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मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू

स्थायी बीमारी में डेटिंग की बातें - एक अनुभव

मैं अपने फ़ोन स्क्रीन पर उस चैट के पैग़ाम को एकटक देखती रही।  लोगों को डेटिंग ऐप पर इस तरह बात शुरू करने की जुर्रत कैसे होती है?  हां, ठीक गई, मैंने अपनी प्रोफ़ाइल में इस बात जिक्र किया है। लेकिन पहले कम से कम "हैलो" तो कहो। खैर, मैंने उसको पर्सनल चॉइस का हवाला देते हुए कुछ जवाब दे दिया।

"लेकिन क्यों?" उसने फिर से वही सवाल किया। उस पल मैं सोचने लगी, क्या मुझे उससे बात करना बंद कर देना चाहिये, या कि उसे सच बता देना चाहिए कि बचपन से ही मुझे दिल और फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है, जिसमें प्रेग्नेंट होना घातक होगा।

लेकिन अगर मैं उसको ये सब बता भी दूं तो भी क्या उसकी "सहानुभूति" मुझे अच्छी लगेगी ! और फिर जो सवाल उठेंगे कि "सरोगेसी या गोद लेने के बारे में मेरा क्या ख़याल है?"

अब, इस इंसान को ये कैसे समझाऊं कि मेरी लाइफ पहले ही बड़ी महँगी है। मैं एक ऐसी लाइलाज़ बीमारी ढोकर चल रही हूँ, जिसकी दवा-दारू जिंदगी भर चलने वाली है (जब तक कि हालत इतनी खराब न हो जाए कि ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़े, जिसमें कम से कम 80-90 लाख लगेंगे)। मैं सरोगेसी का पैसा भी कहाँ से दूंगी। या एक बच्चे का खर्च कैसे उठाउंगी? सरोगेसी में इस्तेमाल करने के लिए जो मेरे अंडे निकालने होंगे, उसके लिए हार्मोन का इंजेक्शन लगाना पड़ता है। मेरी हालत में ये हार्मोन भी बिल्कुल सेफ नहीं है। मुझे ये सब चाहिये ही नहीं। क्या पता मेरे बच्चे को भी मेरी बीमारी लग जाए! और तो और, मुझमें बच्चे के आगे-पीछे भागने की या उनकी देखभाल करने की शक्ति कहां है। मैं आया का खर्च भी नहीं उठा पाऊंगी!

बच्चे की हेल्थ, उनकी पढ़ाई का खर्च भी मेरे लिए बहुत होगा। (आपने देखा है ना आजकल अच्छे स्कूल कितने महंगे हो गए हैं?) इसके अलावा मुझे इस बात का भी अफ़सोस रहेगा कि मैं अपने बच्चे को ज्यादा टाइम नहीं दे पाऊंगी, सही देख-रेख नहीं कर पाऊंगी।

ज़ाहिर सी बात है कि अपने आप से हुई इस लंबी बातचीत के बाद, मैंने उसे 'अनमैच' कर दिया, यानी उससे बात करना बंद कर दिया।

ऊपर दिए गए दृश्य में एक युवती अपने डेस्क पर बैठीं हैं - उसके सामने दवाई का साप्ताहिक खांचों वाला डब्बा है, कुछ रंग हैं, एक फूल का गमला है और बगल की दीवार पर रंग बिरंगे पोस्टर्स हैं। युवती अपनी ऊँगली ऑक्सीमीटर में डाल कर अपना ऑक्सीजन लेवल चेक कर रही है। 

फिर, मर्दों की एक दूसरी क़िस्म भी है। वो आपसे काफी देर तक बात करेंगे और फिर बम फेकेंगे कि - अरे हम तो बच्चे पैदा करने के बारे में आपकी सोच को बदलना चाहते हैं। अब, ये जो भोले-भाले प्राणी हैं, इनको मेरी लम्बी चलने वाली  विकलांगता के बारे में कुछ नहीं पता होता है, क्योंकि दुर्भाग्य से ये अक्सर इतनी साफ़-साफ़  ज़ाहिर नहीं होती ।

अफ़सोस कि मैं आपको बिना मेरे  रिपोर्ट और ऑक्सीमीटर के ये नहीं दिखा सकती कि कैसे मेरे फेफड़े और मेरा दिल हर पल एक लड़ाई लड़ रहे हैं।

मुझे ये देखकर हँसी भी आती है कि ये  मर्द इतने भोले और  प्यारे टाइप के  हो सकते हैं। उनकी लाइफ इतनी सुख-सुविधा और आराम से कट रही होती है कि उनके लिए ये सोचना मुश्किल है कि कोई औरत इस हद तक संगीन हेल्थ समस्याओं से घिरी हो सकती है कि उसके लिए प्रेगनेंसी सहना या उसे बनाए रखना आसान न हो। खैर वो तो भूल जाओ, उनके लिए तो ये समझना भी मुश्किल है कि कोई औरत कैसे अपना दिमाग इस्तेमाल कर सकती है और बच्चे पैदा न करने का फैसला ले सकती है। भाई! उन औरत लोगों को कब से चुनने की छूट मिलने लगी!

उनकी बातें डरावनी तो होती हैं, पर साथ में ठहाके मारने का मन भी करता है । जैसे जब वो इस बारे में बात करते हैं कि कैसे शादी के बाद आप उनके घर में रहने लगेंगी, उनके माता-पिता के साथ और फिर कैसे बच्चे पैदा करेंगी। हर कोई कितना खुश होगा! अब ये मेरे लिए एक और मुद्दा है! मैं कभी भी आदर्श "बहू" नहीं बन सकती क्योंकि घर का कोई भी काम मैं मुश्किल से कर पाती हूं। न ही मेरे फेफड़े इसकी इजाज़त नहीं देते हैं, और न ही मेरे माता-पिता। और सच कहूँ तो मैं किसी के घर जाकर उसके परिवार की देखभाल करने का मंसूबा नहीं रखती हूं। मैं अपना ख्याल रख लूँ, मेरे लिए वही बहुत है।

मेरे माता-पिता ने हमेशा इस बात का ख़्याल रखा है कि मेरी लाइफ आरामदायक हो, ताकि मैं अपनी पढ़ाई और काम पर ध्यान दे सकूं। और, किसी लम्बे समय वाली बीमारी के साथ रहना भी तो एक अच्छी-खासी नौकरी है।  सबसे पहले मुझे ये ध्यान रखना पड़ता है कि अच्छी नींद लूँ ताकि अगले दिन मुझे सांस लेने में तकलीफ़ न हो। फिर अपनी दवाएं टाइम पर लूं। फिर पल्मोनरी-कार्डियो रिहैब/ पुनर्वसन करूं ताकि मेरे शरीर को कम से कम ऑक्सीजन लेवल पर भी ज़रूरी काम-काज करने की आदत हो सके। मैं क्या खाती हूँ, उसका खास ख़्याल रखूं ताकि मेरी पूरी प्रतिरक्षा प्रणाली/इम्यून सिस्टम खतरे में ना आ जाए। और ये भी देखना कि काम करने के चक्कर में इतना ना थक जाऊं कि सोशिअल लाइफ सूली चढ़ जाए। (इसकी प्लानिंग एकदम सटीक तरीके से करनी पड़ती है। यानी अगर मुझे किसी दोस्त के साथ लंच पे बाहर जाना है, तो उस दिन मैं कोई भी और थकाने वाला काम नहीं कर सकती हूँ)।

अब, आप ही बताइए, इन सबके बीच मुझेएक सामान्य इंडियन बहू बनने की हिम्मत या टाइम कैसे मिलेगा?

लाइफ की काफी शुरुआत में ही मुझे ये पता चल चुका था कि मेरे लिए रीति-रिवाजों वाली शादी मुमकिन नहीं है। मैंने अपने उन दोस्तों से (खासकर औरतों से) काफी कहानियां सुनी हैं, जो खुद भी इस तरह की लम्बे समय वाली बीमारी के जूझ के निकली हैं। पतियों ने अपनी पत्नियों को इस वज़ह से छोड़ दिया क्योंकि ना तो वो अपने ससुराल वालों के हिसाब से घर का सारा काम कर पाती थीं और ना ही बच्चे पैदा करने की मशीन बन पाती थीं।

मैं इस तरह के नाटक से दूर ही अच्छी हूँ, शुक्रिया।

वही युवती अभी अपने बिस्तर पर बैठी है - उसकी दायी ओर एक वीडियो कॉल की इमेज है जिसमें एक पुरुष उसे पूछ रहा है - उससे बच्चे क्यों नहीं चाहिए? युवती सोच में डूबी है उसको अपनी दवाइयों का ख्याल आ रहा है। हाँथ अभी भी ऑक्सीमीटर में है और पीछे वही गमला है।  

अब आते हैं शरीर की बनावट का मज़ाक उड़ाने/बॉडी शेमिंग  पे । अब क्योंकि मैं एक दिल की बीमारी के साथ जी रही हूँ, जिसका ऑपरेशन नहीं हो सकता, मैं हमेशा से बहुत पतली रही हूँ। बचपन से अब तक । जब आपका ऑक्सीजन लेवेल हमेशा 90 से नीचे रहता है, तो अपना वजन बढ़ा पाना काफी मुश्किल होता है। इस वज़ह से मैंने स्कूल और कॉलेज के दौरान काफ़ी कुछ सुना, झेला! मुझे बोला जाता था कि मैं कभी भी आकर्षक नहीं हो पाऊंगी और कोई मेरे साथ डेट पे नहीं जाएगा। क्योंकि मर्दों को मांस वैसे ही पसन्द है, जैसे कुत्तों को हड्डियां । 2007 के आसपास ये बकवास डॉयलॉग बहुत पॉपुलर था।

इसलिए, जब मैं डेटिंग की दुनिया में आई, तो मुझे पहले से ही इस समाज में ढल पाने को लेके, बहुत घबराहट होती  थी। मुझे हमेशा यही लगा कि मैं जिस किसी से भी मिलूंगी, वो सिर्फ मेरे वज़न पर ही कमेंट करेगा। हर डेट से पहले मैं खुद को तैयार रखती थी, कि अगर कोई मेरे वज़न को लेकर अपमानजनक कमेंट करे, तो मैं बर्दाश्त कर सकूं। कुछ तो मिलते ही बोल देते थे, और कुछ इतने अच्छे थे कि इस बात का जिक्र ही नहीं करते थे। और कुछ तो एकदम ही अलग प्राणी थे जो मेरे साथ नज़दीकी बढाने का इंतजार कर रहे होते थे।

और फिर ठीक उसी पल, जब 'आ गले लग जा' वाली गर्मजोशी परवान चढ़ रही हो, वो धीरे से फुसफुसाकर कुछ ऐसा कहता था- "तुम्हें सच में थोड़ा वजन बढ़ाना चाहिए"।

तो लड़के लोग ध्यान से सुनो, जब कोई लड़की तुम्हारे साथ ऐसे नाज़ुक पल  में हो, तो उसके वजन पर कमेंट करना यानी दहकती आग पे पानी उड़ेलना! लेकिन शायद हम सबको खुश होना चाहिये कि उसने सिर्फ मेरे वजन की बात की। उसने इस बात का तो  जिक्र ही नहीं किया कि कैसे मेरी सांस थोड़ी ही देर में फूलने लगी थी। मेरी अचूक बीमारी का ये आम लक्षण, जो लोगों को नज़र ही नहीं आता है।  

मेरे लिए ये तय कर पाना मुश्किल है कि इन लोगों को मैं अपने हेल्थ संबंधी मुद्दों के बारे में समझाऊं कैसे! मैंने तो ऐसे नमूने भी देखे हैं जो "दिल का रोग" सुनते ही घबरा उठते हैं। मेरी बीमारी के जिक्र मात्र से ये इतना डर जाते हैं, कि यक़ीन नहीं होता कि ये सब बड़ी उम्र के लड़के हैं।  इसलिए मैंने अब अपने सोशियल मीडिया हैंडल प्रोफाइल पे ही सब लिख डाला है। अपने हेल्थ से सम्बंधित पोस्ट डाले हैं, ताकि लड़के उन्हें पढ़े और मेरे क़रीब आने से पहले खुद को तैयार रखें। हाँ, मेरी आदत ही है,  सबका ध्यान रखने की!

ख़ैर,  मैं आज भी अपनी लाइफ में प्यार की सम्भावना बनाए रखती हूँ। क्योंकि मेरे पास देने के लिए बहुत कुछ है (बच्चों के अलावा, हाहा)। लेकिन तब तक, मर्दों की बुराई करना तो बनता है- कि कैसे उनमें से ज़्यादातर पाखंडी होते हैं जो ऊपर से तो आज़ाद ख़्याल के समझदार मर्द बनते हैं, लेकिन अंदर से उनको भी घर ले जाने के लिए बस एक (स्वस्थ) नौकरानी/बच्चे पैदा करने वाली मशीन चाहिए।

31 साल की रोशनी च , जन्म से ही हृदय रोग / Congenital Heart Disease (वी.एस.डी), आइजेनमेंगर सिंड्रोम और गंभीर/ सीवीयर  पल्मोनरी हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं।

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