तो बॉडी पीछे पड़ जाती है। तब और क्या किया जाए ? जब कभी आपस में टच होगा - और मैं जानती हूं कि कभी ना कभी टच होगा - ठहरना मत। जल्दी से हाथ हटा लेना। नज़रें मिलना बहुत ज़रूरी है। इसलिए मिलाना मत। सर हल्का सा पीछे कर के उनको ताकते मत रहना। उनका चेहरा देख के मंद मंद मुस्काना अच्छा तो लगता है, लेकिन ऐसा मत करना। नज़र फेर लेना, तुम्हें अजीब सा लगे तो भी हंस देना, कोई मज़ाक कर लेना। और फिर धीरे से कुछ कदम पीछे ले लेना। उनके इंतज़ार में दरवाज़े पर नज़रें मत गाड़े रखना। उनके चेहरे की हर बारीकी को नापते हुए तुम अपनी पलकों की चिलमन से उनको लगातार ताक नहीं सकते। ठुड्डी के घुमाव से ले कर उनके माथे पे छाए वो छोटे, घुंघराले बालों तक नजरें फेर पाना - ये करने की तो कोशिश भी मत करना, ये तुम्हारे नसीब में नहीं है।
नज़र को शांत रखो - ना इधर दौड़ाओ ना उधर। अपने काम से काम - उनके काम से नहीं।
याद रखना हाथ बड़े गद्दार होते हैं। तुम किसी चुटकुले पर हाइ फाइव करोगे, और उंगलियां आपस में उलझ जाएंगी। जब बेबस सी मोहब्बत हो, जिस पर तुम्हारा कोई कंट्रोल नहीं, तो ऐसा अक्सर होता है। और कभी कभी तो यूंं होगा के वो तुम्हारे ठीक सामने आ कर लडखडा जाएंगे। पता नहीं ऐसी घटनाएं एक तरफा प्यार में ही ख़ास क्यों होती हैं। वो लडखडाएंगे और तुम कूद पडोगे उन को बचाने के लिए। और फिर क्या, तुम्हारे हाथों में उनका हाथ, तुम्हारी उंगलियां उनको छूती हुईं - बस वक्त वहीं थम सा जाएगा। लेकिन सिर्फ तुम्हारे लिए। किस्मत और भी ज़्यादा खराब हुई तो तुम उनको कंधों से पकड कर पैरों पे सीधा खडे होने में मदद करोगे और इस नेक काम के चक्कर में तुम्हारी उंगलियां उनके मखमली बालों को छूते हुए गुज़रेंगी। वो पल तुम कभी नहीं भुला पाओगे।
कभी नहीं।
उन के जीवनसाथी के बारे में बात करने की कोशिश करो। बहुत ज़्यादा भी नहीं वरना उनको सब समझ आ जाएगा। कैजुअल रहो, जैसे के तुम्हें उनके साथी के बारे में सब पता है। तुम्हें पता है कि उनकी ज़िन्दगी में प्यार है, तुम इस बात की कद्र भी करते हो। और तुम्हें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। तुम्हें फ़र्क नहीं पड़ता। उस तरह से तो बिल्कुल भी नहीं। किसी तरह से भी नहीं।
इस बात का खास ख्याल रखना के उनको पता ना चले कि तुम झूठ बोल रहे हो।
अपनी सांसों का भी ख्याल रखना। कभी देखा है सांसें धीमे से कैसे सारे भेद खोल देती हैं? सब सुना देती हैं। वो सब भी कह जाती हैं जो तुम्हें पता ही नहीं था के तुम्हारे अंदर चल रहा है। जैसे ही उनको कमरे में घुसते देखोगे, सांसें तेज़ हो जाएंगी। वो तुम तक चलते हुए आएंगे और तुम्हें ऐसा लगेगा मानो कमरे में सिर्फ तुम दोनों रह गए हो और कोई नहीं। फिर मुंह हल्का सा खुलेगा, होंठ थोड़े अलग होंगे और ये सांसें, आहें बन जाएंगी। गहरी वाली नहीं, अभी नहीं। बस उस घड़ी अपने दिल पर पत्थर रख लेना। हल्का सा मुस्कुरा कर अपनी आहें दबा लेना। अपनी निकलती हुई सांस को वापस अंदर ले लेना। सांसें संभाल लेना। तुम्हारी इन साँसों का उनसे कोई वास्ता नहीं है, ये उनकी नहीं बनेंगी।
पर हां, जब वो दूर, बहुत दूर, चले जाएं, तब तुम खुद को एक लंबी आह भरने दे सकते हो।
अपनी पीठ भी सीधी कर लो, हड्डियों को लोहा कर लो। जब एक तरफा प्यार होता है ना, पूरा शरीर ऐसे ढीला पड़ जाता है जैसे रबर का बना हो। तुम चाहे कहीं भी, कुछ भी कर रहे हो, ये शरीर बस पानी की तरह उनकी ओर बह चलेगा। बाहें और कोहनी तो खास गद्दार हैं। चाहे बैठे हो या खड़े, खुद का शरीर ही धोखा देगा और उनकी तरफ झुकने सा लगेगा। और फिर क्या, पहले कंधे टच होंगें। फिर बांहें। और फिर बाइसेप और ट्राइसेप के बीच वो एक पॉइंट उनकी ज़िंदगी भर की यादगार बन जाएगा। तुम्हारे शरीर पर स्पेस या टाइम का कोई कंट्रोल नहीं रहेगा । हर पल बस लड़ना होगा अपने ही शरीर से। इतना ज़्यादा के तुम खुद ही खुद के एंटी ( anti) बन जाओगे, अपना ही विरोध करने लगोगे। लेकिन ये सब होना ज़रूरी है। खुद को किसी तरह की ढील मत देना। तुम बस ठोस मूरत बन के सीधे खड़े रहो। जितना सीधा हो सके उतना। याद रखना तुम सिर्फ उस हवा में सांस ले रहे हो, जिस में वो ले रहे हैं। बस तुम्हारा और उनका यही रिश्ता है, और कुछ नहीं।
अपने दिमाग को, अपनी समझ को थोड़ा आराम भी दो। ये मत सोचो कि क्या करना स्मार्ट है या कैसे सब कुछ बिखर सकता है। बस प्यार को ध्यान में रखो। और उस कसक को। उस तड़प को। खुद को वैसे ही छुओ जैसे तुम चाहते हो वो तुम्हें छुएं। अपनी खुद की नरमी से गरमी बढ़ाओ। सब इच्छाएं, सब फैंटेसी खुद ही की बाहों में समेट लो। वैसे ही जैसे तुम चाहते हो वो तुमको समेट लें।
और फिर धीरे धीरे तुम और तुम्हारा शरीर आगे बढ़ने की कोशिश करेगा। और सफल भी होगा। पर ये कमबख्त यादें बस गरदन पे बने दांतों के हलके से निशान की तरह कचोटती रहेंगी।
टीया पागलों सी, बेरोक पढ़ती रहती हैं l और किताबों के अपने जूनून को पूरा करने के लिए लिखती हैं और सम्पादन का काम भी करती हैं l अपनी ज़िंदगी की तीसरे दशक के कहीं बीचों बीच, वो प्यार और लेखनी, दोनों में अपने पक्के सुर की ओर बढ़ रही हैं l
जब प्यार आगे नहीं ले जा सकते
तो बॉडी पीछे पड़ जाती है। तब और क्या किया जाए ?
लेखन : टीया बासू
चित्रण: भूमि
अनुवाद: श्रुति भट्ट
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