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हौसला-ए-सेक्स/सेक्सी हौसला? वो क्या है? चलो २० लोगो  की सुनते हैं

हमने कुछ लोगों से पूछा कि उनके लिए सेक्सी हौसला क्या मायने रखता है ?

हम सबने अपने मन में सेक्स से जुड़े हौसले की एक ही टाइप की तस्वीर बना रखी है, जिसके साथ हम बड़े हुए हैं । हॉट सा कोई, जो बोल्ड हो l ऐसा कोई जो पहला कदम लेने से हिचकिचाए नहीं। और जो NSA (No Attachment sex- बिना बंधन का सेक्स) में छंटा हुआ खिलाड़ी हो। बोले तो एकदम जेम्स बॉन्ड। लेकिन, कई दूसरी घिसी-पिटी धारणाओं की तरह, हौसला-ए-सेक्स का ये चेहरा बहुत कम लोगों में दिखा। हमने कुछ लोगों से पूछा कि उनके लिए सेक्सी हौसला क्या मायने रखता है ?  और उनकी बातों से जो एक बात हमें समझ में आयी वो ये थी: अगर आपका हौसला-ए-सेक्स अलग-अलग पार्टनर के साथ या अलग-अलग टाइम में बदलता रहता है, और अगर वो पुरानी सोच के मुताबिक़ नहीं चलता, तो एजेंट्स!  चिंता मत कीजिये, बहुत सारे लोगों को ऐसा ही लगता है! (प्राइवेसी के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं)

अपने पे भरोसा रखना

मारिया, 27 - महिला, विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्सुअल) हौसला-ए-सेक्स से मेरी पहली मुलाकात तब हुई, जब मैं एक ऐसे शख्स को डेट कर रही थी जिसके पास मुझसे कहीं ज्यादा एक्सपीरियंस था। अचानक ही मुझे ऐसा लगने लगा, जैसे मुझे ये करना आता ही ना था । जैसे मुझे पता ही ना हो कि मैं क्या कर रही थी। और जो कुछ भी मैं कर रही थी, मानो उससे वो उत्तेजित नहीं हो पा रहा था। मैं नर्वस हो जाती थी, घबरा जाती थी। मान बैठती थी कि मेरा परफॉर्मेन्स अच्छा नहीं था। लेकिन मुझे याद है कि मैंने अपने उस अनुभव के बारे में अपने एक एक्स को मैसेज किया। उसे कहा कि शायद मुझे सेक्स के मामले में कुछ नहीं आता और मुझे और सीखने-समझने की जरूरत है। वो हँसा और बोला- अगर तुम्हें सेक्स को लेके किसी बात के लिए बुरा लग रहा है, तो हां, इसकी थोड़ी बहुत ज़िम्मेदारी तुम्हारी बनती है। लेकिन ज्यादा ज़िम्मेदारी तो तुम्हारे पार्टनर की बनती है, जिसको ये ध्यान रखना चाहिए था कि तुम अच्छा और सही फील करो। तभी तो तुम अपने शरीर को भी और बेहतर जान पाओगी। अब तक मैं यही कर रही थी- सारा समय ये ही सोचती रहती थी कि मेरे पार्टनर को क्या पसन्द है, क्या नहीं! उसको मेरा परफॉर्मेन्स कैसा लगा, वो खुश है या नहीं… मुझे उसके लिए बेहतर बनना चाहिए वगैरह-वगैरह। इस सबसे पहले क्या मुझे ये नहीं देखना चाहिए कि मुझे ख़ुद क्या पसंद है ? कि मैं अपने  बदन के किन जगहों पे कौन सी  मजा मस्ती करना चाहती हूँ, कौन सी नहीं। ये सब समझने के बाद, अब मैं अपने पार्टनर से अपनी ख़्वाहिशें शेयर कर पाती हूँ। उनके सामने बिना कपड़ों के भी कम्फ़र्टेबल रह पाती हूँ। तो मुझे ऐसा लगता है कि अपने पार्टनर के अलावा, वो हौसला आपको खुद के अंदर बनाने की ज़रूरत है। उसके बिना सेक्स में मज़ा नहीं आएगा। और सेक्स को तो मज़ेदार होना ही चाहिए।  

सफलता का पहनावा

मिया वालेस, 23 - महिला, उभयलिंगी (बाईसेक्सुअल) कभी-कभी हौसले में कमी नहीं होती, तो कभी-कभी एकदम उल्टा। एक चीज़ जो हमारा हौसला बढ़ाने में हमारी मदद करती है, वो है हमारे कपड़े, हमारा पहनावा। हम एक एन.बी (NB- non binary- जो अपने व्यक्तित्व को किसी एक जेंडर में बांध के नहीं रखता) हैं। इसलिए कभी-कभी लड़की की तरह तैयार होते हैं, तो कभी लड़को वाले कपड़े पहनते हैं। दोनों ही सूरत में हमें सेक्सी और सुंदर फील होता है। अगर कोई इन दोनों में से किसी भी रूप ( मेल-फीमेल) की तारीफ़ कर दे, तो भी हमारा हौसला बढ़ता है। हां, पर कुछ ऐसे दिन भी होते हैं जब हमारे लिए बिस्तर से उठना और दिनचर्या का काम करना भी मुश्किल हो जाता है। वज़ह या तो डिप्रेशन होता है या फिर चिंता, या कोई पुराना ज़ख्म। ये सब मिलकर हमें अपनी सेक्सुअलिटी से नफ़रत करने के लिए मजबूर करते हैं। (उन दौरान हौसला-ए-सेक्स में भी कमी आ जाती है)।  

वो मीठी-मीठी सी चुभन वाली जगह

अंकिता, 24 - महिला, विषमलैंगिक (हेट्रोसेक्सुअल) देखिए, मैं अभी भी वर्जिन हूँ। तो इस सवाल का जवाब देना ज़रा मुश्किल है। पर वैसे, मेरा मानना ​​​​है कि जिस इंसान में सेक्सुअल हौसला होगा, उसे पता होगा कि अपने सेक्सुअल लाइफ में उसे क्या चाहिए और क्या नहीं। अपने शरीर को लेकर तो वो पॉजिटिव होगा ही, पर साथ ही साथ अपने पार्टनर को भी समझेगा, उसकी ज़रूरतों का भी ख़्याल रखेगा। जहां तक मेरी बात है, तो मेरा हौसला-ए-सेक्स तब बनेगा जब मैं अपने शरीर को वैसे ही अपना लूंगी, वैसे ही प्यार करूंगी, जैसा कि वो है। जब ये एक्स्ट्रा मांस, बदन के काले हिस्से और शरीर के बाल जैसी छोटी-छोटी चीज़ें  मुझे परेशान करना बंद कर देंगे। अगर मैं किसी के साथ कम्फ़र्टेबल हूँ, तो यकीनन उसके साथ सेक्सुअल हौसला भी महसूस करूंगी।  

ये एग्जाम नहीं, चाहत की खोज़ है

मिडनाईट 26 - जेंडरक्वीर, (Fluid sexual orientation वाले– जिनकी सेक्सुअल पहचान, उनका सेक्सुअल रुझान, दोनों ही फिक्स्ड नहीं, चंचल हैं) जब भी हम हौसला-ए-सेक्स के बारे में सोचते हैं, तो अपने बड़बोले, फ़्लर्ट दोस्तों की याद आ जाती है। क्योंकि हमें ऐसा लगता है कि हम थोड़े शरमीले हैं, थोड़े अंतर्मुखी, अंग्रेज़ी में जिसे इंट्रोवर्ट कहते हैं। कभी संबंध बनाने में सहज रहते हैं, तो कभी नहीं। कभी अपने शरीर से खुश, तो कभी नहीं। जब सेक्सुअल सम्बन्ध बनाने शुरू किये, पहले कुछ अनुभव बिल्कुल एग्जाम जैसे लगे। ऐसा लगता जैसे जैसे चेकिंग हो रही हो कि हम कितने नार्मल हैं, और इसपे नंबर भी मिलने थे l ऐसा लगता जैसे सबको हमारे इस 'कितने नार्मल हैं' वाले रिपोर्ट कार्ड की खबर है (जबकि  ये सच नहीं था)। कुछ साल बाद, एक पार्टनर ने हमें किंकी सेक्स/तिगड़म वाला मसालेदार सेक्स के बारे में बताया। तब फिर ये समझ में आने लगा कि हमें पार्टनर के साथ ऐसी करीबी पसंद थी जहां आप थोड़े अटपटे हो सकें, सब कुछ स्मूथ न हो, थोड़े एब्नार्मल हो सकें। इस समझ के बाद, हम में पहले के मुकाबले काफ़ी सेक्सुअल हौसला आया। हम सेक्स पे पुरानी सोच भूलकर, सेक्स का मज़ा उठाने लगे। हां, हमारा बदन और दिमाग, दोनों जैसे अलग-अलग चरणों में गुज़रते रहते हैं। ऐसे में, सेक्सुअल हौसला भी बदलता रहता है। लेकिन सिर्फ ये हौसला पाना ही सबसे बड़ी बात तो नहीं है। छोटे-छोटे अहसास और छोटी-छोटी बातों का समझ में आना, बहुत मायने रखता है।

तेरे मेरे बीच में

अनिक्का, 35 - ज्यादातर स्ट्रेट, कभी-कभी क्वीयर। (करता/करते) मुझे अपने दोस्तों और उन लोगों से सेक्स की बातें करना पसंद हैं, जो कल को मेरे पार्टनर भी बन सकते हैं। देखो, एक तो मैं विकलांग हूँ और दूसरा, लंबे अरसे से बीमार! इसलिए सेक्स को लेकर  मेरी सोच ‘नॉर्मल’ मानकों में बंधी हुई सोच से अलग होगी।। मेरे लिए,सेक्स के बारे में बात करना, अपने शरीर को अपनाने का एक हिस्सा है। उस नज़रिए से देखा जाए तो, हाँ, मुझमें सेक्सुअल हौसले की कमी नहीं है। वैसे जब मैं किसी इंसान को अच्छे से नहीं जानता और महसूस करता हूँ कि सेक्स को लेकर उसकी धारणाएं और इच्छाएं, फिक्स्ड दायरों तक सीमित है, तो मेरे हौसले में कमी आ जाती है। ऐसे लोगों के सामने पूरी तरह से खुल पाना मुश्किल लगता है। हो सकता है इसकी वज़ह मेरा अतीत हो, जिसमें काफी बार लोग मुझे अपनाने से पीछे हट गए ।और लंबी बीमारी की वज़ह से शायद, कहीं पे ये डर भी है कि मैं कॉमन सेक्सुअल कल्पना में ढल नहीं पाऊंगा और वैसी सोच रखने वाले लोग मेरी ओर आकर्षित नहीं होंगे l  

हौसला-ए-सेक्स का बुफे

समर, 44 - मर्द, समलैंगिक/गे सेक्सुअल आत्मविश्वास तो बहुत है मेरे अंदर।  लेकिन हां, इसमें बहुत सारी चीजों का अपना एक रोल रहा है। सबसे पहली बात तो ये, कि मुझे पता है कि कई लड़के-लड़कियां मुझसे सेक्शुअल तौर पर आकर्षित हैं। दूसरा, मैं कुछ लड़कों के साथ डेट पे भी गया हूँ l कभी खुली हवा में बाहर बैठने या फिर कभी बंद कमरे में, सेक्सुअल खेल खेलने । उस दैरान अगर कोई खास सा ताल्लुक़ नज़र आता है, अगर सामने वाले की आंखों में भी वैसी ही आग दिखती है, अगर शरीर के जुड़ते तारों के साथ एक हल्का सा तनाव भी नज़र आता है, और अगर खुलकर छेड़खानी की जाती है, तो मुझमें सेक्सुअल हौसला बढ़ता है। अपनी पर्सनल साफ़ सफाई से भी मेरा हौसला बढ़ता है। सेक्स के दौरान अगर मैंने खुद को और अपने पार्टनर, दोनों को संतुष्ट किया, तो ज़ाहिर सी बात है, कि हौसला बढ़ेगा। और आख़िर में, अगर वो इंसान मुझसे संपर्क बनाये रखता है, फिर से मिलना चाहता है, इससे तो  मेरा हौसला बढ़ता ही है। और किसी के इनकार से मेरा सेक्सुअल कॉन्फिडेंस हिलता भी है। आगे अगर किसी वज़ह से सेक्स के बीच में ही मेरा इंटरेस्ट कम हो जाये या कि सामने वाला कुछ करने की ज़िद करे, जबकि  मैं कह चुका हूँ कि मैं इससे कम्फर्टेबल नहीं, तो मायूसी होती है, हौसला कम हो जाता है । लेकिन एक सच ये भी है कि किसी के कुछ करने से मेरा हौसला तभी डगमगाता है जब मैं उस इंसान से, या उस पल से, किसी तरह इमोशनली जुड़ा हूँ ।  

सेक्स की चाहत जिसे नहीं, उसके लिए यहां कोई जगह नहीं

वैलेरी, 26 - (जेंडर क्वीयर- जो अपने आप को किसी जेंडर के दायरे में नहीँ बांधते और ग्रेएस- जो कुछ हद तक अलैंगिक होते हैं, यानि सेक्स में उनको ज्यादा इंटरेस्ट नहीं होता) आजकल हमारा हौसला-ए-सेक्स बिल्कुल ठंडा है। हमें लगता है कि सेक्शुअल हौसले की पहली सीढ़ी है खुद की बॉडी के साथ कम्फ़र्टेबल होना। और ये शायद तब होगा जब ऐसी जगह मिले, टाइम मिले, कि इंसान खुद को तलाशे, समझे, आज़माये... तब शायद अपनी बॉडी को अपनाना आसान हो।  किसी पार्टनर के साथ जाना और शर्मिंदा- होकर वापस आना तो एक बात है । पर अकेले में अपने आप को अपनाना भी तो आसान नहीं, उसमें समय लगता है l हममें सेक्सुअल हौसला तब आएगा जब बिना किसी शर्म के हम जैसे हैं वैसे रहेंगे और वो कर सकेंगे जो हम करना चाहते हैं। अब ये रातों-रात तो होगा नहीं। खासकर हमारी जैसी सोसाइटी में। वैसे कभी-कभी हमें लगता है कि सेक्शुअल हौसले का मतलब ये समझा जाता है कि इंसान सेक्स के लिए हमेशा तैयार रहे। जैसे ये शब्द कह रहा हो कि "आओ, आओ, सेक्स करो। हर किस्म का सेक्स करो।" पर हमारे जैसे लोग जो कि सेक्स की चाहत और उससे नफ़रत के दरमियान कहीं खड़े हैं, उनके लिए सेक्सुअल हौसले का मतलब होगा खुलकर कह पाना कि- "मुझे हमेशा सेक्स करने की चाहत नहीं होती है।  

जब तक ना आये हौसला, नाटक करना ही भला!

नोई, 25 - विषमलैंगिक, (Cis-woman/सिस महिला- यानि वो जिसे पैदा होते हुए लड़की बतलाया गया हो और आगे जाकर भी जिसने यही पहचान अपनाई हो) देखो, वैसे तो कई बार दूसरों को लगता है कि मुझमें बहुत सेक्सुअल हौसला है।  पर सच यही है कि मुझमें इसकी काफी कमी है। दूसरों को ऐसा लगने की  वज़ह ये है, कि उनको मेरे मन की आवाज़ सुनाई नहीं देती, जो चिल्ला-चिल्लाकर कहती है, "हौसला बहुत सेक्सी लगता है, इसलिए इसे दिखाओ- झूठा ही सही।"  यूं तो मैं  औरतों की सुंदरता की मानकों की खूब निंदा करती हूँ, खासकर बदन के बालों को लेके जो बातें कहीं जाती हैं | पर कहीं पे, मन ही मन, मैं  उनको मान बैठी हूँ, उनके बोझ को उठा के जीती हूँ । और अब किसी भी तरह के सेक्सुअल मेल-मिलाप से पहले, मैं अपने पैर और हाथ शेव करके ही निकलती हूँ।  शायद इसलिए मेरे लिए, अचानक कभी भी/कहीं भी, सेक्स की तरफ बढ़ जाना, पॉसिबल नहीं।  

मेरा बदन, मेरा दोस्त

सैम, 24 - सिस-महिला, विषमलैंगिक बचपन से ही मैंने अपने क्लास में कई लड़कियों को देखा है जो दूसरी लड़कियों का मज़ाक उड़ाती हैं और जो लड़कों को देखकर लाड़ टपकाती हैं। उन सेक्सी, भरी-पूरी लड़कियों में से कुछ ने मेरे पतले बदन को अच्छा कहा, तो कुछ ने खराब। जब मैं तो बस टीनएजर थी, तो मेरे दिमाग में ये बात बैठ गयी कि अगर मुझे मर्दों का ध्यान खींचना है, तो मुझे  दूसरों के मुकाबले, बहुत ज़्यादा सेक्सुअल होना पड़ेगा। खैर अब कहीं जाकर, धीरे-धीरे, मैं अपने शरीर से प्यार करने की कोशिश कर रही हूँ।  इससे मुझे खुद के साथ और अपने पार्टनर के साथ, दोनों सूरतों में मज़ा आ रहा है।  मेरे लिए, सेक्सुअल हौसले का मतलब है, खुद से और अपने बदन से प्यार करना, और कम्फ़र्टेबल रहना।  

तुम और मैं, बिना कबाब में जजमेंट-हड्डी के

आर्यन, 34 - क्वीयर, ट्रांसमैन (जिनके पैदा होने पर लड़की बताया गया लेकिन वे आदमी हैं, और वही पहचान अपनाते हैं) सेक्शुअल  हौसले के मामले में, मेरे पास कहने को बहुत कुछ है। क्योंकि मुझे लगता है, कि हर किसी के लिए, सेक्स का अलग-अलग मतलब होता है। जो लोग  ट्रांस-नेस (ट्रांस-जेंडर: यानी ऐसा कोई, कि जो जेंडर पहचान उसे पैदा होने पर दी गयी, उसने उससे अलग पहचान अपनाई, क्यूंकि उसकी अलग पहचान है) को सही तरीके से समझते हैं, उन लोगों के साथ मेरा  सेक्सी हौसला बढ़ जाता है । जब मेरा सामना डिस्फोरिया की दिक्कत (जब आप किसी एक जेंडर में पैदा हुए हो, पर खुद को दूसरे जेंडर का मानते हों, मन की उस दुविधा को डिस्फोरिया कहते हैं) से हुआ था, उस समय सेक्शुअल  हौसले को बरकरार रखना काफी मुश्किल था। लेकिन उससे बाहर आने के बाद, सब बेहतर है। वैसे फ़्लर्टिंग की बात करो तो मैं सुपर कॉन्फिडेंट हूं। खैर, अब तो जो मुझे चाहिए, वो कहने में मुझे बिल्कुल झिझक नहीं होती है। मेरे खयाल में सेक्शुअल हौसले का मतलब है, कम्फर्टेबल फील करना। आप किसी के साथ कितने कम्फ़र्टेबल हो, और उसको कितना कम्फ़र्टेबल फील कराते हो, ये मायने रखता है। ज़ाहिर है, कि मर्ज़ी एक दम ज़रूरी है। और आप तो जानते ही हो, कि ये फीलिंग सिर्फ बदन तक सीमित नहीं होती | बिना बोले भी बहुत कुछ कह पाना। ये समझना कि सिर्फ जिस्मानी रूप में सेक्शुअल होना काफी नहीं है। इस तरह की सोच से मुझे हेल्थी और सेफ महसूस होता है।  मुझे लगता है कि मेरे लिए ये सब, सेक्सी हौसला कहलायेगा । ऐसे कई मौके आते हैं, जब मुझे सेक्शुअल  हौसले की कमी महसूस होती है । देखा जाए तो ट्रांस लोगों की चाहतों पे लोग बड़ी सारी बातें बनाते हैं, अपनी मन गड़ंत धारणाएं। उस ही तरह से, जैसे कि वो एक काम पे जाने वाली विषमलैंगिक औरत के बारे में बहुत कुछ अनाप शनाप सोच लेते हैं । पर उनकी ऐसी सोच सच नहीं होती। तो दरअसल लोग ये मानकर चलते हैं, कि उनको आपकी चाहतें, आपकी सेक्शुअलिटी के बारे में सब पता है। अब ऐसे में किसी को समझाना, कि आख़िर मैं कौन हूं, मुझे क्या पसंद है, मेरे बदन में कहां-कहां आनंद की गठरी दबी है, मेरे लिए कामुकता का मतलब क्या है.. आसान है क्या! तो जब भी सामने वाले को ये सब पता नहीं होता, मेरा हौसला कम पड़ने लगता है। सामने वाले को क्या और कितना पता है, या कि वो मुझे कितना समझता है, ये जरूरी बातें हैं। लेकिन एक और चीज़ जो मेरे ज़हन में रहती है, वो ये, कि मुझे जज किया जाएगा। जब भी किंक (तिगड़म वाला मसालेदार  सेक्स), बी.डी.एस.एम (मर्ज़ी के साथ जब कोई   सेक्स में एक ख़ास रोल निभाना चाहता है, या हाथ में सेक्शुअल पावर का रौब लिए, या झुककर मज़े से, जी हुज़ूरी करके) इस किस्म के सेक्स की बात आती है, कुछ लोग इस किस्म के सेक्स की खुलकर बात करते हैं, वो उसका हिस्सा बनना चाहते हैं। लोगों को लगता है, कि अगर कोई ट्रांसजेंडर है तो उसको किंकी सेक्स पसन्द होगा। पर ऐसा नहीं है। पहले, मेरे लिए सामने वाले को ये समझाना थोड़ा मुश्किल होता था। खैर, अब सब ठीक है। अब जो मन में होता है, वही ज़ुबान पर भी।  

कम्फर्ट+ मर्ज़ी = कॉन्फिडेंस

मालिनी, 27 - बाई (bisexual- जिसे मर्द और औरत दोनों पसन्द हो), सिस-वुमन (जिसका जन्म लड़की के रूप में हुआ और वो खुद को उसी जेंडर का महसूस करे)। सम्बोधन : करती मेरे लिए सेक्शुअल हौसले का मतलब है ईमानदारी और कम्फर्ट। बिस्तर में मैं अपनी बातें या चाहतें खुलकर सामने रखती हूं। अपने पार्टनर के साथ-साथ, अपने आनंद का भी सोचती हूँ। मुझे सेक्स के मामले में नई चीज़ें आज़माने से कोई परहेज़ नहीं है, बशर्ते मैंने उसके बारे में थोड़ा रिसर्च किया हो और वो सेफ हो। कंसेंट/मर्ज़ी की बात मेरे लिए बहुत ज़रूरी है, खासकर जब मुझे मेरे पार्टनर की सेक्शुअल ख़्वाईशों और अलग तरह की तिगड़म पसंद (किंक) को समझना हो। कभी-कभी मैं सीमाओं को लांघ जाना चाहती हूं, पर उसके लिए मेरे पार्टनर और मेरे बीच एक आपसी कम्फर्ट होना ज़रुरी है। जब मैं सेक्शुअली एक्टिव हुई, मेरी चाहतें मेरे पार्टनर की पसंद के ही इर्द-गिर्द  घूमा करती थीं। लेकिन धीरे-धीरे मुझे अपने शरीर को अपनाना आ गया। मैं उसकी सुनने-समझने लगी हूँ। मैं बाईसेक्शुअल हूं, ये बात अब सिर्फ मुझे नहीं, मेरे दोस्तों को भी पता है। मेरे नेटवर्क में ऐसे कई लोग हैं, खासकर औरतें, जो मेरी मदद के लिए तैयार रहते हैं। उनके साथ मैं अपने सवाल/कंफ्यूज़न खुल के शेयर कर सकती हूँ । हम सबने एक दूसरे से बहुत कुछ सीखा है। और इसी बीच मुझे अपने शरीर से भी और प्यार हो गया है। कोई पार्टनर साथ हो या ना हो, मैं इस बात का ध्यान रखती हूँ कि मुझे किन बातों से आनंद मिलता है l अकेले में भी, मैं इन छोटी-छोटी चीजों के मज़े लेती हूँ। मारपीट और सेक्शुअल उत्पीड़न के पुराने कुछ अनुभव की वजह से, मैं थोड़ी चौकस हो गई हूं। कई ऐसे सेक्शुअल मौके आये, जहां इशारों-इशारों में अपनी नामंजूरी दिखाने से कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। हालांकि कई दूसरे मामलों में यही इशारे काम भी आए थे। इसलिए, जब मेरा पार्टनर और मैं सेक्स के नाज़ुक हालात में शामिल होते हैं, अगर वो तब मेरे साथ जबरदस्ती करता है, या मुझे नीचा दिखाकर मज़े लेता है, तो मेरा सेक्शुअल हौसला अपने आप कम हो जाता है।  

पहली जीत है बातचीत

निवेदिता, 27 - औरत, विषमलैंगिक हमें कभी सेक्शुअल हौसले के बारे में सिखाया नहीं गया। मेरा मोटा होना हर चीज़ के रास्ते आया। एक तरफ तो मोटी औरतों को सेक्शुअल या रोमांटिक नहीं समझा जाता था, और दूसरी तरफ अगर पोर्न का सहारा लेना चाहो, उसमें कहानियां नहीं होती थीं, वहां सब कुछ ज़रुरत से ज़्यादा रूखा लगता था । असल जिंदगी में भी ऐसा ही कुछ था। आप किसी मोटी लड़की के साथ सेक्स कर सकते हो, पर प्यार! ना बाबा! इसी सब के बीच, मैंने अपनी एक पर्सनालिटी बना ली। मज़ाकिया, और थोड़ी मस्तराम टाइप की । ताकि वो लोग जिन्होंने कभी मुझ पर ध्यान नहीं दिया, वो मुझे देखें। तो भले ही मुझे हर वो लड़का मिला जिसे मैंने चाहा, लेकिन सेक्शुअल हौसला अपने आप में एक सफर रहा। शुरुआती दिनों के मेरे दो पार्टनर्स मुझे अकेले में बिंदास किस करते थे, पर पब्लिक में नहीं। हाँ, बाद में मुझे मैच्युर पार्टनर मिले। पर देखा जाए तो सेक्शुअल हौसला सिर्फ अकेलेपन में अपने और अपनी सोच के साथ समय बिताने से नहीं आता। ये बाहरी माहौल पर निर्भर करता है। आपका पार्टनर आपको कैसा फील कराता है, उसपर भी। अगर ये चीज़ें कम्फ़र्टेबल नहीं, तो हौसले की उम्मीद भी नहीं। अभी जो मेरा पार्टनर है, वो काफी मैच्युर है। खुद में नहीं लगा रहता है। और मुझसे प्यार भी करता है। पर सच मानो, तो उसके साथ भी नाज़ुक मोड़ पे जाना आसान नहीं था। बल्कि अब जाकर मैं उसके सामने पूरी लाइट में बिना कपड़ों के कम्फ़र्टेबल हो पाती हूँ। अभी भी मैं ये नहीं कह सकती कि सेक्शुअल मामलों में, मैं पूरी तरह से कॉनफिडेंट हूँ। लेकिन ये और लंबा सफ़र है। उम्र के साथ जैसे-जैसे आप मैच्युर होते जाते हैं, आप उसी तरह के  मैच्युर लोगों से मिलते भी हैं। मेरे लिए सेक्शुअल हौसले का मतलब है अपने पार्टनर को सब कुछ बता पाना। मुझे क्या, किस तरह, कितने धीरे, या तेज़, पसंद है! और उससे भी ये पूछ पाना कि उसे क्या-क्या पसन्द है। मुझे लगता है हौसला, कम्फर्ट और भरोसे के साथ ही आता है।  

असली हीरोपंती

बंटी दुग्गल, 25 - पुरुष, विषमलैंगिक जब भी मैं सेक्शुअल हौसले के बारे में सोचता हूं, तो मुझे 90 के दशक के सारे बॉलीवुड हीरो याद आते हैं। जो लड़की को हर तरीके से लुभाने की कोशिश करते थे। फिर चाहे वो गुंडों से लड़कर हो, उसे पहाड़ी से गिरने से बचाकर हो, या फिर कमर से पकड़, अपने करीब लाकर हो। उसके बाद तो स्क्रीन पे फूल दिखा देते थे। वैसे असली जिंदगी में ऐसा थोड़े ही होता है। मैंने उनसे सीखने की कोशिश की , कि मुझे कैसा बनना चाहिए, क्या करना चाहिए। लेकिन मैं उनसा बन नहीं पाया। मैं भले ही सेक्शुअल हौसले रखने वाले  की एक्टिंग करता था,  पर सच यही था कि ये असल में क्या होता है, मुझे उसका पहला अक्षर तक नहीं पता था। धीरे-धीरे मुझे ये समझ आया कि हौसला (खासकर सेक्शुअल वाला) सबके लिए अलग-अलग मायने रखता है। मेरी बात की जाए, तो मुझे सेक्स करना पसंद है। मुझे सेक्स हसीन लगता है। और अगर मेरा पार्टनर भी मज़े ले रहा है, तो मेरा हौसला बढ़ जाता है। तो मेरे लिए सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि सामने वाले की भी खुशी, उसका आनंद, काफी मायने रखता है। और ये भी,  कि वो इंसान मेरे साथ सेक्स करना चाहता है। तो जब ये सारे पावर्स एक साथ मिल जाते हैं, तो मैं कैप्टेन प्लेनेट बन जाता हूँ, जो सिर्फ एक छोटी सी स्माइल के लिए पूरी दुनिया से भिड़ जाए।  

पुरानी शराब मस्त लगती है

कबीर, 38 - पुरुष, समलैंगिक/गे सेक्शुअल हौसले के बारे में सोचते ही,  मेरे दिमाग में एक ही बात आती है- और वो है मेरा परफॉरमेंस। मैं बेड में कितना अच्छा या बुरा हूँ। लेकिन देखा जाए, तो सेक्शुअल हौसले का मतलब सिर्फ इतना नहीं है। मुझे लगता है कि मैं काफी हद तक सेक्शुअली कॉन्फिडेंट हूँ। ये कॉन्फिडेंस अंदर से आता है। जब मुझे लगता है मैं आकर्षक हूँ, या जब मेरी इच्छाएं उफ़ान पे होती हैं। काफी हद तक तब, जब कोई बाहरी आदमी भी मेरे इस कॉन्फिडेंस को देख के, उसपे हामी भरता है।  उम्र के साथ भी ये कॉन्फिडेंस बढ़ा है - यानि कि वो साल जो मैंने खुद को समझने में लगाये। अपना हौसला बनाने में लगाये। और ये जानने में लगाये, कि किसी की ना का ये मतलब नहीं, कि मेरे में कमी है। इस सबने मिलकर, मुझे कॉन्फिडेंट बनाया है। मैं ये तो नहीं कह सकता कि अब मेरा हौसला कभी कम नहीं होता, लेकिन किसी सदमे से बाहर आना अब पहले से आसान हो गया है। दिल तोड़ने वाले हादसों से बचना आ गया है। वैसे आज भी जब कोई ऐसी स्थिति आती है जहाँ चीज़ें हाथ के बाहर हों, या कोई दिन ही खराब हो और मैं खुद की इमेज पर सवाल उठाने लग जाऊं, या दूसरों से खुद की तुलना करने लगूं, या कमरे के अंदर कुछ ऐसा-वैसा सुनूँ, तो बस सेक्शुअल हौसले की वाट लग जाती है। रोमांस या सेक्स जैसी चीज़ों में, जिस आदमी को आप लम्बे समय से जानते हो, उस के साथ कॉन्फिडेंस बना रहता है । अनजान लोगों की पसन्द समझना या उनकी उम्मीद पे खरा उतरना मुश्किल होता है। तो यकीनन एक दूसरे से खुलकर बातचीत करने से हौसला बढ़ता है, और ऐसे  खुलेपन के बगैर, हौसला घटता है।  

पॉपुलर ख्याल:   हुकअप के साथ ब्रेकअप

लल्ली, 25 - क्वीयर, औरत आजकल ये ऐलान है कि हुक-अप ही सेक्शुअल हौसले की पहचान है! लेकिन मेरी सोच अलग है। मेरे लिए, मेरा हौसला खुद को समझने से है। ये जानने से है, कि मुझे वही करना चाहिए जो मुझे पसंद है (बिना ये सोचे कि मेरे ख्याल पुराने हैं)। तो हाँ, जब सेक्स की बात आती है, मैं अपने सूकून के साथ समझौता नहीं कर सकती। जिन लोगों से मुझे प्यार है, या जिनसे इमोशनली जुड़ी हूँ, उनके साथ सेक्स की ज़रुरत महसूस होती है। उस सेक्स में आग होती है। उसमें मैं बिना नर्वस हुए, डूबती चली जाती हूँ । ऐसे लोगों के साथ ही मैं सेक्स में मस्ती-मज़ा कर सकती हूँ।  रोमांस के बिना तो मैं सेक्स में एकदम फालतू होउंगी - इसकी 100% गारंटी मैं खुद देती हूँ। सेक्स के मामले में कभी-कभी मेरा हौसला, कम-ज़्यादा हो सकता है। लेकिन मुझे ये पता रहता है, कि एक रिलेशन में सुधार की गुंजाईश होती है। इसलिए मैं नर्वस नहीं होती हूँ।  

गेट, सेट, गो... अरे रुको!

प्रिया, 24 - औरत, विषमलैंगिक सेक्स की बात करें, तो मुझे कॉन्फिडेंस तब आता है जब मैं सेक्स की पहल करती हूँ । जब पहले मैं छूती हूँ, किस करती हूँ, आगे बढ़ती हूँ! मुझे लगता है, इस बात से असर होता है कि मैं खुद अपनी बॉडी में कितनी कम्फ़र्टेबल हूँ। लेकिन पहल करके, कुछ देर बाद ही, मानो मेरा खुद से भरोसा उठ जाता है। आगे क्या करूं? क्या मैं सही कर भी रही हूँ या नहीं? मैं इस लड़के के साथ यहां हूँ ही क्यों? मानो एक डर गहराई तक उतर जाता है, और मैं उस मूड से बाहर निकल जाती हूँ। इसलिए शायद आज भी किसी के साथ सेक्स करने के नाम पे मेरा हौसला, डगमगाने लगता है। मेरा सेक्शुअल हौसला ऊपर-नीचे होता रहता है। हर इंसान, हर माहौल से साथ अलग-अलग।  

कोशिश करो या न करो

बेगम जरीना, 52 - सिस (cis)-  महिला, विषमलैंगिक मुझे नहीं लगता मेरे अंदर सेक्शुअल हौसला है।  मुझे लगता है कि कभी-कभी मैं कुछ ऐसे मज़ेदार तरीके से बात करती हूँ, कि सामने वाला समझ जाता है, मुझे क्या चहिए।  इसलिए, शायद उन पलों में मैं कॉन्फिडेंट रहती हूँ। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए, तो मुझे नई चीज़ें ट्राय करने से डर लगता है। मैं बहुत जल्दी मैदान छोड़ देती हूँ क्या, ये पता नहीं, पर कुछ कर नहीं पाती हूँ। जैसे कि आज की तारीख़ में, मैं डेटिंग ऐप पर नहीं हूं।  मुझे लगता है कि ये सब सेक्शुअल हौसले की बढ़ती कमी की निशानियां हैं। तो ऐसी कौन सी चीज़ है जो मेरे सेक्शुअल हौसले को बढ़ा सके। मुझे लगता है कि ये सिर्फ तब होगा जब मैं हर उस चीज़ के लिए हां बोलूं, जो मुझे आज लगता है कि मैं नहीं करती। अगर आगे जाकर कभी ऐसा हो, कि मैं सेक्शुअल रिश्ते को हव्वा न बनाऊं, उसके इर्द गिर्द लम्बी कहानियां न बुनने लगूं , उसको और कोई नाम देने में ना जुट जाऊं । और नई चीज़ें ट्राई करूँ । तब शायद मुझे लगेगा कि मुझ में हौसला ए सेक्स है ।  

लव, सेक्स और कंफ्यूज़न

गनमास्टर जी 9!, 24 - पुरुष, स्ट्रेट मैं तो जैसे लव और सेक्स के बीच फंस जाता हूँ । मुझे आनंद तो चाहिए, लेकिन डर इस बात का रहता है कि आख़िर मैं सेक्स किसके साथ करूं। जब किसी ऐसे इंसान के साथ सेक्स करने की बात आये, जिससे मेरा कोई इमोशनल कनेक्शन नहीं है, तो मेरा शुरुआती कदम एकदम भारी होता है। लेकिन आखिर में मेरे से कुछ होता ही नहीं है। ना मैं खुद अपनी ख़्वाहिशें समझ पाता हूँ, और न ही सामने वाले को बता पाता हूँ। तो इस सब के बाद, मुझे लगता है कि मैं अपना सेक्शुअल हौसला बढ़ाना तो चाहता हूं, लेकिन खुद की दुविधाओं में या किसी खास रिश्ते के मिज़ाज में  खोकर रह जाता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि आप किस तरह का सेक्स चाहते हैं और किसके साथ चाहते हैं, यही आपके सेक्शुअल कॉन्फिडेंस की नींव है। अभी तो मैं इस सबसे बहुत दूर हूँ। अभी का मेरा सेक्शुअल हौसला ठंढी रात के तूफान में कांपते पत्ते जैसा है।  

पुछो मगर प्यार से

जी, 28 - मर्द, स्ट्रेट मुझे नहीं लगता मैं सेक्शुअली कॉन्फिडेंट हूँ, क्योंकि अभी तो मैं अपनी ही बॉडी इमेज के मुद्दों से लड़ रहा हूँ। जब मैं टीनएजर था, एक स्किन प्रॉब्लम से परेशान था। बस उसी को लोगों से छुपाता फिरता था। आज भी कभी-कभी उसे छिपाने की कोशिश करता हूं।  जब भी लोग मेरी स्किन के बारे में पूछते हैं, या मुझे मेरी इस स्थिति के बारे में बात करने के लिए कहते हैं, मेरा हौसला उड़न-छू हो जाता है।  

हौले हौले हो जाएगा

रोज़, 21 - औरत, स्ट्रेट लोग आजकल सेक्स के मामले में खुलकर बात करते हैं, मैं उसकी सराहना करती हूँ। बचपन में मैं सेक्शुअल उत्पीड़न का शिकार हुई। और एक एडल्ट जो ये सब देख रहा था, चुप रहा। ना ही उसने मुझे बचाया और ना ही समझाया कि मेरे साथ गलत हो रहा था। यही वजह है कि आज भी मुझे किसी का फिज़िकल होना कम्फ़र्टेबल नहीं लगता। बॉडी की बात हो तो किसी पे भरोसा करना आसान नहीं होता। मुझे टाइम लगता है। मैं, फिज़िकल होने से पहले, एक अच्छा रिलेशन बनाती हूँ। वैसे तो मैं बड़ी आसानी से फ़्लर्ट कर सकती हूं और लोगों के पास जाकर बात करने का कांफिडेंस भी है। लेकिन फिर जब उस पुराने सदमे का असर लौट आता है और मुझे बहुत बेचैनी और परेशानी होने लगती है। मुझे अपना सेक्शुअल हौसला बनाने में अभी थोड़ा और वक़्त लगेगा। लेकिन मैं एक दिन वहां पहुँचूंगी ज़रूर।  

डर के आगे सेक्शुअल कॉन्फिडेंस है

सनसन, 68 - ओपन, फीमेल सेक्शुअली एक्टिव होने पर ही तो सेक्शुअल कॉन्फिडेंस आता है। उसके पहले तो उसके अनजान होने से डर लगा रहता है। औरतों का डर तो दोगुना रहता है। एक तो प्रेग्नेंट होने का खतरा, दूसरा सोसाइटी की सेक्स को लेकर घटिया सोच। अगर आदमी खूब सारा सेक्स करे तो वो हीरो रंगीला  है, और औरत करे तो ‘करैक्टर ढीला है’। और फिर सेक्शुअल मेल-मिलाप से एच.आई.वी-एड्स होने का डर भी लगा रहता है। खैर, मेरा सेक्शुअल हौसला शादी के कुछ साल बाद बढ़ा। फिर धीरे-धीरे कुछ सालों में मुझे ये एहसास हुआ कि हमारी सोसाइटी सेक्स को बहुत तूल देती है। जब मैं किसी के साथ अकेले हूँ, तो उससे बात करूं, हाथ पकड़ूँ या सेक्स करूं, मेरे लिए सब बराबर हैं, उतने ही नज़दीक । सुनने में भले अटपटा लगे, लेकिन इन तीनों ही सूरतों में मुझे करीबी महसूस होती है। तो आज मैं खुद को सेक्शुअल कॉन्फिडेंट मानती हूं क्योंकि मैंने सेक्स से जुड़े हर डर को दूर कर दिया है। और एजेंट्स ऑफ इश्क़ की तरह मैं भी सेक्स को एक अच्छा नाम देना चाहती हूं।
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