एक समलैंगिक पुरुष अपने प्रेम संबंधों का विवरण देता है -- “किसको देख रहा है, बे? कौनसी लड़की है?” तो यूँ, फिर से शुरू हुई, कच्चे झूठ और घूम फिराव की यह राम कहानी। “अरे नहीं यार, किसे भी नहीं। क्या वो इतनी अच्छी दिखती है कि मैं उसके साथ घूमने जाना चाहूँगा?” किसी ने भी मेरे जवाब के बेतुकेपन को पहचान कर यह नहीं पूछा, “क्यों नहीं? तुम तो राजू जितने ही होशियार हो, है कि नहीं? तुम्हारे लिये तो वो बिल्कुल सही है।” उस शब्द - ‘होशियार’ - के बारे में हम बाद में बात करेंगे। लेकिन राजू वेंकटपथी राजू था, जिसने हाल ही में क्रिकेट टीम में प्रवेश किया था और जो मुझ जैसे, छोटे कद का, साँवला और दुबला-पतला था। उसके जैसे, मैं भी बायें हाथ की स्पिन बोलिंग करता था (लेकिन, घटिया) और दायें हाथ की बॅटिंग करता था (धीमे से, नींद और नशे में धुत अंशुमन गाइकवाड जैसे)। वो मशहूर ऑल राउंडर, रवि शास्त्री भी वही करता था। लेकिन उसके साथ ख़ुद की तुलना करना मेरे लिए नामुमकिन था क्योंकि वो बहुत लंबा था, दिखने में बहुत सुंदर था (एक कामुक, जंगली अंदाज़ से) - और औरतें उसकी तरफ़ बड़ी आसानी से आकर्षित होतीं। जब हम जवान थे तब मैं और मेरे दोस्त ज़्यादातर क्रिकेट के उदहारण देकर ही बातें करते थे। इसलिए यह टेढ़ी तारीफ़ भी ग़लत होती। मुझे शास्त्री जैसे बनना कम और उसके साथ रहना ज़्यादा पसंद आता, उसके गज़ब की उभरी गाल की हड्डियों के ऊपर कामुक ढंग से हाथ फेरते हुए (पर एक पंख का भी इच्छानुसार इस्तेमाल किया जा सकता है)। पर कैसे बताएं इस राज़ को? और ‘होशियार।’ यही है विषमलैंगिक लोगों की दुनिया में पुरुषों की सुंदरता का वर्णन करने वाला वो खीझ दिलाने वाला मंगलभाषी शब्द। इस शब्द के एकदम घिनौने समानार्थक शब्द भी हैं जैसे बंगाली में “कि शुपुरूष!” (मेरी माँ का सौमित्र चैटर्जी, उत्तम कुमार, और, हे भगवान, प्रदीप कुमार का पसंदीदा वर्णन!!!)। अगर आप मुझसे पूछें तो पुरुषों की सुंदरता के लिए मेरा चहेता वर्णन है, हिंदी की रोमांचक कहानियों वाला, यानि “सुंदर, सुडौल, गबरू नौजवान।” पहली बात तो, पुरुषों की सुंदरता को लेकर पुरुषों में एक शर्मीलापन है। उदहारण के तौर पर, जोर से कहना, “उफ़, धोनी कितना सेक्सी है, यार!” नामुमकिन है। तुरंत ही मोहल्ले का कोई पागल बोल उठेगा: “तुम्हारा मतलब है उसने कैसे मुश्फिकुर को रन आउट किया, है ना?” नहीं, नहीं, नहीं! मेरा मतलब था उसकी शरारती त्रिकोण आकार की मुसकुराहट जो धीरे से उसकी आँखों तक फ़ैलती है और जिस तरीके से उसकी मेहराबदार संकरी कमर एक बढ़िया मादक गोल नितम्ब में फूलती है। अब तक आप ज़रूर समझ गये होंगे मैं क्या कहना चाह रहा हूँ - कि विषमलैंगिक लोगों के बीच पुरुषों के बारे में सेक्सी, कामुक बातें कहना एक पेचीदा मामला है, और प्यार भरी बातें करना तो सरासर नामुमकिन है। तो इस लेख के शुरुआत में, मैं निश्चित रूप से एक सुंदर आदमी को देख रहा था, लेकिन क्या मैंने कहा, “अबे चोदू, मैं उस सुंदर, सुडौल, गबरू नौजवान को देख रहा हूँ”? काश। जब मैं पच्चीस साल का हुआ, तब आख़िरकार मैं समझ ही गया कि मैं समलैंगिक था। क़ायनात रुक रुक कर यही इशारे कर रही थी। लाल फूल मुझे ईथन हॉक के भीगे, फूले हुए होठों की याद दिलाते; मधु - मक्खियों की गूँज मुझे ब्रूस ली की बेसुर सीटी की याद दिलाती, उस पल की, जब वो अपने नांचाकू को सीधा करते हुए अपने एब्स की झलक दिखाता; वी वी एस का ऑफ स्टंप के बाहर मिडविकेट बाउंड्री तक का दैवी स्ट्रोक मुझे शायद - वी वी एस की ही याद दिलाता; पहली बरसात की सौंधी ख़ुश्बू उस हलके झोंके की याद दिलाती जो मुझे पसीने से भरे पांजो (मेरे होस्टल से मेरे सपनों का सौदागर) के शरीर से मिलता; और गरजते बादल मुझे मेरे दिल की याद दिलाते जब मैं रात को तुषि, जिसकी ओर मैं आकर्षित था, के बारे में सोचता । तो एक मंझे हुए वैज्ञानिक की तरह, मैंने ओक्काम के रेजर का स्वागत किया : मैंने यह घोषित कर दिया कि एक ख़ूबसूरत लड़के की वज़ह से मेरी आँखों के झटपटाने, मेरी नाक के फड़फड़ाने, और मेरी छाती के थड़ थड़ाणे का मतलब था कि मेरा शरीर और मेरी आत्मा उभरकर मेरे समलैंगिकता को गले लगा रहे थे। ठीक उसी तरह जैसे छाँछ से मलाई निकलती है, या जैसे एक अध नंगा डेनियल क्रेग समुंदर से निकलता है। क्या अब तुम्हें मेरी बात साफ़ साफ़ समझ आयी? शरीर और आत्मा के इस बर्ताव को यूँ खुला छोड़ने से मैं बार बार कई लचीले लड़कों के प्यार में पड़ बैठा। मेरी हालत बहुत नाज़ुक थी। कल्पना कीजिये एक समलैंगिक बिंगो लिटिल की, जो बर्टी वूस्टर के पास भागकर कर्कश आवाज़ में कहता है, “अरे दोस्त, मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। कामगारों की दावत में मैं एक प्यारे पुरुष से मिला, पर उस लड़के को नक चड़े बड़े साहब गवारा नहीं । अगर तुम्हें ऐतराज़ ना हो तो क्या तुम जीव्ज़ से कहोगे कि वोह उफ़ी के रसोइया के ज़रिये, जो उसकी मासी है, मेरी सिफ़ारिश कर आये?” जिसके उत्तर में बर्टी ने अवश्य ही व्याकुल होकर अपना माथा ऊपर करके पूछा होता, “जीव्ज़ की मासी भी है”? बहरहाल, मेरी ज़िंदगी में कोई बर्टी या जीव्ज़ नहीं थे जिनकी मैं सहायता ले सकूँ। तो मैं मेरी आँखें गोल गोल घुमाता, हांफता और आह भरता और ख़ुद पर ही तरस खाता। अकसर, ऑफ़िस में उबाऊ दिन बिताने से यह पीड़ा दूर हो जाती। लेकिन कभी कभार, ख़ास तौर पर जब हम सब लोग एक साथ काम करते, और एक दूसरे के इतने नज़दीक होते कि मुझसे सहा नहीं जाता, वो बार बार का कंधों को हाथ लगाना और बाँहों पर से हाथ फेरना, और हमारी साँसों की महक से, और लगातार एक दूसरे को देखने से, मैं ऐसी जगह पहुँच जाता जहाँ: बिना पूछे प्यार करना निहत्थे आँखों से बात करना बंद बाँहों के साथ अनकहे शब्दों में। फिर एक दिन, जादू आया, मेरे काम के एक साथी का दोस्त, एक इंटरव्यू के लिए। आज तक, मैं यह नहीं जानता कि मैं प्यार में क्यों पड़ा, लेकिन मैं पड़ा ज़रूर, धीरे धीरे लेकिन निश्चित रूप से। नहीं, वो इंटरव्यू के राउंड में असफल रहा। लेकिन फिर भी जब भी मैं इंटरव्यू के कमरों में जाता, वो मुझे देखकर मुस्कुराता, मुझे लगता प्यार से। जब मैंने उसे कहा कि उसका चुनाव नहीं हुआ था, तब भी वो उसी तरह मुस्कुराया था। शायद जल्दबाज़ी में मैंने उसे कह दिया, “खाना खाने घर आओगे?” वो आया और एक हफ़्ते के अंदर मैं बार बार मेरे मन में वो दृश्य दोहरा रहा था जहाँ मैंने उसकी नाज़ुक कमर मेरी कमर से लगायी थी और हम उसके करियर की बातें कर रहे थे। मेरे ख़्याल से मैंने उस दिन ‘स्ट्रेटेजिक एच आर’ शब्द का एक दूसरा अर्थ जान लिया। जादू समलैंगिक नहीं था, लेकिन जब मैंने उसे चूमने की मांग की तब तो वो राज़ी हुआ, और जैसे हफ़्ते बीतते गए, वैसे कई और चीज़ों के लिए भी राज़ी हुआ। शायद वो उत्सुक था। शायद मेरे समलैंगिक ऐन्टेना ने उसके दिल की एक कश्मकश पहचानी। शायद वो दयालु था। मैं जिस आत्मीयता के लिए तरसता था, उसने वो मुझे भेंट दी। छह महीनों के लिए, मैं पुणे जाता, जहाँ उसका नया ऑफ़िस था, ताकि मैं उसके साथ शनिवार और रविवार बिता सकूँ। हम दोनों उसके पतले से बिस्तर पर सोते, और उसके साथ रहने वाले चार लड़के यूँ बनते जैसे यह कोई गैर मामूली बात नहीं। हम एक साथ छुट्टियों पर दक्षिण के एक हिल स्टेशन जाते। मैं उससे प्यार करता था, लेकिन धीरे धीरे समझ गया कि वो मुझसे प्यार नहीं करता था। जैसे हमारे प्यार का नशा उतरने लगा ऐसे लगा कि अभी जादू को हमारी आत्मीयता भी नापसंद है। और फिर अचानक हमारा रिश्ता ख़त्म हुआ। मुझे दर्द हुआ। मेरी एक विशेषता है, जो हर बार नज़र आती है, कि जब मुझे कोई दर्द पहुंचाता है, तब मैं उस पर टूट पड़ता हूँ। ब्रेक अप और भी यादगार बना क्योंकि मैं इस लड़के के साथ, जो मुझसे काफ़ी छोटा था, ना ज़्यादा उदार रहा ना सहनशील। अब जब उसकी यादें मुझे सताती हैं, मैं एक निराशाजनक जगह में घुस बैठता हूँ, जहाँ: अँधेरा मेरे कमरे में झुककर चला आता है खिड़की के पास बैठे मेरी सूनी शाम का एक और साथी मैंने कुछ विषमलैंगिक आदमियों को संभोग के लिए फुसलाया है, और कुछ ने मेरे साथ फ़्लर्ट किया है। मज़े की बात - कि मुझे वो आदमी याद हैं जिन्होंने मुझे चूमा था। मैं ख़ुद से कहता हूँ कि मैं एक रोमानी हूँ। शायद मुझमें अब इतना टेस्टोस्टेरोन नहीं रहा कि मैं वो सब मज़ेदार संभोग के किस्से याद कर सकूँ जहाँ मैं उन आदमियों पर नर घोड़े के समान सवार था। यह मेरे टेस्टोस्टेरोन के कम होने का ठोस सबूत है, क्योंकि मेरे बाल भी हाल ही में मेरे कनपटी से झड़ने लगे हैं। यह ज्ञान मुझे कई साल पहले तब मिला था, जब चौदह साल की उम्र में, हमारी पड़ोसन, रानी मासी ने अपना यह सत वचन मुझे सुनाया था, “गोलू के पापा बहुत एनर्जेटिक है। देखो उनका कपाल कितना ऊंचा हो गया है”। और मैं बेवकूफ़ समझ रहा था कि वो गंजे हो रहे थे! कुछ सालों से मैं विषमलैंगिक पुरुषों से अपने इन रिश्तों पर गौर कर रहा हूँ। अपने तीस के दशक में मैंने निदा फ़ाज़ली साहब की बात मानी: फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है, वो मिले या ना मिले हाथ बढ़ाकर देखो। आश्चर्य की बात तो यह है कि निदा फ़ाज़ली का यह कहना कई बार काम आया। मेरी कुछ यादें ऐसी हैं जहाँ विषमलैंगिक पुरुषों के साथ सेक्स करने पर मैंने विजयी महसूस किया, कुछ यादें हैं सेक्स के पहले और बाद में बड़ा मज़ा लेने की, एक दूसरे को किस्से बताने की, क्रिकेट के पसंदीदा पलों की बातें करने की, और राजनीती और फ़िल्मी गानों पर बातें करने की। मुझे याद है कैसे वो मेरे खाने की तारीफ़ करते जो मैं उनके लिए बनाता था, और ख़ास तौर पर एक आदमी याद है जो हर बार वापस आता क्योंकि मेरा बनाया घी - राजमा - चावल उसकी माँ जैसे बनाती थी वैसे था। मुझे इस बात में अपमान लगताऔर मैं चाहता कि उसकी आँतों में किसी अनुचित मर्दाने तरीके से हाहाकार मचा दूँ। मुझे इतना याद है कि मैं उसकी तरफ़ सिर्फ फीके अंदाज़ से मुस्कुराया था और उससे पूछा था कि क्या उसे और खाना चाहिए। इन संबंधों में से दो का अंत दुर्घटना में हुआ क्योंकि उन्हें, अपने शब्दों से नहीं लेकिन अपनी करतूतों से, मरदाना बनना था, ताकि वो इस ‘होमो’(समलैंगी) को दिखा सकें कि सच्चा मर्द कैसा होना चाहिए। शायद मैं प्रसन्नता से चीखकर, सेक्स करने पर ध्यान दे सकता था और उस शैतान को अपने पिछवाड़े से खेलने दे सकता था। लेकिन फिर जैसे ज़िंदगी में होता है, और ठीक जैसे डार्विन ने खोज निकला कि गालापागोस में हर किस्म की चिड़िया हैं, उसी तरह मुंबई में हर किस्म के होमो हैं। मन तो यह भी किया की बताऊँ, कि अबे घोंचू, इंसान को पता होने वाली सबसे छोटी चीज़ें भी इतनी सीधी और संकरी नहीं हैं। आप टॉप और बॉटम क्वॉर्क्स जैसे हो सकते हो, और सेक्स अप और डाउन क्वॉर्क्स जैसे कर सकते हो, लेकिन देखो, वहीं स्ट्रेंज और चार्म क्वॉर्क्स भी तो हैं! जो किसी किसी को अज़ीब लगता है, वो भी स्टैंडर्ड मॉडेल का ही हिस्सा है। इन मैं से किसी के साथ मैं एक आदमी के साथ प्यार करने की बात नहीं कर सकता था, एक आदमी को चाहने की बात, मेरा किसी आदमी के शरीर से क्यों लगाव था, और क्यों मुझे उस आदमी के चुम्मे और भी पसंद थे। मुझे इन लम्हों का महत्त्व कम नहीं करना; उन्होंने मुझे आत्मीयता दी, ख़ुशी दी और कुछ ऐसे लम्हें दिए जिनसे मैं आनंद उठा सकूँ। इन बालकों में से ज़्यादातर प्यारे लड़के थे, जो प्यार और परवाह व्यक्त करने में काबिल थे। लेकिन उनका दिल उस बात में नहीं था; अपने यौन साथी के बारे में उनके मूल विचार थोड़े अलग थे। उनमें से एक, जो अब मेरा काफ़ी अच्छा दोस्त बन गया है, ने कहा कि दिक्कत इस बात की नहीं थी कि ‘शार्ट लेग दो लॉन्ग लेग्स’ के बीच में फील्डिंग कर रहा था। उसका भी एक शिश्न था और वो उससे बेहद प्यार करता था और उसे बाकी सब शिश्न ठीक लगते थे। नहीं, उसे घृणा इस बात से थी कि मेरा शरीर कड़ा और दृढ था, और वो शरीर उस पर हावी हुआ था। उसने मुझे उसकी गर्ल फ्रेंड जैसे कोमल और लचीला बनने की सलाह दी। और तो और उसे ऐसे भी लगा कि मेरा लड़कों की ओर आकर्षित होना सौ प्रतिशत तर्कहीन था, उसे लगता कि मुझे बस नज़र घुमाकर लड़कियों की ओर देखने की ज़रूरत थी। मैंने उसे और कुछ और लड़कों को यह बताने की कोशिश की कि मैं उनके शरीर के कड़ेपन से आनंदित होता हूँ, उनकी रेशेदार माँस पेशियों से, उनकी काँखों की सुगंध से, उनकी नाभि से शिश्न तक के बालों से, उनकी ठूंठी से, उनकी कमर की हड्डीदार किनारों से, उनकी ... ज़्यादातर आदमियों के चेहरे संगीन होते जाते, शायद इस बात से भयभीत कि कोई उनके बारे में ऐसे बात कर रहा है, जैसे की वो एक वस्तु हो, सिर्फ़ वो एक औरत नहीं कर रही। वह डरे हुए भी पेश आते, जैसे उन्हें वो शब्द सुनने नहीं थे जिससे वो बात एक हकीकत बन जाती। तो इसलिए मैंने वो किया जो पुरुष करते हैं, मैंने मेरा मुँह बंद रखना और मेरे जज़्बातों को काबू में रखना सीखा ताकि उनसे किसी को तकलीफ़ ना हो। अनसुना और खामोश रहना समलैंगिक पुरुषों के उस समय के जाने पहचाने अनुभव में जुड़ गया, और मुझे यह स्वीकारना पड़ा कि: हमारी तकदीर एक चाल है। बारिश में रोने के लिये, साहस से काम लो और खीझ कर आँसू बहाओ उसके बाद, मुझे और आदमी मिले हैं। दो सुंदर, सुडौल, कम गबरू नौजवान हैं जो मेरी ज़िंदगी में आते जाते रहते हैं। मैं उनकी सुंदरता के मज़े लेता हूँ, कभी कभार उनके साथ संभोग करता हूँ, और कभी कभी दिल खोलकर उन्हें मेरे अंदर उमड़ते स्नेह में डुबोता हूँ। इस बीच मैं सोचता हूँ कि कामोन्माद के अलावा उन्हें इस विचित्र समझौते से क्या मिलता है? वो हर बार मेरी ज़िंदगी में क्यों आते रहते हैं? उनमें से एक क्यों मेरी चौख़ट पर मेरे सपनों वाला आदर्श आदमी सा आता है, और अंदर आते ही, मुझे इतनी स्नेह भरी झप्पी में कसता है, कि मेरे फ्रिज में जो चॉकलेट हैं वो पिघलने लगता है। वो बेहतरीन तरीके से मुझसे लिपटता है, सबसे अच्छे हलके से दर्दनाक चुम्मे देता है, ‘हिक्की’ देते समय जैसे खिलखिलाता है, और फिर उतने ही अचानक से वो रुकता है, फ्रिज तक जाता है और खाने के लिये कुछ निकालता है। मैं उसे कहना चाहता हूँ, ऐ, शरारती बच्चे: मैं काँपता हूँ जब तुम्हारी गर्माहट मुझे छूती है। बर्फ के नीले नोक जो मुझ में आग पैदा करते हैं। फिर मैं ख़ुद को, किसी भी नाश्ते के पहले इन छह असंभव वजहों पर सोचते हुए अपने को मुस्कुराते हुए पाता हूँ। गुनगुनाते हुए, मैं रसोईघर में जाता हूँ और उसे उस शाम जो खाना है वो बनाता हूँ। पैट एक सलाहकार, एक विद्वान और एक उपदेशक है। आप उनके एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ के लिए दूसरे लेख यहाँ पढ़ सकते हैं।
उन सभी विषमलैंगिक मर्दों के लिए, जिनसे मैंने मोहब्बत की
एक समलैंगिक पुरुष अपने प्रेम संबंधों का विवरण देता है
पॅट द्वारा
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