क्या आपको लगा कि यह सिर्फ हम ही हैं, आधुनिक समय के कूल /बेफिक्र किस्म के लोग, जो प्यार-व्यार, सेक्स- वैक्स और इस प्रकार की और चीज़ों के बारे में सोचते हैं? अय्यो! ऐसा तो नहीं ही सोचें ! (प्लीज़ !)भारतीय जब से कलात्मक रहे हैं, तब से अपनी कला को इश्क़ से तर करते आ रहे हैं। विश्वास नहीं होता? तो कथक के उत्तेजित करनेवाले प्रलोभन के आगे बेअसर होने की कोशिश करके देखें, या उन सुगंधित फूलों के आगे, जिनको महिलाएं अपने बालों में श्रृंगार के रूप में पिन करती हैं, या रसमलाई के एक बड़े सुंदर कटोरे के ! इश्क से जुड़ी वस्तुएं हमारी परंपरा में हर जगह मौजूद हैं। लेकिन ‘विरासत’ की पारंपरिक परिभाषा के अनुसार - यानी ‘क़िताबों और इमारतो’ में भी- ऐसा बहुत कुछ है ,जो दुनिया की कामुक विरासत में योगदान देती हैं! आओ ज़रा देखें कि प्राचीन समय के यह अजेंट्स ऑफ इश्क़ थे कौन! कामुक लेखनी ओहो! अहा! अब कहां से शुरू करें? यकीनन उनसे जो सबसे प्रसिद्व है। वात्स्यायन लिखित काम-सूत्र मास्टर्स और जॉनसन, हाइट रिपोर्ट और कॉस्मोपॉलिटन से बहुत पहले ही काम-सूत्र था। वत्सयान द्वारा संस्कृत में लिखित, जिसे तीसरी शताब्दी सी.ई. के समय का माना जाता है, यह सिर्फ सेक्स में प्रयोग होनेवाली स्थितियों की सूची भर नहीं है। वो तो एक अच्छे, कामुक जीवन जीने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, उसका एक हिस्सा-भर है और काम सूत्र एक विस्त्रित, परिष्कृत रचना है जो महिलाओं के यौन आनंद पर उतना ही ज़ोर देता है जितना पुरुषों के, और जो प्रेम, रोमांस, रिश्ते, इच्छा और परिवार के बारे में भी बात करता है, जीवन के ऐसे कई अन्य विषयों के बीच । यहां बताया जा रहा है कि किस प्रकार वत्स्यायन चुम्बन पर अपना पाठ आरम्भ करते हैं: "कुछ लोगों ने यह कहा है कि गले लगाने, चुंबन, और नाखूनों या उंगलियों के साथ दबाने या खरोंचने के लिए कोई निश्चित समय या व्यवस्था नहीं है, लेकिन ये सभी चीजें आम तौर पर यौन संघ के आरम्भ में की जानी चाहिए, जबकि आमतौर पर हाथ से मारना और विभिन्न ध्वनियों का निकाला जाना यौन संघ के समय पर अधिक होता है। हालांकि, वत्स्यायन यह भी सोचते हैं कि कभी-भी कुछ भी हो सकता है, क्योंकि प्यार समय या व्यवस्था/ क्रम की परवाह नहीं करता है। " काम सूत्र अपनी तरह की एकमात्र पुस्तक नहीं है - यानी प्राचीन उन्नत सेक्स-मैनुअल। 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश खोजकर्ता रिचर्ड बर्टन, जिन्होंने अंग्रेजी में इस पुस्तक का अनुवाद किया है, लिखते हैं कि वत्स्यायन अपने काम में संभोग पर दस अन्य लेखकों के काम को भी संदर्भित करते हैं, और बर्टन छह अन्यों को इंगित करते हैं, जिसमें वे काम सूत्र के बाद रतिरहस्य ( जिसका रचनाकाल 11 वीं या 12 वीं सदी के बीच माना जाता है।) और 15 वीं शताब्दी में लिखी गई अनंग - रंग का भी ज़िक्र करते हैं।
Image Courtsey: Colour Crafts on engrave.in
आंडाल की कविता आंडाल तमिलनाडु में 9वीं सदी की सूफी/आध्यात्मिक कवियित्री थी, और 12 मध्ययुगीन वैष्णव संतों में, जिन्हें अलवर कहा जाता था, आंडाल एकमात्र महिला अलवर के नाम से जानी जाती थी। अपनी पुस्तक ‘एक देवी की आत्मकथा’, में प्रिया सरुककाई छाबरिया और रविशंकर ने बताया कि आंडाल की कविता उसकी इस मांग के कारण अनूठी है कि विष्णु उसे दुल्हन के रूप में स्विकारें "आत्मा के रूप में ही नहीं बल्कि एक जीवित महिला के रूप में भी“ और वह अपने चुने हुए भगवान के साथ आध्यात्मिक और यौन मिलन की इच्छा कोे "गाती है", यानी अपनी व्यक्तिगत आवश्यकता और शरीर में प्रचुरता से समायी अपनी महिला इच्छा को भी व्यक्त करती है, यानी वो शरीर और वो इच्छा भी पवित्र है।
"ताई ओरु तिंकल” से छाबरिया द्वारा अनुवादित एक छंद यहां दिया गया है:
कज्जल में डुबकी ली उंगलियों से मैं तुम्हारा नाम लिखती हूं
दीवार पर , प्राचीन आत्मा! मैं नाचते हुए घोड़ों को रेखांकित करती हूं
तुम्हारे रथ से, वो जिसपर जिसपर तुम्हारी ध्वजा उड़ती है, उस पर बनी मछली भी
और तुम्हारा धनुष जो पके हुए गन्ने का बना हुआ है और वो उत्तम महिलाएं, जो तुम्हें पंखा देती है ।
बचपन से मैं अकेले उसके लिए उत्सुक थी
मैं अपने बढ़ते हुए लचीले, भरे स्तनों को पेश करती हूं।
द्वारकाधीश मेरे स्तनों का पान करें। यही मेरी प्रार्थना है
कामदेव: मेरी प्रार्थना फलित करो।"
Image Courtesy: Devdutt Pattanaik
जयदेव की गीत गोविंद गीत गोविंद, 12 वीं शताब्दी में जयदेव द्वारा, संस्कृत में वहाँ रची गयी जिसे आज ओडिशा के नाम से जाना जाता है। ये कृष्ण और राधा के बीच के संबंध का घटनाचक्र है, जो श्रृंगार रस से सम्पन्न कामुक कविताओं में व्यक्त किया गया है। इन दोहों को समूहों में लिखा गया है, जिन्हें अष्टपदी के नाम से जाना जाता है। हर अध्याय में कृष्ण के व्यक्तित्व से किसी एक पहलू को संबोधित किया गया है, जैसे कि "आनंदपूर्ण कृष्ण", "ललायित, कमल-नैन कृष्ण", "क्षमाप्रार्थी कृष्ण", - पर कथाक्रम अक्सर राधा के अनुभव पर केंद्रित होती है। कृष्ण की उंगलियां बासुंरी पर, राधा सुध-बुध खोकर नाचती हुई, हृदय में परमानंद समेटे हुए।
'मेरे वक्षों पर तुम्हारा हाथ कृष्ण
चंदन से शीतल। यहाँ हिरण कस्तूरी से एक गीला वर्क बनाओ।
यह प्रेम का पवित्र मटका है।
'मेरे जननांगों को जड़े हुए कमरपट्टे, कपड़ों और रत्नों में लपेट लो।
मेरे जघनास्ति के ऊपर अमृत से भरा सागर है,
वासना के ठेलने से खुला गुफा द्वार। '
अविचारी, उत्तेजित, वो जोर डालती है
कामुक प्रेम से
तत्काल धावा बोलने की ओर
पलटी मारकर उसपर सवार हो जाती है,
मज़े लेती है जब वो हार मान लेता है।'
मीराबाई के भजन माना जाता है कि मीराबाई 16 वीं शताब्दी की, राजस्थान में पैदा हुई, एक भक्ति कवि थीं जो कृष्णभक्त थीं। कितनी ही पीड़ा और उत्पीड़न सहने पर भी भक्ति में मगन रहने का वो एक प्रतीक बन गईं, जिस प्रतीक ने सदी दर सदी लोगों के मन को हर लिया। हालांकि उनके जीवन के कई (कभी-कभी विरोधाभासी) विवरण मौजूद हैं। जब वह कृष्ण की बात करती हैं, तो ऐसा लगता है जैसे वो एक दिव्य पति की चर्चा कर रही हैं, जिनसे मिलने के लिए वो व्याकुल हैं: बहन, अंधेरा मुझसे बात नहीं करता यह बेकार शरीर आखिर सांस लेता ही क्यों है? एक और रात आयी और चली गयी। लेकिन मेरा लहँगा अभी तक किसी ने उठाया नहीं। तमिल संगम काव्य जैसा कि चेन्तिल नेथन ने AOI के किसी और लेख में लिखा है, संस्कृत काव्य अपने रूपक प्रकृती से लेता है, बाहरी दुनिया के आव गमन को कवि की आंतरिक दुनिया में भिगोते हुए। संगम काव्य के बहुदा अनुवादितआंशो में एक करूनथोकाइ है ( विख्यात अनुवादक ए.के.रामानुजन ने भी इसका अनुवाद किया है) । ये संगम काव्य की आठ पद्यावली में से एक है। इसमें विभिन्न कवियों द्वारा रचीत 400 प्रेम कविताये हैं। ये रहा कुरुन्थोकाई से एक रस भरा उदाहरण: वो कहती है जो मैं बेइज़्ज़ती से डर जाऊं, मेरी मदहोशी कम होगी; जो कलंक से बचे रहने को मैं इसे छोड़ दूँ जो बचेगी बस गैरत होगी देखो, दोस्त! एक हाथी से तोड़ी गयी रेशों भरी डाल सी जो झूलती है पर गिरती नहीं, ऐसा है मेरा गुण जिसको वो चख गया । मुद्दुपलानी का राधिका संतवनम मुददूपलानी १८वी सदी में रहती थीं , कवि थीं और थंजावुर के दरबार में देवदासी थीं । उन्होंने कृष्ण राधा के बारे में तो लिखा ही, साथ में अंडाल और जयदेव की रचनाओं को भी ध्यान से पढ़ा। सूज़ी थारू और ललिता के. द्वारा सम्पादित पुस्तक, वीमेन राइटिंग इन इंडिया: ६०० बी. सी. से लेकर आज तक में, इस तेलगु भाषी लेखक पर कुछ रोशनी पढ़ती है। "चूँकि मुद्दू पलानी अपने समय की विवाहिता महिलाओं सा जीवन यापन नहीं कर रही थी, इसलिए उसे तालीम का अवसर मिला, वो लिखने का समय मिला जो उनको नहीं मिलता था। उसके पास अपनी ज़मीन जायदाद रही होगी और व्यावहारिक तौर पर उसने आदमियों से एक बराबरी की अपेक्षा की होगी जो उसे मिली भी होगी। जिस इज़्ज़त से मुद्दु पलानी के काम को देखा गया, उसे जितना सराहा गया, वो उसके सामाजिक और साहित्यिक सन्दर्भों पर भी उतना ही निर्भर रहा होगा जितना उसकी कला पर। " राधिका सन्तावनाम ( राधा को मनाना ) में मुद्दुपलानी लिखती है: प्रिय कुमारी, तुम्हारी जांघें गरजीं साड़ी फिसली, स्तन हांफने लगे तुम्हारी पायल तब काँपी जब तुम्हारे पैरों ने मेरे सर को जा मारा। पर मेरा बदन उल्लास से कांप उठा इस उल्लास को कैसे बयान करूँ ? गहा सत्तसाईं
प्रेम काव्य के इस संग्रह को , जिसे मौजूदा सबसे पुरानी पड्यावलियों - काव्य संग्रहों- में गिना जाता है, गाथा के रूप में लिखा गया है, प्राकृत में, जो एक समय में महाराष्ट्र में बोली जाती थी। २००८ के संस्करण में, प्रकाशक का वर्णन यूं किया गया है, " बोलने वाले ज़्यादातर औरते हैं, और वो चाहे जवान हों, या बूढ़ी, शादी शुदा या कुंवारी, सब कामुकता के विषय पर स्पष्टता और संवेदनशीलता से बतियाती हैं, और अक्सर एक ऐसी दिल्लगी के साथ जिसपर हर बार हैरानगी होती है"।
अरविन्द कृष्णा मेहरोत्रा के अंग्रेज़ी तर्जुमे का एक अंश : किताबी तरीके से प्रेम करने पर जल्द दुहराव आ जाता है वो तुरत फुरत किया हुआ मेरा मन हरता है या उसने मुझे टटोला उस अंतर्वस्त्र को खोजने जो था ही नहीं । वहां: मैंने देखा उस लड़के की घबराहट को उसे और कस के बाँहों में भर लिया । अगर आज, इन शद्बों के लिखे जाने के सदियों बाद, इन्हें पढ़कर आप गर्म और पसीने पसीने न हुए, तो फिर जाने क्या है जो आपपर ऐसा असर कर सके!
कामुक वास्तुकला
सब लोग यह बात जानते हैं कि ताज महल अलौकिक प्यार को समर्पित एक स्मारक है, ऐसा स्मारक जो शाह जहाँ ने अपनी पसंदीदा पत्नी मुमताज़ के लिए बनाया था। लेकिन उससे भी पुराने कई स्मारक हैं जहां इश्क़ और जिस्मानी है। खजुराहो के मंदिर खजुराहो की मूर्तियों में जितने सेक्स के आसनों की आप कल्पना कर सकते हैं, उतने आसन दर्शाए हुए मिलेंगे (एक दूसरे पर मुख मैथुन करते हुए, खड़े होकर पीछे से करते हुए, ब्लो जॉब या मुख मैथुन करते हुए, और इतना सब सिर्फ विषमलैंगिक जोड़ों के बीच ही नहीं बल्कि समलैंगिक जोड़ों के बीच भी)। हालाँकि वह मूर्तियां मंदिरों पर नक्काशी गईं हैं, वे दैवी नहीं लेकिन मानवी हैं, और धार्मिक और सांसारिक पहलुओं के विलय हो जाने का प्रतीक हैं। १०वी और १२वी सदियों के बीच चंडेला राजाओं के बनाए हिंदु और जैन मंदिर खजुराहो के स्मारकों का हिस्सा हैं, और मध्य प्रदेश में स्थित हैं। शुरू में बनाए गए स्मारकों में से सिर्फ चंद स्मारक अब भी खड़े हैं। जबकि खजुराहो का नाम सुनकर हमें लग सकता हैं कि यह स्मारक कामुक आसनों की हज़ारों मूर्तियों से भरे हैं, असलियत में मंदिरों पर करी हुई नक्काशी में से सिर्फ १०% सेक्स से कोई ताल्लुक रखती है। कोणार्क का सूर्य मंदिर १३वी सदी में पुरी, ओडिशा, के निकट बनाया गया यह मंदिर, चक्कों पर स्थित रथ के रूप में बना हुआ है, और ‘सूर्य’, हिंदुओं के सूरज के देव को समर्पित है। दीवारों पर आम जीवन दर्शाने वाली नक्काशी है, जिनमें मौजूद हैं अपने बाल सुखाती लड़कियां, मेकअप लगाती या वाद्य बजाती लड़कियां, या फिर खाना पकाते या जानवरों के साथ खेलते हुए लोग। उनमें कामोत्तेजक नक्काशी के रूप भी हैं, जिनमें लोग (पुरुष और स्त्री, समलैंगिक जोड़ें, तीन लोग एक साथ यौन क्रिया में व्यस्त, चार लोग एक साथ यौन क्रिया में व्यस्त और कई लोग एक साथ यौन क्रिया में व्यस्त) एक दूसरे को लुभाते हुए और एक साथ यौन क्रिया करते हुए दर्शाए गए हैं, और उनमें एक नक्काशी ऐसी भी है जो एक कुत्ते को एक औरत का जननांग चाटते हुए दर्शाता है। हंपी के मंदिर आपने तब तक ज़िंदगी नहीं जी है, जब तक आपने हंपी का दौर नहीं किया और आपका गाइड अपनी बात कहते कहते अचानक अंग्रेज़ी में “डॉगी स्टाइल” ( कुत्तों समान ) बोलता है, बिना अपने चेहरे का भाव बदले, और मंदिर की दीवारों पर दो लोगों की यौन क्रिया की नक्काशी पर आपका ध्यान ले जाता है! हंपी मध्य कर्नाटक में स्थित है, और वह १४वी सदी में विजयनगर राज्य का मुख्य भाग था। आज, उसके खंडहर ४००० हेक्टेयर से भी ज़्यादा क्षेत्रफल में बिखरे हुए हैं। हंपी का विरुपक्ष मंदिर उसका सबसे प्राचीन तीर्थ स्थान है और हंपी के अन्य मध्यकालीन स्मारकों से अलग, यह एक जीता जागता मंदिर है - इसका आज भी पूजा के लिए उपयोग किया जाता है। दूसरे कई सारे भारतीय मंदिरों की तरह, जो मानवीय जीवन की विविधता दर्शाते हैं, लंबी तीर्थयात्रा, युद्ध और व्यापार से लेकर प्यार और यौन क्रिया तक, विरुपक्ष मंदिर की बाहरी दीवारों पर विविध प्रकार की नक्काशी की गई है। विशेष रूप से आकर्षक एक प्रतिमा में खड़ी हुई महिला दर्शाई गई है, उसके पैर पूरी तरह से फैले हैं, उसके हाथ उसके योनिमुख के दोनों ओर हैं, और उसके अगल बगल कामोत्तेजित अवस्था में एक पुरुष और एक स्त्री खड़े हैं। लेकिन यह मंदिर अकेला नहीं है जो यौन क्रिया दर्शाता है। अगर आप अपनी आँखें खुली रखोगे, तो आपको वहां कई सारे कामुक आसन देखने को मिलेंगे ! वहां विजय विट्टला मंदिर भी है, जिसके ऐसे अद्भुत खंभे हैं जिनपर हाथ मारने से संगीत के सुर बज उठते हैं (और उनपर उस ज़माने के चीनी और तुर्की व्यापारियों की दिलचस्प नक्काशी भी है), और कामुक नर्तकियों की शानदार नक्काशी की गई है। रणकपुर के मंदिर १५वी सदी का जैन मंदिर जो रणकपुर, राजस्थान में है, एक शानदार संगमरमर की इमारत है, जो पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ को समर्पित है। इस मंदिर में १४०० से अधिक बारीकी से नक्काशे गए खंभे हैं, और सभी एक दूसरे से अलग हैं। इस मंदिर में जो विविध तरीकों से यौन क्रिया दर्शाई गई है, उसमें भिन्न शरीर शामिल हैं, जिनमें छोटे कद के लोग भी दीखते हैं , सेक्स का मज़ा लेते हुए। इसी जगह में एक दूसरा मंदिर भी है, जो सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ को समर्पित है, और उसमें भी कामुक प्रतिमाएं हैं। अजंता और एल्लोरा की गुफाएं क्या आपने एल्लोरा में शिव और पार्वती की वह नक्काशी देखी है जहां वे दोनों कैलाश पर्वत के प्रतिरूप पर राजसी और आरामदायक ढंग से बैठे हुए हैं? कुछ बड़ा गंभीर सा अवसर लगता है, तब तक, जब तक आप यह नहीं देखते कि शिव का हाथ पार्वती की लचीली कमर से होते हुए उसकी स्तन को थामे हुए है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की एल्लोरा गुफाएं हिंदु, बौद्ध और जैन मंदिर और विहार के नक्काशी भरी गुफाओं का एक समूह है । एल्लोरा की एक दूसरी नक्काशी में, जिसका अक्सर फोटो लिया जाता है, एक स्त्री और पुरुष एक दूसरे को गले लगाए हुए हैं, और एक दूसरे को चूम रहे हैं। एल्लोरा के नज़दीक हैं अजंता की गुफाएं - शानदार बौद्ध स्मारक जो पत्थर से नक्काशी गयी हैं और जो दो हज़ार वर्ष पहले बनाई गयी थीं । इन गुफाओं में, जो औरंगाबाद ज़िले में ही हैं, बुद्ध के अलग जीवन और पुनर्जन्म दर्शाने वाले चित्र हैं, लेकिन इनमें कामोत्तेजक प्रतिमाएं भी हैं, जैसे की महाजनक जातक दर्शाने वाले भित्ति-चित्र। मट्टनचेरी राजमहल क्या आपने कभी आठ भुजाओं वाले कृष्ण का विशाल रंगबिरंगा चित्र देखा है, उन्हें ढेर सारी महिलाओं के साथ कामुक लुत्फ़ उठाते हुए? और इसी लुत्फ़ के लिए अपने पैरों का भी इस्तेमाल करते हुए (एक पैर किसी के योनिमुख की मालिश करने के लिए, और दूसरा पैर किसी स्त्री के चूचुक को दबाने के लिए)? शायद समय आ गया है कि आप केरल जाकर कोची की सैर कर लें। मट्टनचेरी राजमहल, जिसे डच राजमहल के नाम से भी जाना जाता है, और जो कोची में स्थित है, १६वी सदी में पुर्तगाली लोगों ने बनाया, कोची के राजा के लिए तोहफ़े के रूप में। उपनिवेशी( colonial) और केरल की वास्तुकला का मिश्रण, इस इमारत के मध्य में एक आँगन है और अंदर बड़े भित्ति-चित्र हैं। यह भित्ति-चित्र, जो लाल और स्पष्ट हरे रंगों में बनाए गए हैं, हिंदु पौराणिक कथाओं की कहानियां दर्शाते हैं। कृष्ण के कामुक भित्ति-चित्र के अलावा, वहां और एक भित्ति-चित्र है जहां शिव मोहिनी को चूम रहा है जबकि पार्वती दूसरी ओर देख रही है। भारतीय संस्कृति में यौन क्रिया और प्यार हमारी ऐतिहासिक कला के भाग हैं, ये दैवी प्रतिमाओं के बगल में दर्शाए जाने के साथ साथ मानवी और सांसारिक प्रतिमाओं के बगल में भी दर्शाए जा सकते हैं। यौन क्रिया को शर्मनाक या छिपाई हुई नहीं, बल्कि, हमारे विश्व का, हम सब का और हमारी मानवी परंपरा का हिस्सा दर्शाया गया है। अनुवाद: मिहिर सासवडकर, हंसा थपलियाल और अन्य