमें खुद पे शर्म आती थी-हमारी लड़की जैसी आवाज़, हमारा कोमल अंदाज़, हमारा खुद में मशरूफ़ रहना – सारी बातें उस इंसान का रूप लेके हमारे सामने खड़ी थीं| यानी हम अपनी शर्मिंदगी को नीचे दिखा के, उसे हरा रहे थे, बड़ा ही अजीब सुख मिल रहा था | हम भले ही थोड़ा नाज़ुक थे, पर चलो, “ हम  उसके जैसा गे तो पक्का नहीं”| उसने एक साल में ही स्कूल छोड़ दिया| और दूसरे स्कूल चले गए | उस पर हमने जो जो अत्याचार किये, उनके बारे में हम ज़्यादा नहीं सोचते हैं| जब भी वो याद आती है, हम जल्दी से दिमाग के उस तहखाने को बंद कर देते हैं | कभी सोचते हैं, कि एक वो एक किस्म की सेंसिटिव होने की फीलिंग थी , जिससे हम स्कूल में भागते थे | और ये भी एक संवेदनशीलता है, जिससे हम आज भाग रहे हैं, गुनहगार होने की बेबसी | खुद को दोषी मानने की | जब कभी रात को नींद नहीं आती और हम उन बातों को याद करते हैं, जब हमारा खुद का बर्ताव अच्छा नहीं रहा है, तब भी अपनी इस बदतमीज़ी और दादागिरी के वाकये का सामना नहीं कर पाते | हमारे जेंडर को लेके, हमारे  साथ बहुत दादागिरी की गयी, हमारा मज़ाक हुआ | इतनी बातें और ताने सुनने के बावजूद, हम आज अलग इंसान बन गए हैं | जिस पर हमें गर्व होता है| हमने कितना सब सहा| पर हम अपने उस रूप को बिल्कुल नज़रंदाज़ कर देते हैं, जहां हम वो बुल्ली/bully थे | और जो दर्द हमने सहे थे, वही दर्द हमने किसी और को भी दिए थे| जब हमको सताने वाले का मेसेज़ आया, तो हम सिर्फ अन्दर तक इसलिए नहीं कांपे थे, क्योंकि हमारी कड़वी यादें ताज़ा हो गयीं थीं | पर इसलिए भी, क्योंकि इसने हमें याद दिलाया कि हमने भी ऐसे ही किसी को सताया था | हमें नहीं पता कि हमारे साथ बुरा सुलूक करने वाले  के लिए हमारे दिल में रहम है या नफ़रत| या शायद दोनों| क्योंकि जिसने हमें इतना दर्द दिया, सदमा दिया, उसके लिए हम उदार मन से शायद कभी नहीं सोच पाएंगे |   अब, हम अपना गुनाह क़ुबूल करते हैं, अपने को वो अपराध बोध महसूस करने देते हैं | पर हमें नहीं पता कि इस एहसास का और क्या करें | इतना तो हम जानते हैं, कि हमने जिसको बुली किया था, वो हमारी माफ़ी नहीं सुनना चाहेंगे | जैसे हम इस लड़के की बातें नहीं सुनना चाहते, उसे माफी नहीं देना  चाहते, उस इंसान को भी ऐसा ही लगेगा | ये दोषी होने वाली फ़ीलिंग बहुत दर्द देती है| ये आपको आपकी ज़िन्दगी के उन लम्हों के साथ जीने पर मजबूर करती है, जिन्हें आप अपनाना नहीं चाहते, जिन्हें आप भूल जाना चाहते हैं | हम इस फीलिंग से छुटकारा चाहते हैं | पर हम ये भी जानते हैं कि ऐसे में हमारा 'सॉरी' बोलना, मतलबी सा होगा | हम समझते हैं, कि उससे माफ़ी की उम्मीद करना जायज़ नहीं है | वो तो इसलिए होगा न, कि हम अपने को थोड़ा कम दोष दे सकें | आपका जुर्म भी आपको थोड़ा सा बेबस बना देता है – क्योंकि आप खुद को आईने में साफ़ साफ़ देख सकते हो | अब अगर हर बार हम अपने को परिस्थितियों का मारा समझें, तो मामला कितना आसान हो जाता है| हम सब ये मान के चल सकते हैं कि हम भी मर्दानगी के कल्चर के मारे हैं | पर दिल ही दिल में, हमें अपनी सच्चाई पता है | हम जानते हैं कि हम ही खुद ये निर्णय लेते हैं कि हमें अगले के साथ कैसे पेश आना है | और हम ये भी जानते हैं कि कैसे हमारी बेबसी हमें हिंसक बना सकती है | ये समझना कि खुद बेबस फील करने से, हम कैसे हिंसक हो गए - ये  मुश्किल सफर है | इन बातों को ज़हन में रख कर जीना, आसान नहीं होता|    अंशुमान(वो) एक तुच्छ क्वीयर कण है जो पच्चीस का होते होते कैट क्रेज़ी लेडी बनना चाहते हैं| वे चित्रकारी, और ग्राफ़िक डिज़ाइन करते हैं| और खाली समय चाय की चुस्कियों के साथ बिताते हैं  |
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