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सन्नी लियॉन : वो पोर्नस्टार जिसको दादी माँ भी पहचानती है

एक पोर्न स्टार भारत में घर घर कैसे पहचानी गयी?

सन्नी लियॉन ने भारतीय घरों में बिग बॉस के ज़रिये २०१२ से २०१५ के बीच प्रवेश किया। फिर उसकी फिल्म एक पहेली लीला भी भयंकर हिट हो गयी। उसके कुछ समय बाद ही उसने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की सबसे चाही जाने वाली  स्टार का खिताब जीता । ये कोई छोटी मोटी जीत नहीं थी, वो इस रेस में दीपिका पादुकोण  और कैटरीना कैफ से आगे थी। फिर भी लोग उसकी कामियाबी के बारे में खुल कर बात नहीं करते, जैसे बड़ी दूर से ये नज़ारा देख रहे हों। उसकी कामियाबी के बस आंकड़ें सुनाये जाते हैं ।एक नए सितारे के आगमन पर जो जोर शोर होता है, वो सब सांस्कृतिक तौर पर हो ही नहीं रहा है। सोचने से ये समझ में आता है कि सन्नी लियॉन के बड़े सारे अदृश्य फैन है। उसके फेसबुक पेज पर उसके १.५ करोड़ फैन हैं। पर हालांकि उसके फोटो और वीडियो पर बहुत सारे लोग 'लाइक' दबा देते हैं पर कमेंट ही नहीं करते । कोई पोस्ट भी नहीं डालते l मीडिया का इसमें हाथ है। मीडिया जब भी सन्नी लियॉन का ज़िक्र करती है तो उसके बीते हुए कल के  पोर्न स्टार के रूप का ज़िक्र ज़रूर करती है ( सन्नी लियॉन खुद अपने उस रूप को वयस्क एंटरटेनमेंट प्रोफेशनल का नाम देती है) । मीडिया के ऐसे करने से होता क्या है कि हम आज की सन्नी लियॉन के अवतार को देख समझ ही नहीं पाते । उसको एक एक्ट्रेस के रूप में नहीं देख पाते जो हिंदी फिल्मों में काम करती हैं। चलो मैं शुरुआत में साफ़ साफ़ ये बात तो कह ही दूँ - लियॉन हद से ज़्यादा बोरिंग अभिनेत्री है। उसकी दो पोर्न फिल्म्स मैंने फ़ास्ट फॉरवर्ड पर देखीं, सब कुछ इतना टिपिकल पोर्न सेक्स था.. जैसे बिलकुल बेमन से एक्सरसाइज करी जा रही हो। बेबी डॉल सुनने में मस्त गाना हो सकता है, पर उसका वीडियो तो इतना थकेला है कि मैं उसे एन्ड तक कभी देख ही नहीं पाई, ये लिखने के लिए भी नहीं। और हालांकि मुझे पुनर्जन्म की कहानियां बहुत पसंद हैं, पर एक पहेली लीला देखते हुए, मुझे लीड एक्ट्रेस यानी सन्नी लियॉन से आँखें फेरने में कोई परेशानी नहीं हुई। मतलब उसमें कुछ बुरा नहीं है, वो काफी स्वीट सी है, पर उसमें ऐसा भी कुछ नहीं है जो आप उससे आँख ही ना हटा पाएं। जब मैंने एक पुरुष दोस्त से इस बारे में बात की, तो उसने कहा, “ये तो ज़ाहिर सी बात है। तुम एक महिला जो हो।" लेकिन, पोर्न के उत्सुक  दर्शक होने के नाते, उसने ये माना कि वो लियोन के एडल्ट वीडियोस का फैन नहीं था। क्योंकि वो वीडियोस "आम अमरीकी पोर्न जैसे थे। अप्राकृतिक और बनावटी ”। लियोन के मामले में असली रहस्य ये नहीं है कि एक एडल्ट मनोरंजन कलाकार ने विदेश से आकर कैसे इतनी सफलता के साथ भारत के एंटरटेनमेंट जगत में एक मुकाम हासिल किया। असली सवाल ये है कि ऐसा कोई व्यक्ति जो ऑनस्क्रीन बिलकुल साधारण है, और जिसका लोगों पर प्रभाव भी सिमित है, उसने कैसे ये सब हासिल कर लिया?  इतिहास में कुछ फ़िल्मी सितारों का थोड़े समय के लिए ऊपर उठने का एक कारण ये रहा है कि वे किसी तरह से अपने आस-पास  के सामाजिक रुझान को रूप देते हैं। वो अपने समय की तरंग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे अभी तक पूरी तरह से पहचान नहीं मिली है। अक्सर एक समाज के जो 'बड़े बड़े' लोग होते हैं, वो उतने दूरदर्शी नहीं होते कि बदलते समय को समझ सकें। या ये समझ सकें कि कैसे लोग बदलते समय और बदलती सोच के साथ अपने को नए रूप में ढाल रहे हैं । सन्नी लियॉन की कामयाबी में समाज के कौन से बदलते रूप की झलक है?  लियॉन को बिग बॉस  (Bigg Boss) के माध्यम से भारतीय लिविंग रूम में घुसते तो मैं नहीं देख पायी, क्योंकि उस समय मैं खुद टीवी प्रोडक्शन में पूरी तरह से घुसी हुई थी। मैं तब एक आर्ट फिल्म किस्म के रियलिटी शो 'कनेक्टेड हम तुम' के लिए काम कर रही थी और इंडियन मॉडर्न शहरी औरतों के आंतरिक जीवन के बारे में पता लगाने की कोशिश कर रही थी। अलग-अलग बैकग्राउंड की सैकड़ों औरतों से मिलने के बाद शो के पात्रों का चुनाव होता था। इनमें से कई छोटे शहर की औरतें थीं, जो शो बिजनेस में नाम कमाना चाहती थीं। उनके पास ना तो किसी भी तरह का कोई कनेक्शन था, ना ही प्रशिक्षण, और सच कहूं तो, ना ही कोई टैलेंट। लेकिन, वे एक प्रकार की दृढ़ता से भरी हुई थीं, एक दृढ चाहत थी 'दुनिया को दिखा दें कि वो क्या हैं'। वे परिवार, समुदाय या विचारों की पुरानी पहचान से खुद को सीमित नहीं रखना चाहते थीं। चेतन भगत इस तरह के कई युवाओं के लिए आवाज़ उठाते हैं। उनका उपचार थोड़ा अटपटा इसलिए लगता है कि वो सुझाव देते हैं कि अंग्रेज़ी सीख लेने से भारत में निहित फ्यूडल (feudal- सामंती) सिस्टम की बड़ी सारी असमानताएं ख़त्म हो जाएंगी। इन युवा औरतों को क्या लगता है, उनके पास बराबरी करने वाली कौन सी चीज़ है, जबकि उन्हें ये मालूम है कि उनके पास ज़्यादा कुछ नहीं है ? वो चीज़ है उनका शरीर। वे शो बिज़नेस को एक ऐसी जगह की तरह पेश नहीं करते जहाँ पल दो पल की प्रतिभा दिखाई जाए । बल्कि वो उसे एक लेबर मार्केट की तरह पेश करते हैं । जहाँ आप अपने शरीर को इस तरह उपयुक्त बना सकते हैं जिससे उसे कहीं भी काम मिल सके। मुंबई के ओशिवारा में, जो कि जिम, डांस क्लासेस और ऑडिशन करने वाली जगहों से भरा पड़ा है, हजारों की संख्या में महत्वाकांक्षी खुद को इस प्रयास में झोंक देते हैं। सेक्सी बॉडी होना अब आपकी अनैतिकता का संकेत नहीं है, बल्कि अब यह आपके प्रोफेशनल होने और महत्वाकांक्षा रखने का संकेत है। इसलिए, सेक्स सम्बन्धी कुछ "कोम्प्रो" या कोम्प्रोमाईज़, भी अब बहुत हद तक व्यावहारिक माने जाने लगे हैं। इस सब से शरीर की परिभाषा बदल गयी है।अब यह सम्मान और नैतिकता का प्रतीक बनकर नहीं रह गया है । अब इसे व्यावसायिक रूप से काम और प्रगति का साधन माना जाने लगा है। कुछ  ‘विशिष्ट’ लोगों की नज़र में, ये युवा अश्लीलता और हताशा को दर्शाते हैं। चेतन भगत के प्रशंशकों के "सभ्य" MBA स्टाइल वाली आकांक्षाओं को बहुत मान्यता मिलती है । इन युवाओं की "अशोभनीय" आकांक्षा को बहुत कम मान्यता मिलती है। ये बड़े सारे युवा मर्द और औरत, जैसे कि लियोन, के सर्जरी द्वारा ढाले गए परफेक्ट बॉडी और उस बॉडी को अपने कौशल के रूप में दिखाना, काबिले तारीफ है। लियोन आप्रवासी (immigrant) परिवार से थी। उसने एक बेहतर जीवन की तलाश में अपनी जड़ें छोड़ दीं। ये सब उसी असंतोषजनक अप्रवास का प्रतिनिधित्व करता है, जो हजारों युवा भारतीय निम्न-मध्यम वर्ग के  हजारों युवा एक बेहतर जीवन की तलाश में इस तरह प्रवासी बन जाते हैं। हर छोटी बड़ी बात पर भावुक न होकर, वो अपने लिए नया जीवन बनाने की कोशिश में जुट जाते हैं । वो एक नया,  स्थायी घर नहीं ढूँढ़ते। वो नए नए मुकामों की खोज में रहते हैं जहां वो अपने बीते कल की पहचान से बांधे ना जाएँ ।  पोर्नोग्राफी के क्षेत्र में किये अपने पिछले काम की वजह से, लियॉन को भारत के लोगों की "सावधानी और कामुक चाह के बीचों बीच" होने का प्रतीक बताना आसान है । और साथ ही ये सुझाव देना है कि वह "वाकिंग टॉकिंग डबल मीनिंग" से ओत प्रोत है, जैसा कि लेखक काई फ्रिस ने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में अपने लेख में कहा। भारतीय संस्कृति के बारे में ये  बड़ा सामान्य सा सच है, जिसे बार बार दोहराने से कोई नया पहलू तो समझ नहीं आता । हम अपने उदारवादी बुजुर्गों से ये सब सुनने के आदि हो गए हैं। वह भारत, (बोर मत कर यार) कामासूत्र की वह भूमि, जो अब अपनी कामुकता को लेकर इतना दो मुंहा हो गया है। ऐसा है, कि दो मुंही जुबां का हम तिरस्कार तभी कर सकते हैं अगर हम मानते हैं कि हर बात का एक ही, और स्पष्ट मतलब होता है। कि मीनिंग बस एक ही होता है या बस एक ही होना चाहिए। इस तरह की सोच, सीधे सत्य या पहचान पर यह अटल विश्वास, आपको किसी एक पहचान में फाँस देती है, कहती है कि आप बस ये हो सकते हो, और कुछ नहीं ... और जो आपके किसी और पहलू को देखते ही आपका तिरस्कार करती है ये तो बड़ी सीमित सोच है, भारी भरकम नैतिकता के जोखिमों से भरी हुई उदारपंथी हों या दक्षिण या वाम पंथी, आलोचना से भरी वह निगाहें ही हैं जो लोगों को उनकी इक्छाओं को लेकर शर्मशार करती है। आप यह बातबाईंओर से कर सकते हैं कि कैसे लियॉन भारतीय दो -मुंहपन की एक उदाहरण है, जिसमें एक तरफ पोर्नस्टार अमीर बन जाते हैं और दूसरी तरफ LGBT समूह के लोगों को उनके अधिकार तक नहीं मिलते।दायीं’ तरफ से बात करना हो तो आप चरित्रहीनता के बारे में बकवास कर सकते हैं। दोनों तरफ से रहे इस टकटकी का, इस नज़र का, उद्देश्य बस यह है कि  सामान्य मानव आकांक्षाओं  के लिए आपको शर्मिंदा किया जाए। यह असल में, तो असल में, ये दाएं बाएं इत्यादि वाली नज़र अश्लील है, जिसकी कोशिश हमेशा यही रहती है कि आपको अपमानित और एक्सपोज़ करता रहे। पोर्नोग्राफी फिल्मों की एक कलाकार और निर्माता, दोनों होने की वजह से, लियॉन ऐसे नज़रों को अच्छे से समझती थी और ना सिर्फ उसे काउंटर करना जानती थी बल्कि उसे कैसे उलट देना है, वह भी जानती है। बिग बॉस में एक प्रतियोगी बन कर आना उसका मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। बिग बॉस, जो कि मुख्यधारा की पोर्नोग्राफी का सबसे बढ़िया ज़रिया था, और जिसमें तथाकथित 'सभ्य' लोग अपने नकारात्मक और 'असभ्य' पहलू  दिखाते हैं सन्नी लियॉन ने इसका ठीक उल्टा किया -एक तथाकथित 'असभ्य' चरित्र ने अपने अच्छाई दिखाई, अपनी (जैसे यूट्यूब पर एक वीडियो क्लिप में बताया गया है) 'क्यूट' पहलू  दिखाया। वह विनम्र थीं, और पारिवारिक मूल्यों की बात करती थीं: “बहुत अच्छा लगता है जब सब मम्मी डैडी को प्यार देते हैं, है ना? मैं अपने माता-पिता को मिस करती हूँ, लेकिन वह ऊपर से सब देख रहे हैं।" उसने बिग बॉस हाउस में रोटियां बनाईं, ट्रैक पैंट में दिखीं और अमर उपाध्याय को अपने ज़्यादा करीब आने से भी रोका ("वह शादीशुदा है और मैं भी"), जिस से उसने यह साफ़ सन्देश दिया कि अगर बात उसके शरीर की हो, तो यह उसका अपना फैसला होगा कि उसे कैसे उपयोग किया जाए, जैसा कि किसी भी व्यक्ति का होना चाहिए।  बिग बॉस के ज़रिये उसने इस बात की बुनियाद डाल दी कि एक इंसान की परिभाषा उसके किसी एक पहलू या पहचान  से नहीं हो सकती। हाँ ठीक है, वह एक पोर्न स्टार हैं, लेकिन वह एक पेशेवर है, प्रोफेशनल और एक अच्छी इंसान भी है। उसने यह साबित किया कि अच्छाई-बुराई के ये बचकाने ध्रुवीकरण अब लागू नहीं होते हैं। कुछ लोगों के लिए, यह डबल मीनिंग बात है। और कई लोगों के लिए, यह हम सभी के जीवन की सामान्य जटिलता है, जिसमें हम एक ही समय में कई अलग-अलग चीज़ बन जाते हैं। यह संदेश देना बहुत ज़रूरी हो गया था और लोगों ने इसको अच्छे से लिया और सराहा भी। उदाहरण के लिए, मुंबई की बिकनी मॉडल और स्प्लिट्सविला की प्रतियोगी स्कारलेट रोज़ ने अनुश्री मजुमदार जिन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के लिए लियोन को प्रोफाइल किया था, को बताया : "सनी मेरे रोल मॉडल्स में से एक हैं। बिकनी मॉडल बनके रहना आसान नहीं है; लोगों को लगता है कि आप एक पोर्न कलाकार हैं। जब मैंने सुना कि सनी इस शो को होस्ट कर रही हैं, तब मुझे लगा कि यहाँ कोई है जो मेरे काम के बारे में समझेगा रोज़ के विपरीत, लियॉन ने कभी भी अपने पोर्न स्टार होने की चर्चा तक नहीं की है, इस बात का खेद तक नहीं जताया है।  उल्टा, वह खुद के दम पर बनाई गयी अपनी पहचान के लिए गर्व महसूस करती हैं। बहुत सारे इंटरव्यू लेने वालों के प्रश्नों में उनको शर्मसार करने की कोशिश की गयी है, लेकिन बहुत सरलता से, जो कि बिलकुल नाटक करने जैसा नहीं लगा, वह उन सवालों में फंसने या उलझने से बच गयी हैं। समाज और उसके लोग कई उंच नीच के दायरे बनाते हैं और लोगों को उनमें फिट करते हैं ।अक्सर अपने को उस समाज में शामिल करने के लिए लोग अपने किसी पहलू को छिपाते हैं । जैसा कि रोज़ ने यहाँ किया ("मैं पोर्न स्टार नहीं हूँ, मैं बिकिनी मॉडेल हूँ"), या जैसा राखी सावंत ने पहले किया है ("मैंने सनी लियॉन की तरह पोल डांस नहीं किया") अपने शुरुआती दिनों में एक इंटरव्यू में "एक पोर्न स्टार एक वेश्या नहीं होती है" जैसा बयान देकर वह एक बार भावनाओं में बह गयी थी, लेकिन उसके बाद उसने कभी भी इस तरह के स्टीरियोटाइपिंग का सहारा नहीं लिया। लियॉन कभी भी एक पीड़ित की तरह अपनी कहानी नहीं सुनाती। वह पूरी तरह से अपने काम के लिए समर्पित है । उसने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह उसका अपना निर्णय था और किसी ने उसको यह सब करने के लिए मज़बूर नहीं किया था। उसने कभी भी भारतीय संस्कृति के बारे में बुरा-भला या उसे घिसा-पीटा नहीं कहा, जो कि कई भारतीय खुद को दूसरों से अलग दिखने के लिए करते हैं।  MensXP को दिए एक इंटरव्यू में उससे एकता कपूर के दिए बयान पर उसकी राय पूछी गयी, कि भारत एक सेक्स का भूखा देश है ।  तो लियॉन ने कहा : "मुझे नहीं लगता भारत सेक्स के लिए भूखा देश है, मैं ऐसा किसी भी देश के लिए नहीं बोल सकती। उसको [एकता कपूर] ऐसा लगता होगा और उसको अपनी राय देने का पूरा अधिकार है।" उससे पूछे गए कुछ हलके-फुल्के सवालों पर वह यह कह कर हंसने लगी कि उसको अक्सर महिलाओं और शादी-शुदा जोड़ों के मेल्स आते हैं जिसमे वे इनसे पूछते हैं कि सेक्स जीवन को कैसे बेहतर किया जाए।एक वीडियो इंटरव्यू में उसने कहासेक्स करना पागलपन नहीं है, यह तो हर दिन होता है भाई" यानी वो आधुनिक भारत के कामुकता की एक अलग नयी कहानी को स्वीकार करती है- दमन और मोरल पुलिसिंग से भरी पुराने ज़माने वाली कहानी नहीं, बल्कि ऐसी जो एक गर्व है, जिसमे सेक्स के लिए गतिशीलता है। सच तो यह है कि लियॉन की मेनस्ट्रीम में आसानी से प्रवेश का कारण था भारत में शहरी और छोटे शहरों के लोगों के लिए पोर्नोग्राफी का आसानी से हर जगह उपलब्ध होना, और इसके लिए डिजिटल दुनिया को धन्यवाद देना चाहिए। रोज़ PornHub वेबसाइट देखने वालों की संख्या में भारतीयों का दुनिया में पांचवा स्थान है और मोबाइल के माध्यम से देखने में दुनिया में चौथा स्थान है। और इसी वजह से एक शरीर का पोर्नोग्राफ़िक से सिनेमैटोग्राफ़िक में प्रवेश, इतना चौंकाने वाला नहीं है। यह निश्चित ही एक निजी स्थान से सार्वजनिक स्थान तक पहुँचने की यात्रा जैसी है साथ ही यह रोजमर्रा के एक जगह से दूसरे तक की यात्रा भी है। लियॉन किसी अन्य कल्चरल स्टेरोटीपिंग (सांस्कृतिक रूढ़िवादिता) में भी नहीं पड़ती है। एक दूसरे इंटरव्यू में जब उससे भारत में महिलाओं के खिलाफ अत्यधिक हिंसा के बारे में उसकी राय मांगी गयी, तो उसने सिर्फ इतना कहा, “यह दुनिया के किसी भी अन्य देश के लिए लागू होता है। अगर हमारे शिक्षक और माता-पिता हमें अलग तरीके से पढ़ाएंगे, तो एक सही सिग्नल दूर तक जाएगा।”  लेस्ली उडविन किस्म के लोग और राइट-विंग से जुड़े उपदेश देने वाले लियॉन की किताब से इस बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं। इसलिए, लियॉन एक अन्य तरह की NRI है, ऐसी जिसके बारे में कोई बात नहीं करता, ऐसी जिसे प्रधानमंत्री सम्बोधित नहीं करते - जिन्हें भारत पर किसी तरह की शर्मिंदगी नहीं है। वह उन अन्य भारतीयों के बारे में भी अच्छा ही बोलती हैं, जो अपने निजी और सार्वजनिक रूप में जटिलता दिखाने से नहीं छिपते, यह बताने के लिए कि वह कहाँ से आये हैं और अपनी ज़िन्दगी बनाने के लिए कि वह कहाँ जाना चाहते हैं । बजाये इसके कि अपना सारा समय भारत की इमेज पर सोचते हुए बिता दें ।   एक तरफ सन्नी लियॉन किसी एक तबके से अपनी पहचान को सीमित नहीं रखती।  दूसरी ओर लियॉन कभी भी बुनियादी पारम्परिक  बारीकियों को चुनौती नहीं देती हैं, हो सकता है कुछ लोगों को यह पाखंड लगे और दूसरों को (जैसे की मुझे खुद) इसमें उनकी कुशलता दिखे। गौर कीजिए कि वह बिग बॉस में वैसे पहुंचीं जिस तरह से ज्यादातर महिलाएं अपने ससुराल में पहुंचती हैं - एक डोली में। एक अन्य F वर्ड जो उनके शब्दावली (vocabulary) में बड़ा स्थान रखता है वह है- Family उन्होंने अपने पहले निर्माता एकता कपूर और पूजा भट्ट की बात की, कि वे इनके साथ अपने परिवार की तरह बर्ताव करते थे। उनके मिटटी से जुड़ी परदेशी पंजाबी काफी आस्वश्त करने वाली हैं। वह अपने माता-पिता के बारे में सम्मान से बात करती हैं (हर एक के बारे में आदर से बात करती हैं) उनका बर्ताव दिल जीतने वाला है  - उनके कुशलता और आत्मविश्वास से भरे, और हमेशा विनम्रता से दिए गए कई इंटरव्यूज  देखने के बाद मुझे उनसे प्यार हो गया सन्नी ने पारिवारिक संरचना को चुनौती नहीं दी है। और इंडिया में सफल होने के लिए तो ये बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर परिवार है, तो फिर चाहे आप उसमें रहकर कुछ भी करें, सब जायज़ है। हमारी संस्कृति में परिवार को सामाजिक इकाई में सबसे ऊपर रखा गया है। अपने पति के साथ उसकी खुली साझेदारी भी भारतीयों को इनके प्रति सहज बनाती है। ये सलमान खान को भी उसके बारे में ये कहने की अनुमति देता है, कि: "उनका काम है - जो भी है, उनके परिवार में कुछ ऐतराज़ नहीं है।" किसी मर्द के साथ ना जुड़ी औरत को देखकर भारतीय डर जाते हैं, ये ख्याल ही उनको बेचैन कर देता है। उनके सामने कुछ भी कर देने वाली  देवी, जिसपर कोई रोक टोक न हो, की शक्ल जाती है। एक औरत, जिसका नाम किसी मर्द के साथ जुड़ा हो, उसे लोग आसानी से अपना लेते हैं। राखी सावंत, मल्लिका शेरावत या शर्लिन चोपड़ा के विपरीत, लियोनी ने कभी सीधे तौर पर पितृसत्ता या सामाजिक अन्याय के बारे में बात नहीं की है। वो बस जल्दी से इन सबसे आगे निकल जाना चाहती है। हालांकि लियोन निश्चित रूप से अपने अतीत की पहचान और तौर-तरीकों से छुटकारा पा चुकी है, वो एक लम्बे समय से चली रही प्रथा का हिस्सा है। पुराने ज़माने में फिल्म इंडस्ट्री में आने के लिए अक्सर वो ही रास्ते थे जो आज भी पोर्न स्टार्स के लिए है - कभी तवायफ और नाच करने वाले घरानों से आते, और अक्सर कास्टिंग काऊच ( कास्टिंग काउच) के खतरों का कई तरीकों से सामना करते हुए ! ये ऐसा समय था जब लोग अलग-अलग बैकग्राउंड से फिल्म इंडिस्ट्री में आते थे और खुद को बदल डालते थे। जब फिल्म इंडस्ट्री में अलग अलग नस्लों के लोगों के बीच रिश्ते बनते थे । आज, परिवार और बिज़नेस दो या तीन पीढ़ियों से चलते रहे हैं।और वंशावली (pedigree) और विरासत जैसे शब्द, जिनका पहले इस इंडस्ट्री में कोई मतलब नहीं हुआ करता था, सब उससे बंधे हैं।  दूसरी ओर तीसरी पीढ़ी के फिल्मी परिवारों ने अपनी बेटियों और उनके जैसी दूसरी लड़कियों को वहां बसाने के लिए एक सम्मानजनक माहौल बनाया है। हां, ये बदलाव पूरी इंडस्ट्री में तो नहीं लेकिन कुछ हिस्सों में आया है।कॉरपोरेटाइजेशन (corporatisation) ने इस पूरी क्रिया को एक फिनिशिंग दे दी है।  दीपिका पादुकोण, करीना कपूर और कई दूसरे कलाकार के शरीर एक अलग मतलब दर्शाते हैं, जो पुरानी एक्ट्रेस के शरीर से अलग अर्थ रखते हैं। एक ज़माने में एक्ट्रेस के शरीर को लेकर मान्यता की अगर बात की जाती, तो वो इस नज़र से की जाती कि वो हीरोइन का रोल कर रही है, कि  वैम्प का। एक ज़माने में  जो हीरोइन और वैम्प के बीच ऊंच नीच का फर्क माना जाता था, आज वर्ग के आधार पर वही फर्क कायम रखा गया है।  यही कारण है कि दीपिका और करीना -लिस्ट की फिल्मों में हैं, जबकि इमरान हाशमी और कई आयी-गई एक्ट्रेस विशेष फिल्म्स की 'बी-प्लस' दुनिया में रहती हैं। ये वो बी-प्लस दुनिया है, जिसपे लियोन राज करती है। क्या वो ये -लिस्ट और बी-लिस्ट की धारणा को मिटा सकती हैजवाब में, हमें सिर्फ लियोन की समझ और उसकी अंतर्दृष्टि की ओर देखने की ज़रूरत है। जैसा कि उसने अपनी फिल्म 'जिस्म 2' की रिलीज से पहले एक इंटरव्यू में कहा था: “ इस फिल्म में ऐसा कोई पागलपन नहीं है। आप यहाँ ऐसा कुछ नहीं देखेंगे जो आपने पहले ना देखा हो। आप जानते ही हैं, इंडिया में, आप दायरों को धकेल सकते हो, उनको ख़त्म नहीं कर सकते हो।" और अगर वो कोशिश कर करके वो उन दायरों को चिटका चिटका कर तोड़ देती है, तो हमेशा हमेशा के लिए उनके लिए 'चिट्ठी आयी है' गानाउनको समर्पित किया जाएगा   ये लेख 'मैनज़ वर्ल्ड" ( Man’s World)  नामक मैगज़ीन में सबसे पहले छपा।   पारोमिता वोहरा फिल्म निर्देशक, लेखक और अंताक्षरी प्रेमी हैं। एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ उन्होंने ही शुरू किया और वो इसकी क्रिएटिव डायरेक्टर भी हैं।
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