इंटरनेट के दौर के बदलते रिश्ते
६ लोग अपनी डिजिटल दोस्ती और करीबी की कहानी बताते हैं
ऑर्कुट (orkut) के सुनहरे दिन याद करो! जब एक अलग ही उत्साह से आपने अपनी पहली फ़ोटो वहां अपलोड की होगी। या वो ऑनलाइन चैट रूम का पहला अनुभव! एक ऐसा सोशियल स्पेस जहां गुमनाम रहकर नए खेल, नई बातचीत, नए नज़रिये , और सबसे बेहतर, नई दोस्ती - बहुत कुछ मिलता था ।
इसने हम में से कई लोगों को पार्टनर ढूंढने, समुदाय बनाने, और दुनिया भर के लोगों से कनेक्शन बनाने में मदद की। डिजिटल और फिज़िकल की सही साझेदारी, बोले तो 'फ़िजिटल' कनेक्शन। इनमें से कुछ समुदाय आज भी मौजूद हैं, जबकि कुछ इंटरनेट के बदलते चेहरे के साथ बदल गए हैं। हमें उम्मीद है, एजेंटों, कि ये पुरानी कहानियां आपको फ़िजिटल रिश्तों की खूबियां याद दिलाएंगी । आजकल क्यूंकि डिजिटल दुनिया की बुराइयों का ज़्यादा ज़िक्र होता है, कहीं हम इसके प्लस पॉइंट न भूल जाएँ । हम फिर से कल्पना कर पाएं कि हम किस तरह की डिजिटल दुनिया चाहते हैं ...
"एक तरह से, हम एक-दूसरे को लंबे अरसे से जानते थे"
YSK, 25, कैसे सम्बोधित किया जाए: वे /उनको
हम 18 के थे। छोटे शहर से आये थे। परिवार को छोड़, कॉलेज शुरू करने के लिए, हम कई शहरों में अकेले घूमे। हमारी दुनिया एकदम ‘स्ट्रेट’ थी । सात साल पहले, हमारे कॉलेज में पोलयमोरी (कई लोगों से एक साथ संबंध, सबकी सहमति से), जाति या चाहतों जैसे सब्जेक्ट के बारे में बात नहीं होती थी। हमारे बैचमेट या दोस्त ऐसी बातें नहीं करते थे। इसलिए अपने शरीर को क्वीयर नज़रिये से समझना, या अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में किसी से बात करना, हमारे लिए सम्भव नहीं था। इंटरनेट ने ऐसे ख्यालों से हमारा परिचय कराया ।
इंटरनेट पे ऐसा कोई समुदाय नहीं था, जिसका नाम हो । लेकिन बातें हो रही थीं। हमें फेसबुक पर उनके फीड (इनफार्मेशन) मिलते रहते थे। और धीरे-धीरे हम भी उन बातचीतों का हिस्सा बन गए। उन बातचीतों के दौरान ही हम समझ पाए, कि हमारे शरीर के साथ क्या हो रहा था। उसपे बात भी कर पाए l उसे अपना पाए। इंटरनेट ने हमें कुछ ऐसे खुले विचार दिए, जो हमारे आस पास के माहौल में नहीं थे l हमें तब पता चला कि इन चीज़ों के बारे में सोचना गलत नहीं है।
हमारा अनुभव इंटरनेट के शुरुआती दिनों का था। हमारी उम्र के काफी लोगों के लिए सोशियल मीडिया नया था। हममें से कई लोग ऑनलाइन स्पेस में अपनी सेफ्टी का ध्यान रखने में असफल थे। आजकल तो ऑनलाइन स्पेस में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने वाले थेरेपिस्ट/चिकित्सक और ट्रेन किये हुए लोग हैं। लेकिन उस समय बस कुछ स्वतंत्र, व्यक्तिगत आवाजें थीं। नेट पर उस वक़्त इतनी नैतिकता नहीं थी। लोग अपनी निजी बातें खुल कर करते थे, सेफ्टी का ख़याल न था l दरअसल ऐसे में किसी पहले से सेट किये गए डिज़ाइन या तरीकों में बंधकर रहने की जरूरत नहीं थी। आप अपनी पहचान के बड़े सारे पहलुओं को ऑनलाइन आजमा सकते थे l इतने लेबल नहीं थे l हम भले ही सीधे किसी से क्वीयर संबंधी या मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बातें नहीं करते, पर कहीं ना कहीं वो बातें मानो दबी जुबान बयान हो रही थीं। हमें तो पता भी नहीं चला कि कब उन सारी बातचीतों के बीच एक समुदाय भी बनकर खड़ा हो गया।
सही मायनों में हम ये तो नहीं बता सकते हैं कि हमने कितने दोस्त बनाए या अभी भी किन के साथ दोस्ती निभा रहे हैं, क्योंकि पिछले छै सात सालों में ही जाने कितने लोगों से हमारा संपर्क बनता, फिर टूट जाता, फिर दोबारा कभी उनसे मिलते, फिर भूल जाते। कई ऐसे भी थे जिन्हें हम डिजिटल रूप से जानते थे, पर किसी और के कारण उनसे फिज़िकल दुनिया में भी मुलाक़ात हो गयी । एक तरह से देखो तो वो मुलाक़ात पहली मुलाक़ात नहीं कहलाएगी, दरअसल हम एक दूसरे को लंबे समय से जानते थे। अपनेपन की ये भावना, हौले हौले आती है । हमें लगता है कि इस तरह का डिजिटल समुदाय आपको बना -संवार सकता है । ये हमारी ज़िंदगी में एक किस्म की नींव डाल गए, जिसने हमें, जो मैं आज हूँ, वो बनाया। शायद वे हमारे बारे में नहीं जानते हैं और मैं भी उनके बारे में नहीं जानता, लेकिन हम सब आज भी एक समुदाय का हिस्सा हैं। क्योंकि हमने एक साथ मन की कुछ जरूरी बातें की हैं, जिसमें एक दूसरे के लिए चिंता और मेहनत, दोनों शामिल रहे हैं।
"इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि हम कभी मिले थे या नहीं। हम सब भावनाओं के एक ही समंदर में गोते लगा रहे थे और खुद को व्यक्त करना चाहते थे ”
आर्टेमिसिया डी, 29, कैसे सम्बोधित किया जाए :स्त्रीलिंग के साथ
मैं 11th/12th में थी जब मैंने ब्लॉग्स्पॉट (blogspot) पे पोस्ट करना शुरू किया। उन दिनों ब्लोग्स के बड़े मज़ेदार नाम होते थे, हमेशा इमोशनल टाइप के - गहराती घटा, दिल का भंवर, मेरे दिल की दास्तान, इस टाइप के। शुरूआत में तो हर कोई रोज़ जर्नल लिखता था। फिर बाद में सबने फ़ोटो शेयर करना शुरू किया। जैसे कि- मैंने आज ये पहना है, अभी मैं ये गाना सुन रहा हूं। या फिर कोई कहानी, फैशन या खाने का रिव्यु जैसी चीज़ें। ये सब थोड़ा अजीब था। लोग आपके बारे में सबकुछ पढ़ रहे थे और आप लोगों के बारे में। और फिर अगले दिन, आप उनमें से कुछ को स्कूल में भी मिलते । ये पहली बार था कि हम ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दोनों जगह एक ही लोगों से मिल रहे थे। ऑनलाइन और ऑफलाइन क्लैश हो रहे थे। लेकिन क्योंकि हर कोई यही काम कर रहा था, ये सब जायज़ लगता ।
ये वो टाइम था जब लोगों के लिए अलग-अलग शहरों में ऑनलाइन रिश्ते और दोस्त बनाना, आम बात थी। ये एक घुला-मिला समुदाय था, जिसे कोई फॉर्मल नाम नहीं मिला था। क्योंकि Blogspot पर, आप चैट नहीं कर सकते, आप कमेंट करके किसी बातचीत का हिस्सा बन सकते हैं। और अगर आप किसी से बात करना चाहते , तो आपको उन्हें फेसबुक फ्रेंड बनाना पड़ता। और अगर आपको कोई ऐसा मिले जो आपके ही शहर में रहता हो और आपको उससे बात करना पसंद हो, तो आप उसे मिल भी सकते थे। तो, उस दौर में सबकी तरह, मेरे भी कई ऑनलाइन दोस्त थे।
नॉर्थ ईस्ट की एक लड़की थी। बॉम्बे में अकेले रहती थी। मुझे उसकी राइटिंग और उसके रहन-सहन का तरीका दिलचस्प लगता था। बाद में उससे संपर्क टूट गया। पर ये पता चला कि उसने फैशन और इवेंट्स में अपना करियर बनाया l उस समय भी उसका एक अलग तरह का स्टाइल था, एक अलग जुनून। उसकी राइटिंग में इसकी झलक दिखती थी। एक दूसरी ब्लॉगर थी, उम्र में मुझसे छोटी, कविताएं लिखने वाली। अब वो राइटर बन चुकी है। न्यूयॉर्क में रहती है। एक और लड़की थी जो बॉलीवुड पे लिखती थी। काफी पॉपुलर थी। अब वो एंटरटेनमेंट की एक बड़ी वेबसाइट (पोर्टल) पर फिल्म रिव्यु लिखती है। उसकी राइटिंग में साल दर साल फिल्मों की डायरेक्शन में हो रहे बदलाव दिखते थे। मुझे लगता है कि ब्लॉगिंग ने हमें हमारे पैशन या झुकाव को समझने में हमारी मदद की। और हम सबने कमेंट के ज़रिये एक दूसरे के काम को प्रोत्साहित किया।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हम कभी मिलने वाले थे या नहीं। हम सब अपनी उम्र के हिसाब से, इमोशनल दौर से गुजर रहे थे। हमें बस अपने आप को एक्सप्रेस करना था। एक बार स्कूल के कुछ कूल लड़कों ने मुझे अपने कैनवस के जूते पेंट करने के लिए दिए । मैंने उसकी फोटो ब्लॉग पे डाली थी। मुझे उसपर लोगों के कमेंट देखने थे। अब जब मैं उसे देखता हूं, मुझे समझ में आता है कि मेरा इलस्ट्रेशन (illustration- चित्रण) स्टाइल यहां से शुरू हुआ।
मैं ब्लॉगिंग में बेहतर होती जा रही थी। पर फिर, मेरी बहन और माँ ने मेरा ब्लॉग ढूंढ लिया। बस, मैंने ब्लॉग करना छोड़ दिया। अचानक एहसास हुआ कि मैं बहुत ही पर्सनल चीज़ें उस प्लेटफार्म पर डाल रही थी। मैं प्राइवेट हो गयी और धीरे-धीरे पूरी तरह से लिखना बंद कर दिया। वैसे भी पढ़ने वाले कम होते जा रहे थे। और जब पढ़ने देखने सराहने वाले नहीं मिलते, आप वो काम करना छोड़ देते हो ।
“हम रोज़ बात करते थे, ये ख़ास बात थी । एक भी मिनट ऐसा नहीं था जब लगे कि आप अकेले हैं , कि सिर्फ अपना ही साथ है ।"
आइलिस एमेक, 23, हार्लो - UK और डेमी हडसन, 25, हल - UK, कैसे सम्बोधित किया जाए: स्त्रीलिंग के साथ
दोस्ती के लिए ऑनलाइन दुनिया बहुत अच्छी है। हम एक ऐसी पीढ़ी हैं, जो तरह-तरह की घबराहट, और मानसिक स्वास्थ्य की परेशानियों से घिरे हुए हैं। इसलिए हममें से अधिकतर अंतर्मुखी/introvert हैं। ऑनलाइन दोस्ती की खासियत है कि आपको तैयार होकर बाहर जाने की जरूरत नहीं होती । यहां किसी के सामने खुलकर बात करना आसान लगता है। ऐसा लगता है, जैसे हम उन लोगों को पहले से जानते हैं। इसका मतलब ये भी है, कि मैं किसी इंसान से मिलने से पहले ही उससे आराम से बात कर सकती हूँ।
तो ये तब हुआ जब हम पहली बार हैरी पॉटर के ज़बरदस्त फैन यानी पॉटरहेड्स में शामिल होने के लिए, उस फेसबुक पेज से जुड़े। मैंने कॉलेज शुरू ही किया था, और थोड़ी नर्वस थी। मेरी तबीयत भी खास अच्छी नहीं थी और मुझे दोस्तों वाले एक ग्रुप की ज़रुरत थी, जो मेरे पास था नहीं । उस समय जो मेरे ऑनलाइन दोस्त बने, और जो ग्रुप के एडमिन थे, वो आज भी मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। जब हमने ग्रुप जॉइन किया था, हमें लगा था कि क़्विज (quiz) जैसी चीजें करने में वहां मज़ा आएगा। जो चीज़ें हम कॉलेज में पढ़ रहे थे, उनके बारे में पोस्ट करना भी मज़ेदार होगा। और सचमुच ऐसा ही था। फेसबुक के एक ग्रुप पर लाइफ के इस हिस्से को एक दूसरे के साथ बांटना अच्छा लगता था। क्योंकि ये बातें हम किसी और के साथ नहीं कर पाते थे। बस इसी वजह से ग्रुप ने एक अलग ही रिश्ता कायम कर लिया। हम अपनी पसंद की चीज़ों के बारे में बात करने के लिए आज़ाद थे।
शायद ऑनलाइन प्लेटफार्म पर खुलकर बात करना सबको आसान लगता था। कोई किसी भी तरह की बात करने से नहीं कतराता था। असल में कोई सीमा ही नहीं थी! हाहा! और मुझे तो यही बात पसंद थी। मुझे उस समय अपनी लाइफ में एक ऐसी ही सेफ जगह की ज़रूरत थी। ग्रुप में हर कोई रोज बात करता था, शायद इसी वजह से सब खुल पा रहे थे। हमेशा कुछ न कुछ चर्चा होती थी। आप कभी भी, किसी भी बातचीत का हिस्सा बन सकते थे। और जब भी कोई बोर होता था, तो कोई न कोई गेम शुरू कर देता था। इसलिए वो एक ऐसी जगह बन गयी थी, जिसपर हम सब एक तरह से निर्भर हो गए थे। और एक मिनट भी ऐसा नहीं था जब लगे कि आप अकेले हैं , कि सिर्फ अपना ही साथ है।
हम सब तरह की बातें करते थे। लड़कों के बारे में, लाइफ के बारे में। मैंने तो डेमी को एक ऐसे लड़के से मिलवाया भी, जिससे मैं तब बात कर रही थी। मेरे लिए ये एक बड़ा कदम था। मैं हर चीज़ के लिए सबसे पहले डेमी के पास ही जाती थी। हमने हर क्रिसमस की सुबह एक-दूसरे को फोन करके एक साथ गिफ्ट खोलने का रिवाज़ भी बनाया था। ये सब मेरे किशोरावस्था की सुंदर यादें हैं। उस समय की यही कुछ मीठी यादें हैं । हम एक दूसरे की हर बात समझते थे, एक दूसरे को समझते थे।
तो सही मायने में ये मेरी लाइफ के सबसे अच्छे अनुभवों में शामिल है। मुझे ऐसे दोस्त मिले हैं जो जिंदगी भर मेरा साथ निभाएंगे। मुझे पता है कि मैं किसी भी चीज़ के बारे में किसी से भी बात कर सकती हूँ। और हां, आइलिस सिर्फ मेरे जीवन का हिस्सा नहीं, बल्कि मेरा ही हिस्सा है।
उस ग्रुप में कुछ ऐसे रिश्ते बन चुके, जिनका टूटना ऑलमोस्ट नामुमकिन है| पिछले सात सालों में मैंने बहुत कुछ झेला है| और इन सात सालों में आइलिस हर कदम, हर मोड़ पर मेरे साथ रही है| उसने हर उतार, हर चढ़ाव पर मेरा साथ दिया है|
“मैंने प्यार के मामले में दिल फेंक बनना बड़े जल्दी सीख लिया | जिसकी तरफ दिल फ़ेंका, वो भले ही मेरी ‘हैसियत से कहीं ऊपर’ क्यों न हो |"
हम्सी, 28 वर्षीया, कैसे सम्बोधित किया जाए : स्त्रीलिंग के साथ, इचलकरंजी- महाराष्ट्र
जब मैं चौदह बरस की थी, मैं काफ़ी अच्छा बैडमिंटन खेलती थी| साथ ही साथ ऑरकुट चलाना भी समझ रही थी| उस समय साइना नेहवाल का नाम केवल उन लोगों को मालूम था, जिनके लिए बैडमिंटन खेलना, शौक से बढ़कर था| मैंने ऑरकुट पर’ साइना नेहवाल फैंस’ नाम की एक कम्युनिटी बनाई(फेसबुक के ग्रुप जैसी)| उसमें बैडमिंटन प्लेयर्स और कोच लोगों के अलावा, मेरे जैसे कई प्रशंसक शामिल हो गए| उनके साथ मेरी दोस्ती भी हुई और उनके साथ समय बिताने से कारण मैं बैडमिंटन खेलने के प्रति और सीरियस हो गयी(और साथ साथ खुद को भी सीरियस्ली लेना शुरू कर दिया)| उनमें से एक बंदा साइना नेहवाल के साथ प्रैक्टिस करता था और अपने पास उसका फ़ोन नम्बर होने का दवा करता था| समय के साथ हमारी दोस्ती और पक्की हुई| काफ़ी मिन्नत करने के बाद, मेरे पंद्रहवे जन्मदिन पर उसने साइना नेहवाल का फ़ोन नम्बर मेरे साथ शेयर किया| नम्बर सही था| और मुझे, साइना नेहवाल से, बैडमिंटन में नाम कैसे रोशन करना है, इसके बारे में बात करने का मौका मिला l तब, जब वो ‘साइना नेहवाल’ – द स्टार ‘ नहीं बनी थी |
उस दौरान मुझे एक तैराक के बारे में पता चला, जो बटरफ्लाई स्टाइल में स्विम करता था| और सोलह बरस की बाली उमर में ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई कर चुका था| वो कोल्हापुर से था|यानी मेरे शहर से ज़्यादा दूर नहीं | उसका नाम वीरधवल खड़े था| तो मैंने उसके फैंस के लिए भी पहली और एक मात्र ऑरकुट कम्युनिटी बना दी| और जानते हो, अगले ही दिन क्या हुआ? खुद वीरधवल खड़े उस कम्युनिटी से जुड़ गया| मेरा तो दिल धक धक करने लगा| मेरी उससे और उसके कई और दोस्तों से बातचीत शुरू हो गयी थी| उसके दोस्त भी अलग अलग स्टाइल (स्विमिंग स्टाइल, यार) में टैलेंटेड थे l और यहां से शुरू हुई हम उम्र, गठीले बदन और हीरो जैसी शक्ल वाले मशहूर लड़कों के साथ मेरी नोंक झोंक | रात रात भर मम्मी के मोबाइल फ़ोन पर मैसेज भेजते भजते सो जाने से लेके, फ़ोन पे बात चीत करने तक का सिलसिला| ये बातचीत, कि कैसे मिलें, ताकि उस छोटे शहर में किसी की हम पर नज़र ना पड़े| और फिर आखिर में उनकी बराबरी का न होने पे, बड़े बेदर्द अंदाज़ में, उनका मेरे से रिश्ता तोड़ने का मकाम l यानी मैंने बहुत जल्द ही प्यार के मामले में दिल फेंक बेवकूफ़ बनना सीख लिया था| भले ही जिसकी तरफ दिल फ़ेंका हो वो ‘मेरी हैसियत से कहीं ऊपर’ क्यों न हो|
अब बैडमिंटन और स्विमिंग के प्रोफेशनल लोगों से गुफ्तगू करके, मुझे प्रोफेशनल ट्रेनिंग के बारे में कुछ तो पता चला था l सो मैंने घर से दूर, एक प्रोफेशनल सेण्टर ढूंढ निकाला और उससे जुड़ गयी l पहली दफा अपने होमटाउन से बाहर, बड़े शहर में गयी l सफलता और पैसों से अलग, मुझे 'कुछ कर जाने ' की नई परिभाषा मिली l लीक से हटके महत्वकांक्षाओं का स्वाद चखा l
माना कि मैं खुद बैडमिंटन खिलाड़ी नहीं बनी, पर स्पोर्ट्स की आड़ में , खूब नोंक झोंक करना सीख लिया !
"बूड्वार/ बदन की अंतरंग कलाकारी से मुझे सुरक्षा की फीलिंग आयी "
एबल, 20, बाईसेक्सुअल, कैसे सम्बोधित किया जाए : स्त्रीलिंग के साथ
मुझे अपने बदन से खुश ना होने वाली प्रॉब्लम है, जिसके कारण मैंने अपने अंतरंग बदन की तस्वीरें अपने गुमनाम सोशियल मीडिया एकाउंट्स पे डाल दिए| ऐसा करना बहुत अच्छा नहीं माना जाता, इससे मेरा मज़ा और बढ़ा| गुमनाम अकाउंट होने का मतलब था कि मुझे इस बात की फ़िक्र नहीं रही, कि कोई मुझे पहचान लेगा और मेरे परिवार या दोस्तों को पता चल जाएगा| मैं अपने इस भाग को अपनी पर्सनल लाइफ से अलग रख सकती थी| कुछ लोगों को शक तो था पर कोई सबूत न था| बाकियों को भनक भी नहीं थी| डिजिटल दुनिया में गुमनाम हो पाने से मुझे यूं लगा, कि मुझे और लोगों पे एक ख़ास पावर मिल गया है| उनको पता ही नहीं कि मैं कौन हूँ, उनके लिए मैं एक रहस्य बन गयी थी|
मैं हमेशा से ही अलग -अलग तरह के आर्ट और चीज़ों के बारे में जानना चाहती थी| बूड्वार आर्ट (फ्रेंच भाषा में औरतों के निजी कमरे को बूड्वार कहते हैं,वहीं से ये नाम पनपा है ) उस सफर का एक हिस्सा है | मुझे मानसिक तनाव और घबराहट की बड़ी प्रॉब्लम है, पर मेरी बूड्वार फ़ोटोग्राफ़ी की तारीफों और आलोचनाओं ने मुझे आत्मविश्वास दिया है | २०१९ में मैंने खुद की तस्वीरें लेना चालू किया| और 2020 में मैंने एक शानदार फोटोग्राफर के साथ, अपने बूड्वार आर्ट पर काम करना शुरू किया| उसने उसके इन्स्टाग्राम के ज़रिये ,कई ऐसे फोटोग्राफर से मुझे मिलाया, जिनके साथ काम करना सुरक्षित है और जो अपने अपने फील्ड में काम करने वाले लोगों का आदर करते हैं | मेरी पूरी दुनिया बदल गयी| नग्नता के प्रति मेरी सोच बदली और और मेरी इंसानियत बढ़ी| एहसास हुआ की नग्नता केवल इस्तेमाल करने वाली कोई वस्तु नहीं है| यह एक खुद को ढूँढने का, खुद पर विश्वास करने का ज़रिया है| इस कला ने मुझे सुरक्षा, ताकत और खुद के करीब आने का तजुर्बा दिया है |
मुझे लगा कि आखिरकार मैंने खुद पर कंट्रोल पा लिया है| अब मैं अपने निर्णय खुद ले सकती हूँ| जो चाहूँ वो कर सकती हूँ| इस आर्ट के ज़रिये, मैं खुद को जानना चाहती थी| आर्ट के इस समुदाय में, मैं सबसे कम उम्र की थी| लोगों ने मुझे नोटिस किया| मेरी कमज़ोरियों को भी नोटिस किया| मुझे सराहा भी और आलोचना भी की| पर इससे मुझे और बेहतर बनने की प्रेरणा मिली| वो उत्सुकता की लौ अभी भी मेरे अन्दर जिंदा है, और कभी भी बुझने नहीं वाली|
इस फील्ड में मैंने कई दोस्त और कनेक्शन्स बनाये| कई ऐसे लोग मिले, जिनसे मुझे सकारात्मक आलोचना मिली, प्रोत्साहन भी मिला | इस आलोचना से मुझे यही लगता, कि लोग मेरे काम को सीरियस्ली ले रहे हैं l मेरे पास दोस्त हैं, जो मुझे सपोर्ट करते हैं| सुझाव देते हैं| और इस फील्ड में आगे बढ़ने में मदद करते हैं| मैं इस डिजिटल दुनिया की आभारी हूँ, जिसके कारण मैं इनसे जुड़ पाई| मैं यूं अलग अलग दुनिया से नई बातें सीख सकती हूँ | यह एक मज़ेदार सफर रहा है| नए लोगों को, उनकी सोच को, जानने का सफर | उन लोगों से कनेक्शन या रिश्ता बनाने का, जो मुझे सुरक्षित महसूस कराते हैं- खुद मेरे और मेरे आर्ट के बारे में|
इसने कम बंधनों के साथ, लोगों को साथ आने का मौका दिया |
सुमित कुमार, समलैंगिक पुरुष, कैसे सम्बोधित किया जाए : पुल्लिंग के साथ, 29, द क्यूनिट के सह संस्थापक
जब मैं छोटा था, कोई फ़ोन एप्स तो थे नहीं| मेरा क्वीयर लोगों से मिलना जुलना ऑफलाइन ही शुरू हुआ| क्रुज़िंग पॉइंट्स(अनजान समलैंगिक मर्दों का पब्लिक जगहों पे एक दूसरे से मिलना) की मदद से, मेरा और क्वीयर पुरुषों से मिलना हुआ| एक दिन आप को पता चलेगा की महेश्वरी उद्यान में आप लोगों से मिल सकते हैं| और आप वहाँ जाओगे और किसी से मुलाक़ात हो जाएगी| तुम उनसे बात करोगे और वो तुमको और लोगों से मिलवायेंगे| या फ़िर बताएँगे कि अँधेरी मैकडोनाल्ड भी एक क्रूजिंग पॉइंट है| इन मुलाकातों के चलते, मैंने क्वीयर समुदाय की
और मीटिंग्स में भी जाना शुरू कर दिया|
मुझे मिलने के ये तरीके और सच्चे लगे, मैं उनसे कनेक्ट कर पाया| इनमें इमोशन्स, फीलिंग्स और इरादे थे| क्योंकि जब कोई आपके सामने खड़ा हो, तो वो झूठ भी बोले तो आप भांप सकते हो| किसी की मौजूदगी में एक छोटा 'हैल्लो' भी बहुत कुछ कह जाता है l आप पूरे इंसान को देख के उसका मतलब समझते हो l
लोगों से ऑनलाइन मिलना एक बिल्कुल अलग अनुभव था| मुझे लगता है ऑनलाइन में , लोगों का अहंकार हावी हो जाता है | कोई कैसा दिखता है, इंग्लिश बोलता है या नहीं, समाज के कौन से तबके से आता है- इन सबके आधार पे लोग दूसरे के लिए अपनी धारणायें बना लेते हैं| लोगों में बिल्कुल भी धीरज नहीं है– अगर पहली बार में ही एक बात नहीं जमी, तो अगले आदमी पर चले जाते हैं| सामने वाले को समझने के लिए लोगों के पास वक्त ही नहीं है| जो मैंने पहले से पॉइंट डिसाइड कर रखे हैं, तुम उनपे फिट नहीं बैठते, इसलिए, ठक! सीधा ब्लॉक| बहुत सारे क्वीयर पुरुषों के लिए ‘ना’ सुनना काफ़ी गहरा और दर्द भरा अनुभव होता है|
हम सब की अपनी अपनी पसंद होती है, पर उसे ऑनलाइन तलाशना इतना आसान नहीं होता है| कई बार अपमान झेलना पड़ता है और यह आपको बुरा फ़ील कराता है| लोग अलग अलग तंज कसते हैं, ‘लड़की जैसा नहीं चाहिए’, ‘लड़की जैसी हरकतें नहीं चलेंगी,’ , ‘मोटे हो तो खोटे हो,’ ऐसे| यूं अस्वीकारा जाना, बड़ा दर्दनाक अहसास होता है| लगता है कि आपको एकदम नकारा गया है l जिससे आपके अन्दर हिंसक ख्याल आ सकते हैं|जब लोगों को दर्द होता है, उस दर्द की भड़ास निकालने के लिए, वो बदला लेने की सोचते हैं| लोग आपकी फेक प्रोफाइल बनाते हैं, आपकी फ़ोटो लेकर, आपके प्रति लोगों के अन्दर गलत सोच पैदा कर सकते हैं| या फ़िर आपके न्यूड फ़ोटोज़ को लेकर आपको ब्लैकमेल कर सकते हैं|
एक समय था, जब फेसबुक ग्रुप्स पर हम सब दिल खोल कर बात कर सकते थे| फिर राजनीति ने अपना सर उठाया और हर मुद्दा 'या इस पार या उस' के नज़रिये से देखा जाने लगा l विचारधाराओं के मतभेद पर लड़ाइयां छिड़ने लगीं| हर किस्म की तरफदारी होने लगी | लोग अपनी पुरानी सोच को सच मान के, लोगों को नीचा दिखाने लगे l शब्दों की ऐसी हिंसा , बाईसेक्सुल लोगों को लेके, बहुत छेड़ी जाती| तो मेरा यही मानना है कि ऑनलाइन ग्रुप्स मिलने का बहुत अच्छा ज़रिया भी हैं, पर कई बार इस ऑनलाइन स्पेस में ही आपको हिंसा और तिरस्कार झेलना पड़ सकता है|
२०१५ में हमने एल.जी.बी.टी. समुदाय से जुड़ी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए क्यूनिट/QKnit की शुरुआत की थी| यह एक यूट्यूब/YouTube चैनल होना था| जहाँ क्वीयर इवेंट्स के बारे में बातें और जानकारी दी जाती| जब इसे चलाना मुश्किल लगने लगा, हमने अन्य इवेंट्स भी करने शुरू कर दिए, जो आम रूप से किये जाते हैं | जहाँ पर लोग आ कर आपस में मिल बैठ कर बातचीत कर सकते थे| बन ठन के आने की ज़रुरत नहीं थी, बस आओ और आपस में बातें करो| पर हमें लगने लगा कि हमें अपने बाकी लोगों से, अपने दोस्तों से, एल.जी.बी.टी. समुदाय से जुड़ी बातें करनी चाहियें|आखिर हम भी तो समाज का हिस्सा हैं , तो हमें और लोगों को अपने से जोड़ने की, और खुद उनसे जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए, है न l
हम बाकी तरह के कार्यक्रम आयोजित करने लगे – जैसे समुद्र तट की सफ़ाई, या कुछ खेल कूद सम्बंधित| इस तरह हम लोग कुछ करने के लिए मिलते थे| आपस में कनेक्ट होते थे| और केवल अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर नहीं| आयोजन एल.जी.बी.टी. लोगों द्वारा ही किया जाता था, पर कोई भी इन कार्यक्रमों में शामिल हो सकता था| और कई स्ट्रेट लोग भी अपने दोस्तों से साथ इसमें शामिल होते थे|
फ़िर हम पब्लिक इवेंट भी करने लगे| पब्लिक जगहों पे बातचीत| जिसे हम क्वीयर कट्टा कहते थे| एच.आई.वी. या जेंडर से लेकर चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करते थे| और कभी हम अपने पुराने रिश्तों के बारे में, वो हमारे लिए क्या मायने रखते हैं, इसके बारे में बात करते थे| बैंडस्टैंड जैसी पब्लिक जगहों पर इसका आयोजन करते थे| एक बार तो पास से गुज़रती हुई वृद्ध महिलायें भी इस बात चीत में शामिल हो गयी थीं| इस तरह, कई बार हम ऑफलाइन उन लोगों से मिलते थे, जिन्हें हम ऑनलाइन कभी न मिलते| वे लोग उत्सुक होकर हमारी बातचीत का हिस्सा बन जाते| और यूं लगता कि हाँ, सच यही है कि हम सब एक ही दुनिया का हिस्सा हैं| एक दूसरे को अपना रहे हैं|
आमने सामने की बातचीत में आप किसी बात पर असहमत हो सकते हैं| आप बहस कर सकते हैं l पर ऑनलाइन ये बहस करना एक दूसरे को नकार देने जैसा बन जाता है l आमने सामने, बिना निष्कर्ष निकाले, आप कुछ सुन सकते हैं, बातें और खुल सकती हैं|
यही सब सोचके हमें लगा कि एक फिजिकल स्पेस होनी चाहिए, जहां लोग मिल- बैठ -बाँट सकें | जो एल.जी.बी.टी. लोगों द्वारा चलाई जाए| जहां वो लोग आ कर खुल कर बात कर सकें| पर जो सबके लिए हो | हमें मीरा रोड पर एक जगह मिली| और हमने कैफ़े गुफ्तगू की शुरूआत की| वहाँ इवेंट्स और बातचीत आयोजित करने के अलावा लोगों के लिए किताबें थीं, गेम्स थे, हम बातचीत और इवेंट्स का आयोजन करते थे|
पर शुरू करने के कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन का आर्डर आ गया| हम नहीं चाहते थे कि बनी बनायी स्पेस ख़त्म हो जाए| तब हमें एहसास हुआ कि उस एरिया में ऐसे काफ़ी लोग हैं जिन्हें खाना नहीं मिल पा रहा है, या जिन्हें मदद नहीं पहुँच पा रही है| हमने फ़ैसला किया कि हम कैफ़े को एक कम्युनिटी किचन में बदल देंगे| यह करके अच्छा लगा| हम लोग साथ आकर, आसपास के लोगों के लिए कुछ काम कर रहे थे| साथ ही साथ गुफ्तगू भी चालू रही|और कैफ़े भी|
नेटवर्क, कनेक्ट और बातचीत करने के लिए ऑनलाइन एक अच्छी चीज़ है|पर मेरे, हमारे लिए एक ऑफलाइन समुदाय को बनाना ज़्यादा मददगार साबित हुआ है| और इसमें समुदाय के भीतर के रिलेशनशिप्स और खिले हैं l हमारे समुदाय का आम समाज के साथ रिश्ता, कई तरह से बढ़ा है| एक तरह से कहें, तो तो ऑफलाइन पानी सा तरल है, यहां सब पानी की तरह आपास में मिल जुल सकते हैं |
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