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दिल की बातें कही नहीं जाते: सलीम किदवई और बेगम अख्तर की दोस्ती

Q: बेग़म अख्तर आपकी ज़िन्दगी का हिस्सा कब बनी?

A: वो मेरी फॅमिली को जानती थी| जहाँ  तक मुझे याद है मेरे दादाजी ने उनकी अम्मीकी किसी प्रॉपर्टी केस के चलते मदद की थी| वो उनकी और उनके शौहर मिस्टर अब्बासी की बहुत इज़्ज़त करते थे| मेरे अब्बू ने उनकी भतीजी को अपने ही ऑफिस में जॉब भी लगवाई थी| इसलिए बेग़म अख्तर का ज़िक्र होना आम बात थी| मेरे अब्बू दिल के मरीज़ थे|और साथ में डायबिटीज़ भी थी| इसलिए उनको एक सख्त डाइट का ख़्याल करना पड़ता था| वो उनको बहुत मानती थी| वो अपनी भतीजी के हाथों को मीठा भेजती थी| इस बात की ख़बर मेरी अम्मी को पड़ती थी और वो कहती, “तो चाची फ़िर  से उनको मीठा भेज दिया| और फ़िर एक आवाज़ थी रेडियो पर जिसे हमने बचपन में कई बार सूना पर कभी ध्यान नहीं दिया| मुझे सिर्फ़  एक ही ग़ज़ल याद है - ए मोहब्बत, जो रेडियो में हमेशा बजता था|

उस समय मैं फ़िल्मी गानों के अलावा कोई और गाने नहीं सुनता था| फ़िर  १९६७ में मैं पढ़ने के लिए दिल्ली शिफ़्ट  हो  गया| किसी ने बताया की वो सप्रू हाउस में परफॉर्म कर रही हैं और मुझे अपने साथ ले गए| वहाँ मैंने उसको पहली बार गाते हुए सुना| और क्या एक्सपीरियंस था वो| उनको स्टेज पे परफॉर्म और आवाज़ सुनने का अनुभव ही अलग था| उनकी आवाज़ में  जादू था| और उनको स्टेज पर देख मुझ जैसे सत्रह साल का लड़का भी मंत्रमुघ्ध हो गया था | हॉर्मोनियम के साथ स्पॉटलाइट में उनकी नाक की हीरे की नथ उनकी मुस्कराहट के साथ शाम को और भी नशीन बना रही थी|

जिस तरह वो अपने नोट्स को सभांल  कर इस्तेमाल कर रहीं थी, जिस तरह वो अपने गाने से लोगों को मंत्र मुग्ध किया हुआ था, मानों ऐसा लग रहा था कि  वो वहाँ मौजूद सब दर्शकों के लिए प्राइवेट परफॉर्म कर रहीं थी| बीच बीच में वो उनसे बात भी करतीं| यहां बैठिये, वहाँ बैठिये, आइये आइये, कहाँ थे आप?



Q:  तब आप कह सकते हैं कि  आप दोनों दोस्त बन गए? या आप दोनों के बीच कुछ और भी था?

A: मैंने उनको सुना, फ़िर से सुना| जब मैं लखनऊ वापस आया तो मैंने अपने अब्बू को बताया कि  मैंने उनके कॉन्सर्ट कितना एन्जॉय किया| उन्होंने ज़िद कि मैं उन्हें बेग़म अख्तर से मिलाने ले जाऊँ| जब वो एक दुसरे से बात करने में मशगूल थे तो मैं चुपचाप बैठा उनकी बात सुन रहा था| मैंने नोटिस किया की वो कितना स्मोक करती हैं - बिना फ़िल्टर के सिगरेट| अब्बू ने उन्हें बताया कि  मैं उनका शो देखने गया था| “मुझे मिलने क्यों नहीं आये शो के बाद?” उन्होंने मुझे पूछा| मैं चुप रहा| उन्हें नहीं बता पाया कि  शो के बाद कितने लोगों की भीड़ उनसे मिलने बैकस्टेज जाती थी|  उन्होंने बताया कि  वो दिल्ली में दुबारा कहाँ परफॉर्म करने वालीं है| और कहाँ रहेंगी और मुझे उनसे मिलने आने के लिए कहा| जब मैं उनसे मिलने गया तो उन्होंने मुझे तुरंत पहचान लिया| “आओ आओ बैठो, इतनी क्या जल्दी है| क्या पियोगे? चाय या कुछ ठंडा?” उन्होंने रूम सर्विस को फ़ोन किया और मेरे लिए कोक आर्डर किया| वो मुझसे बहुत अच्छे से पेश आईं और पूछा कि क्या शो देखने कल आऊंगा? जब मैंने हाँ कहाँ तो उन्होंने कहा, “तुम पहले यहाँ आना| हम साथ में जाएंगे|” वो इतनी मनमोहक महिला थीं कि  मेरा दिल उन्हें छोड़ने  रहा था| जब  मैं उनसे  बात  करता  था तब भी| उनसे काफ़ी  लोग  मिलने आते थे| कई जाने माने संगीत के  उस्ताद , प्रसिद्द कवि| यहाँ तक की फिल्म स्टार्स भी| मैं जल्द ही ग़ुफ़्तगू के दौरान कोने में बैठा शांत लड़का बन गया| जो उनकी बातें सुनता रहता था| जैसे जैसे उनके दिल में लिए जगह बनती गयी मैं और रिलैक्स होता गया| मैं अक्सर उनसे मिलने वाले इम्पोर्टेन्ट लोगों के बारे में पूछता| और वो उनके बारे में रोचक बातें बताती| प्यारे प्यारे गॉसिप भी| मुझे याद है जब नर्गिस उनसे मिल कर गयीं तो उन्होंने उनकी मशहूर गायिका अम्मी  जद्दन बाई के बारे में कई बातें बताई|   



Q: इस दोस्ती को आप किस तरह समझायेंगे?

A: फ्रेंडशिप क्या ये तो हीरो वरशिप थी| ऐसा लगता था कि  उनकी रौशनी मेरे ऊपर हमेशा रौशन रहती थी| और उन्हें अपनी तारीफ़ सुनना पसंद था| उन्हें मेरे अलावा एक और यंग मर्द से तारीफ़ें सुनना पसंद था| आघा अली नाम के कवि का| वो हमारे साथ दोस्त की तरह पेश आती थीं| देखो, हम दोनों में उम्र का अंतर तो था ही|  मेरे ख़्याल से उनको दो कम उम्र के लड़कों से मिलने वाली इतनी इज़्ज़त बहुत इम्पोर्टेन्ट थी| क्योंकि उनके इतने प्रशंसकों में ज़्यादा उम्र के लोग ज्यादा थी| पर दो लोग को जानना जो दूसरे तरीके के संगीत में इंटरेस्ट रखते थे, अलग तरीके से अपना खाली समय बिताना जानते थे और जो उनके प्रशंसक थे, बेग़म अख़्तर को काफ़ी  पसंद था| हम दोनों उनसे मिलने वाले बाकी लोगों से बिलकुल अलग थे|

शाहिद और मैं उनके साथ हर जगह जाते थे| वो कहतीं, “ ओह मुझे यहाँ परफॉर्म करने को बुलाया गया है| तो तुम भी मेरे साथ चलो|” तो हम भी उनके साथ कई  स्पेशल कॉन्सर्ट चले जाते थे|   मैंने एक बारी उनको मना भी किया। ये कह कर कि कहीं लोग हमें उनका चमचा ना बुलाने लगे। जो उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ते। उन्हें चमचे कस मतलब नहीं समझा। जब समझाया तो उनकी हंसी छूट गयी। उसके बाद तो हमारी टांग खींचने के लिये चमचा बुलातीं। मैंने उनके आने के प्रोग्राम का कैलेंडर भी बनाया था। जैसे वो अगले महीने की सांतवी तारीख को आने वाली थीं, फ़िर बीसवीं को। तो हम तारीख दर तारीख ज़िन्दगी जीते।  क्योंकि हम जब भी मिलते बस मज़े करते।

मुझे उनकी ये बदमाशियाँ पसंद थी। उनकी ये अदा बाकी लोगों से अलग थी। वो जानती थीं कि मैं स्मोक करता हूँ। और सिगरेट पीने रूम से बाहर जाता हूँ। उन्होंने ज़िद करना शुरू किया कि मैं उनके सामने स्मोक करूं। मुझे याद है कि लखनऊ में ईद के दिन मैं अपने अब्बा के साथ उनसे मिलने गया था। वो आकर मेरे सामने खड़ी हो गईं। अब्बू के नज़रों से बचाकर उन्होंने हाथ पीछे किया। और अपनी जलती हुई सिगरेट मुझे ऑफऱ की। हाथ से पियो पियो पियो का इशारे करते हैं। आखिर में उनके हाथ से मुझे  कैप्सटन लेकर एक कश ले लिया। जो अगर अब्बू एक ही रूम में होते तो मैं कभी कोशिश भी नहीं करता। पर उसने मुझे उकसाया तो मुझे अब्बू के सामने सिगरेट पीना ही पड़ा। उन्होंने इस मिलीभगत वाली बदमाशी का ख़ूब मज़ा लिया।

एक बार मेरे अब्बू को दिल का दौरा पड़ा था। वो मेडिकल कॉलेज में दाख़िल थे। वो हमसे मिलने आईं। उन्होंने मुझे अब्बू के बगल में स्टूल पर बैठे देखा। जहाँ मरीज़ के बगल में बैठने वाले लिए होता है। जब वो वापस गयीं तो उन्होंने जो पहली चीज़ कि वो थी फोल्डिंग चेयर। स्टूल पर नहीं इस पर बैठो। तो उन्होंने मुझे भी बहुत प्यार दिखाया। एक्स्ट्रा स्पेशल प्यार।



Q: हो सकता है वो तुम्हारे साथ इसलिए इतनी खुल कर रहती थीं क्योंकि तुम दोनों गे थे?

A: ये उनको नहीं पता था। शायद उनको पता था पर उससे ज़्यादा उनके लिए ज़रूरी था ये दो लोग। जो उनके प्यार में अंधे थे।

 

Q: गे मर्दों के बीच तो वो काफ़ी लोकप्रिय रही होंगी, क्यों? शायद अभी भी हैं। पता नहीं शायद ये कहना सही है - हा हा।

A: ओह हाँ, उस टाइम मैं जिन गे मर्दों को जानता था वो सब उनके संगीत के दीवाने थे। उनके गीत ज़्यादातर दिल टूटने और जुदाई के बारे में होती थीं। जो गे मर्दों के दिल के करीब थे। पता नहीं इस जनरेशन के साथ कैसे होता है पर हमारे जनरेशन में तो ऐसा ही होता था। आपको किसी के साथ भी प्यार हो सकता था। वो स्ट्रेट मर्द भी हो सकता था। जो हमें जानता भी नहीं और वो फ़ीलिंग भी नहीं थीं। गे मर्दों में प्यार में होने का दर्द पता होता है। इसलिए मीना कुमारी भी गे लोगों के बीच फ़ेमस थीं। वो दर्द झेल रही हैं, उनका दिल टूट चुका है और आंसू के कफ़न पर मौत की आग़ोश में जाने को तैयार हैं। शराब में अपने ग़म को डुबोये हुए। वो और अख़्तर दोनों।

 

Q: आप जब भी बेग़म अख्तर से जुड़ी यादों की बात करते हैं तो शाहिद का ज़िक्र हमेशा होता है। कैसा कनेक्शन था आपका और बेग़म अख्तर का उसके साथ?

A:  जब बेग़म अख्तर से शुरु शुरू में मिलने जाता था उसी दौरान मेरी और शाहिद की दोस्ती हो गयी थी। उसके लिए बेग़म अख़्तर से मिलने का मैं ही एक ज़रिया था। इसलिए उसने भी मुझसे दोस्ती के पौधे को आराम से सींचा। पर एक बार वो शुरुआती दौर गुज़र गया तो हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए। बेग़म अख़्तर के लिये हमारा प्यार हमें करीब लाया। उनके जाने के बाद फ़िर उनकी याद ने हमें जोड़े रखा।आपने वो शायरी पढ़ी जो शाहिद ने उनके लिए लिखी थी। जिस दिन हमने उन्हें दफ़नाया था उसी रात से उसने वो लिखना शुरू कर दिया था। हमारी किस्मत थी कि इस दुःख को बांटने में  हम दोनों साथ थे| आप जिसे प्यार करते हैं उसका शोक कैसे मनायें? उनके बारे में हर एक चीज़ इक्कट्ठा कर के| हमने उनके बारे में जो भी चीज़ें मिलीं, छोटी सी छोटी, हमने उन्हें इक्कट्ठा किया| फ़िर शाहिद अमेरिका चला गया| मैं यहां से बेग़म अख़्तर के बारे में कोई भी किताब छपती मैं इनकी दो कॉपी खरीदता और एक उसे भेजता| अगर उसे वहाँ कुछ मिलता तो वो उसकी एक कॉपी बनाता और मैं एक कॉपी बनाता| उनके बारे में जो मिल सकता वो सब हमने इक्कट्ठा किया|

मतलब ये सारे फोटोज़, पेपर कट्टिंग्स, हवा में ही मेरे घर में नहीं आ गए| मैं हर दिन रास्ते में किताब की दूकान पर जाता| और वहाँ जिस किताब में भी उनके बारे में छपा होता मैं खरीद लेता| फ़िर उसकी चार पाँच कय खरीदता|ये रोज़ का काम था| ये मेरे शोक मनाने का तरीका था, अगर उनके बारे में कुछ भी लिखा हुआ नहीं मिला तो मैं उनके लिए सही से शोक ज़ाहिर नहीं कर पाता|



Q: उस वक़्त आप स्टूडेंट थे, इस रिलेशनशिप का  आपके करियर पर क्या असर हुआ था?

A: हाँ उस वक़्त मैं यंग और अलग इंसान था| कॉलेज जाने वाला डरपोक, शर्मीला लड़का था| जो लोगों के सामने बात नहीं कर सकता| उनकी कला का मुझ पर काफ़ी  अलग तरीके से प्रभाव पड़ा था| बेग़म  अख़्तर के आखिरी तीन साल में हमने  बज़्म-ए -रूह-ए - ग़ज़ल नाम के  आर्गेनाइजेशन की स्थापना की थी| जो उनके लिए प्रोग्राम्स का आयोजन करता था| विज्ञापन से होने वाली साड़ी कमाई हम उनको दे देते थे| जो उनके लिए  प्रोग्राम से मिलने वाली रकम से कहीं ज़्यादा होती थी| मैं उस समय पढ़ाता भी था| मैं अपना समय कनॉट प्लेस में प्रोग्राम्स के लिए विज्ञापन जुटाने के बजाये मैं पी एच. डी कर सकता था| मेरे करियर से ज़्यादा मैं उनकी चिंता करने लगा था|      

 

Q: क्या आप उनके बारे में लिखेंगे?

A: देखिये, उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है | और वहीं बातें  बोल रहे हैं|  जिनमें से कुछ बातें सच भी नहीं थी| जैसे, शादी के बाद उनके शौहर ने उन्हें गाने से मना कर दिया था? क्या बचकानी बात थी| उनके शौहर उनसे बहुत प्यार करते थे| वो उन्हें कभी गाने के लिए ना नहीं बोल सकते थे| पर बात ये है कि  जब वो कोठा छोड़ एक इज़्ज़तदार घर में गयीं तब उन्होंने निर्णय लिया कि वो पब्लिक में परफॉर्म करना पहले से कम कर देंगी| उस समय के लिए के राजनैतिक बयान था| ऐसा नहीं कि उन्होंने गाना ही छोड़ दिया था| जब भी उनके शौहर किसी को दावत पर बुलाते थे वो ज़रूर गाती| और अपने दोस्तों के लिए भी| म्यूजिक इंडस्ट्री लेजेंड्स, काल्पनिक कहानियों और लोगों के ‘पुनर्जन्म’ पर चलती है|

मेरे पास उनके कई सारे इंटरव्यू हैं| जिन्होंने मुझे उनके गुज़र जाने के दुःख से उबरने में मदद की थी| जो लोग उनको जानते थे मैं उनसे बात करता था| मैं उनके बारे में जानकारी इक्कट्ठा कर रहा था| मैं इतिहासकार बन कर  उनके बारे में लिखना चाहता हूँ |  वो एक आत्मकथा होनी चाहिए, जिसे जब लोग पढ़ें और बोलेन, ‘ये होती है आत्मकथा|’ पर मैं नहीं कर सकता| क्योंकि ऐसा करना उनको दगा देना होता| जितना समय भी मैंने उनके साथ बिताया उनके बारे में मैंने कई चीज़ें जानी| उनकी लाइफ में कई ऐसी चीज़ें थीं जो वो छुपाना चाहती थीं| और मैं यहां उनके रोमांटिक या सेक्स लाइफ के बारे में बात नहीं कर रहा था| वो किसी से नहीं छुपे थे| उनकी ज़िन्दगी में एक औरत से जुड़ी  हुई कई और निज़ी शिकायतें भी थी| अगर कोई भी सीसी अपनसे से सच्चा प्यार करता है तो वो उनके बारे में बातें नहीं लिखेगा जो उनकी मर्ज़ी के खिलाफ हों| उनका म्यूजिक और रिकार्ड्स अभी भी  ज़िंदा हैं| और हमेशा रहेंगे|  



Q: आप उनको अपनी यादों में किस तरह ज़िंदा रखते हैं? क्या कुछ बदला है जिस तरह आप उन्हें याद रखते हैं?  

A: जिस तरह समय के साथ लोग बदलते हैं उनकी यादें भी बदल गयीं| अब मैं उनसे जुड़ी  हर न्यूज़ की कटिंग नहीं इक्कट्ठा करता हूँ| उस समय मुझे उसकी बहुत ज़रुरत थी| देखिये, मैं लोगों की कब्र पर आसानी से नहीं जाता हूँ| मुझे खुद याद नहीं कब मैं अपने अब्बू अम्मी के कब्र पर गया था| पर बेग़म  अख़्तर की कब्र मेरे लिए ख़ास थी| इसलिते भी क्योंकि वो एक उनकी आखिरी असली जगह थी जहां मैं उनके साथ समय बिता सकता था| जैसे जब औलिया गुज़र जाते हैं तो हम उनकी याद में दरगाह क्यों बनाते हैं? उनकी रूह की रौशनी उनकी जगह को रौसगं रखती है| और जिस बुरी हालत  में उनकी कब्र थी वो मुझे बहुत परेशान करती थी| मेरे अलावा उनकी सबसे उम्रदराज़ फैन शान्ति हीरानंद को भी उनके कब्र की स्थिति परेशान करती थी| वो इतनी बड़ी शख्सियत थीं और लखनऊ में उनके नाम का क्या बचा था? इसलिए जब मैं लखनऊ वापस आया तो मेरा एक ही मकसद था| किसी तरह उनके नाम और उनकी जगह को उनके नाम के लायक हो| मैंने और शानित आपा ने जितना भी उनके लिए किया, कहूँ तो जितना भी उन्होंने मेरे लिए किया था  वो आखिरी चीज़ थी जो मैं उनके लिए कर सकता था| जिन जिन तरीकों से उन्होंने मेरी ज़िन्दगी बदल दी  थी मैं गईं भी नहीं सकता था| उनकी कब्र को सुन्दर बनाना - माना उनकी हैसियत के मुताबिक़ नहीं था पर हम दोनों ले लिए ये शर्माने के बात नहीं थी|

 

Q: वो लोगों की यादों में अभी भी ज़िंदा हैं| सिर्फ़ लखनऊ में ही नहीं पर उसके आगे भी| आपने उनकी कला को बहुत करीब से देखा है| और आपकी ज़िदगी को भी बदला है| आपको क्या लगता है वो इतनी बड़ी हस्ती क्यों थी और अभी भी क्यों हैं? शायद अम्मी में कुछ था जो अभी भी बाकी है?

A: कुछ लोग बोलते हैं वो अपने ज़माने की सबसे बड़ी गायिका थीं|पअऋ मुझे उसके बारे में नहीं पता था| उनके नाम एक छोटी सी ज़मीन थी| उनकी गायिकी में ज़्यादा रेंज नहीं थी पर वो जो भी जाती थीं वो पेरफ़ेक्ट था| तब भी उनके ज़माने के बाकी गायकों के मुकाबले वो ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट क्यों थी? मेरे ख्याल से क्योंकि वो जो भी शायरी सुनाती थीं वो लोगों को आसानी से समझ आती थी| उनकी गायिकी में संगीत था, रागदारी थी और जिन लोगों ने संगीत सीखा था वो उनकी तारीफ़ भी करते थे| पर उनकी गायिकी के दीवाने वो भी थे जिन्हें संगीत की कोई जानकारी भी नहीं थी| वो उनकी शायरी सुनाने के अंदाज़ के कायल थे| खासतौर पर जो शायरी टूटे दिल और जुदाई के बारे में होती थी | उनसे बेहतर कोई नहीं कर सकता था |

लोगों से बात करके मुझे एहसास हुआ कि बेग़म अख़्तर का ख्याल रोमांस के बिना अधूरा है|  बिलकुल दिल फ़ेंक थीं आखिर तक| बहुत से लोग उनको अपना दिल दे देते थे| इस बात से वो खुद अकेले में रोती थीं| वो लोगों के लिए फ़ोन पर जाती थीं| सोचो ज़रा, फ़ोन पर उनका गाना सुनना, क्या किस्मत|  

थोड़ी देर से ही सही, पर जब मैं उनके साथ बैठता था, तब मैंने समझा रोमांस और टूटे दिल के साथ उनका क्या रिश्ता है| मेरी बात मनो, ये दिल की बातें करना, आसान नहीं होता|
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