मैं 25 का था और महिमा 45 की, जब हम मिले थे | उसके दो जवान बच्चे थे और वो अकेली थी | बच्चे जानते थे कि मैं उनकी माँ के साथ प्रेमालाप करता था, पर ये उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी | मेरी समझ से वो अभी इतने छोटे थे कि उन्होंने इसमें कुछ भी ऐसा चौंकाने जैसा नहीं पाया था, और मैं बच्चों के साथ अच्छा था, तो बस मैं उनके दोस्त जैसा था |
महिमा के साथ जब मेरे रिश्ते की शुरुआत हुई, तो वो सिर्फ़ सेक्स की बुनियाद पर टिकी थी | हम आपसी सहकर्मियों के ज़रिये दिल्ली के एक नेटवर्क लंच पर मिले थे, मैं पत्रकारिता में कार्यरत था, और, उस वक़्त, वो माध्यमिक विद्यालय की एक शिक्षिका के रूप में काम कर रही थी | मैंने उससे उसी अंदाज़ में इश्कबाज़ी जताई, जिस अंदाज़ में मैं इससे पहले सभी के साथ जताता था, मैं सिर्फ़ 20 साल का एक अकेला कुंवारा लड़का था | वो मेरे बारे में कुछ महसूस करे इसकी मैं उम्मीद नहीं करता था, हाँलाकि; वो एक गर्म उम्रदराज़ महिला थी, बेशक़ चुस्त और आज़ाद, अपने विचारों पर क़ायम रहने वाली, कई विचार रखने वाली के संग काफ़ी अनुभवों से गुज़रने वाली, और मैं नहीं सोचता था कि मेरा उसके साथ कोई मौक़ा लगेगा |
हमारी पहली मुलाक़ात के कुछ महीनों बाद उसने मुझे एक रात मैक़शी की दावत दी | मैंने सच में सोचा था ये बस वैसा ही होने वाला है, मैंने एक जाम लिया,और रात बीतते किसी एक जगह ये ध्यान में आया कि हम दोनों के बीच वासना का खिंचाव गहरा था, उसने मुझे चूमा, मैंने वापस उसका चुम्बन लिया | मैं तब भी उसके साथ हमबिस्तर होने की उम्मीद नहीं कर रहा था - मैंने सोचा था कि ये वाक़या ऐसे ही गुज़र जाएगा, आप जानते ही हैं, कि हम चुम्बन लेंगे, फिर एक दूसरे के इर्द-गिर्द कुछ चक्कर घूमेंगे...सही में मक़ाम पर पहुंचेंगे शायद चार हफ़्तों के बाद | लेकिन क़रीब पूरे एक मिनट के बाद, उसने मेरी तरफ़ देखा और बोली, “मेरे ऊपर के कपड़े उतारो” |
उस रात हमने फुदकते हुए सम्भोग किया, क़रीब 10.30 से 5 बजे सुबह तक | एक पल, जब वो मेरे ऊपर थी, तो उसने फुसफुसाकर मेरे कानों में कहा “बताओ मुझे, तुम्हारी उम्र कितनी है ”, और मैंने बिल्कुल बताया | उस वक़्त मुझे याद है मैं सोच रहा था कि ये कितना अजीब है | उस रात बाद में, उसने मुझे बताया कि वो कुछ समय से मेरे ही सपने देख रही थी | उसने कहा कि पिछली कुछ दफ़ा से वो ख़ुद से खेलती हुई मेरे बारे में सोचा करती है, और कि कभी-कभी वो मुझसे किसी बिल्कुल ही भिन्न मसले पर बात करती है और फिर अपने गुप्तांगों को गीला पाती है |
उसने मुझे बताया कि उस वक़्त वो सही में इस तरह के किसी रिश्ते की उम्मीद नहीं कर रही थी, और बेशक़ किसी को तलाश भी नहीं रही थी | अब, अचानक वो ख़ुद को अपने एक पसंदीदा जवान लड़के के साथ पाती है, जिसके साथ अच्छी बातचीत करती है, और जिसके पास उसकी चाहत-भरी बहुत सारी चीज़ें करने का दम-ख़म था | एक बार उसने मुझसे कहा कि कितना अच्छा लगता है किसी ऐसे लड़के के साथ रहना जो मेरे थके होने के बावजूद मेरे साथ जाने को तत्पर रहता हो |वो बेशक़ ऐसी परिस्थिति की आदी नहीं थी, पिछले एक दशक उसकी सेक्स की ज़िन्दगी काफ़ी हद तक बेमेल रही थी | हमने सभी तरह की अलादा चीज़ों की आज़माईश की जो उसने शुरू कीं ; नक़ाब लगाकर कपड़े पहनकर अभिनय, सेक्स के खिलौने, टेढ़े - मेढ़े क्रिया - कलाप |
उसके साथ रहना बिलकुल ही अलग-सा था क्योंकी वो अपनी चाहतों की पक्की थी और अपने बदन को पूरी तरह से जानती थी | वो सम्भोग ज़बरदस्त था और उसमें गोल मारने-चूकने का जज़्बा कम था | मेरे लिए सही मायनों में बड़ा दिलचस्प था एक ऐसी वयस्क महिला के संग आज़माइशें करना और नयी चीज़ें जानना जो अपने शरीर को भली-भांति पहचानती हो | हमने कई सारे तरीक़े आज़माए, बाहर भी सम्भोग किया: बहुत सारी चीज़ें थीं जो लगता था कि वो मेरे साथ पहली बार करना चाहती थी |
हमने अपनी उम्र के फ़ासले पर बहुत ज़्यादा बातें नहीं कीं | ये बड़ा बेढंगा विचार-विमर्श होता है जब आप किसी से अपनी उम्रदराज़ी पर बातें करें | वहीँ दूसरी ओर वो मुझे चुटकुलों और व्यंग्यों से मेरी जवानी की याद दिलाती रहती थी, लेकिन हमने कभी-भी सही में इसपर गहराई से विमर्श नहीं किया |
वो अपनी ज़िन्दगी में ज़्यादा मशगूल रहती थी किसी अन्य महिला की तुलना में, जिनसे मैंने प्रेम-मिलन किया था, और मैंने स्वाभाविक रूप से उसे ज़्यादा दिलचस्प पाया | ये रिश्तों के हर पहलू पर असर डालता है; जो चीज़ें आप करते हैं, एक दूसरे के साथ जिस तरह आप मिलते हैं, जो विचार-विमर्श आप करते हैं, सभी कुछ ज़्यादा दिलचस्प होता है | ज़्यादातर जिन दूसरी औरतों के साथ मैं रहा हूँ, ज़िन्दगी में हमारी प्राथमिकताएँ अधिकतर आती-जाती क़िस्म की रही हैं, बिलकुल चंचल और हलकी, लेकिन यहाँ मुझे वास्तविक ज़िम्मेदारियों के साथ एक शक़्स मिला | इस तरह की परिस्थिति में, लापरवाह बेवक़ूफ़ियों की आपकी पेशेवर ज़िन्दगी में कम जगह होती है, यानी आप अपना समय और अपनी मदिरा, दोनों को व्यवस्थित करके जीते हो |
मैंने जिन औरतों से प्रेम-मिलन किया, महिमा उनसे कहीं ज़्यादा स्वतंत्र थी, लेकिन साथ-ही अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों, जैसे अपना काम, अपने दोनों बच्चों की वजह से सीमित भी थी | ये बातें जो भली भी हो सकती हैं और बुरी भी: कभी-कभी विचलित भी कर देती हैं, जैसे उसका सुबह छह बजे उठना और निकल जाना, जो कि जड़ तक दर्दनाक होता है क्योंकि ऐसी कई सुबहों को मैं उससे सिर्फ लिपट के बिस्तर पर रहना चाहता था, आराम से उठकर साथ में नाश्ता करना चाहता था, मीठे अरमान जो कभी पूरे नहीं हो सकते | शाम में कुछ करने की योजना हमेशा किसी क्लास या कुछ और से टकरा जाती | पर दूसरी तरफ़, ये भी महान था क्योंकि ये आश्वस्त करता था कि हमने अपने बीच सूझ-बूझ के दायरे को बरक़रार रखा है, अन्यथा आप हमेशा एक दूजे की शक़्लों में समाए रहते; यहाँ इस बात की निश्चिंतता थी कि आप एक दूसरे से दिन के कुछ पलों के लिए पूरी तरह जुदा हो जाते हैं, जो हमारे बिताए हुए मीठे पलों को और भी यादगार बना जाता है
मैं एक गर्लफ्रेंड में जो ढूँढा करता था वो महिमा के साथ मेरे अनुभवों ने बदल डाला | मैं ऐसी किसी भी लड़की के साथ प्रेम-मिलन नहीं कर सकता जिसकी ज़िन्दगी में कुछ नहीं चल रहा हो | एक समय मैं किसी आलसी, नशेड़ी गर्लफ्रेंड के साथ इत्मीनान से हुआ करता था, पर वो कुछ ऐसा है जिसमें मैं अब बेशक़ शामिल नहीं हूँ | मैं मानता हूँ कि ये सिर्फ़ समय और जगह की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं |
महिमा मेरे पास आने से पहले एक समूचा दिन, सुबह 5 से शाम 7.30 तक व्यस्त बिताकर आया करती थी, और अपनी ज़िन्दगी की हर छोटी ज़रुरत के लिए मुझसे कोई फ़रमाईश नहीं करती थी |
हमलोग कई काम संग-संग किया करते थे जैसे सिनेमा देखना या अहले सुबह टहलने जाना, मगर हम ज़्यादातर दोस्तों के साथ ही बाहर जुड़े रहते थे, उसके दोस्तों के साथ, मेरे नहीं | मैं नहीं समझता था कि मेरे दोस्त उसके साथ रह पाएँगे या उनमें कोई बात सामान्य होगी | मेरे दोस्त, ख़ासकर उस वक़्त, बड़े लम्पट और नशेबाज़ झुण्ड की तरह होते थे और मैं भी वैसा ही बन जाता था जब मैं उनके साथ रहता था | हमलोग बहुत पीते थे, या फिर रात भर पीते थे, काम पर देर से पहुँचते थे और काम भी कोई लाभकर नहीं करते थे | वो एक जीवनशैली थी जिसको उसने पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था, तो बस ऐसा लगा कि अपने दोस्तों के संग रुकना असंगत होगा |
जबकि, मुझे उसके दोस्तों के साथ रुकने में कोई परहेज नहीं था, उनमें से काफ़ी सच में दिलचस्प लोग थे, वरिष्ठ पत्रकार,अभिनेता, पटकथा-लेखक, जो सही में अपनी दिलचस्प जीविका पर केंद्रित रहते थे | लेकिन कभी-कभी मैं बेतुका सा ज़रूर महसूस करता था जब मुझे सामाजिक स्तर पर किसी अंकल या आंटी के साथ अटकना पड़ता था और उनके बीच एक विशेष-रूप से युवा शख़्सियत के जैसे | उनसे बातों के दरमियान मैंने ये भी महसूस किया: कुछ भी मैं कहूँ उसका जवाब वो मुझे अपने जीवन के कुछ अनुभवों से देते थे या फिर एक अभिभावक की तरह मुझसे कहते थे कि मैं आगे चलकर इन बातों पर मैं दूसरे तरीक़े से सोचूंगा |
उसके बहुत सारे दोस्त, ख़ासकर अकेली महिला और वो महिला, जो काफ़ी समय से अकेली रही थीं, उनके पास जवाँमर्दों के संग रहने के अपने अनुभव थे | ये काफ़ी साधारण बात है, सही में | तो शुरुआत में वो उसको कहा करती थीं, अरे ये बस एक दौर है, ये वासना है | पर समय के साथ-साथ वो सब मुझे पसन्द करने लगीं | जिस अंदाज़ में वो अपने दोस्तों के साथ थी, मुझे ये लगने लगा कि वो मेरे साथ को एक अहम-जीत समझती थी |
मेरे दिमाग़ में, भाग्यशाली तो मैं था, फिर भी उसका ऐसा सोचना मुझे अच्छा लगा | ऐसा कितनी बार होता है कि आप ऐसे किसी के साथ हो, जो आपको औरों के सामने पेश करने में गर्व महसूस करता हो ?
मेरे दोस्त नहीं जानते थे कि मैं उससे प्यार भरी मुलाक़ातें किया करता हूँ | मुझे लगा कि उसकी दोस्त मेरे और उसके रिश्ते को ज़्यादा मानेंगी क्योंकि उनके पास भी इससे मिलते-जुलते अनुभव थे, जबकि मेरे दोस्तों के लिए ये बिलकुल प्रतिकूल होता और शायद वो इसपर सिर्फ अत्याकर्षित होते | मैं ठीक तरीक़े से तो नहीं जानता, पर मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि वो इसमें ज़्यादा सहयोग नहीं करते और उनका जवाब विलग करने वाला होता |
मैंने कभी अपने अभिभावकों को मुक़म्मल तौर पर नहीं बताया कि मेरा उससे साथ है, और मेरे सहकर्मी भी हमारे विषय में नहीं जानते थे | मुझे फिर महसूस हुआ कि वो मेरे साथ उसके रिश्ते को नहीं समझेंगे | मुझे लगा कि ये ग़ैरपेशेवर जैसा लगेगा, पर अगर मेरा किसी हमउम्र के साथ रिश्ता होता तो शायद मैं उसे यूँ नहीं छिपाता | ये उसको बेचैन कर जाता था, अपनी चाहत के मुताबिक़ न खुल पाना | मैं समझता हूँ कि उसकी उम्र और उसकी स्तिथि में, जबकि उसकी ज़िन्दगी इतनी सुलझी हुई थी, उसे किसी भी अन्य की मान्यता या स्वीकृति की ज़रुरत नहीं थी, और इसलिए वो ज़माने के ख़यालातों की परवाह नहीं करती थी | मैं फिर भी जवान था, लिहाज़ा इस काम को खुलेआम करने में ग़ैर महफ़ूज़ियत महसूस करता था |
मैं उसके परिवार से भी मिला, उसके बच्चों, उसके भाई, उसके चाचा-चाचियों और उसके माता-पिता से | सबसे पहले मैं उसके बच्चों से मिला, क्योंकि उसे घर छोड़ते वक़्त वो मुझे मिल गए थे |
और जैसे-जैसे वो वो मुझे पसन्द करने लगे, बच्चों ने मेरा ज़िक्र और मेरे बारे में बातें करना शुरू की, जिसने परिवार वालों में मुझसे मिलने की उत्सुकता बढ़ा दी | ख़ासकर उसके माता-पिता मुझे ज़्यादा पसन्द नहीं करते थे | आख़िर मैं दाढ़ी रखने वाला एक इतना जवाँमर्द पत्रकार था |
एक साल तक हमारे मिलन के बाद, मैंने अपने क़दम पीछे खींचे | वो एक चीज़ जो मेरे ज़ेहन में आई, महिमा जैसी किसी वयस्क स्त्री से प्रेमालाप करने के मेरे अनुभव को लेकर: उनके जीवन के पूर्वार्ध में किसी के साथ इतनी भावनात्मक गहराई में उतर जाना मुझे अपनी ज़िन्दगी, अपने भविष्य और अपने लक्ष्य की ओर सोचने पर मजबूर कर गया |
उसके पास सोचने के लिए एक भविष्य था, वो मेरे साथ एक भविष्य बनाना चाहती थी | लेकिन मैं बिलकुल नहीं |
मैं बिलकुल भी खुलना नहीं चाह रहा था क्योंकि मैं नहीं सोचता था कि ये रिश्ता इतने गंभीर स्तर का था कि उसपर काम किया जाए, और इसको संभालने की नासमझी का जोखिम नहीं उठाना चाहता था | कई वजहों से मैं ये महसूस नहीं करता रहा कि महिमा के साथ कोई सही भविष्य संभव है, जैसे कि उसकी उम्र और जैसी व्यवस्थित ज़िन्दगी वो बिता रही है | मैं नहीं जानता कि मेरे माता-पिता क्या कहते, पर मैं नहीं सोचता हूँ कि वो मारे ख़ुशी के झूम उठते |
एक वक़्त, मैं सोचता था, मेरी संगिनी अपने 50वें में जल्द ही पहुँच जाएगी, और मैं अपना सारा समय उसमें गँवा रहा हूँ, और इसका क्या हश्र होने वाला है? कुछ अलग हो सकता था अगर वो मुझसे 10 साल बड़ी होती और उसके बच्चे नहीं होते | लेकिन वो 45 की थी और उसके दो बच्चे थे - मुझे लगा कि उसने दृढ़ता से एक परिवार को सुरक्षित किया हुआ है और एक ऐसी जीवनशैली में है जिसमें मैं अपने आप को किसी जल्द आने वाले कल में समर्पित नहीं कर पा रहा था |
मैंने ये भी महसूस किया कि वो दिन भी दूर नहीं जब स्वास्थ्य एक समस्या बनेगी, और एक डर-सा भी समाया कि बहुत जल्द मुझे सहभागी की जगह एक देखभाल करने वाले की भूमिका निभानी पड़ेगी, मैं सोचता हूँ कि एक नाराज़गी ने दबे पाँव घर कर लिया था: क्या मैं ये महसूस नहीं कर सकता था कि मैं अपनी ज़िन्दगी के बेशक़ीमती पल बर्बाद कर रहा हूँ, जबकि वो पूरी तरह इस राह पे चल पड़ी है?
इसलिए जब भविष्य की सोच सामने आई, तो दोहरा असर हुआ, एक तरफ़ वो रिश्ता मुझे अपनी असली ज़िन्दगी से तोड़ता हुआ महसूस हुआ, क्योंकि वो मुझे आज़ाद कर रहा था कि मैं अभी से दो-तीन सालों तक इस रिश्ते के बारे में सोचना छोड़ दूँ, क्योंकि मैं जानता था कि महिमा वो इंसान नहीं है जिसके साथ मैं अपना पारिवारिक जीवन शुरू करने जा रहा था | लेकिन दूसरी तरफ़, उसके साथ-साथ रहना मुझे ये सोचने पर मजबूर कर रहा था कि मैं ख़ुद सही मायनों में अपनी ज़िंदगी को किधर ले जा रहा हूँ, और मैं ये जानते हुए कि मेरा भविष्य उसके साथ नहीं है, उस अंजाम का सामना किए जा रहा था ? क्या मैं अपना वक़्त बर्बाद कर रहा था?
कभी-कभी मैं सही में दूसरी दिलचस्प हमउम्र स्त्रियों से मिलता था, और जब मैं ऐसे किसी से मिलता जो मुझे पसंद आ जाती थी, मैं भली-भांति जानता था कि महिमा की अपेक्षा वहां मेरा भविष्य कुछ ज़्यादा ही है |
जब मैंने उससे अपने अहसास का ज़िक्र किया, तो वो काफ़ी विचलित हो उठी | उसने कुछ ऐसी बातें कहीं, “तुम अभी सिर्फ़ 25 साल के हो, तुम क्या एक भविष्य के बारे में सोचते हो? ठंड रखो और ज़िन्दगी का मज़ा लो | ” और: “ तुम इतने अनुसारक कब से बन गए?”, जो मेरे अंदाज़े से एक सही सवाल था | उसने मुझे समझाया कि हमें और लोगों से भी रिश्ते जोड़ने की छूट होनी चाहिए, और मैं मान भी गया, पर फिर भी, बात बन नहीं रही थी | किसी क्षण, उसने यहाँ तक भी समझाया कि चीज़ों को चटपटी बनाने के लिए एक तीसरे को हमारे रिश्ते के दरमियान ले आओ, पर ये बात मेरी सीमा रेखाओं के बाहर थी |
हमने अलगाव कर लिया, पर जल्द ही एक दूजे से फिर अकस्मात् मिल गए और फिर फँसने लगे | हम दोनों ने कुछ अरसे से एक दुसरे को नहीं देखा था, और वो कभी-कभी मैसेज किया करती थी सिर्फ़ जाँचने के लिए | एक रात, हम एक दुसरे से एक कर्यक्रम के दौरान टकरा गए, और हमने एकसाथ बैठकर बातें करते हुए रात ख़त्म की | जो भी हुआ वो बिलकुल साफ़ था, हम दोनों अभी भी एक दूसरे के प्रति आकर्षित थे, पर मैं इसे सिर्फ़ एक वासनात्मक खिंचाव मानने की ग़लती कर बैठा, और इसलिए मेरे दिमाग़ से हम दोनों में से कोई-भी गंभीर चाहत नहीं रखे था… उसने कहा “ चलो इसको सिर्फ़ सेक्स तक ही रखें ”, पर जल्द ही ये बात स्पष्ट हो गई कि ये रिश्ता सिर्फ़ सेक्स का नहीं था | मेरे लिए साफ़ था कि अब मुझे रोक लगानी चाहिए और मैंने वो सिलसिला फिर वहीँ तोड़ दिया |
महिमा के साथ मेरा प्रेमालाप मुझे झकझोर गया और मुझे ये मानने पर मजबूर कर गया कि मुझे अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण रखना चाहिए, और जबरन मुझे ये विचार करना पड़ा कि मैं किस रुख़ की ओर बढ़ रहा हूँ | मैंने महिमा के साथ रहते हुए वयस्क होने की सीख ली - बहुत से वयस्क काम किए: वो मेरी ओर देखती और कहती, “ तुम फलाँ-फलाँ कर रहे हो - जैसे, मेरी निजी और पेशेवर ज़िन्दगी को काफ़ी हद तक मिला देना - और मेरे हिसाब से ये बेवक़ूफ़ी इसलिए है कि... तुम्हारी जगह मैं इसे यूँ करती | ” वो किसी बात पर आलोचनात्मक नहीं होती थी | किसी वस्तु के लिए फ़ैसले नहीं लेती थी, वो सिर्फ़ ये कहती थी कि ये वो चीज़ें हैं जिनपर तुम्हें ध्यान देने की ज़रुरत है, अपने काम अपने स्वास्थ्य के लिए, तुम अब एक वयस्क हो और अब तुम इधर-उधर खेल नहीं सकते | इसकी वजह से मुझमें प्राथमिकताओं की समझ पैदा हुई, इसने मुझे पुनर्निर्माण करना सिखाया | मुझमें एक स्थिरता आई |
महिमा और मैं अब एक दूसरे के बिलकुल भी क़रीब नहीं हैं | मैं अभी भी पेशे के तौर पे उससे परिचित हूँ क्योंकि अब हम एक ही उद्योग में कार्यरत हैं, इसलिए समय-समय पर वो काम या लोगों को मेरे पास भेजती रहती है, लेकिन ये बहुत कम होता है | मैं जानता हूँ कि मेरे बाद उसने अपने एक हमउम्र इंसान से सहवास करने की कोशिश की थी, मगर उसने कहा कि उसे वो तजुर्बा पसंद नहीं आया और वो अपने बारे में एक बुरा-सा भाव लेकर उस रिश्ते से लौटी थी, क्योंकि वाक़ई में वो अभी दूसरे रिश्ते के लिए तैयार नहीं थी |
हमारे जुदा होने के बाद, मैंने चन्द और लोगों के साथ भी प्रेम-मिलन किया, और चूँकि मेरे पास ये हाल का तजुर्बा था, उसकी तुलना करने के लिए कुछ ताज़ा बातें थीं, तो मैंने माना कि अब मैं उन लोगों के साथ प्रेमालाप और अधिक नहीं कर सकता जो मज़े का वक़्त तो बनते हैं पर आपके जीवन में कुछ भी नया-सा नहीं लाते, और साथ ही अपने अंदर बहुत कुछ नवीन आने देते हैं, क्योंकि उनकी अपनी ज़िंदगी में कुछ ख़ास हो नहीं रहा होता |
मैं सोचता हूँ कि अगर अब मैं महिमा से मिलूँ, हमदोनों के बीच चीज़ें बिलकुल अलग होंगी, क्योंकि वो अभी भी सही में एक ख़ास इंसान है, और मैं अपनी जीवनशैली और प्राथमिकताओं में काफ़ी कुछ सुधरा हुआ हूँ | मेरी पूरी ज़िन्दगी अब कम अस्त-व्यस्त है क्योंकि मैं भी बड़ा हो गया हूँ | |
एक पूरी तरह मायूस पत्रकार बरनाथ , अब ख़ान मार्केट के मेन्यू की सबसे घटिया कॉफ़ी पीने के साथ ही एक गुमराह की तरह संचार-कार्यालयों को अपनी निजी पत्रकारिता के बक़ाया भुगतान के लिए तंग करने में अपना वक़्त बिताते हैं |
एक उम्रदराज़ स्त्री से प्रेम - मिलन, जो मुझे अपना और रिश्तों का गंभीरता से ख़याल रखना सिखा गया
इसकी वजह से मुझमें प्राथमिकताओं की समझ पैदा हुई, इसने मुझे पुनर्निर्माण करना सिखाया | मुझमें एक स्थिरता आई |
लेखन: बरनाथ चटर्जी
चित्रण: शॉन डी सूज़ा
अनुवाद - रोहित शुक्ला
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