(यानी दिल वाली दोस्ती जिसे अंग्रेज़ी में प्लेटोनिक प्यार कहते हैं । ऐसा लव जिसमें प्यार सेक्सुअल न सही, पर गहरा है । )
अभी दो दिन पहले ही, इसी कोरोना काल में, मेरी एक और दोस्त ने शादी कर ली। तो बस, यहां सात समंदर पार मैं अपने हाथों में वाइन ग्लास लिए, लैपटॉप में घुसकर, शादी होते देख रही थी। कई हल्दी लगे चेहरों ने तो मास्क भी नहीं पहने थे। मेरे हाव-भाव से उनको शायद पता भी चल गया हो कि मैं उनको गैर जिम्मेदार करार दे चुकी थी। पर एक सच ये भी है- कि उन लोगों के उस मेल-मिलाप और शादी के माहौल से, मैं चुपचाप जल भी रही थी।
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इस बात पे जलन होगी कि मैं ऐसी भीड़ में शामिल क्यों नहीं ! मुझे तो अकेले रहना हमेशा से पसंद रहा है। पर यहां, पिछले आठ महीनों से, ठंड में ठिठुरते शिकागो/ Chicago के इस बेडरूम में, मौत सी खामोशी है। अब ये बर्दाश्त के बाहर है। अब लगातार कुमार सानु के हिट गाने बजाने से भी ये अकेलापन कम न होगा। यहां तक कि मेरा साथी, यानी मेरा घर, भी मेरे घर में घुसे रहने से उकता चुका है। कुछ कह नहीं पाता है पर जानता है कि मैं मजबूर हूँ।
मुझे गलत मत समझना। देखा जाए तो ये साल मेरे लिए काफी बिज़ी भी रहा। मार्च 2020 का ये जो तांडव शुरू हुआ है,इसी बीच, और इसकी वजह से भी, बहुत कुछ हुआ। मैंने अपने पी. एच. डी. शोध का फाइनल प्रेजेंटेशन किया...यानी वो काम जो मैं बड़े समय से टाल रही थी! एक गहरी, पुरानी दोस्ती कुछ इस कदर लड़खड़ाई कि टूट ही गयी! एक ज़हरीला किस्म का पुराना बॉयफ्रेंड अचानक ही लौट आया, कुछ दिन उसे झेला, फिर वापस ब्लॉक कर दिया! मैंने कुछ मस्त केक बनाने सीखे! अपना पॉडकास्ट भी चालू किया! और तो और, डिजिटल दुनिया में मिले एक शख्स पे थोड़ा जम के फ़िदा भी हो गयी।
बात बस यही है, कि मैं उन मज़बूत औरतों में से हूँ, जिन्हें अपने पे तरस खाने का शौक है। अपने टॉपिक पे लौटती हूँ.. दोस्त का शादी वीडियो देख के मुझे लगा कि देखो! यहां इस महामारी के बीच लोगों को अपने मैरिज पार्टनर मिल रहे हैं, और मैं अकेले बैठ, सस्ती वाइन पी रही हूँ। हाय! अपने पे बहुत तरस आ रहा है!
ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना कुछ पाने के बाद भी मुझे सब खोखला लग रहा है। इतना आगे बढ़ने के बाद, ऐसी डिग्री पाने के बाद (आखिर मैं छ: साल से इस डिग्री को हासिल करने की कोशिश में पागल हो रही थी) आज सब बेमतलब लगता है?! बस इस ख़याल से, कि मुझे वो विषमलैंगिक रिश्ता नहीं मिला है, जिसको समाज सराहता है। यानी आदमी औरत की शादी।
मुझे पता है कि समाज की ये सोच खोखली है, फिर भी दिल है कि मानता नहीं। यूं लगने लगता है कि जब तक मेरे पास वो रिश्ता नहीं, मेरी और सारी मेहनत, पानी है! अब मैं जिंदगी के उस दौर में तो हूँ नहीं जहां खुद को डांट के कहूँ कि मेरी सोच नारीवाद के खिलाफ है। आखिर ये डांट, औरतों का औरतों से बैर करने का एक और तरीका है, और।
पर मुझे अपने आप की एक बात पे शर्म आती है। समाज हमें बताता है कि कौन सा प्यार सही है... और उस शादीनुमा प्यार की चमक हमें तरसाती रहती है। जबकि हम जानते हैं कि ये झूठी चमक है, आदमी औरत के विवाह की सच्चाई इतनी मीठी नहीं।
ये बात मन में आते ही मैं किसी दोस्त को मैसेज लिख भेजती हूँ। सो मैंने झट मैसेज किया, "मैं तो शादी करना भी नहीं चाहती हूं। पर मेरे पास कम से कम शादी का ऑप्शन तो होना चाहिए ना!" हमेशा की तरह, उसने मैसेज पढ़कर भी जवाब नहीं दिया। मेरा बेचारापन और बढ़ गया। "लो! अब तो मेरे दोस्तों ने जवाब देना भी बंद कर दिया। और यहां दूसरों को लाइफ पार्टनर मिल रहे हैं। अच्छा है!"
अगली सुबह जब मैं उठी, तो फितूर सर पे सवार था। फ़ोन चेक किया तो देखा तीन वॉइस नोट (voice note) आये थे। उस दोस्त से। मैंने उनको उसी जोश में सुना, जैसे मैं 90 दशक के बॉलीवुड गानों को सुनती हूँ। और फिर जैसे ही उसकी थोड़ी भारी, थोड़ी सेक्सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, मुझे एहसास हो गया कि इस कोरोना काल में मुझे मेरा प्यार मिल चुका था। वो प्यार जो बहुत ही मुश्किल से मिलता है। जिसे पाना उतना ही मुश्किल है जितना रोमांटिक प्यार पाना,शायद उससे भी ज़्यादा मुश्किलमेरा प्लेटोनिक पायर- यानी दिल वाली दोस्ती।
तो एक ऐसी उम्र में, जब सब कहते हैं कि नए दोस्त बनाना बहुत मुश्किल होता है, मैंने ना ही बस एक दोस्त बनाया- बल्कि मुझे एक गहरी दोस्ती मिली। होश उड़ाने लायक बात तो ये है- कि मैं आज तक उससे मिली नहीं हूं, ना ही आमने सामने बैठ के कभी साथ वक्त बिताया है। मेरी लाइफ में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपने रोमांटिक पार्टनर इंस्टाग्राम मैसेज से पाए हैं। मुझे मेरे दिल के इतने करीब आने वाला ये रिश्ता, वहीं मिला। वाकई वो मेरे इंस्टा के इनबॉक्स में उस ही जोश के साथ दोस्ती का पैगाम लेके आयी, जैसे 'मैंने प्यार किया’ फिल्म में दिखाया गया है ( उसने ये फिल्म बीस बार देखी है, ये कोई संयोग नहीं है!)। मुझे प्यार हो गया। और आज भी मुझे अपनी इस दोस्त से प्यार है। और जैसे कि मस्त देसी लव स्टोरी में होता है, हमारी कहानी में बॉलीवुड का भी हाथ रहा।
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2019 के आखिरी महीनों की बात है। मैंने कुछ दोस्तों से SD के बारे में सुना। वो लोग उसके भी दोस्त थे और चाहते थे कि मैं उससे बात करूं। दरअसल SD वहीं एक लोकल यूनिवर्सिटी में PHD के लिए आने वाली थी। और मैं पहाड़ के दूसरे छोर पे रहने वाली एक अनुभवी PHD स्टूडेंट थी। पर मेरे पास उसको देने का कोई ख़ास ज्ञान न था। तो मैंने कभी उससे बात ही नहीं की। लेकिन हर रोमांस का अपना एक 'तुम जो मिल गए हो' पल होता है। हमारा भी आया, जब हम 'स्टैंड विथ कश्मीर' (Stand with Kashmir- आर्टिकल 370 के खिलाफ आंदोलन) में एक दूसरे से टकराए। (अच्छे प्रवासी-विरोधी होने के नाते)! और बस उसी दिन उसने मुझे इंस्टाग्राम पे फॉलो कर लिया। मैंने भी उसे फॉलो किया। फिर कुछ हफ्तों बाद, मैं उससे वापस टकराई। मैं प्रतीक कुहाड़ (गायक), जिसे मैं एक 'बोर गायक' मानती हूँ, के कॉन्सर्ट में गई थी। वहां उसकी नाक से निकली आवाज़ और फुसफुसाते बोल के विरोध में, मैं धीरे-धीरे कुमार सानू के गाने गुनगुना रही थी। 'नयी पीढ़ी का म्यूजिक'- बकवास! पर फिर जैसे ही ऊपर देखा, वहां SD थी। कुहाड़ के गानों पे थिरकती, झूमती, नाचती! फिर जब हम कॉन्सर्ट हॉल के बाहर, एक बार (bar) में, वापस टकराये, तो मैं उसका मज़ाक उड़ाए बिना रह नहीं पाई। मैंने कहा कि कुमार सानू कुहाड़ से कहीं बेहतर सिंगर हैं। उसे लगा मैं ताने कस रही हूँ।
मुझे लगा म्यूजिक के मामले में हमारी पसंद कभी नहीं मिलेगी। और कभी कभी लोग ऐसे छिछोरी बातों पे अगले से डेट ही नहीं करते। पर हम दोनों ही एक दूसरे को इंस्टाग्राम पे कह देते- कि चलो कहीं मिलते हैं। दरअसल हम दोनों ऐसे मोड़ पे थे, जहां डेंटिंग एप्प पे अनजाने लोगों से बात करना तब भी आसान था, सच्चे दोस्त बनाना और मुश्किल लगने लगा था। फिर कोरोना काल आ गया। और उसकी बढ़ती दहशत के बीच पनपी, इंस्टाग्राम की मज़ेदार चैलेंज वाली दुनिया। किसी ने 30 दिन गाने पोस्ट करने का चैलेंज डाला। ये तो मेरी पसंद की चीज़ थी तो बस, मैंने पूरी शिद्दत से इस चैलेंज को स्वीकारा। ये अलग बात है कि अगर मैं उसी शिद्दत से अपने रिसर्च पे घ्यान देती, तो शायद मेरे लिए बेहतर होता रोज़ मैं दिए गए "प्रॉम्प्ट" /टॉपिक के हिसाब से बॉलीवुड के गाने शेयर करती थी। SD भी चैलेंज में भाग लेने लगी। और फिर तो हम हर गाने के बारे में लंबी-लंबी चैट करने लगे। चैलेंज खत्म हो गया, पर हम दोनो ये खेल जारी रखना चाहते थे। इसलिए हमने एक दूसरे को प्रॉम्प्ट देना शुरू कर दिया। फिर हम रोज़ ही एक दूसरे को गाने भेजने लगे। 4 महीनों तक ये डिजिटल गायकी का सिलसिला चलता रहा।
हर दिन, गानों की एक प्लेलिस्ट (playlist)। हर दिन, बॉलीवुड के पुराने गानों का वो सिलसिला जो दिल छू जाए। (और, हां, कुछ ऐसे गानों पर चर्चा भी, जिनके शब्द थोड़े अटपटे थे, जिनपे विवाद हो सकता था, पर जो हमें पसंद थे। ऐसे गाने पसंद आना, गलत तो नहीं है!) रोज़, ढेर सारी हाहा-हीही! रोज़, ना जाने कितने मेसेज और वॉइस नोट (voice notes)। हर दिन, ये एहसास कि मैंने कभी किसी 'स्ट्रेट'/विषमलैंगी मर्द के साथ भी ऐसा फील नहीं किया था । और फिर जल्दी ही हम एक दूसरे के अतीत की बातें करने लगे। वो पुराने बोयफ़्रेंडस, जो ना जाने अब कहाँ हैं। पुराने और नए क्रश! ये सब हमारी कभी खत्म ना हो सकने वाली बातों का हिस्सा बन गए। मुझे पता था, मुझे प्यार में पड़ने वाली फीलिंग आ रही थी। बस यही फर्क था कि ये सब सरल था । प्यार तो ऐसे ही होना चाहिए ना।
आज भी, हम उसी सहजता से बात करते हैं। जिन बातों पे हमारी सोच अलग है, वहां भी मज़ा कम नहीं होता। और बहस से तो हमें कुछ खास ही लगाव है। और हां, वो अचानक ही कभी 'आई लव यू' कहकर निकल जाना- जो कि लंबे और मुश्किल हफ्तों के बीच किसी का प्यार से गले लगाने जैसा लगता है। इस प्यार में कोई दबाव नहीं है। बस खुशी है, मज़ा है। जब भी मोबाइल पर SD का नाम दिखता है, चाहे मैसेज हो या वॉयस नोट्स, मैं मुस्कुरा उठती हूँ। क्या प्यार में होने का इससे भी कोई मजबूत सिगनल हो सकता है? हमारे और भी कई दोस्त हैं । जिन्होंने हमें काफी नज़दीक से देखा है, हमारे साथ काफी वक़्त बिताया है। हमें उम्र के अलग-अलग पड़ाव पे देखा है । जो हमें शायद दूसरों से अलग नज़रिए से देखते हैं। उन सबके साथ हमारी दिल वाली दोस्ती है। लेकिन SD और मैं तब मिले थे, जब दुनिया मानो खत्म होने वाली थी। जब उम्मीदें खत्म हो रही थीं। और जब दुनिया अपना कल तय नहीं कर पा रही थी। हम उस पल में एक दूसरे को मिले । कहते हैं ना- प्यार तब होता है जब उसके होने की उम्मीद न हो ।
कभी कभी सोचती हूँ कि एस.डी. और मैं कैसे एक पुरानी जीन्स की तरह एक दूसरे की लाइफ में फ़िट हैं। वो भी तब जब हम असल ज़िन्दगी में एक दूसरे से कभी ज़्यादा नहीं मिले हैं। अक्सर ही हम एक दूसरे को “तेरा मुझसे पहले का नाता कोई,यूँ ही कोई दिल लुभाता नहीं” गाते हुए पाए जाते हैं। एस.डी. और मुझे, दोनों को असल ज़िन्दगी में मिलने का कोई मलाल नहीं । कभी ज़रुरत महसूस नहीं हुई। खासतौर पर आज के सोशल डिस्टेंसिंग वाले टाइम में। जहाँ टेक्नोलॉजी हम लोगों को एक दूसरे से जोड़ी रखती है। जब से मुझे प्यार इशक और मोहब्बत की समझ आई, तब से मैंने खुद को काफ़ी सीरियस और काफ़ी लम्बे प्लेटोनिक(प्यार गहरा है, पर सेक्सुअल नहीं) या दोस्ती वाले प्यार में पाया है। लेकिन अक्सर विषमलैंगिक कपल को एक दूसरे को बार बार भरोसा दिलाना पड़ता है कि।
‘हम बने तुम बने एक दूजे के लिए’ वाली बात सच है। ये हर वक्त एक दूसरे को भरोसा दिलाना, कभी शारीरिक तौर पर, तो कभी कई और तरीकों से। इस भरोसे को बनाए रखना आसान नहीं होता। मैं अक्सर इसके बारे में सोचती हूँ। मेरी कई प्रेम कहानियाँ मोबाइल स्क्रीन के आर पार के रिश्ते की सच्चाई पर संदेह करने से, ख़त्म हो गयीं। या फ़िर खुद के बनाये रूल्स की वजह से। जैसे अगर हम हफ़्ते में एक बार भी नहीं मिले, या हमारा म्यूजिक टेस्ट मेल नहीं खाते, तो बात ख़त्म। या फ़िर ये प्रॉब्लम कि हम एक दूसरे को कम मेसेज करते हैं। धीरे धीरे यह “अगर हमने यह नहीं किया तो हमारे रिश्ते का क्या होगा” वाला डर, “अब मुझसे ये सब नहीं होता” में बदल जाता है।
एस.डी. और हम असल ज़िन्दगी में कभी नहीं मिले हैं। कभी संडे पे दोपहर को, कुछ खाते हुए, बीयर पीते हुए एक दूसरे के सामने दिल खोल कर बातें नहीं की हैं। ना ही हम कभी साथ में शौपिंग गए हैं। हमने तो कोई बॉलीवुड फ़िल्म भी साथ में नहीं देखी है(पर मुझे पता है अगर हम कोई फ़िल्म साथ में देखते, तो वो मिस्टर इंडिया की ज़िद करती|) ना ही साथ कोई लेक्चर अटेंड किया है और ना ही एक टकीला शॉट के बाद डिस्को डांस किया है। फ़ोन पर भी हमने घंटों बातें नहीं की हैं। हम दिन भर एक दूसरे को व्हाट्सएप नहीं करते हैं। कभी कभी तो बहुत दिनों बाद बात होती है। पर इस सब के बाद भी, हमको एक पल के लिए भी नहीं लगा कि हमारी दोस्ती में दरार आ गयी है। हमने अपने दोस्ती वाले प्यार को किसी तराज़ू में नहीं तोला है। मैं यह दावा तो नहीं कर सकती कि मैं अपनी हर दोस्ती में इतना निश्चिंत फील करती हूँ। पर हाँ, हमेशा ही से, मुझे सेक्सुअल रिश्ते से ज़्यादा, दोस्ती से आराम मिलता है।
शायद सेक्स वाले प्यार अपनी एक फ़िल्मी स्क्रिप्ट के साथ आते हैं। या फ़िर हमारे दिल के बगीचे की मिट्टी में ही ये सोच जम गयी है। कि किसी भी हालत में हमें राज और सिमरन वाला प्यार ढूंढना होगा, जैसे और प्यार उतना मायने नहीं रखते। जिसकी वजह से जब कोई हमारे पास आने की कोशिश करता है, तो हम सकपका जाते हैं। जब भी हमारी सेक्स वाली प्रेम कहानी शुरू होती है, हमारा दोस्ती वाला प्यार हीरो या हीरोइन के फ्रेंड के साइड किरदार में बदल जाता है। स्पॉटलाइट हमेशा सेक्स वाले रिलेशनशिप पर ही होती है। जो हर वक़्त प्यार का भरोसा दिलाते रहने की माँग करती है। सेक्सुअल रिलेशनशिप की नैया जब हमारे मुताबिक नहीं चलती, तो हम दूसरों की प्यार की कश्ती की ओर देखने की कोशिश करते हैं। इस सेक्सुअल प्यार के जुए में बहुत कुछ दांव पर लगता है(खासतौर पर खुद की इज्ज़त) और पाने को भी बहुत कुछ होता है( हालांकि वो क्या है, मैं कभी भी क्लियर नहीं हो पाती)।
एक बात मुझे साफ़ है, कि यह दोस्ती वाला प्यार हमें बहुत कुछ सिखा सकता है। ये रिलेशनशिप की रिपोर्ट कार्ड में टॉप करने के पागलपन को छोड़ देना सिखाता है। हर वक्त अपने रिश्ते की तुलना किसी काल्पनिक रिश्ते से न करने की सीख देता है। अपने प्यार को एक नदी सा तरल, बहने की आज़ादी देने की हिम्मत । दूर या पास उस नदी, ताल या समंदर को अपना रास्ता बनाने देने की छूट देने की हिम्मत। किसी ख़ास मकाम को नज़र में न रखने की आज़ादी लेने की।
दोस्ती वाले प्यार की कोई स्क्रिप्ट नहीं होती है। वो तो जैसे जैसे बढ़ता है, वैसे वैसे उसकी कहानी बढ़ती है। और इस फ़िल्म को कोई नहीं देखता है। शायद समय आ गया है कि हमें दोस्ती वाला प्यार से मोहब्बत करना सिखाया जाए।
जब शुरू शुरू में मैंने बीते साल के विजय चिन्हों की बात की, तो मैंने अपने इस रिश्ते का ज़िक्र नहीं किया। मुझे अब इस बात पे ताज्जुब नहीं। जब समाज एक ही तरह के सेक्सुअल रिलेशनशिप(आदमी और औरत के बीच) को बढ़ावा देते हुए, हमारी दोस्ती वाले प्यार की कश्ती को डुबोने की कोशिश करता है, तो हम अक्सर भूल जाते हैं, कि हमको इस सब का डर नहीं, हमने तो लहरों के ख़िलाफ़ तैरना सीख लिया है। आज ऐसा समय है जब कई रिश्ते दूरियों, शक और मौत तक का सामना कर रहे हैं। ऐसी दुनिया में अपनी दोस्ती वाले प्यार को बनाये रखना, आज़ादी की फीलिंग देता है । ऐसे रिश्ते कायम रखना, जो केवल शादी और सेक्स करने पर निर्भर नहीं। हमारी आज की परिस्तिथियों में इनका होना कितना ज़रूरी है। इसकी बात आज भी नहीं करेंगे, तो कब करेंगे?
मेरा ये नई दोस्त ढूँढने वाला जोश, थोड़ा बचकाना लग रहा है क्या? बिल्कुल है। क्यों न हो? मैं एक दोस्ती वाले प्यार को अपना कर खुश क्यों नहीं हो सकती? जहाँ मैं दिल खोल कर अपने इमोशंस बयान कर सकती हूँ। जब किसी आदमी के साथ मेरा रिश्ता कायम होता है, मैं कितना जश्न मनाती थी ( भला वो आदमी मेरी दिल की ज़रूरतों को समझता या नहीं)। तो इस दोस्ती पे क्यों न मनाऊं? जब किसी की शादी की बात होती है, तो मुझे क्यों अपने काम में मिले प्रमोशन की बात करने की ज़रुरत लगती है? इससे अच्छा, मैं अपनी नयी ऑनलाइन दोस्ती पे दीवानी हो जाऊं? ऐसा क्यों हो कि या मैं, या कोई और, ये सोचे कि इस दोस्ती मैं "और कुछ" भी है क्या? अरे ये दोस्ती ही 'और सब कुछ' है।
स्नेहा अन्नावरपू 29 वर्ष की टीचर हैं और जो कभी कभी लिखती भी हैं। शावर में गाना गाती हैं और इन्स्टाग्राम करना पसंद है।
कोरोना की सोहबत, और दोस्ती - मोहब्बत!
लेख – स्नेहा अन्नावरपू
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