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सेक्स में आज्ञाकारी रोल निभाए मैं खिली मेरी दुनिया खुली |

उस प्रभावी की आवाज़ में उन आदेशों को सुनके, मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा

ये सब कोविड की वजह से हुआ, है न ? न ! न कोविड के मारे न सेक्स के  अजीबोगरीब रूपों पे लिखी वो नावेल- 50 शेड्स ऑफ़ ग्रे - की वजह से l दरअसल सालों पहले मेरा एक्स बॉयफ्रेंड कहीं और था और हम सेक्सटिंग कर रहे थे ( यानी सेक्स को लेकर टेक्स्टिंग )l तो उसने मुझसे पूछा  कि सेक्स को लेकर मेरी क्या कल्पनाएं हैं l बस, पोल खुल गयी l मैंने तब तक इसके बारे में ज़्यादा सोचा न था- शायद इसलिए भी कि किसी ने पहले ऐसा सवाल पूछा न था ? घर लौटते वक्त, वो ढेर सारे सेक्स टॉयज और जाने क्या क्या सामान खरीद लाया ( वो था ही ऐसा, हर बात पे एक्स्ट्रा जोश !) l  उस सामान से खेलते हुए,  हम दोनों ने बहुत कुछ ट्राई किया और समझा l बदकिस्मती से मैं उस वक्त अपनी बहुत ज़्यादा फ़िक्र करने की आदत यानी एंग्ज़ायटी, की दवाइयां ले रही थी, साथ साथ डिप्रेशन की भी और PTSD (किसी बड़े सदमे से स्ट्रेस का बढ़ जाना ) की भी l मुझे उस वक्त ये न पता था कि इनसे मेरी सेक्स करने की मेरी इच्छा ही कम हो गयी थीl उन सालों को याद करती हूँ ,तो मन मचल जाता है l उसके बाद जो रिश्ते बने, उनमें किसी ने मुझसे ये नहीं पूछा कि मुझे सेक्स में  टेड़ा मेड़ा क्या पसंद है, किसी ने मेरी कामुकता की ऐंठनें और कल्पनाओं के बारे में नहीं पूछा  l हाँ, कभी कभी मैं उन्हें दिखा देती कि मेरी सेक्सी गाड़ी किन चाबियों से चलती है और जो थोड़े होशियार थे, वो मेरा इशारा समझ लेते थे l इस साल की शुरुआती महीनों में, मैं अपने एक करीबी दोस्त ( एक आदमी ) से इसपर बात कर रही थी l  दोस्त के साथ ये बात डिस्कस कर पाने से एक आज़ादी सी लगीl  ऐसा दोस्त जिसको मेरी खबर भी थी और समझ भी l हमने बहुत सारे ऑप्शन डिसकस किये: हम इस मामले पे और खोज बीन कैसे कर सकते हैं ?  पता चला ऐसे बहुत ज़रिये हैं : एप्प्स, फेसबुक के ग्रुप, रेड्डिट के ग्रुप l मैं रेड्डिट या फेसबुक का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करती l फेसबुक तो इतनी ज़्यादा जासूसी करता है, ये जोखिम मुझे बिलकुल नहीं उठाना था l मैं चैट(chat) के ऑप्शन ढूंढने लगी l एक ऐसा ऑप्शन मिला जिसे इस्तेमाल करने के लिए पहले से रजिस्टर करने की ज़रुरत नहीं थी l सही ! इस वेबसाइट पे, मुझ  को जेंडर, उम्र, मेरी किस किस्म की कामुक पसंद है, बस इतना बताने की ज़रुरत थी ( कामुक खेलों में आप को क्या करना पसंद है, उसके आधार पे आप अपना रोल चुन सकते हैं- प्रभावी या आज्ञाकारी, मालिक या गुलाम) l साथ साथ वेबसाइट पे आपको अपनी ख़ास पसंद, जिनको ये वेबसाइट 'फेटिश' का नाम देता है, दर्ज़ करना था l अपने पिक्चर, वीडियो भेज  सकते थे और एक दूसरे को कॉल कर सकते थे ( आवाज़ या वीडियो के ज़रिये )| इस वेबसाइट पे चैट करने में एक कमी थी - आपको क्या चाहिए, आप उसका सिलेक्शन नहीं कर सकते थे l वेबसाइट खुद आपको किसी के साथ जोड़ीदार बना देता l तो वेबसाइट के ज़रिये, सेक्सी खेल खेलते हुए, मुझे मुझ जैसे और ‘सब’( sub, यानी अंग्रेज़ी में submissive, आज्ञाकारी रोल पसंद करने वाले ) आदमी और औरत मिल सकते थे l पर मैं तो ऐसे इंसान की तलाश में थी जिसे प्रभावी रोल पसंद है l तो ये समझने के बाद कि वेबसाइट पे सब कुछ कैसे चलता है, मुझे धीरज की ज़रुरत पड़ी l और मुझे उस धीरज का फल भी मिला, इसमें कोई शक नहीं l ये कहना ही पड़ेगा कि इस वेबसाइट पे चैट करने के ज़रिये, मुझे कुछ बेहद तमीज़दार आदमी मिले, ऐसे, जो पहले कभी न मिले थे l  चैट यूं शुरू होती "हैल्लो! कैसे हो?" या " हेलो ! सब ठीक चल रहा है? " मैं जवाब देती " मैं बढ़िया हूँ l शुक्रिया, और आप ?" इस तरह की कुछ हैल्लो हाय के बाद , सबसे ज़रूरी सवाल "तो तुम्हारी क्या पसंद है " निकल ही आता l  मैं इन मामलों में बहुत सारे शब्द तो नहीं जानती, तो मैं कहती, " मैं आज्ञाकारी हूँ, मुझे फलां फलां पसंद है और ढिकां ढिकां भी "l अगला ज़रूरी सवाल "तुम्हारी हदें क्या हैं ?" शुरू-शुरू में, चैट पे मेरा जवाब होता "कोई हद नहीं " मुझे यूं लगता कि चैट पे मैं कुछ भी कह सकती हूँ, क्या फर्क पड़ता है, वैसे भी यहां सब कुछ काल्पनिक ही है l बस मर्ज़ी के साथ करना चाहिएl समय समय पर प्रभावी चॉइस वाले कोई ये कहने को आते " सब ठीक ठाक चल रहा है ? तुम्हें मज़ा आ रहा है न ? " मेरी रियल लाइफ में किसी आदमी ने अब तक मुझसे ये न पूछा था l ये भी सच है कि मैं खासा 1990 के दशक की लड़की हूँ l कोई मुझसे ज़्यादा सवाल करे, वो भी मर्ज़ी को लेके, मुझे ये नहीं पसंद हैl अगर ज़ाहिर रूप से मर्ज़ी दी गयी है तो अच्छी बात है पर अगर मैं (30++ की उम्र में ) किसी आदमी के  करीब, एक प्राइवेट जगह पे हूँ ( असल ज़िंदगी में या फिर ऑनलाइन ), तो मैं ये मान के चल सकती हूँ कि बिन कहे ही मर्ज़ी दे दी गयी है l मुझे एक करोड़ सवालों का जवाब नहीं देना, हां, अगर मैं बीच में कभी न कह दूँ, तो आदमी को एक दम रुक जाना चाहिए l मैं ऐसी चैट को छोड़ देती थी जहां मुझसे ज़्यादा सवाल किये जाते, क्यूंकि
  1. मुझे अपनी पसंद- नापसंद के बारे में जवाब नहीं देने; बतियाते हुए या चैट करते हुए, बातों का स्वाभाविक रूप से खुलना मुझे ज़्यादा पसंद है
  2. मैं बेसब्र हूँ,ये मेरा नेचर है l इसलिए ज़्यादा सवालों का जवाब दे पाना मेरे बस की नहीं l ऊपर से ये अनिश्चितता भी कि इन सारे सवालों का जवाब देने के बाद, मैं शायद तब भी चैट  करने वाले से क्लीक न हो पाऊं l अगर सही किस्म का प्रभावी इंसान चैट पे आ जाए, तो बहुत फ़टाफ़ट फिटिंग होने लगती है (हाँ, ये भी हो सकता है, कि शुरू शुरू की उत्सुकता के बाद, आगे चैट से बोरियत भी होने लगे) l
शुरू शुरू में मैं लोगों से बस चैट करती थी l कुछ आदमियों को केवल चैट चाहिए थी, कुछ को केवल वीडियो कॉल l कुछ को ऐसी तसवीरें जिनसे उन्हें पता चले कि मैं उनका कहा कर रही हूँ l कुछ चैट करने के बाद, मुझमें जज़्बा आ जाता, मैं 'बोल्ड ' होकर अपनी तस्वीरें भेज देती, ये दिखाने को, कि मैं उनके 'आदेशों का पालन' कर रही हूँ l वो तस्वीर भेजते समय जो मेरी सांस चढ़ जाती, मुझे जो मज़े आते, उसको समझा पाना मुश्किल है l एक आज़ादी महसूस होती l शायद इस मस्ती की ये वजह भी थी कि मैं ऐसा कुछ कर रही थी जिसपे  आम तौर पे लोग भौंवे सिकोड़ते, जिसपे पाबंदी है  l अपनी फोटो को यूं भेजना, इसमें एक सीख भी थी- अपने शरीर को, वो जैसा है, वैसे कबूल करने की सीख l मुझे अपने सांवले, 'नॉट परफेक्ट' बदन पे न शर्म आयी, न झिझक हुई l एक बार एक प्रभावी आदमी ने मुझसे पूछा  कि क्या मैं वौइस् कॉल पर आ सकती हूँ, और मैं यूं ही मान गयी l  फिर एक आवाज़ मुझे बताने लगी कि मुझे क्या क्या करना है और मुझे बड़े मज़े आने लगे, बदन में सनसनी ही हो गयी l इसको शब्दों में बयान करना मुश्किल है, पर सच, उस प्रभावी की आवाज़ में उन आदेशों को सुनके, मेरा दिल तेज़ धड़कने लगा l मेरी आवाज़ बिलकुल सहम सी गयी ( जो कि एक अधीन/ आज्ञाकारी का रोल पसंद करने वाली के लिए बिलकुल सही है, है ना )l तो ये तजुर्बा चैट से ज़्यादा असरदार रहा l चैट करते समय तो मैं तीन और काम भी कर रही होती - या कुछ पढ़ रही होती या t.v. देख रही होती l पर कॉल पर तो मुझे हर तरह से सचेत रहना था, और उस पल में हर तरह से जीना था l एक बार किसी ने मुझे पूछा  कि क्या मैं 'स्विच' करना चाहूंगी ? स्विच उसको कहते हैं जो कभी अधीन और आज्ञाकारी और कभी प्रभावी रोले अपनाये, यानी रोल अदला बदली करेl  जिसे दोनों रोल में मज़ा आये l मैंने प्रभावी बननी की जम के कोशिश की, पर प्रभावी के रोल में मुझे ख़ास मज़ा न आया l एक आदमी पे अपना प्रभाव कैसे जमाया जाए, उसके लिए मेरे पास शब्दों की कमी पडी, और मुझे ख़ास सेक्सी फीलिंग भी नहीं आयी, सही कहूँ तो बिलकुल नहीं आयी l उस एक बार के बाद मैंने फिर कभी भी स्विच करने की कोशिश नहीं की l बातचीतें मज़ेदार मोड़ लेती थीं ( अगर मेरा जवाब देने का मूड बना हो, तो !) l मुझसे पूछा  गया "तो तुमको अधीन होना,आज्ञाकारी होना क्यों पसंद है ?" मैंने जवाब दिया "मुझे कोई कण्ट्रोल करे, कोई मुझे बताये कि क्या करना है, तो मुझे मज़ा आता है l ये मेरी रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग है, वहां मैं सब कुछ खुद डीसाइड करती हूँ l मैं इससे तंग आ चुकी हूँ l" उसने पूछा  "अपने करियर में तुम प्रभावी रोल अदा करती हो? " और फिर ये भी कहा "खुद अपने ऑप्शन चूज़ करने के बोझ से अपने आप को आज़ाद करने में तुम्हें मज़ा आ रहा है   " मैंने कहा "मेरा अपना बिज़नेस है और मैं अकेले रहती हूँ l सो हाँ, इस तरह से सब करने में एक आज़ादी लगती है l" दिमाग की बत्ती चमक गयी l मुझे समझ में आया कि ये अधीन होने की इच्छा एक गहरी मंशा से जुडी है - हर किस्म के कण्ट्रोल को छोड़ देने की मंशा l मैं हर तरह से समर्पण करना चाहती थी, कि कोई दूसरा मुझे बताये कि क्या करना है, कि मैं दूसरे के निर्देशों पे चलूँ l 'समर्पण' शब्द सुन कर लगता है जैसे इसमें एक दबाव है, जैसे ऐसा करने से आप छोटे हो जाते हो l पर सच कहूँ, तो इससे मुझमें आज़ादी की फीलिंग आती l किसी दूसरे को अपने ऊपर हुकूमत का हक़ देना, मुझे फिर भी कण्ट्रोल की फीलिंग दे रहा था - मैं ये निर्णय कर रही थी कि मैं किसको अपने ऊपर हुकूमत का कितना हक़ दूंगी l मैं किंक, यानी कामुकता की इन ऐंठनों के बारे में अक्सर पढ़ती हूँ और अन्य औरतों की आवाज़ों को सुनती हूँ, जो अधीन वाला रोल पसंद करती हैं l वो ऐसा ही फील करती हैं l कुछ ऐसी आवाज़ें भी हैं जो बताती हैं कि किंक किस तरह स्ट्रेस को कम कर सकता था l और ये मेरे लिए भी सच रहा है l मुझे बहुत तनाव या चिंता होती, तो मैं अक्सर राहत के लिए किसी से चैटिंग करने लगती l एक तरह से, मैं कण्ट्रोल की लगाम उसके हाथों दे देती, पर कुछ इस तरह से कि मेरी सबसे अंदरूनी चाहतों को रुख मिले, मेरी चिंताओं को मरहम मिले l मैं अक्सर ऐसे रिश्तों में रही हूँ, जिनमें सेक्स को कम प्राथमिकता दी जाती है, सारा फोकस इमोशनल ताल मेल और अंतरंगता पे होता हैl इन रिश्तों में ( एक आद को छोड़के ), ठीक ठाक सेक्स होता है पर ऐसा नहीं कि बदन में बिजली कौंध जाए - अक्सर ऐसा सेक्स होता है जिसमें आदमी अपने आप को आगे रखते हैं l  मैंने भी ये सब चलने दिया, क्यूंकि मेरे लिए भी सेक्स ज़रूरी था, पर सबसे ज़रूरी भी नहींl पर फिर मेरे BDSM* के तजुर्बे के बाद , मैं अक्सर पीछे मुड़ के देखती हूँ और अपनी लाइफ के बारे में सोचती हूँ l मुझे अब लगता है कि हो सकता है कि मैं ठीक ठाक ( पर ख़ास नहीं )  सेक्स से शायद इसलिए संतुष्ट रहती थी क्यूंकि मेरे अंदर की आधीन रोल पसंद करने वाली, आदमियों को अहमियत देने को तैयार थी l तब भी, जब वो प्रभावी टाइप के नहीं थे l ऐसा नहीं है कि सेक्स के तौर पे मुझे हर बार केवल BDSM चाहिए, पर BDSM वाले मेरे तजुर्बों ने मेरे सेक्स को लेके मुलाकातों को और रंगीन ज़रूर बनाया है l इनसे मेरे दायरे खुल गए हैं l  मैं अपने रिश्तों को  अब सामाजिक मानकों के बाहर देख पाती हूँ, अपनी कामुकता को थोड़ा और समझ पाती हूँ l   *(BDSM: बाँधना-बंधना, अनुशासन रखना/ में रहना, प्रभावी आज्ञाकारी होना और ऐसे कामुक खेल जिसमें हम अपनी मर्ज़ी से, अपने चुने हुए रोल के मज़े लेते हैं )   सिल्क स्मिता  सशक्त, हर तरह से स्वालम्बी, सब कुछ कण्ट्रोल में रख कर चलने वाली औरत हैं l ये शादी शुदा होती थीं l इनकी उम्र अब 40 की ओर बढ़ रही है l ये अकेले रहती हैं और उन्हें ये बेहद पसंद है l  
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