मेरे साथ यही हुआ! कुछ राज़ ऐसे होते हैं जिन्हें हम खुद से भी छिपाकर रखना चाहते हैं। मैं खुद बहुत छोटी उम्र में अपनी सच्चाई जान गई थी। पर फिर भी खुद को बहलाती रहती थी। 'औरतों के लिए ये सब थोड़ा अलग होता है', 'अगर आकर्षक सा कोई सामने आ जाये, तो हो जाएगा', 'अगर माहौल सेक्सी हो, तब हो जाएगा'। लोग तो सेक्स के बारे में इतने कॉन्फिडेंस से बात करते थे, कि मैं कभी अपनी आशंकाएं सामने रख ही नहीं पाई।लगता कि अगर अपने सवाल सामने रखे, तो सबको लगेगा कि मैं नाकाबिल हूँ। और ये नाकाबिल होना ऐसा लगता जैसे मुझमे कोई खराबी हो। धीरे-धीरे, मेरी यही बेबसी, मेरी कमी लगने लगी। वो कमी, जिसे मैं किसी के सामने नहीं लाना चाहती थी। जिसके बारे में अकेले बैठकर, गहराई से सोचनाज़रूरी था। और यकीनन ही जिससे छुटकारा पाना ज़रूरी था। जिसके बारे में औरों से बात तो बिलकुल नहीं की जा सकती थी । ख़ैर अब, जब कि मैं 30 साल की उम्र पार कर चुकी हूं, और कई तरह के संबंधों में रहने के बाद भी, अब तक वर्जिन (virgin) हूँ, मैं धीरे-धीरे अपनी अलैंगिकता को अपनाने लगी हूँ, उसे अपना बनाने लगी हूँ। अब मैं उसे अपनी कमी या अपना दोष मानकर नहीं अपनाना चाहती। मैं उसे अपने सेक्सुअल रुझान, अपने स्वाभाव का एक नेचुरल हिस्सा मानना चाहती हूँ l
अलैंगिकता का मतलब सबके लिए एक सा नहीं होता है। कुछ अलैंगिक रोमांटिक भी नहीं होते हैं। पर मैं वैसी नहीं हूँ। मैं तो इस हद तक रोमांटिक हूँ कि किसी को अपना सूरज, चाँद, तारा, सीधे-सीधे कह दूं। और मान भी लूँ।मैं तो वो हूँ जो रिश्ते के शुरुआती, उम्मीदों से भरे दिनों में, बड़ी सारी हसरत भरी कविताएँ लिखती है। और दिल टूटने के बाद के दिनों में, दर्द भरे नगमे। मैं वो हूँ जो आई लव यू जैसे डायलॉग्स से जिंदगी भर चिपके रह सकती है। मेरे एक रिश्ते के दौरान, बातचीत के तौर पे हम एक दूसरे से ज्यादातर यही कहा करते थे - आई लव यू। ब्रेक-अप के बाद, ये एक खालीपन बन गया जो अब तक रह गया है।
मेरे लिए, अलैंगिकता का मतलब ये नहीं है कि मुझे किसी का छूना पसंद नहीं है। मुझे गले लगना, चिमटना, झप्पी लेना, बहुत पसंद है। मैं किस करना भी एन्जॉय करती हूँ। और कभी-कभी ओरल सेक्स देना और लेना भी (सिर्फ तब, जब मैं किसी की तरफ बहुत आकर्षित हूँ, या उस इंसान से इमोशनल तरीके से जुड़ी हूँ। लेकिन मैं भेदक (penetrative) सेक्स नहीं कर सकती। उस हद तक मैं कभी उत्तेजित नहीं होती हूँ। कम से कम किसी इंसान से नहीं। हाँ, कुछ एकदम विशेष परिस्थितियों में जरूर उत्तेजित हुई हूँ । लेकिन सिर्फ अपने साथ, किसी और के साथ नहीं। ये उत्तेजना कभी किसी लिटरेचर से, तो कभी किसी TV के दिल टूटने और जुड़ने वाले सीन से (जो बिल्कुल सेक्स से संबंधित नहीं होता है) आती है। फिर हस्तमैथुन (masturbation) से इस उत्तेजना को शांत करती हूँ।
हमारे समाज में, सेक्स के बारे में बात करने का मतलब, दबी हुई बात को खुल के कहना, हो गया है, और ये अच्छी बात है। लेकिन ये बातचीत लोगों का एक दूजे से घुलने, जुड़ने का तरीका भी हो गया है, शायद इसलिए क्योंकि सबके अनुभव मिलते-जुलते हैंl मेरा केस तो अलग है ना। इसलिए मैं उनकी बातचीत में शामिल नहीं हो पाती हूँ। यानी जो अलैंगिक रुझान का है, वो ऐसे में अकेला पड़ जाता हैl मेरे आस-पास के लोग जब किसी को नेगेटिव व्यवहार करते देखते हैं तो टिप्पणी करते हैं कि, लगता है बहुत दिन से इसे वो मिला नहीं है (‘वो’ यानी सेक्स)। तो अगर आप किसी भी वजह से गुस्सा हैं, चिढ़े हुए हैं, परेशान हैं तो इसकी वजह है कि आप या तो अभी तक वर्जिन (virgin) हैं, या फिर काफी दिनों से आपको सेक्स नहीं मिला है। ऐसा लगता है, जैसे कि सेक्स ना करने की चॉइस कभी किसी के पास हो ही नहीं सकती है। इस तरह की सोच और आपसी घुसर फुसर में अलैंगिक लोगों की जगह कहाँ है ? अगर सेक्स की बातें इसी तरह से की जाने लगीं, जैसे बोलने वालों को सब कुछ पहले से पता है, तो सेक्सुअलिटी के बारे में खुलकर बात करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। और खासकर, अलैंगिकता के बारे में।
मैंने जिन लोगों से प्यार किया है, उनके लिए मेरे मन में कभी सेक्सुअल रूप से आकर्षण नहीं आया । और इस बात से शुरू हुआ मेरा खुद को जानने का एक लंबा तूफानी सफर । पहले तो आशंकाएं, खुद को दोष देना, खुद से घृणा करना, बस यही सब भावनाएं आती थीं। यहां तक कि कभी-कभी मुझे ये भी लगता था कि मेरे पार्टनर के लिए जो मेरी भावनाएं हैं, शायद उनमें ही कुछ कमी है यानी कि अगर "मैं किसी और के साथ रहूँ तो शायद दूसरी वाली फीलिंग आ जाएगी ')। और यूं, कई असफल रिश्तों का सिलसिला चला । आखिर में मैंने मान लिया था कि मुझमें ही कमी है। उन दिनों मैं अपने आप को किसी लायक नहीं समझती थी। इसी चक्कर में सामने वाले को खुश करने में लगी रहती थी, सब कुछ अपने ऊपर ले लेती थी। यहां तक कि किसी का दुर्व्यवहार भी। तो ऐसे कई जोखिम भरे अनुभवों के बाद, मैं खुद से मिली। मैंने खुद को अपनाया। और अपने आप को समझाया कि मैं भी प्यार के लायक हूँ। और कम से कम खुद को तो प्यार कर ही सकती हूँ। और अब, जब इंटरनेट पर मेरी मुलाक़ात अलैंगिक लोगों के एक बड़े से समुदाय से हुई है , तब अकेलापन भी कम महसूस होने लगा है। इसलिए आज ये आर्टिकल लिख पा रही हूँ। इस उम्मीद में, कि अगर आप में से कोई भी है, जिसे सेक्स के बारे में वैसा अनुभव नहीं होता है जैसा बाकी कई लोगों को होता है, तो इसका मतलब ये नहीं कि आप गलत हैं। 'अंदर ही अंदर' खुद को कोसना बंद करें। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि ऐसे सफर में आप अकेले नहीं हैं।
रोमांटिक कामुक अलैंगिक- वो मैं हूँ।
अलैंगिकता के साथ-साथ बेहद रोमांटिक होना कैसा लगता है?
रोजा द्वारा
अनुवाद: नेहा द्वारा
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