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इंटरसेक्स के बारे में लिखी एक मराठी किताब के लेखक यहाँ बता रहे हैं, कि हमें इंटरसेक्स होने के बारे में ये कुछ बातें पता होनी चाहिए

Why is 'intersex' something that we know so little about, and how can we learn more?

 'इंटरसेक्स' का मतलब क्या है? ऐसा क्यों है कि हमें इसके बारे में ज़्यादा पता नहीं है?  और ये स्थिति बदलने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हमने इस बारे में ज़्यादा जानकारी पाने के लिए बिंदूमाधव खिरे जी से बात की, जो एक क्वीर (Queer) अधिकार कार्यकर्ता हैं। वे पुणे कीसमपथिक ट्रस्ट के संस्थापक हैं और मराठी किताब 'इंटरसेक्स: एक प्रथमिक ओलाख (2015) - के लेखक भी हैं। इंटरसेक्स शरीर और भावनाओं के बारे में, किसी भारतीय भाषा में लिखी, ये अपने तरह की पहली किताब है। इंटरसेक्स क्या है?  इंटरसेक्स शरीर की संरचना की एक अलग प्रकृति है। हो सकता है कि ये अलग संरचना आखों को दिख सकती है, अगर गुप्तांगों में ये भिन्नता हो या फिर, इसे आप तब देख सकते हैं, जब गुणसूत्र (chromosonal) या हार्मोनल भिन्नता का परीक्षण किया जाए। या फिर आप अल्ट्रासाउंड, जो कि आंतरिक यौन अंगों में भिन्नता को दिखा सकता है, की मदद ले सकते हैं। इंटरसेक्स होना, ट्रांस (trans) होने से अलग है, क्योंकि ट्रांस होना जेंडर पहचान से उठा सवाल है। एक ट्रांस व्यक्ति पुरुष लिंग के साथ या महिला लिंग के साथ या इंटरसेक्स जैसा पैदा हो सकता है, लेकिन वो अपनी पहचान को उस जेंडर पहचान से अलग मानता है, जो उसे जन्म के समय दी गयी है ।   आपको ऐसा क्यों लगा कि इंटरसेक्स शरीर के उपर किताब लिखना ज़रूरी है? एक एल.जी.बी.टी (LGBT) कार्यकर्ता के रूप में, अपने काम की वजह से मैं इंटरसेक्स लोगों से मिला हूं। और मुझे पता है कि उन्हें अपनी पहचान के बारे में बहुत अनिश्चितता महसूस होती है। मराठी भाषा में तो इसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध भी नहीं थी। लोग कम से कम एल.जी.बी.टी शब्द के बारे में जानते तो हैं, लेकिन इंटरसेक्स क्या है, इसके बारे में ज़्यादा कुछ सुना भी नहीं है। खुद इंटरसेक्स लोग भी अपनी पहचान के बारे में अनिश्चित होते हैं और इसके लिए मराठी शब्द क्या है, उन्हें ये भी नहीं पता होता है। कुछ ने तो कभीइंटरसेक्सशब्द सुना भी नहीं है, और ना ही उन्हें जानकारी है कि उनके जैसे और लोग हैं भी या नहीं। इसलिए मैं ये किताब लिखना चाहता था। ये 100 पन्नों की मराठी भाषा में लिखी इंटरसेक्स शरीर के बारे में एक किताब है। ये इंटरसेक्स की मूल जानकारी को कवर करता है, जैसे कि प्रजनन (reproduction) कैसे होता है, गुणसूत्र (chromosome) या हार्मोन में भिन्नता कैसे हो सकती है, विभिन्न प्रकार के इंटरसेक्स शरीर आदि क्या हैं। ये किताब एक भारतीय दृष्टिकोण से आम चिकित्सा पद्धतियों, कानून, नाम पद्धति और सही प्रथाओं की भी चर्चा करती है। इसमें इंटरसेक्स लोगों के साथ हुई बातचीत, जहां वो अपने अनुभव बताते हैं, भी शामिल है।    इंटरसेक्स होना कई लोगों को अन्य समाज से अलग, बिलकुल अकेला कर देता है। ऐसा क्यों है ? सबसे बड़ी समस्या आत्मजागरूकता की है: "मैं कौन हूं?" "इंटरसेक्स होने के क्या मायने हैं?" "मेरे माता-पिता भले ही मुझे एक मर्द के रूप में देखते हैं, लेकिन मेरी शारीरिक रचना किसी भी पुरुष अंगों से मेल नहीं खाती है... ऐसा हो सकता है" ये अनिश्चितता अलग और अकेले होने की भावना की ओर ले जाती है। क्योंकि इंटरसेक्स लोग कहीं दिखते भी नहीं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो बिलकुल भी नहीं। हो सकता  है कि एक इंटरसेक्स व्यक्ति अपनी पहचान कहीं न पाए : न किसी एक जेंडर  में , न ट्रांसजेंडर के समूह में, न विषमलैंगिक समूह में इसलिए उन्हें समझ में नहीं आता है कि वो किस श्रेणी में फिट बैठेंगे। इन सब वजहों से इंटरसेक्स लोग काफी पीछे छूट जाते हैं। दूसरा बड़ा मुद्दा,एक सपोर्ट सिस्टम या सहायता देने वाली किसी व्यवस्था की सख्त कमी समलैंगिक और ट्रांस लोगों के कई सपोर्ट समूह हैं। कुछ संगठन तो ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुँच चुके हैं, लेकिन शायद ही कोई संगठन इंटरसेक्स लोगों को शामिल करते हैं। अधिकतर क्वीर समूह शहरों तक ही सीमित हैं।  इसलिए इंटरसेक्स लोगों को अकेलापन और शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है - ऐसी भावना कि "मुझे अपने शरीर के लिए शर्मिंदा होना चाहिए, इसे दुनिया से छुपा के रखना चाहिए, मैं किसी समाज का हिस्सा बनने के लिए फिट नहीं हूँ"" हमेशा ये डर बना रहता है कि उनके दोस्तों और सहयोगियों के सामने अगर उनकी पहचान का खुलासा हो गया, तो शायद उनसे उनकी दोस्ती टूट जाए। कुछ इंटरसेक्स एक विशेष जेंडर (लिंग) के रूप में खुद को ढाल लेते हैं, लेकिन हमेशा ये डर रहता है कि उनकी शारीरिक रचना के कारण उनकी कभी शादी नहीं हो पाएगी या बच्चे नहीं हो पाएंगे।   क्या इस बात का कोई अंदाजा है कि कितने प्रतिशत लोग इंटरसेक्स के रूप में पैदा होते हैं? इंटरसेक्स समुदाय का समाज में एक तरह से अदृश्य रहने और उनके समाज की मुख्यधारा में सबल रूप से शामिल न हो पाने का क्या कारण हो सकता है?  अगर हम देखें तो यौन अल्पसंख्यकों (sexual minorities) के बीच, ट्रांस आदमियों को ट्रांस औरतों से बहुत कम महत्त्व दिया जाता है l इंटरसेक्स लोगों को उससे भी कम। अगर आप इंटरसेक्स लोग की उस आबादी की तरफ ध्यान देंगे जिनके शरीर की द्विलिंगता बहुत ही स्पष्ट है, तो पता चलेगा कि उनकी संख्या कुल 1,00,000 में करीब  की है। इस तरह के छोटे समुदाय होने के कारण, उनके मुद्दे को उजागर करने, खुद को सशक्त बनाने और अपनी बात रखने के लिए बहुत कम लोग हैं जो ये भावना दिला सकें कि - 'हम भी किसी के आदर्श बन सकते हैं'-  शायद इसीलिए समाज में इनका दिख पाना भी मुश्किल सा है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों का एक सांस्कृतिक सन्दर्भ है, जिससे उनको सांस्कृतिक लाभ है l  क्योंकि  हिजड़ा और जोगता समुदाय के लोग समाज के बीच सांस्कृतिक रूप से काफी लंबे समय से दिखाई देते रहे हैं। यहाँ तक कि समलैंगिक पुरुषों या समलैंगिक महिलाओं की तुलना में भी इनको ज़्यादा मान्यता प्राप्त है। इंटरसेक्स समुदाय के पास ये सन्दर्भ नहीं है।    चिकित्सा प्रणाली ने किस तरह से इंटरसेक्स होने के साथ जुड़े शर्म और कलंक को और बढ़ावा दिया है, और इस विचार की जड़ को और मजबूत किया है कि ये चीज़ दुनिया से छिपा के रखनी चाहिए  इंटरसेक्स लोगों के सामने जो एक बहुत बड़ी समस्या है वो है जन्म के समय उनके लिंग निर्धारण (सेक्स असाइनमेंट) की l  यदि बच्चा जन्म से इंटरसेक्स है, और उसके माँ-बाप सर्जरी का खर्च उठा सकते हैं, तो वे तुरंत ही बच्चे के प्रजनन अंगों के इस अस्पष्टता को "ठीक" करने में जुट जाते हैं। ताकि बच्चा किसी एक विशेष जेंडर में फिट हो जाए।  यह एक बहुत ही समस्याजनक बात हो सकती है, क्योंकि आप जन्म के समय यह जान ही नहीं सकते कि बच्चे की असली जेंडर पहचान (gender identity) क्या होगी। और आप गलत ऑपरेशन कर सकते हैं। और क्योंकि जन्म के समय जननांग इतने परिपक्व भी नहीं होते, इससे भी बाद में और समस्याएं आ सकती हैं । साथ साथ, ऐसे जल्दी में ऑपरेशन कराना इस विचार को और ज़ोर देता है कि ‘ इंटरसेक्स होना बहुत गलत है - और इस अवस्था को ठीक करने की ज़रूरत है’। यदि आप चिकित्सा सम्बन्धी पुस्तक या लेख देखें, तो देखेंगे कि आज भी वे  " हर्माफ्रोडाइट / स्यूडो-हेर्मैफ्रोडाइट '" (hermaphrodite/pseudo-hermaphrodite- यानी जिनमें स्त्री और पुरुष दोनों के लिंग हों, ये शब्द वनस्पति और जानवरों पर लागू होता है) जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इन शब्दों को अपमानजनक समझा जाता है, और मानवाधिकार के नजरिए से दुनिया भर में इंटरसेक्स संगठनों द्वारा इनकी  निंदा की गयी है। आजकल चिकित्सक जिस शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो है डी.एस.डी (DSD-  Disorders of Sexual Development- यानी यौन विकास के विकार) ये शब्द भी एक तरह से आपत्तिजनक हैं इनमें 'डिसऑर्डर (Disorder, यानी विकार)' शब्द को बदल कर कुछ और रखना चाहिए। इंटरसेक्स समुदाय को जिस शब्द का इस्तेमाल स्वीकार हो, वही शब्द हम सब को भी इस्तेमाल करना चाहिए। मराठी में, इसे 'द्विलिंग' कहते हैं  - जिसका अर्थ है दोहरा सेक्स। और अंग्रेजी में, इस्तेमाल का संवेदनशील और राजनीतिक रूप से सही शब्द है, 'इंटरसेक्स   मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल में ही एक आदेश दिया था जिसके अंदर इंटरसेक्स बच्चों के सेक्स असाइनमेंट (लिंग निर्धारण) सर्जरी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। और अब तमिलनाडु सरकार ने भी इसे लागू भी कर दिया है। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? ये अच्छी बात है, मैं इसका स्वागत करता हूं। लेकिन  इसकी उपयोगिता सीमित है । जो माँ-बाप अपने बच्चों की सर्जरी करना चाहते हैं, वह उन्हें कर्नाटक या किसी दूसरे राज्य में ले जा कर उनकी सर्जरी करा सकते हैं। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इसे रोकने के लिए एक अधिनियम / Act लाये।  फिलहाल हम इस तरह के कानून के लागू होने से काफी दूर हैं। मीडिया, वकीलों, न्यायाधीशों और डॉक्टरों सहित अधिकांश आबादी को इंटरसेक्स शब्द की कोई समझ नहीं है। जागरूकता लाना पहला कदम है, और इसके बिना संवेदनशीलता नहीं पनपेगी। और संवेदनशीलता के बगैर, लोग कभी नहीं समझ पाएंगे कि इंटरसेक्स लोगों को किस तरह के अन्याय झेलने पड़ते हैं, और हमें इस स्थिति को बेहतर करने के लिए क्या बदलाव लाने चाहिए ।   आपके हिसाब से आपकी किताब पढ़ने के बाद लोगों में मन में कौन सी बातें घर कर लेंगी? आप उन्हें क्या एहसास कराना चाहते हैं? समलैंगिकता और लैंगिक पहचान पर मेरी किताबें, विभिन्न संकलनों में मेरा लेखन, और ये इंटरसेक्स पर किताब, इन सभी का मूल विषय एक ही है। और वो ये है कि भले ही संख्या के आधार पर आप अल्पसंख्यक हैं, लेकिन आप असामान्य/एब्नार्मल  नहीं हैं। आप दूसरों से अलग हैं, लेकिन आपको खुद पर या अपनी सेक्सुअलिटी पर शर्मिंदा होने कि कोई ज़रूरत नहीं है। आप जो भी हैं उसको स्वीकार करने की कोशिश करें, और यदि संभव हो तो अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में उन लोगों को बताएं, जिन पर आप भरोसा कर पाते हैं। अपनी सेक्सुअलिटी को अपने जीवन के अन्य सभी पहलुओं पर हावी ना होने दें। होता ये है कि अगर आप सिर्फ अपनी सेक्सुअलिटी के बारे में ही सोचते रहेंगे, तो आप अपनी प्रतिभा, अपने करियर और दूसरे उन क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दे पाएंगे जहाँ आप बहुत उन्नति कर सकते हैं। मैं चाहता हूं कि यौन अल्पसंख्यक लोग अच्छी तरह से स्वीकार कर लें कि वो कौन हैं, और अपने पर गर्व करें। वे पूरी दुनिया को दिखा दें कि भले ही आप हमें हमारे अलग होने की वजह से स्वीकार नहीं करते, लेकिन हम आप से कम नहीं हैं। बल्कि हम जो भी करते हैं आप लोगों से अच्छा ही करते हैं, और हम आपको हर उस मंच पर चुनौती दे सकते हैं, जहाँ हमें लगता है कि हम अच्छा कर सकते हैं। हम मुख्यधारा का हिस्सा बन सकते हैं। जितना ज़्यादा हम मुख्यधारा से बाहर रहेंगे, उतना ही हमें समाज में किनारे कर दिया जायेगा और उतना ही हमारे अधिकारों की अनदेखा किया जाएगा। हम इंटरसेक्स समुदाय के लिए बेहतर सहयोगी कैसे बन सकते हैं? मुझे लगता है इसका एक तरीका ये है कि इसके विषय में ज़्यादा जानकारी प्राप्त की जाए। हमें एल.जी.बी.टी.आई (LGBTI) के विस्तृत श्रेणी को समझने की ज़रूरत है। हमें उन शब्दों का उपयोग नहीं करना चाहिए जिन्हें ये समुदाय अपमानजनक मानते हैं। हमें ये समझने की जरूरत है कि ये किसी तरह का कोई विकार या विकृति नहीं है। हम सभी प्रकृति के रूप हैं और प्रकृति में बहुत विविधता है। हमें लोगों को सिर्फ इसलिए बदलने या उनमे बदलाव लाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे हमारे जैसे नहीं हैं। हां, सर्जरी एक विकल्प है : यदि वे इसे चुनना चाहते हैं, तो चुन सकते हैं। लेकिन एक बच्चे के मामले में, पहले उन्हें बड़ा होने दें। जब वो एक व्यस्क हो जाएँ, तब उन्हें खुद तय करने दें कि वो सर्जरी करवाना चाहते हैं या नहीं।   क्या इंटरसेक्स को बायोलॉजिकल जेंडर का दर्ज़ा देकर हम इस कथित दायरे से बाहर सकते हैं कि जेंडर के सिर्फ दो रूप होते हैं, मर्द या औरत।?और क्या इससे मौलिक रूप से सेक्स और लिंग और समाज के बारे में हमारे सोचने का तरीके बदल सकता है? ये सच है, केवल शारीरिक सेक्स के बारे में, बल्कि लैंगिक पहचान के बारे में भी। क्योंकि आपकी लिंग पहचान केवल द्विआधारी नहीं है - ये पहचान पुरुष के रूप में हो सकती है, महिला के रूप में हो सकती है, या तरल मिश्रण हो सकती है। और ये आपके शरीर के अंगों से निर्धारित नहीं होता है। ना ही आपका यौन-झुकाव (sexual orientation), आपकी शारीरिक संरचना या लिंग द्वारा निर्धारित होती है।    जन्म के समय सेक्स निर्धारण सर्जरी पर अंकुश लगाने के लिए हमारी मानसिकता को किस किस्म के बदलाव की ज़रुरत है और हमें क्यों इस पर पुनर्विचार करना ही चाहिए? यौन अल्पसंख्यक अधिकारों, या एल.जी.बी.टी.आई .अधिकारों का मतलब ही है  - मेरा शरीर, मेरे अधिकार, मेरी लैंगिक पहचान, मेरा यौन-झुकाव, औरमुझे परवाह नहीं है कि बाकि लोग इसे पसंद करते हैं या नहीं’। मैं तय करूंगी/करूंगा कि मुझे इसके साथ क्या करना है। इसलिए बच्चे को पहले एक वयस्क बनने दें, और उन्हें ये तय करने दें कि वे एक इंटरसेक्स व्यक्ति के रूप में जीना चाहते हैं या सर्जरी कराना चाहते हैं। ताकि उनकी शारीरिक रचना उनके लैंगिक पहचान के अनुरूप हो। हम बस इतना कर सकते हैं कि वह जैसे भी हों, हम उनका समर्थन करें और कहें, "आपका यौन-झुकाव, आपकी लैंगिक पहचान या आपकी शारीरिक संरचना जो भी है, हम आपके साथ हैं। हम सब आखिर इंसान ही तो हैं।" हमें उन्हें वही सम्मान और इज़्ज़त देनी चाहिए जो हम अपने सभी बड़ों और प्रियजनों को देते हैं समाज को किसी व्यक्ति पर अपनी नैतिकता नहीं थोपनी चाहिए, और जो वह ना करना चाहे वो करने के लिए मजबूर भी नहीं करना चाहिए।
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