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इश्क समंदर - वेलेंटाइन महीने में क्या-क्या पढ़ें?

इश्क प्यार के अलग अवतारों पे 5 किताबें

इश्क कई रंगों और तरीकों में नज़र आता है क्योंकि करीब होने का अहसास बड़े सारे रूप लेता है, जो ख़ुद बदलते रहते हैं । कभी सेक्सी, कभी एहसासों से भरा, कभी एकदम गहरा और कभी-कभी, एकदम चिल । अगर हम देखें कि एक प्रेम कहानी कैसे रूप लेती है, तो हमें प्यार के बारे में कुछ समझने लगते हैं । इश्क़ और प्यार अक्सर अपनी अलग पगडंडियाँ ढूँढ लेते हैं, 'सबके जैसा' या सबसे अलग ' बनने की कोशिश नहीं करते ।ये घूमते फिरते, लहराते हुए,  अपना अलग रास्ता ही बनाते हैं। 

एजेंटों, यहां इश्क की कुछ बेबाक कहानियां हैं जो आपकी आंखें नम कर देंगी और आपका दिल खोलकर दिखा देंगी कि मुहब्बत हर रिश्ते में अपने को, अलग रूप में देखती है ।

अमृता-इमरोज़: एक प्रेम कहानी

लेखकः उमा त्रिलोक

'अमृता-इमरोज़' वो किताब है जो कवि और लेखिका अमृता प्रीतम के गहरे और बिना शर्तों वाले प्यार की सुंदर कहानी समेटे हुए है । ये ऐसा प्यार था  जो किसी एक से बंधकर रहने की शर्त और यहां तक कि मौत से भी परे रहा ।

अमृता की शादी कम उम्र में हुई थी और वो दो बच्चों की मां थीं। वो कवि और गीतकार साहिर लुधियानवी की प्रेम-दीवानी थीं। प्रेम की इस चिकनकारी में आए इमरोज़ - अमृता से दस साल छोटे चित्रकार। दोनों के बीच उम्र का फासला तो  था, लेकिन उनके रिश्ते को, उसके अनूठेपन ने, और रिश्तों से अलग बनाया ।

इस जोड़ी ने कभी शादी नहीं की, लेकिन 40 से अधिक बरस तक साथ रहे। अमृता ने अपना आखिरी गीत 'मैं तैनू फेर मिलांगी' प्रिय इमरोज के लिए  लिखा था।

रोमेंटिक एनकाउंटर्स ऑफ़ ए सेक्स वर्कर

लेखक: नलिनी जमील

यह दिलचस्प संस्मरण सड़क, ग्राहक और मुलाकातों से पहले और मुलाकातों के बाद की दिलचस्प कहानी बताता है। 

जमील की कहानी में ग्राहकों की लंबी फेहरिस्त है – जमींदार, वन अधिकारी, सेल्समैन, मजदूर, छोटे शहरों के लॉज मालिक, पुलिस अफ़सर, सुपरवाइज़र् वगैरा। इन्होंने अपने ग्राहकों के भौंडे और छिछोरे व्यवहार को मज़ाक़िया अंदाज में लिखा है।

इस किताब में लेखिका किस्सों-कहानियों की मदद से, सेक्स वर्क के बारे में दो मुँह वाली नैतिकता  और पहले सी बनी धारणाओं को पलट कर रख देती हैं और दिखाती हैं कि सेक्स वर्कर्स भी प्यार करने, दिल टूटने और कहानी कहने की गहरी मानवीय क्षमता से भरे होते हैं।  

'रिलेशनशिप'

लेखक: नयनतारा सहगल और एन मंगत राय 

जब सहगल और मंगत राय मिले थे, दोनों शादी शुदा थे। सहगल लेखक थीं और राजनीति पर अखबार में लिखती थीं और मंगत राय, सरकारी बाबू थे। दोनों का आपस में बढ़ता लगाव, और आपसी बातचीत, उनके लिए अपनी- अपनी दुखी शादियों से बचने का तरीक़ा बना। इस लगाव ने दोनों को  खुद के असली रूप को जीना और खोजना सिखाया।

नए-नए आज़ाद हुए भारत की ऊबड़ खाबड़ राजनीतिक हालात की रोशनी में नाजुकता और प्यार से भरे इन चिट्ठियों को पढ़ने से मालूम चलता है कि ये रिश्ता, बिल्कुल सहगल के ही लफ़्ज़ों में "एक  नैन मट्टका भर नहीं था, बल्कि अपने आप में एक क्रांति थी"।

सहगल ने बाद में अपनी शादी तोड़ दी और मंगत राय के साथ 14 साल तक रहने के बाद, उनसे शादी की । 

इट डज नॉट डाई/बेंगाल नाइट्स

लेखक: मैत्रेयी देवी और मर्स एलियड 

एलियड और मैत्रेयी की मुलाकात तब हुई जब वह 16 साल की थी। एलियड की ये कहानी जो लगभग आत्मकथा ही है, यूरोप की रहने वाली एक ऐसी औरत की कहानी है, जो एक बाहरी, जड़ और कुछ अजीबो ग़रीब  नज़रिए से भारत,  यौनिकता और प्यार को देखती है । मैत्रेयी इस नज़र का हिस्सा बन जाती हैं।

हालांकि मैत्रेयी का जवाब, जो 40 साल बाद आता है, इससे अलग है। यह जवाब करीब जाने के एक गहरे भाव को दर्शाता  है और आखिरकार वो क़रीबीपन, बेहद अलग संस्कारों की कड़वाहट के आगे टूट जाता है ।

ये किताबें दिखाती हैं कि संस्कृति और नस्ल अलग होने पर, एक ही कहानी कितने अलग तरीके से महसूस की जाती है। एक ही मुलाकात के इनके एकदम अलग -अलग नज़रिए हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि प्यार और इच्छा कैसे अलग-अलग लोगों के दिमाग में अलग-अलग मतलब रखते हैं। 

ए हैंडबुक फ़ॉर माय लवर

लेखक: रोज़लिन डी'मेलो

यह एक जवान लेखिका और उसके काफे बड़ी उम्र के  फोटोग्राफर प्रेमी के बीच छह साल से भी ज्यादा देर में पनपते गहरे कामुक संबंध पर आधारित है।

ये एक छोटी सी किताब है जिसमें औरत की माँगों, इच्छाओं, कल्पनाओं और अल्हड़पने के बारे में लिखा गया है, जिस दौरान वो बिना किसी मंजिल के, इन सब के गुत्थम गुत्था रिश्तों को समझने की कोशिश करती है।

यह किताब एक औरत के अपने भीतरी कामुकता की खोज के बारे में है जब वह तमाम दिक्कतों, गुस्से और दिल के दर्द से गुजर रही है। भाषा और रूप को उलटते- पलटते हुए, प्यार में 'पूरे होने' की समझ को ढीला करते हुए डी'मेलो का दर्द और मजे का मिला -जुला सफर है जिसमें वह पूछती हैं, "मैं अपने सच तक कैसे पहुंचूं? मैं अपनी कितनी परतें उधेड़ूँ  कि तुम आखिरकार मेरे असली रूप को छू सको? मैं कहां से शुरू करूं?"

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