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सविता भाभी और मैं: एक सच्ची प्रेम कहानी

मेरे बारे में आपको एक बात पता होनी चाहिए l मैंने सविता भाभी की तीन कहानियां लिखी हैं।

तो ये रही मेरे बारे में एक बात जो आपको पता होनी चाहिएl मैंने सविता भाभी की तीन कहानियां लिखी हैं । बस तीन l और सेक्सी पोर्न वाले हिस्से तो मैं लिख ही नहीं पायाl ये मैं सेंसर के डर से नहीं कह रहा हूँ । मैं तो बताना चाहता हूँ कि वो कॉमिक और कॉमिक के वो ख़ास हिस्से लिखने वाले कितना बेहतरीन और मुश्किल काम कर रहे हैं तो ये कहानियां  लिखना मैंने आखिर कैसे शुरू किया? ये २००९ में शुरू हुआ जब सविता भाभी बस चालू ही हुआ था . मैंने हाल ही में कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन किया था,  और मैं स्वतन्त्र रूप से एक मैगज़ीन के लिए लेख लिख रहा था, यानी फ्रीलांसर था । मैं और मेरा एक दोस्त मिल कर अपने डिज़ाइन स्टार्ट अप पर काम कर रहे थे । मैंने अपने पहले ग्राफ़िक नावल पर काम कर रहा था, जो भारत पकिस्तान ढिश्कियाऊं ढिश्कियाऊं टाइप का था ।  सविता भाभी के कुछ शुरुआती एपिसोड बाज़ार में आये थे और मैं, कई और लोगों की तरह, उन सब को पढ़ रहा था। कुछ आईडिया कभी-कभी इतने मज़बूत होते हैं कि वो किसी भी रूप या ट्रीटमेंट में काम कर जाते हैं। ऐसा नहीं है कि सविता भाभी का ट्रीटमेंट खराब था। सविता भाभी के पहले कॉमिक - दी ब्रा सेल्समेन (The Bra Salesman) - की चित्रकला वाकई बढ़िया थी। उसके बाद के कॉमिक्स की चित्रकला भी अच्छी थी l पर वो  कांसेप्ट ही इतना गज़ब था कि उसके बारे में सोच कर ही मेरे मन में चिंगारी भड़क गयी l और मुझे लगता है कि सभी के साथ ऐसा ही हुआ होगा। तो बस, सिर्फ़ असली, ठरकी, मौज-मस्ती पसंद करने वाले पाठक इसे पढ़ते थे। चलो सब प्यार करें, आर्टिस्ट्स को बचाएं, सारी दुनिया एक है, सविता भाभी कूल है टाइप के फैन बाद में आये, काफ़ी देर से। शुरू में सिर्फ़ असली पाठक थे और भाभी जी ।  तब मैं भी सविता भाभी मंच पर आया। ये उन दिनों आप ऑनलाइन पोर्न स्ट्रीम नहीं कर सकते थे, कम से कम मैं तो नहीं कर पाता था। अच्छे पोर्न खोजने के लिए सविता भाभी टाइप के मंच- ऑनलाइन फोरमस लाजवाब होते थे। अच्छे पोर्न से मेरा मतलब, आप जानते हैं, वो पोर्न जो आपके लिए सही वक़्त पर काम करे। मैं पोर्न फिल्मों की कहानियों को असाधारण पाता हूँ। पूरी लम्बी फिल्म की अवधि वाला पोर्न, वो पुरानी पोर्न फिल्में, उनकी कहानियों बड़ी विचित्र सी होती थीं। लेकिन इसी बेढंगेपन और ख़राबाभिनय के बीच वो किसी तरह कुछ ऐसा कर जातीं जो सही में - कुछ असाधारण होता। आजकल की पोर्न फ़िल्में, जो HD में हैं, ज़ायक़ेदार होना चाहती हैं, पर उनके भीतर वो मौज-मस्ती भरी बात नहीं होती। समझा पाना मुश्किल है। मेरी समझ से ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको ये महसूस होता कि आजकल की पोर्न फ़िल्में ज़्यादा गंभीरता से बनाई जाती हैं और पहले की फ़िल्में ऐसी नहीं थीं।    बहरहाल, मैंने सोचा कि सविता भाभी मंच खरा सोना होगा यानी पोर्न का खजाना । उसकी जगह मैंने उन्हें पाठकों से कहानियां मांगते देखा। मैंने अपनी कहानी का आईडिया उस  मंच पर शेयर किया। वो कहानी उस तस्वीरों वाले उपन्यास ( यानी Graphic Novel) से प्रेरित थी जिसपर मैं काम कर रहा था। उस उस वक़्त मैं रिसर्च में बुरी तरह से लगा हुआ था: तरबेला डैम, अफ़ग़ानिस्तान, सीमावर्ती क़बीले वग़ैरह। इसलिए जो कहानी मैंने लिखी, वो ये थी : USA की ओर से ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए सविता भाभी अफ़ग़ानिस्तान जाती हैं। वो उसे छिपने की जगह से फुसलाकर बाहर लाती हैं और उससे सेक्स लगातार करती रहती है, जबतक कि वो थककर समर्पण के लिए तैयार नहीं हो जाता।   मैंने सविता भाभी के लिए एक कहानी लिखने का क्यों सोचा ? देखिये, मुझे मस्ती पसंद है  और मैं हंसी-मौज-मस्ती में अपने काम के ज़रिये शामिल होना चाहता हूँ । मैंने सविता भाभी में कुछ ऐसा मज़ेदार, कुछ ऐसा नटखटपन देखा l जो मैं लिख सकता था. मैं अजीबोगरीब प्लाट लिख सकता हूँ l शायद बेहतरीन न हो, पर लिख तो मैं सकता हूँ l अगले दिन मुझे ‘देशमुख’ (SB के मालिक का उपनाम) की ओर से एक ई-मेल मिला। उन्हें मेरी कहानी पसंद आयी और वो चाहते थे कि मैं इसे और आगे बढ़ाऊँ। हालाँकि, उनहोंने ये राय दी कि हम उसका लोकेशन बदलकर शिमला कर दें और वो ओसामा की जगह किसी डकैत को रख लें। मैं इससे सहमत था। उन्होंने मुझसे कहानी का एक कच्चा प्लॉट उनको भेजने को कहा और कहा कि बाक़ी वो संभाल लेंगे। मैंने अपना काम किया औरउन्होंने  अपना और ‘सविता इन शिमला (Savita In Shimla)’ जल्दी ही बाज़ार में आ गया।  और तब मैं बाहर निकला, अपने को सुपर महसूस करते हुए जैसे कि कोई अदृश्य 26 जनवरी परेड चालू हो। उसके तुरंत बाद ही, मैं अपने जिगरी अधिराज सिंह और रैंडम  मैगज़ीन (जो आजकल कॉमिक कॉन के नाम से मशहूर है)  के स्टाफ़ के पास उछल कर पहुँचा। मैंने क्या धौंस जमाई। बड़ी संतुष्टि मिली। मैं खुद तस्वीरें बनाता हूँ - उस वजह से भी मुझे SB के चित्र पसंद आये। वो बहुत अच्छे से चित्रित और रंगों भरे थे। मैं कभी भी शरीर की रचना को लेकर लकीर का फ़कीर नहीं  रहा हूँ, जो कहे कि तीसरे कोण से पांचवें दृष्टिकोण और पता नहीं क्या-क्या दोस्तों। मैं बस चित्र उतारता हूँ, ठीक दिखे तो बढ़िया। इसलिए मैं ख़ुश था।  कुछ हफ़्तों बाद, मैंने एक और आईडिया का सुझाव दिया और देशमुख ने जवाब दिया। इस बार मैं अपनी रचनात्नकता को पूरी तरह उजागर करने वाला था - सविता घर पर नहीं बल्कि अपने मायके गयी होगी। उसका पति अशोक घर पर अकेला होगा। उसके घर पर केबलवाला, दूधवाला वगैरह-वगैरह आयेंगे और उनमें से कोई भी अशोक से अपने काम के पैसे नहीं लेंगे। उनके फ़्लैशबैक में सविता भाभी के साथ उनके दृश्य होंगे। अशोक द्वारा सविता को बेहतरीन तरीक़े से घर सँभालने की बधाई देते हुए कहानी का अंत होगा।   इस बार भी, देशमुख ने ख़ुद ही कहानी को संवादित किया और पोर्न को लिखा। मैंने भी पोर्न लिखा था, पर उसने मुझसे कहा कि “सेक्स का सीन लिखने  का मतलब ये नहीं किस बस कभी आह तो कभी ऊह लिख दो और काम ख़तम” जिसपर मैंने सोचा और उसकी बात को सही पाया। और मुझे अपने आबाद तोबड प्लाट लिखने का शौक ज़्यादा था, सेक्स के सीन लिखने का उतना मन नहीं था। मैं हमेशा जल्दबाज़ी में रहता हूँ और कामुक सीन  में जल्दबाज़ी बुरी है।   इसलिए, जितना मैं सबसे बेहतर जानता था मैं उतने पर ही टिका रहा - मैं मैं बस स्टोरीलाइन लिख डालता था ।  लेकिन मैंने उससे अपने नाम को श्रेय देने को कहा - यानी मेरे नाम को कवर पर छापने को कहा। उसने  आम तौर पर कोई अपना असली नाम नहीं देता, हर कोई छैला उपनाम रखता है जैसे FunkY@bb | मैं ये समझ ही नहीं पाया कि वो ऐसा क्यों करते हैं, शायद शर्म की वजह से।   पता नहीं ये सब कैसे शुरू हुआ, लेकिन मैं समझ नहीं पाता हूँ कि लोग  ऐसी कूल चीज़ पर अपना नाम क्यों नहीं देना चाहते ? या फिर वो उसे कूल नहीं समझते होंगे ? या कि वो हिंदुस्तानी नहीं होंगे ? या हो सकता है कि वो हिंदुस्तानी हों और ये जानते हों कि उनके चाचा इसे पढ़ते होंगे ? पता नहीं।  लेकिन हाँ, मुझे मेरा पूरा श्रेय/credit मिला, और इसपर मुझे नाज़ है। मेरी रिश्तेदारी में कोई में कोई इसकी बराबरी नहीं कर सकता।  देशमुख ने बाद में मुझसे तीसरी बार किसी नयी कॉमिक सीरीज़ के लिए लिखने को कहा, जिसकी वो प्लानिंग कर रहे थे और इस बार वो (मैं कभी इस यक़ीन पर नहीं पहुंचा कि वो मर्द है या औरत) मुझे इसके पैसे देने को तैयार थे। वो चाहते थे कि मैं किसी ऐसी कम्पनी के साथ एग्रीमेंट करूँ, जो आइल ऑफ़ मैन (Isle Of Man) में स्थापित थी। ये इंग्लैंड और आयरलैंड के बीच का कोई आइलैंड है। मैं तैयार हो गया और कहानी लिखी। हालाँकि जब वो समाप्त हुई, मैं जीवन की दूसरी चीज़ों में खो गया और मुझे उसका मेहनताना कभी नहीं मिला।   तब दूसरी बातें हुईं। 2011 में, मैंने अपना पहला ग्राफ़िक नॉवेल पूरा किया, दी इच यू कांट स्क्रैच (The Itch You Can’t Scratch), और एक झक में मैंने और प्रकाशक ने पीछे में एक परिचय लिखना तय किया - “सविता भाभी के लिए लिखने के बाद... ” | इस छोटी-सी, असरदार करतूत ने मुझे सनसनी फैलाना, पत्रकारिता करना,  निति-विद्या, PR, सभी कुछ सीखा दिया। जब मेरी क़िताब को भारी लोकप्रियता मिली और उसपर लिखे गए पहले लेख ने मुझे सविता भाभी को रचने वाला कहा, देशमुख बौखला गए। मैंने रिपोर्टर को इस बारे में लिखा पर उसने वो वाक्य सही नहीं किया।    इस सब में मेरे माता पिता ने चुप्पी साधी । शायद वो जानते थे या शायद नहीं। मेरा ग्राफ़िक उपन्यास मेरे जीवन और मेरे परिवार के बारे में था। उसमें ग़रीबी को ईमानदारी से बताया गया था जो मेरी बहनों को बुरा लगा। मेरा मतलब है कि मेरा अपने परिवार की ग़रीबी को ईमानदारी से दर्शाना उन्हें पसंद नहीं आया। एक दलित परिवार की ग़रीबी, मेरे पिता के भाईयों की कहानी, जिन्हें ग़रीबी निगल गयी। अब एक उच्च माध्यम वर्गीय परिवार का (मेरे पिता और आरक्षणों को धन्यवाद् देते हुए) होने के नाते मेरी बहनें वो सब छिपाने की कोशिश करती हैं। उन्हें मुझपर शर्म महसूस हुई कि मैंने उसे इस तरह लिखा जिसे दुनिया पढ़ेगी। मेरी सबसे बड़ी बहन ने उस क़िताब से अपनी नाराज़गी मुझे बताई। मेरी बड़ी बहन ने तो कुछ समय के लिए मुझसे बात करना भी बंद कर दिया। हाँ, सविता भाभी के बारे में उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। मेरी सबसे बड़ी बहन ने एक बार मुझसे इसका ज़िक़्र किया और बाद में हंसी भी थी - “और तू एक तो अजीब अजीब चीज़ें  कर ही चुका है… क्या भाभी वग़ैरह” और तब वो हँस पड़ी।. मेरे सारे रिश्तेदार इतने कूल नहीं थे l मेरे मामाओं में से एक ने “ऐसी बुरी चीज़ें करने” पर मुझे एक सुनहरा भाषण दिया, कि वो कभी सोच भी नहीं सकते थे कि मैं ऐसा लड़का निकलूँगा, यूं तो मैं बड़ा 'नार्मल' दीखता था । और मैंने इन शर्मनाक चीज़ों को जनता तक पहुंचाया  lमुझे अपने जीवन के इन पापों को धोने में बड़ी मेहनत करनी होगी और पता नहीं क्या क्या।   इन सारी चीज़ों के बाद, मैंने अभी भी मानता हूँ कि सविता भाभी एक ज़ोरदार चरित्र था। बेशक़ वो एक धधकती ज्वालामुखी है - उसकी जो बात मुझे उसकी ओर खींचती है, वो उस के रोम रोम का देसीपना है l वो भी एक ऐसे  क्षेत्र में जहाँ एडल्ट वेबसाइट पर भारतीय सबसे ज़्यादा जाते तो हैं, पर हम अभी भी पर हम खुद ज़्यादा एडल्ट कंटेंट नहीं बनाते। साथ ही, वो करैक्टर मेरे अंदर के उस किशोर को लुभाता है, जो खुबसूरत उम्रदराज़ औरतों के सामने लार टपकाता है। उस करैक्टर को टटोल फटोल कर मैं कुछ नहीं कहना चाहता। उसमें कुछ भी सीखना नहीं है दोस्त, ये पूरी तरह बस एक नटखटपना है। बस यही है। हमको हर एक चीज़ का चीर-फाड़ क्यों करना है ? रोटी खा के सो जाओ यार। मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता कि वो करैक्टर औरतों को कैसे स्वतंत्र करता है, वगैरह। मुझे नहीं लगता कि औरतों को किसी ऐसे करैक्टर की ज़रुरत है। वो स्वतंत्र हैं, वो ख़ुद को स्वतंत्र बनाती हैं। वो तो व्यक्ति है जो ये चीज़ें करता है। किसी व्यक्ति को किसी कल्पित करैक्टर से अचानक कुछ एक्स्ट्रा प्रेरणा मिल जाए, तो बढ़िया, ये तो चांस की बात है। मेरी समझ से चीर-फाड़ सिर्फ़ एक बेकार की बहस है, जो ज़रूरी समय को नष्ट करता है।  ऐसा ज़रूरी समय, जिसमें हम कुछ काम कर सकते हैं, छोटे लाभदायक काम जो बदलाव की शुरुआत करें। ना कि ढाई अक्षर लिखे गए, तो वहीं बकर बकर करने लगे। वो किताबों के डिज़ाइन बनाते वक्त जो अकड़ बकड कुछ भी शब्द दाल देते हैं न डिज़ाइन देखने के लिए, वैसे ही । आय हाय! लो मुझसे भी लिखवा लिया दुनिया ने पैराग्राफ। ज़हर कहाँ है ?  हो सकता है बहुत सारे लोग सविता भाभी को पसंद करने का दवा करते  इसलिए करते हैं क्यूंकि ऐसा करना कूल होता है, जैसे गंदा  (Gunda) देखना कूल होता है। लेकिन मैं ये मानता हूँ कि वो वो करैक्टर इतनी कामयाब इसलिए हुई क्यूंकि वो लोगों को अपने साथ जोड़ सकी । वो जो एक छिपी हुई फैंटेसी होती है न, एक 'हॉट' भाभी के लिए, इस करैक्टर ने उसे रूप दिया l पर इसे ज़रा सा मज़ेदार रखते हुए, मस्तराम के सुर में सुर मिलाते हुए (मस्तराम चीप किस्म का सेक्सी साहित्य है, जिसपर एक फिल्म भी आधारित है) |  मेरा मतलब है, सविता के ट्यूशन देने की कहानी को लीजिए - मतलब कि एक साधारण सी बात जो कहीं भी हो सकती है, उसे लिया गया और उसे थोड़ा नटखट बना दिया गया। अब वो कहानी तो हर उस किशोर लड़के के दिमाग़ में है, जो ट्यूश लेने जाता है। फर्क यही है कि किसी ने इसे लिख डाला है । मैं ख़ुशी-ख़ुशी  दोबारा लिखना चाहूंगा।      सुमित कुमार एक कार्टूनिस्ट हैं जो नई दिल्ली में रहते हैं। उनके पहले चित्रित उपन्यास (Graphic Novel) “The Itch You Can’t Scratch ”नेको मुख्या धारा के बाहर, एक ज़बरदस्त फोल्लोविंग मिली l Newslaundry के लिए लिखे उनके राजनीति के कॉमिक्स ने  मुख्याधारा में अपना सिक्का जमाया, जिसने उन्हें अपने दूसरे उपन्यास “आमार बाड़ी तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी” लिखने को प्रेरित किया l ये किताब व्यंग का इस्तेमाल करके नक्सल संघर्ष की कहानी बताती है। पैसों के बदले इन्होंने कई कंपनियों के लिए कॉमिक और कार्टून भी बनाए हैं।  दिल्ली में रहते हैं और अपने वेबकॉमिक बकरमैक्स के लिए कॉमिक्स बनाते हैं। आम तौर पर ये अपनी बात ऐसे नहीं बताते जैसे किसी और की कहानी बता रहें हों ।   
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