एजेंट्स, जब हम अ-बॉ-र्श- न शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो आपके दिमाग़ में सबसे पहले कौन-सी बातें आती हैं ?
पाप, किसी पिक्चर में दिखाए गए कलंक की कल्पनाएँ, औरतों के लिए भयानक शर्म की बात और उस आदमी पर ऊँगली उठाकर उससे ये पूछना कि तुम ऐसा कैसे कर सकते हो ? इस तरह की बातें, है ना ?
पर जानी, इस क़िस्म की ऊटपटाँग बातों की शुरुआत कहाँ होती है ? इसका जवाब तो बड़ा सरल है। इस सब की शुरुआत औरतों के जिस्म को कंट्रोल करने की कोशिश है। उनके कामुक जीवन पर उनके ख़ुद फ़ैसले ले पाने को रोकने की कोशिश । इस पहरेदारी में मुख्य रोल निभाने वाले कौन हैं? ... तो लीजिए पेश हैं - हमारे पुराने दोस्त यानि पितृसत्ता/ patriarchy और उनके जिगरी - “ये करो और ये नहीं” की नैतिकता।
ऐसी सेटिंग में, जब गर्भपात की बात होती है, तो उसे सीधे मर्यादा और नैतिकता से जोड़ा जाता ,है। औरतों की ज़िंदगी, उनकी सेहत या उनकी मर्ज़ी से नहीं इस कहानी में, गर्भपात (Abortion) के मुद्दे के आस-पास मंडराती सोच, औरतों के जीवन, उनके स्वास्थ और उनकी पसंद पर ध्यान नहीं दिया जाता। इस मुद्दे पर तो बड़ी बहसें हो चुकी हैं। ऐसी बहस जो दुनिया को मानो दो टीमों में बाँट देती है - एक टीम प्रो चॉइस/ Pro Choice (यानी अबॉर्शन के मामले में औरतों की मर्ज़ी को प्राथमिकता) देने वालों की और दूसरी प्रो-लाइफ/ Pro Life (यानी जो मानते हैं कि लगभग हर परिस्तिथि में अबोरशन करना गलत है और औरतों की मर्ज़ी इस पर नहीं लागू होनी चाहिए) देने वालों की - नतीजा? गर्भपात (abortion) एक जीती-जागती सच्चाई है, पर इसके बारे में एकदम चुप्पी छाई रहती है। जबकि हर साल भारत में 15. 6 लाख गर्भपात (Abortion) होते हैं। आज तक यही हाल है कि, रोज़ाना की ज़िन्दगी में, हमारे लिए ये कभी-कभार ही होता है कि हम अपने गर्भपातों की एक दूसरे से चर्चा करें।
रोक और पाबंदी का ये लम्बा इतिहास गर्भपात के लम्बे इतिहास के साथ-साथ चलता आ रहा है, जो लगभग पिछले 4000 साल पुराना है। कम से कम कैथरीन लंदन का ये रिसर्च हमें यही बताता है, जिसमें वो कहती हैं कि मर्दों और औरतों ने हमेशा ही गर्भपात (Abortion) चाहा है - अब चाहे वो ऊँटों के मुँह से निकाली गई झाग,या मसली हुई चींटियों के पेस्ट द्वारा हो या कोई अलग तरीके से जैसे भारी व्यायाम, भारी सामान उठाना, पेड़ पर चढ़ना, या उछालना-कूदना या जम कर हिलना । मानव जाति हमेशा ही ज़िन्दगी को बेहतर बनाने की चाहत रखती है न। साधारण मेडिकल उपायों के बावजूद, 2010 से 2014 के बीच, हर साल, लगभग 25 लाख असुरक्षित गर्भपात हुए हैं।
क़ानून में जब गर्भपात (Abortion) , महिलाओं की अपने आप से निर्णय ले पाने की आज़ादी, और उनके अधिकारों पर बातचीत होती है, तो वो बातचीत हमेशा सामाजिक रवैये, स्त्री पुरुष में भेद भाव और अन्नदाता को प्राथमिकता दिए जाने के भेद भावों से घिरी रहती है । और मेडिकल क्षेत्र में भी यही होता है । इन सब के होते, प्रजनन को लेकर औरतों की मर्ज़ी, एक लड़ाई का मैदान बन गयी है । ऐसा मैदान जिसमें अक्सर औरतों को अपनी लड़ाई लड़ने का मौक़ा ही नहीं दिया जाता । और ऐसी लड़ाई जिसके होते अक्सर औरतों की आवाज़ ही मिटा दी जाती है ।
पूरी दुनिया के गर्भपात क़ानून (Abortion Law) उर्फ़ अधिकारों की दुर्दशा पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलेगा कि अपनी ज़िंदगी को लेकर मर्ज़ी के साथ एक परम साथी को जोड़ दिया गया है - “ नियम और शर्तें लागू” वाला हैश-टैग।
भारत में क्या स्तिथि है ? बेशक़, विभिन्न परिस्थितियों में गर्भपात (Abortion) की कानूनन मंज़ूरी है, पर वही #नियमऔरशर्तेंलागू।
गर्भपात (Abortion) की कानूनन मंज़ूरी के बावजूद, गर्भपात के दबाव का असर लोगों के दिमाग़ पर इतना हावी है, कि ये भी एक कारण है कि बहुत से लोग MTP Act से अनभिज्ञ हैं। MTP Act - जो कई परिस्थितियों में गर्भपात को क़ानूनी तौर पर सही ठहराता है। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ये एक्ट पिछले कितने सालों से हमारे बीच है ? नहीं जानते न ? चिंता मत कीजिये आप अकेले नहीं हैं। इस बारे में लोगों की कुछ ग़लत धारणाओं के लिए नीचे देखिये।
भारत में गर्भपात परिदृश्य के इतिहास को देखते हुए जो सबसे महत्वपूर्ण चीज़ हमने जानी, कि जब औरतों की मर्ज़ी की बात सामने आती है तो क़ानून और सामाजिक सोच दोनों ही कभी हाँ कभी ना करते रहते हैं । और तो और, गर्भपातपर बातचीत किसी एक जगह पर स्थिर नहीं होती।हर विरोध और हर अर्ज़ी के बाद गर्भपात पर मत भी बदल जाता है।गर्भपात को लेकर इस कानूनन और सामाजिक उतार चढ़ाव को साफ़ देखा जा सकता है अगर हम इन कुछ चुनिंदा केस को देखें : MTP एक्ट से लेकर निकेता मेहता केस और फिर सुप्रीम कोर्ट के 2017 के निजता के अधिकार निर्णय ( Right to Privacy ) जिसने कहा कि… “ औरत की बच्चे जनने या अबोरशन कराने की मर्ज़ी….उसकी निजी आज़ादी के हक़ के तहत (आती है) जिसकी आर्टिकल 21 में गारंटी दी गयी है… (और) प्रजनन की मर्ज़ी का ये मतलब बनता है कि ये जन्म देने के लिए इस्तेमाल की जा सकती है या फिर जन्म न देने के लिए भी ”
भारत में गर्भपात क़ानून (Abortion Law) के इतिहास की ओर नज़र डालने पर दिखता है कि बावजूद इसके कि ‘ है गर्भपात पे कलंक भारी, मर्ज़ी की तलाश भी हमेशा से रही है जारी। ‘
एक अदालत ने कहा कि किसी भी औरत को बच्चा जनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता यदि वो इसके लिए तैयार न हो या बच्चा नहीं चाहती हो :
सुप्रीम कोर्ट ने इसका समर्थन किया कि एक औरत को गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति की आवश्यकता नहीं है।
एक दूसरी अदालत ने महिला गर्भपात के अधिकारों और उसके शारीरिक स्वराज्य को प्रबलित किया।
जैसा कि अदालतों के ऊपर लिखे कथन दर्शाते हैं, सामाजिक बदलाव लगातार उभर रहे हैं और यहाँ तक कि अब महिलाओं के वकील MTP Act में बदलाव की मांग कर रहे हैं l जो कि गर्भपात में महिलाओं की पहुँच को एक कलंक-मुक्त और सहयोगी माहौल देने में मदद करेगा।
क़ानून बदल भी जाए, मगर चुनौतियाँ क़ायम रहती हैं। हम गर्भपात को लड़ाई के मैदान बनने से कैसे मुक्ति दें और कैसे एक ऐसा समाज बनाएं, जो हर किसी को पसंदीदा जीवन बनाने में ईमानदारी से मदद करे ताकि हर कोई अपनी ज़िंदगी के निर्णय खुल के ले सके। ऐसा करने का एक रास्ता ये हो सकता है कि हम इस विषय को महिलाओं की ज़रुरत के दृष्टिकोण से देखें, न कि सामाजिक रस्मों-रिवाज़ की नज़र से। गर्भपात के अधिकारों की ज़्यादा जानकारी, आसानी से उपलब्ध हो- मेडिकल प्रक्रिआओं की जानकारी और साथ में लोगों के अनुभवों की जानकारी भी ।
-इस सब से हम गर्भपात को नार्मल का दर्जा दे पाएंगे और हम कलंक को ठेंगा दिखा सकेंगे !
तो फिर, सेक्स, गर्भधारण और गर्भपात पर सुपर जानकारी देने वाले हमारे वीडियोस यहाँ देखें :
मर्ज़ी को हाँ और कलंक को ठेंगा दिखाना चाहते हैं तो, तो आप अपने संकल्प का हस्ताक्षर यहाँ भी कर सकते हैं :
https://pratigyacampaign.org/MyBodyMyChoice/takethepledge.php
गर्भपात/अबॉर्शन क़ानून के उतार-चढ़ाव : महिलाओं के अधिकार और सामाजिक मर्यादा
एबॉर्शन है हक की बात!
Score:
0/
Related posts
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
We're Not Serious and Other Non-Promises
"What is sex sex I want to scream? Is what we’ve been havi…