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श्री पापा बेयर के अलबेले नौजवान

किसने कहा की चाहत की उम्र फिक्स होती है ?

मुझे थोड़ा धक्का सा लगा जब उसने यह बोला कि ‘सॉरी, पर मेरे लिए तुम उम्र में बहुत छोटे हो|’’  गे  डेटिंग एप, ग्राइंडर पर उससे लम्बी बातें करने के बाद उसे अपनी फ़ोटो व्हाट्सएप की थी| उसकी इस बात के बाद मैंने वापस उस फोटो को देखा| पकी हुई दाढ़ी और झड़ते हुए बालों के साथ मैं कहीं से भी यंग नहीं दिखता था| पर उसके लिए मैं यंग था | यह मेरी तारीफ़ नहीं, मेरे ऊपर तंज था| उसे झुर्रियों वाला आदमी चाहिए था | जितना बूढ़ा, उतना अच्छा| मैंने सोचा कि बूढ़े लोग किसको पसंद आते हैं? पर मुंबई के बाहर एक जूनियर कॉलेज में पढ़ाने वाले इस तीस-चालीस के गबरू, घनी मूँछों और मज़बूत कलाई वाले प्रोफेसर को बूढ़े लोग ही पसंद थे| तुमने जिनके साथ सेक्स किया, उनमें सबसे बूढ़े की उम्र क्या थी?’ ‘एट्टी फाइव’ उसने जवाब दिया| यानि पच्चासी!   इस तरह की पसंद रखने वालों से मेरी जान पहचान हाल में ही हुई थी| जवान मर्द, (लड़के नहीं, मर्द) ,जो अब घर बसाना चाहते थे, जिन्हें बुज़ुर्ग आदमी पसंद आते थे और जो उनको ही तलाशते थे| एक बार ग़ाज़ियाबाद में मेरी मुलाक़ात एक रईस, चौड़े कन्धों और लम्बी जाँघों वाले आदमी से हुई| उसने बताया कि उसे वो मर्द पसंद हैं जो उसके बाप जैसे दिखते हैं| ताकतवर, मूंछों वाले और जिनकी तोंद हो| मैंने उससे पूछा कि यह उसको थोड़ा गलत सा नहीं लगता, घर वालों के साथ ही मौजा टाइप? मज़ाक करने की मेरी यह कोशिश बेकार रही | मेरी इस बात पर उसे गुस्सा आया और उसने कहा,’मैं बस बता रहा हूँ कि मुझे किस टाइप के मर्द पसंद हैं| और ये भी कि  जिन मर्दों को मैं जानता हूँ, उनमें मेरे पिताजी ही सबसे हैंडसम हैं|’ यह सुनकर मुझे मेरी बेवकूफी का अंदाज़ा हुआ| यह चाहत उसके रोम रोम में यूं बसी हुई थी कि उसे ऐसे लोगों के अलावा और कोई पसंद न आता था| मैं कहीं से भी उसकी चाहतों की लिस्ट में फिट नहीं बैठता था | ना ही मेरी दाढ़ी थी और न ही लंबा चौड़ा था| हमें लगता है कि हम जानते हैं कि लोगों को क्या पसंद आता है| शायद मुझे ये लगता था कि मुझे पता है कि लोगों को क्या पसंद है| जवान, फिट बॉडी, गोरी त्वचा, सुडौल शरीर, दाढ़ी या सुन्दर चेहरा| मुझे भी यह सब आज भी अच्छा लगता है| लेकिन ज़रूरी नहीं है कि बाकी लोगों की भी यही लिस्ट हो| जिन लड़कों ने जवानी में मुझसे नज़र फेर ली,  उस ही तरह के लड़के मेरी ढलती उम्र के दीवाने बन गए हैं | सब नहीं, लेकिन ऐसे लोगों की काफ़ी संख्या थी| उन लोगों की प्रोफाइल में साफ़ साफ़ लिखा था: ‘अधेढ़ उम्र के मर्द ही पसंद हैं| चालीस के नीचे वाले कृपया दूर रहें|’ ऐसी दीवानगी इससे पहले देखी न थी कभी | बड़ा ताजुब्ब हुआ | पोर्न साइट्स में मैंने ऐसे वीडियो देखे जिनमें जवान मर्द अधेढ़ उम्र के मर्द साथ सेक्स कर रहे थे| और बिना सोचे समझे ही मैंने इनकी मन ही मन निंदा भी की –  ये देखो कैसे बेताब जवान मर्द हैं और साथ में ज़रुरत से ज़्यादा गर्म बूढे मर्द | जैसे मोटे लोगों का पोर्न| ऐसे वीडियो बनाने के ख़ास पैसे मिलते होंगे क्या| मैंने मन ही मन खुद को समझा लिया था कि ऐसा सेक्स कोई अपनी मर्ज़ी से तो नहीं करेगा| सबको जवान लोग ही पसंद होते हैं ना? सब लोग यही कहते हैं| ऐसा ही होना चाहिए| अधेड़ उम्र के मर्द जवान औरतों को अपना निशाना बनाते हैं| अधेड़ उम्र की महिलायें जवान औरतों पर हावी होती हैं | बूढ़े लोग जवान लोगों को ढूंढते रहते हैं| यही होता है न? मुझे हमेशा से पता था कि मैं गे हूँ| पर जवानी में किसी भी दूसरे गे मर्द के साथ मेरी जमी नहीं| उनके लिए मैं गंभीर था, उम्र के हिसाब से कुछ ज़्यादा ही समझदार: जैसे एक अधेड़ उम्र का आदमी जवान शरीर में कैद हो| ना उन्हें मैं पसंद आता था और ना ही वो मुझे| जो चीज़ें जवान लोग करते थे वो मुझे कभी अच्छी नहीं लगीं| ना शराब पसंद थी, ना पार्टी करने का शौक, ना तेज़ म्यूजिक, नाच गाना, शौपिंग या फिल्में देखना| मुझे वो सब पसंद था जो बड़ी उम्र के साथ जुड़ा होता है| पर मुझे बड़े उम्र के आदमी पसंद न थे| मुझे जवान बदन की चाह थी l और जवान आदमियों को मेरा जवान बदन नहीं रुझाता था l    मेरे गे फ्रेंड्स मुझसे करियर के बारे में और अपने दिल की बात शेयर करते| उनके लिए मैं बड़े भाई जैसा था| समझदार, सेक्स की मोह माया से दूर रहने वाला दोस्त| मुझे पहले भी और आज भी अपने शरीर को लेकर कॉन्फिडेंस नहीं रहा है| मुझे लगता था कि लोग मुझे मोटा होने के कारण नीची निगाहों से देखते हैं| बेडौल बदन, ऐसे टाइट कपड़े पहने जो मुझे फिट नहीं होते| और तो और, मैं इलास्टिक बैंड वाली पैंट भी  पहनता था| मुझे लगता था कि लोगों को मेरी चॉइस नापसंद है, साथ-साथ वो मुझे मेरी बॉडी की वजह से भी रिजेक्ट करते हैं | मैं इस युवा पीढ़ी का था ही नहीं| मुझे हमेशा ऐसा फ़ील होता था कि मैं सबके साथ जुड़ नहीं सकता, हमेशा पराया, ग्रुप के बाहर ही रह पाऊंगा| इसलिए भी मैंने अपने काम पर ज़्यादा ध्यान दिया| एक सीरियस अफेयर और दिल टूटने के बाद(‘तुम बहुत प्रैक्टिकल हो, नो फन”उसने ऐसा  कह कर मेरा दिल तोड़ दिया था) मैंने किसी को को डेट नहीं किया| मैंने अपने करियर पर ध्यान दिया और कॉर्पोरेट लाइफ की सीढियाँ चढ़ता गया| पैसे कमाए और पैसे देकर लड़कों के साथ सेक्स भी किया| यह वो जिज्ञासु जवान लड़के थे जो इन्टरनेट पर आसानी से मिल जाते थे| या किसी और नेटवर्क पर भी, एक छोटी सी फीस देकर| उनके लिए भी आसान था और मेरे लिए भी | वो आते थे, हम सेक्स करते थे, वो पैसे लेकर वापस चले जाते थे| कोई इमोशनल रिश्ता नहीं| ना कोई ड्रामा और ना ही ख़तरा| जिस चीज़ को पा न सको, उसके दर्द से कोसों दूर रहो|  इनमें से कुछ के साथ मेरी दोस्ती भी हो गयी| किसी भी समय मुझे ऐसा नहीं लगा कि उन्हें मेरे शरीर से प्यार है| सच तो ये था कि मैंने कभी अपने को ऐसा सोचने ही नहीं दिया l मैं उनके साथ अच्छे से पेश आता था| अगर वो मुझे दिल से त्योहारों पर बधाई देते थे तो मुझे लगता था कि उन्हें और पैसे चाहिए| जोकि अक्सर होता था| जब हम दोनों साथ होते थे तो उनका कामुक होना उनकी जवानी की निशानी होती थी| जब वो मेरे साथ सेक्स करने के लिए पोर्न देखना चाहते, वो भी औरतों वाला, तो मुझे अच्छा नहीं लगता था|  ऐसे लोगों को मैं वापस नहीं बुलाता था| मुझे वो लोग भी पसंद नहीं थे जो सेक्स के बाद बताते थे कि उनकी गर्लफ्रेंड है और मर्दों के साथ सेक्स करना बस  उनका एक शौक है| ये मेरे लिए उन्हें वापस ना बुलाने की सबसे बड़ी वजह होती थी| मैं  उन्हें पैसे देकर भेज देता| मुझे वो मर्द पसंद थे  जो कम बोलते थे| काम ज़्यादा करते थे और हवाबाजी कम करते थे| जैसे कि मैंने कहा, मैंने अपने दिल में यह ख्याल ही नहीं आने दिया कि उन्हें मेरी बॉडी भी पसंद आ सकती है|  मैं जितना कॉंफिडेंट कॉर्पोरेट जगत में था उतना ही चार दिवारी के अन्दर दब्बू था, बिल्कुल जीरो कॉन्फिडेंस| मैं अपनी लाइफ से खुश था| सिंगल मर्द वाली लाइफ| घर की रख रखाई के लिए स्टाफ था| सेक्स के लिए जवान मर्द| दिल की बात करने के लिए और सोशल लाइफ के लिए दोस्त थे ही| थोड़ा दिमागी कसरत करने के लिए भी एक अलग दोस्तों का ग्रुप था| मेरी लाइफ हिस्सों में अच्छे से बंटी हुई थी| सब सही चल रहा था| फिर एक दिन लॉकडाउन के दौरान आप यह सब मिस करने लगते हो| वेबिनार और वीडियो कॉल से तंग आ कर, ग्राइंडर पर ज़्यादा समय बिताने लगते हो|   खुद के स्वास्थ और सुरक्षा के लिए, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना पड़ रहा है और लोगों से मिल भी नहीं सकते हो| इसलिए अपनी इच्छाओं को शांत करने के लिए डिजिटल दुनिया का सहारा लेना पड़ रहा है| इसी दुनिया में घूमते घामते मुझे सेक्सुअलिटी के बगीचे में ये एक नयी क्यारी दिखी – जहाँ जवान मर्द अपने से उम्र में बड़े मर्दों को ढूंढते हैं | उनको उनमें अपने ‘डैडी’ दिखते हैं, जो उनका ख्याल रखेंगे| मैं गे मर्दों के अलग अलग टाइप से वाकिफ था l ट्विंक क्लब(जो जवान और छरहरे होते हैं, शरीर पर कोई बाल नहीं होता), स्ट्रेट  एक्टिंग क्लब ( वो जो विषमलैंगिक वाले हाव भाव रखते हैं), मसल क्लब(अपने बॉडी बिल्डर टाइप), शुगर डैडी(बड़ी उम्र के मर्द, आपके पिता के उम्र के), बेर क्लब(जिनके शरीर पर बाल ही बाल होते हैं और औटर क्लब(बेर क्लब से थोड़े कम बाल वाले मर्द)| इस तरह का बँटवारा डेटिंग एप्स में काफी कॉमन होता है| लोगों को मालूम होता है कि उन्हें क्या चाहिए| इन्टरनेट पर ऐसी जगह हैं, जो बड़ी तोंद और शरीर पर हद से ज़्यादा बाल वाले अधेड़ उम्र के मर्द को पसंद करने वालों के लिए ख़ास रची गयी हैं| उन मर्दों के लिए, जिन्हें चिकने, यंग लड़के पसंद नहीं आते| इसके अलावा और भी चॉइस होती हैं जो पोपुलर नहीं हैं| मुझे तो इस बात से ताजुब्ब हुआ कि कितने सारे ट्विंक्स और मसल्स वाले मर्द हैं जिनको बड़े शरीर वाले ‘बेअर्स’ पसंद हैं, जिन्हें देखते ही झप्पी देने और लेने का मन करता है| ये सब देख के मैं सोचता कि सांता क्लाउस और लाफिंग बुद्धा तो इन जवानों के शरीर में आग लगा देते होंगे|  यहाँ पर वो युवा मर्द थे, जिन्हें पता है कि उन्हें क्या चाहिए| उन्हें अधेड़ उम्र के मर्द पसंद थे| और इसमें वैरायटी भी थी| किसी को झुर्री वाले, छड़ी के सहारे वाले, फ़िल्मी दादाजी टाइप पसंद थे| किसी को फिट, मस्कुलर  अंकल टाइप| बहुतों को मूंछे अच्छी लगती थीं| कुछ लोगों को हिलती तोंद और हिलते डुलते बम्स पसंद थे| वहीँ कुछ लोगों को छाती भर के सफ़ेद बाल वाले पसंद थे| जिनके दामन के  ऊपर लेट कर  वो आराम से खुद को भुला सकें| बहुतों को तो बिल्कुल ही नार्मल बॉडी वाले पसंद थे| जो जिम नहीं जाते थे| साधारण डैडी टाइप बॉडी वाले, या फिर अपने इंडियन डैड टाइप बॉडी वाले l जब मैंने दाढ़ी बढ़ानी शुरू की, मेरी दुनिया बदल गयी| मैं हमेशा क्लीन शेव रहता था| थोड़ा सा मोटा क्यूट था और हमेशा खुश दिखता था| यह सोच कर कि खुश दिखने से मर्द मेरी ओर आकर्षित होंगे| जबकि ऐसा बहुत कम होता था| पर जब मैंने दाढ़ी बढ़ाई और वो पकनी शुरू हुई, तब ही मुझे मेरी डीमांड का अंदाज़ा हुआ| मैं खुद थोड़ा सरप्राइज हो गया था| लोग मेरे लुक्स की तारीफ़ करने लगे - औरत मर्द, दोनों| उस दाढ़ी ने ही ग्राइंडर पर मेरा भाव बढ़ा दिया | खासतौर पर इसलिए, कि मेरी दाढ़ी अधपकी सी थी| मैं भी अब ऑफिशियली एक ‘पापा बीअर’ था| ग्रिंडर तो अपनी पोर्न टॉक के लिए फेमस है। इसलिए जब मैंने वहां निर्मलता और रोमांस देखा, तो हैरान हुआ। वहां कई ऐसे लड़के थे जो बड़ी उम्र के मर्द से प्यार चाहते थे। उन्हें पैसे नहीं चाहिए थे। ना ही उनको बस एक बदन चाहिए था। उनकी इच्छाओं  में एक संपूर्णता थी जो सीमाओं को मिटा रही थी। उन्हें दोस्ती चाहिए थी। संरक्षण। चाहत। सहयोग। उन्हें प्यार में वैसा कुछ चाहिए था जैसा किसी छोटे की देखरेख करने वाला एक बड़ा देता है। यानी कि अभिभावक (parental) वाला प्यार। इसका सही शब्द शायद 'वात्सल्य' होगा। जिसमें श्रृंगार और माधुर्य, यानी सेक्स और रोमांस- दोनों हों। एक जवान और एक उम्र दराज़ मर्द के बीच का कोमल रिश्ता। जैसे कि उनमें से ही एक मर्द ने कहा था- 'निर्मल भाव’, जिसे कम लोग  मान और समझ पाते हैं। लॉकडाउन के दौरान मैं जिन-जिन लड़कों से ऑनलाइन मिला, वो सब मेरे से घंटों बातें करते थे। कभी अपने करियर, कभी अपने स्वभाव, तो कभी राजनीति के बारे में। मैं उनसे पूछा करता रहा, 'अपनी उम्र के दोस्त नहीं मिलते हैं तुमको?' तो वो बताते कि हाँ मिलते हैं, और उनके साथ वो PUBG खेलते हैं। लेकिन उससे वो संतुष्ट नहीं होते। उनको मेरे जैसे उम्रदराज़, दाढ़ी वाले मर्द ज्यादा पसंद आते थे। क्योंकि वो अपने साथ ढेर सारे अनुभव लाते थे। वे लोग 'गे सीनका हिस्सा नहीं थे। यानी यूं समझो कि वे पार्टियों में नहीं जाना चाहते थे। वे यंग समलैंगिक मर्दों से मिलना नहीं चाहते थे। उन्हें क्वीयर पॉलिटिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वो तो उससे बोर होते थे। कभी-कभी जब यंग लड़के उनपर लाइन मारते थे, तो वो उनपर हंस दिया करते थे। सच कहूँ,  इनमें से कुछ लड़के तो बहुत ही अच्छे दिखते हैं।  जिम जाते हैं। अपने शरीर को तराश के रखते हैं। बल्कि वो तो गे क्लब के पोस्टर बॉय भी बन सकते हैं। उन्हें पता था कि समलैंगिक दुनिया में उनकी बहुत एहमियत थी, लेकिन उनको उसमें दिलचस्पी नहीं थी। यंग लड़के उन्हें कभी आकर्षित कर ही नहीं पाए। उनका जिम जाना उम्रदराज़ मर्दों को लुभाने का हथकंडा नहीं था। वो इसलिए जाते थे क्योंकि उनको अपने शरीर से प्यार था। उन्हें सुंदर और आकर्षक दिखना पसंद था। ऐसे में मेरी शंकाएं लौट आती हैं। आखिर उनको मुझसे क्या चाहिए! उनको मेरी बॉडी में दिलचस्पी हो, ये तो मुमकिन नहीं।  आपने बॉलीवुड स्टार्स और सेलेब्रिटी-क्रिएटर्स को देखा होगा। वो हेयर डाई, फेस लिफ्ट्स, टमी टक्स, कीटो डाइट और इंस्टाग्राम पोस्ट्स के सहारे अपनी जवानी के सुनहरे समय को बरकरार रखना चाहते हैं। क्योंकि उनको बुढ़ापे से डर लगता है और वो उसे अपनाना ही नहीं चाहते हैं। लेकिन मैं उल्टा चाहता हूँ। ज़िंदगी का ये मकाम, ये उम्र, वो स्वर्ग है जिसे मैंने पहले कभी देखा ही नहीं था। हो सकता है, मैं पहले मानने को तैयार ही नहीं था। जहां मैं जैसा हूँ, वैसा ही पसंद किया जा रहा था। मैचूअर (परिपक्व) भी और थोड़ा गोल मटोल भी। मेरे लिए,  मैं  जैसा हूँ वैसा रहने की ये, एक तरह की आजादी थी   फिर भी, सोच दूसरी तरफ चली ही जाती थी। भले ही हम सब मैचूअर थे, फिर भी क्या सामने वाले को मैं किसी विकृत वजह से पसंद रहा था? यूं उम्मीद करना कि मैं उसे सच में पसंद हूँ,  ठीक था क्या? (मैं इस बात पे गौर ही नहीं कर रहा था कि सामने वाला भी पोलिटिकल साइंस में पोस्ट-ग्रेजुएट है, कोई दूध पीता बच्चा नहीं। पर फिर धीरे-धीरे मुझे ये महसूस हुआ कि यहां पे दोनों मैचूअर लोगों के बीच एक परस्पर समझ है। और बाकी जो भी अटकलें दिमाग में रही हैं, वो बस मेरे पुराने, बुरे अनुभवों पे आधारित हैं। समलैंगिक लोगों के लिए ये नियम किसने बनाए ? ऐसा किसने कहा कि सिर्फ यंग लोग ही प्यार में पड़ सकते हैं? कि यंग लोग सिर्फ यंग लोगों के साथ ही प्यार में पड़ सकते है? दूसरों के बनाये नियमों और कही बातों की वजह से भला हम अपनी इच्छाएं क्यों मारें? जिन लड़कों से मैं मिला हूं, उनकी जो बात मुझे सबसे प्यारी लगती है, वो है उनकी जिंदादिली और जीवन को भरपूर जीने का तरीका। एक मुझे अपने हेअरकट की तस्वीरें भेजता है l मैं बड़ाई कर दूं, तो खुश हो जाता है। दूसरा बताता है कि वो अपने परिवार से दूर इसलिए रहता है क्यूंकि वो उनको अपने बारे में खुलकर बता नहीं सकता है। एक तो ये चाहता है कि मैं उसे रोज़ सेल्फी भेजूं, वो भी नार्मल चीज़ें करते हुए। एक और है जो मुझे बचकाने जोक भेजता है और तुरंत जवाब दूं तो नाराज़ हो जाता है।  एक मुंब्रा की एक झुग्गी में रहता है, दूसरा कोटा के पास अपने छोटे से गाँव में, एक काकीनाडा में सेल्स पर्सन है तो एक अजमेर में छोटा सा व्यापारी।  कोई मुझे बिना कपड़ों के देखना पसंद करता है, तो कोई बस इमोजी भेजने से ही खुश हो जाता है।  वीडियो चैट होते भी हैं तो काफी छोटे। सिर्फ एक किस, या एक स्माइल, या एक दूसरे को सराहने वाला छोटा सा पल। कभी चादर में छुपकर, तो कभी बाथरूम से, अपने-अपने परिवार की नज़र से बचकर। कभी-कभी मुझे उनकी मासूमियत दिखती है, तो कभी-कभी उनका डर। समाज यंग लोगों पर जो बोझ डाले बैठा है, वो देखकर दुख भी होता है। ये आदमी बनने की ओर जाते हुए लड़के, मेरी छाती पर चैन से सोने की कामना रखते हैं। शायद मेरे पास सुरक्षित महसूस करते हैं। और मुझे लगता है कि नजदीकियां बढ़ने का ये एक जरुरी और सुंदर अंदेशा है।  मैं कभी भी एक पे नहीं टिका हूँ (यानी मोनोगमस नहीं हूँ। मोनोगैमी/monogamy का मतलब है एक टाइम पे किसी एक व्यक्ति के साथ ही रिलेशन में रहना। ) इसलिए मैं एक साथ कई लोगों से चैट करता हूं। मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि मुझे कभी भी एक्सक्लूसिविटी/ विशिष्टता की चाहत नहीं रही है, यानी उनकी ज़िंदगी में बस मैं इकलौता पार्टनर बनूँ कुछ को इस बात से दिक्कत होती है, लेकिन अधिकतर सवाल नहीं करते मैं इस बात का एहतियात ज़रूर रखता हूँ कि एक की बात दूसरे से नहीं करता क्योंकि मुझे लगता है वो प्राइवेसी के नियम के खिलाफ होगा।लेकिन वो सब जानते हैं कि मेरी जिंदगी में और लोग हैं। कभी-कभी वे मुझसे मेरेपार्टनरके बारे में पूछते भी हैं। मैं हंसकर टाल देता हूँ। और जब वे मुझे अपनी जिंदगी में आये किसी दूसरे पापा बेयर (papa-bear) के बारे में बताते हैं, ताकि मैं उससे जलूं, उल्टा मुझे राहत महसूस होती है। क्योंकि मैं उनकी जिंदगी का अकेला पार्टनर होने का प्रेशर नहीं लेना चाहता हूँ। मैंने ऐसे बॉयफ्रेंडस की कहानियां सुनी हैं जो बहुत जलते हैं। अपने साथी को पकड़ कर अपने पास रखना चाहते हैं। वे आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं, कई तरह के नाटक करते हैं, डिप्रेशन में चले जाते हैं। उस चिपकने वाली प्रजाति और उनकी दुनिया से मुझे डर लगता है। मेरी चाहत अकेलेपन में नहीं बल्कि अनेकों को पाने और उन अनेकों में एकांत ढूंढने के बारे में है। मेरी डिमांड इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि मैं अकेला हूँ। मुझे ये पता है ज्यादातर उम्रदराज़ लोग शादीशुदा ही होते हैं।  ये शादीशुदा मर्द किसी ट्रिप के दौरान होटल के कमरों में यंग मर्दों से मिलते हैं। उनका मकसद बस सेक्स होता है। वो भी बिल्कुल गुप्त तरीकों से, जैसे ये सब करने में उनको खुद से घृणा हो रही हो। वो बातचीत में समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं। लेकिन ये जो यंग मर्द हैं, उनको सिर्फ सेक्स नहीं चाहिए। उनको एक दोस्त की तलाश है वे इन उम्रदराज़ मर्दों के विवाहित जीवन को खराब नहीं करना चाहते हैं। पर ऐसे गुप्त तरीकों से छुपकर मिलना भी नहीं चाहते हैं। ऐसे रहना उनको अपमानित, अस्वीकृत और वंचित महसूस कराता है। जैसे किसी कोने में बैठ, वो एक टुकड़ा फेंके जाने का इंतज़ार कर रहे हों। एक बहुत ही खुशमिज़ाज यंग बैंकर की बात बताता हूँ, जो कि जोगेश्वरी के एक बहुत ही संपन्न नार्थ इंडियन परिवार से है। उसने मुझे बताया कि उसका बीस साल की उम्र से ही एक वकील के साथ संबंध था। और वो खत्म तब हुआ जब उस वकील की पत्नी और बच्चों को इसके बारे में पता चल गया।  उसका दूसरा रिश्ता एक सिविल सर्वेंट के साथ था जो उससे बीस साल बड़ा था। पांच साल तक, वो आदमी कई बार उससे मिलने उसके शहर गया। और दोनों को इतना टाइम साथ में बिताता देख, उसकी बीवी को शक हो गया।  बीवी ने महसूस किया कि ये सिर्फ दोस्ती नहीं थी और बस फिर उसे इस रिश्ते को तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। ये दोनों रिश्ते वो थे, जो लंबे समय तक चले थे। वो अभी भी उन लोगों के संपर्क में था। तो अब तीस साल से ऊपर का था, और इन दो रिश्तों का बोझ लिए घूम रहा था। मैंने उससे पूछा कि क्या वो खुद कभी शादी करेगा, और उसने बिना सोचे समझे ही कह दिया, कि हां वो करेगा। उसने माना कि वो बहुत दिन तक इससे बचकर नहीं रह सकता है। जो होना है वो तो हो के ही रहेगा। भले ही वो इससे खुश नहीं था, पर इससे बच भी नहीं सकता था। उसके हिसाब से शादी को सहमति देते हुए भी वो किसी उम्रदराज़ आदमी से प्यार करे, उससे इमोशनल रिश्ता बनाये, तो गलत क्या है। उसे नहीं लगता था कि उसकी सेक्सुअलिटी उसकी शादी में कोई रुकावट पैदा कर सकती थी। वो इससे कम्फ़र्टेबल था। उसके दिमाग में किसी तरह का दुःख या कोई शंका नहीं थी। तो क्या वो अपनी बीवी को भी आज़ादी देगा कि वो भी किसी और से प्यार कर सकती है। मैंने पूछा पर उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं था। और अगर उसके बच्चों का पता चल गया तो? इस सवाल के बाद तो उसने मुझे ब्लॉक ही कर दिया। मुझे लगता है, उसे ऐसेडैडी’ पसंद थे जो उससे जुड़ के रहें ना कि उससे सवाल करते फिरें। लेकिन मेरे जैसे कुछ पापा-बेयर होते हैं जो चाहते हैं कि उनके साथ जो लड़के रिलेशन में हों, वो नायाब भी दिखें और नेक भी हों। इन पिछले कुछ महीनों में मुझे ये पता चला है कि समलैंगिक दुनिया पे लोगों की सोच इतनी दकियानूसी क्यों है- क्यूंकि बार बार वोही पुरानी बातें हर जगह दोहराई जाती हैं, और इस तरह इस दुनिया को सीमित ही रखा जाता है। अगर हम आंखों पे छाए धुंधलेपन को पोंछ कर देखें तो हमें ऐसी कई दुनिया मिलेगी जो छुपी ज़रूर हैं पर मौजूद है और अच्छी चल रही है।  मैंने ऐसे कई मर्दों को देखा है, जो मुझे लगता था मेरी पहुंच के बाहर हैं। आज वो खुलकर मुझे अपने आगोश में ले रहे हैं, मेरे बॉडी को एन्जॉय कर रहे हैं, मेरी मैच्युरिटी को पसंद कर रहे हैं। उनके साथ मैं जैसा हूँ, वैसा रहता हूँ। कोई नाटक नहीं, कोई लेन-देन नहीं। बस एक-एक पल को गहराई तक जीता हूँ। हां, हो सकता है कि इन लड़कों को एक पिता समान इंसान की ज़रूरत हो। और शायद मेरे अपने सेक्सुअल और कामुक इच्छाओं के पीछे उन कभी ना हो सकने वाले बच्चों को प्यार करने की चाह हो। मैं उनका पिता नहीं हूं और वे मेरे बच्चे नहीं हैं। और इस तरह के आकर्षण कोअनाचार’(incest) याफेटिश' का नाम देना भी एक तरह से इन अलग तरह की इच्छाओं को स्वीकार ना करने का  तरीका है। मैं किसी तरह के विश्लेषण का हिस्सा बने बिना, इस फीलिंग को एन्जॉय करना चाहता हूं। जो जैसा है, वैसा ही रहने दो- नेचुरल।  

अंकुर मेहता (नाम बदल दिया गया है) एक बहुत ही जल्द रिटायर होने वाला IT कंसलटेंट है, जो ज्यादातर बेंगलुरु में रहता है, लेकिन मैसूरु को पसंद करता है। और अक्सर बाली के समुद्र तटों में पाया जाता है।

 
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