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S.W.A.G. (सेक्रेटली वी आर गे) 2: मैं तुझे फिर मिलूँगी

कई वक्त बाद प्रेमियों के फिर से मिलने का अवसर, नए एहसास और आत्मज्ञान के साथ |

वो ख्वाब तो शायद ख़त्म हो गया पर अपना असर, यादें और कुछ सवाल शायद हमेशा के लिए छोड़ गया। अपने बैग से एक सफ़ेद पुरानी सी डिबिया को मेरी ओर बढ़ाते हुए कहने लगा...इसे देख कर तुम इमोशनल हो जाओगे, सूँघों इसे, उसने कहा। मैंने सूंघा तो कुछ खुशबू आयी। कुछ साल पहले मैं पेरिस गया था और एक व्यक्ति से मिला और मुझे उस से प्यार हो गया। अपने मोबाइल में मुझे उसकी तसवीरें दिखाने लगा। मैंने कहा...फ्रेंच लड़का था क्या? नहीं चिली से था। न उसे मेरी भाषा आती थी न मुझे उसकी, पूरा वक़्त हम गूगल ट्रांसलेटर से बात करते रहे, हमारी मुलाक़ात इतनी खूबसूरत थी कि मैं आजतक उसकी खुशबू हमेशा साथ लिए घूमता हूँ। उसकी बात से मुझे एक दम झटका लगा। मैं सोचने लगा यह कैसे पूरी ज़िन्दगी अपनी पत्नी के साथ नाटक कर पायेगा। इसने किन हालातों में शादी के लिए "हाँ" कहा होगा।  पिछली दफा मिला था तो उसके बेहद खूबसूरत लम्बे घुंघराले बाल थे, हमारे बेहद हसीन पलों में जब उसका चेहरा मेरे चेहरे के सबसे करीब था मैंने कहा की तुम अपने बाल खोल दो और अपनी उँगलियाँ उसके बालों में फंसा कर मैं उसके प्यार में खो गया था। इस बार उसके बाल कटे हुए थे यानी बहुत छोटे थे। पूछने पर उसने कहा मैं यह बाल अब फिर बढ़ा रहा हूँ...मैं समझ गया उसकी शादी के दौरान ज़रूर किसी के दबाब में उसने बाल कटवाए होंगे। क्योंकि हमारे समाज के अनुसार असली मर्द लम्बे बाल नहीं रखते। कभी अपनी बनाई रंगोलियाँ और पेंटिंग्स तो कभी बेक किये हुए केकस की तसवीरें दिखाता। फिर स्कूल में हमेशा टॉप आने के किस्से सुनाने लगता। फिर उदास हो जाता और कहता, कभी लगता है कि मैं गे हूँ और कभी लगता है नहीं हूँ। मैंने कहा तुम जो भी हो बहुत प्यारे हो, तुम में हुनर है जो किसी दुसरे के पास नहीं है।  बातों ही बातों में मेरी नज़र उसकी पतली टांगों पर पड़ीं, ध्यान से देखा तो उसका वज़न भी कुछ कम लगा। इस बार तुम कुछ अलग लग रहे हो, कुछ बदलाव आया है तुम में, मैंने पूछा। हाँ शादी के बाद काफी वज़न कम हो गया है, शायद कुछ मानसिक परेशानी है मुझे। मैं समझ गया और कहा क्या तुम्हारा रोने का मन है? तो रो सकते हो, मन हल्का हो जायेगा। हमें रोज़ रात खुद को बिस्तर पर साबित करना होता है और पूरी उम्र सब सही है, सब नार्मल है कहने का अभिनय करते रहते हैं। कुछ गे पुरुष तो वायग्रा तक खाते हैं खुद को बिस्तर पर साबित करने के लिए।  उसकी लम्बी उँगलियों में बेहद खूबसूरत अंगूठियाँ थी, थोड़ा अनूठा-अलग डिज़ाइन था तो मैंने पूछा इसमें से कौन सी अंगूठी तुम्हारी शादी की रिंग है? मेरी शादी की रिंग थोड़ी बड़े साइज़ की थी और मैंने कभी उसे ठीक नहीं करवाया, उसने बताया और हम एक-दूसरे की तरफ देख के मुस्कुराने लगे। मेरी उँगलियाँ भी सूनी हैं...शादी की अंगूठी बार-बार झूठी शादी का अहसास दिलाती है इसलिए हम अक्सर बहाने ढूंढते हैं जिससे शादी को ज़ाहिर करने से बचा जा सके।  उस रात वो असली व्यक्ति था, उसने वो बातें कहीं जो कभी खुद से भी ना कहीं हों। उसका हमेशा खुद को किसी न किसी कला में व्यस्त रखना एक तरह का अभिव्यक्ति था या खुद को भुलाने जैसा था। अक्सर जब हम लोग गे साइट्स के माध्यम से मिलते हैं तो अपने शरीर या दिमाग की ज़रूरत को पूरा करने के लिए मिलते हैं। जब हमारा निकल जाता है तो मुँह फेर कर सो जाते हैं, जैसे हम कुछ महसूस ही नहीं करते, हमारे अंदर भावनायें ही नहीं हैं।  पर उस रात ऐसा लगा जैसे दो रूहों का मिलन हुआ था...बेहद खूबसूरत रूहानी मिलन। हमारे बीच में कभी सेक्स नहीं हुआ। उसने पुछा तुम्हारा क्या? क्या तुम्हे नहीं निकालना ? हाहा मेरा ओर्गेस्म तुम्हे सुन कर और मिल कर ही हो गया...मैंने मुस्कुराते हुए कहा। बातें करते करते हम सो गए पर मेरा हाथ जैसे उसका था, उसने ऐसे अधिकार से हाथ अपने सीने से चिपकाया हुआ था जैसे पता नहीं कब से हमारा रिश्ता हो, और अब मुझे कभी नहीं जाने देगा। मेरी आदत बहुत ख़राब है की मैं किसी को गले लगा कर या हाथ पकड़ कर नहीं सो सकता, नींद नहीं आती। मैंने धीरे से अपना हाथ सरकाया और पलट कर सो गया।  कुछ दिन पहले मैंने बहुत ध्यान से उसके पिता का घर देखा जहाँ वो भी रहता है । बड़ा लोहे का गेट, बड़ी- बड़ी दीवारें जैसे बड़ी जेल हो और उस जेल की एक दिवार में उसकी शख्सियत का चिन्ह था, एक खामोश म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट। असल में हम घरों में नहीं रहते, हम जेलों में रहते हैं। जिनको यह भी नहीं पता कि उनका बच्चा क्या चाहता है उनको क्या आप माँ-बाप कहेंगे? बड़े घर, रूपए और बिज़नेस की कीमत है कि हम सब अपना मुँह बंद रखें, शादी और सेक्स तुम्हारी मर्ज़ी के व्यक्ति से करें। और पूरी ज़िन्दगी झूठे रिश्तों का बोझ ढोते रहें।  हमेशा सोचता हूँ, हमने किसी की ज़िन्दगी बर्बाद की है और हमारे जैसे व्यक्ति दुनिया की किसी भी महिला के जीवनसाथी बनने के लायक नहीं हैं, क्योंकि हम ऐसे बने ही नहीं हैं। क्या बोलें उस औरत को जिसकी कोई गलती ही नहीं हैं, कैसे बोलें, समाज ने अपनी झूठी शान और मर्दानगी साबित करने का बोझ जो हमारे कन्धों पर डाल रखा है। हमेशा डरता हूँ, कहीं तुम्हें शक़ न हो, अगर मेरी यौनिकता का राज़ खुल गया और तुम घर छोड़ कर चली गयीं तो, मैं अपने माँ-बाप और समाज को क्या कहूँगा? हिम्मत नहीं होती, तुम्हारी आँखों में देख कर बात कर सकूं। आज हम इन परिस्थितिओं में खड़े हैं, क्योंकि समाज के बनाये नियमों को तोड़ने की हिम्मत हम में नहीं है।   मेरे घर के सामने पहाड़ी पर वह जगह साफ़ दिखती है जहाँ हम मिले थे, मैं अक्सर वहाँ देखता हूँ और अमृता प्रीतम की यह कविता गुनगुनाता, उसे याद करता हूँ।    मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन तेरे केनवास पर उतरुँगी या तेरे केनवास पर एक रहस्यमयी लकीर बन ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी मैं तुझे फिर मिलूँगी कहाँ कैसे पता नहीं  
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