श्रीनिधि राघवन द्वारा
समिधा गुजराल द्वारा चित्रण
वह -“युवा लड़कियों से मासिक और बाल यौन शोषण पर बात करना- क्या तुम्हारे लिए मुमकिन होगा” ?
मैं- “हाँ क्यों नहीं,किस उम्र के हैं वो सब” ?
वह -” कक्षा 5 और 6 में पढ़ने वाली छात्राएँ”|
मैं- “बढ़िया ! ये कोई दिक्कत की बात नहीं है” |
वह- “हालाँकि एक चीज़ है, तुम सेक्स के बारे में बात नहीं कर सकती|”
इस पर अजीब सी चुप्पी छा गयी |
मेरे पास हाँ बोलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था|
यौन शिक्षा से ये मेरा पहला सामना था |
मैं पहले से एक नारीवादी संस्था के साथ हैदराबाद में काम कर रही थी | मैं 24 साल की थी |मैं ने कानूनी अधिकार,मानव अधिकार,विधि निर्माण पर शिक्षा दी है, पर अभी तक मैंने सेक्स, सेक्सुलिटी और प्रजनन स्वास्थ्य जैसे विषय पर शिक्षा नहीं दी थी| ये सब अनुभवी परिशिक्षकों के लिए आरक्षित छेत्र हैं|
ऊपर कही गयी बातें सिर्फ इस बात का परिचय हैं कि एक यौन /सेक्स शिक्षक को किस तरह की शर्तों को ध्यान में रखकर काम करना होता है |
शहर के एक आलीशान इलाक़े में प्राईवेट स्कूल में क्लास लेने के लिए मैंने तैयारी करना शुरू कर दी, मैंने 2 हफ़्तों तक पढाई की, उसमें मैंने मानव शरीर के बारे में पढ़ा, मैंने पढ़ा अंग कैसे दिखते हैं, मैंने बच्चों के लिए, युवाओं के लिए, प्रशिक्षक के लिए, शिक्षकों के लिए लिखी कई किताबें पढ़ीं, इस उम्मीद में कि मुझे सही भाषा मिल जाए, बिना सेक्स का ज़िक्र किए, सेक्स के बारे में बात करने के लिए| मुझे अपने द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा से डर लग रहा था ,मुझे इस बात का भी डर था कि कहीं मैं ज्यादा गहराई में न चली जाऊँ| मुझे लड़कियों द्वारा पूछे जाने वाले सवालों का भी डर था… फिर मेरे सह कर्मी ने मुझे सलाह दी कि मैं इतना ना डरूँ और मुझे जो भी जानकारी है, उसे ईमानदारी से उनके सामने पेश करूँ |
जब मैं क्लास में पहुँचती हूँ तो देखती हूँ कि वहाँ 10 -12 साल की उत्साहित लड़कियाँ अपने बनाए चित्रों, कहानियों और सच्चेपन को साथ लेकर बैठी हुई हैं |
हाँ, सिर्फ लड़कियाँ |
वो एक सह शिक्षा का स्कूल था, पर लड़कों को ज़्यादा नहीं बताया जाने वाला था, उन्हें बहुत ही आसान तरीके और चित्रण से मानव शरीर के बारे में समझा दिया गया था | हमारे पास २ घंटों का समय था, उन्होंने ज़्यादातर मानव शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में पूछा , मैंने उन्हें अपनी अनिश्चिता को छुपाते हुए जवाब दिया| मेरी सहजता को और बढ़ने के लिए ,वहीं की महिला शिक्षकाएँ इर्द गिर्द बैठी रहीं, मेरे शब्दों की दारोगा बन कर, मेरे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों पर निगरानी रखने के लिए |उस अपने पहले सत्र को मैंनेकिसे तरह पार कर लिया |
उस पहले अनुभव के बाद मैं काफी आराम से सेक्स शिक्षा पर कक्षाएं लेने लगी | मैंने ये महसूस किया कि ये लड़कियों के लिए (और लड़कों के लिए भी ! ) कितना सही है |मैंने काफी संघर्ष का सामना किया बिना ‘सेक्स’ शब्द का इस्तेमाल करे, सेक्स को समझाने में |पर इस क्लास को पूरा कर पाने के बहाने, हम एक और क्लास का आयोजन कर पाए: यह लिंग – जेंडर – पर था और ये बड़ी उम्र के लड़के और लड़कियों के लिए था| हमें इससे ये उम्मीद थी कि हम इससे कुछ और जटिल मुश्किलों तक पहुंच पाएंगे, सेक्स के मुद्दे से दूर रह कर भी|
एक दिन एक लड़की मेरी क्लास के बाद मेरे पास आयी और बोली “मैडम ,मेरी क्लास में एक लड़की है, जिसने ….” उसकी आवाज़ काँप रही थी, उसे अवश्य समझाया गया होगा कि वो ‘वो’ शब्द ना कहे | मैं बुरी तरह से डर गयी |मैं किस तरह उससे उस शब्द का इस्तेमाल करे बिना बात करूँ ? अब मुझे उससे क्या पूछना चाहिए ? वो बच्चे कहाँ सेक्स कर रहे होंगे ,जहाँ उन्हें किसी बड़े ने ना देखा होगा ? मुझे वो शब्द मिल गए जिनके द्वारा मैं उस से यह पूछ सकूँ, कि उसे यह कैसे पता चला |उसने बोला ,उसने उन्हें देखा | उस वक़्त मेरे दिमाग में आते कई सवालों का वर्णन करना मुश्किल है| सच बताऊं ,मैं बहुत हैरान थी और परेशान भी,उस बच्ची के लिए भी जिसने ये सब देखा और उन बच्चों के लिए भी जो ये सब कर रहे थे | वो सारे बच्चे सिर्फ १० साल के थे, दो लोगों को सेक्स करते हुए देख लेना बहुत सारे सवाल खड़े करता है | पर मैं आगे कुछ पूछ भी कैसे सकती थी?
कुछ देर के मौन के बाद,मैंने हिम्मत करके उसे पुकारा और कहा कि वो मुझे बताए कि उसने क्या देखा था| जब उसने मुझे समझाया तब मैंने ये समझा कि उसने उन्हें सेक्स करते नहीं देखा था, बल्कि चुंबन करते | ये सब सुन मुझे बड़ी तसल्ली हुई, हालाँकि मेरे लिए चुंबन के मसले को संबोधित करना भी बहुत मुश्किल था|मुझे बड़ी मुश्किल हो रही थी उसकी उलझन को सही शब्दों से सुलझाने में, उसे ये कहने में कि असल में वो सेक्स नहीं कर रहे थे |
मासिक और यौवन के आगमन को पहले समझाना और सेक्स को नहीं, या ये कि प्रजनन कैसे होता है- इसका असर ये होता है कि युवा लड़के और लड़कियों को कोई ज्ञान नहीं है कि स्पर्म शरीर में आख़िर कैसे जाता है |उन्हें ये भी लग सकता है कि हो सकता है वो मूँह से भी चला जाए|
बेशक तब तक, जब तक उन्होंने ये पोर्न या इंटरनेट पे ना देखा हो |
जैसे जैसे मैं यौन शिक्षा के पथ पर आगे बढ़ी, नई मुश्किलें सामने आने लगीं |सामान्य रूप से यौन शिक्षक को मासिक, स्वास्थ, बाल उत्पीड़न और हिंसा पर बातें करने के लिए बढ़ावा दिया जाता है, पर बिना सेक्स को बीच में लाये| हम मासिक चक्र बिना पुरुष अंग समझाए समझा सकते हैं |पर हर बार जब मैं क्लास को इस मकाम पर छोड़ती हूँ कि “जब अंडे और स्पर्म के मिलने से गर्भधारण होता है” क्लास में कोई हाथ उठा कर ये पूछ लेता है “पर कैसे?” |
मैंने जल्द ही ये सीख लिया था कि उनके जवाब या उत्सुकता ही नहीं थे जिन्हें मुझे संभालना था| जब हमनें शरीर,सेक्स और सेक्सुलिटी के बारे में बात की, हम ये बातें चित्रों के ज़रिए भी समझाते रहे, क्योंकि हमें लगा ये आसान तरीका है इस विषय को पचाने के लिए |एक बार मैं और मेरी सहकर्मी,80 महिलाओं के ग्रुप को, पुराने हैदराबाद में प्रशिक्षण दे रही थीं ,सेक्सुअल और प्रजनन अधिकारों के ऊपर |वहां सभी उम्र कि महिलाएं थीं, शादी शुदा, कुँवारी, जवान, सेक्सुअली सक्रीय, या अभी सक्रीय नहीं.. सारी रंगवाली थी| हमने कुछ क्रियाओं द्वारा स्त्री के शरीर का प्रतिचित्रण किया और उनके यौन भागों का भी और आदमियों के अंगों के चित्रों को एक डब्बे में रख दिया|
लड़की -वो वहां होता है ना ..
हम- वो क्या है? और कहाँ है ? दिखा तो दो !
लड़कियाँ ‘खी-खी’ करने लगीं |
हमें एक घंटे से भी ज़्यादा समय लगा, सारे अंगों को चार्ट पेपर पर लाने में, बहुत सारों के नाम नहीं बताये गए, कुछ के आकार नहीं पता थे |
बहुत सारी महिलाओं को महिला शरीर के अलग अलग छेदों के बारे में पता ना था |अंडाशय को नाम देना सबसे आसान था| उन्हें ये भी पता था कि फॉलोपियन ट्यूब उस ही के आस पास है |उन लोगों के लिए योनि व गर्भाशय में अंतर कर पाना बहुत मुश्किल था | वो खुद को छुपा लेतीं जब उनसे सेक्स में स्त्री के आनंद के बारे में पूछा जाता |उनके लिए शरीर पर गुस्सा ,नफरत और दर्द ढूँढ दिखाना बहुत आसान था| मजा और ख़ुशी, ये दोनों बता पाना काफ़ी मुश्किल था |हँसी सबसे आसान तरीका था किसी भी सवाल से बचने के लिए|
उन्हें ‘लिंग/शिश्न’ शब्द का इस्तेमाल करने में काफी मुश्किल महसूस हो रही थी ,चित्र बनाना तो भूल ही जाओ |हम आगे बढ़े- हमने शरीर के अंगों को बहुत पास से दर्शा के उनका चित्रण किया |उनमें विषेश रूप से महिलाओं के अंग थे|हमने महिलाओं के अंगों के नाम सहित चित्र उनमें बाटें, उन अंगों के बारे में और बताने के लिए|
हमारे लिए सबसे बड़ा आश्चर्य जब था जब एक सामने कि लाइन में बैठी लड़की रोने लगी |अपनी सहकर्मी को क्लास चलाए रखने के लिए आगे बढ़ाते हुए, मैं उस लड़की को क्लासरूम से बाहर ले गयी| मैंने अपने इन तजुरबों से यह समझा है कि शरीर के बारे में बात करना हमें विभिन्न अनुभव दे सकता है| उस युवा लड़की ने बताया कि उसने लिंग की तस्वीर पहले कभी नहीं देखी थी, उसके लिए ये देखना भारी वाला अनुभव था |उसने ये बताया कि ये उसके लिए यह वैसा नहीं था जिस तरह उसने सोचा था और जो वो जानती थी | वो डर गयी थी हमारी इस तरह की खुली बातों से |
जब मुझे पहली बार एक ऐसे ग्रूप, जिसमें महिला और पुरुष दोनों थे, को संबोधित करना था, मैं असधारण रूप से घबराई हुई थी |मैं सिर्फ लड़कियों के ग्रूप के साथ काम करने के आरामदायक दायरेमें जा गिरी थी| अब एक ही कमरे में दोनों से बात करना?
क्या लड़कियाँ हँसेगी ?क्या लड़के ये सब स्वीकार करेंगें|
मुझे अपनी जीवविज्ञान कि क्लास याद आ गयी जो प्रजनन पर थी |हमारे शिक्षिका ने हमसे नज़रे नहीं मिलाई थीं और हम खी-खी-खी करते रह गये थे |
वो आँख ना मिलाना ठीक वैसा था, जैसे कि मासिक पर बात करना, लेकिन सेक्स पर नहीं |
पर मैंने सीखा कि आँख मिलाना प्रभावशाली है| और यह भी कि कुछ और बात करते हुए भी हम सेक्स की बातचीत कर सकते हैं |
एक हफ्ते का एक लम्बा सा कोर्स था शहर के एक कॉलेज में ,HIV एड्स विषय को चुना गया था, हमें इसके बारे में बात करनी थी ( बिना सेक्स के बारे में बात करे ) | ये जान कर अच्छा लगा कि कमरे में कोई शिक्षक नहीं थे | हमने क्लास को छोटे छोटे ग्रुप में बाँट दिया ,और उन्हें hiv एड्स पर शीट्स दे दीं, और हमने चोरी से उसमें सेक्स,हस्थमैथुन और सेक्सुअलिटी पर सवाल डाल दिए|
सवाल काफी सक्रिय थे उन सारे मिथकों को तोड़ने में जो कि हस्थमैथुन और सेक्सुअल आनंद से जुड़े थे | इन सवालों का असर भी अच्छा था | क्लास शर्मा रही थी, पर जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि कोई उनकी आलोचना नहीं करेगा तो उन्होंने कहा कि अब तक कभी भी किसे ने भी हस्तमैथुन का ज़िक्र बिन फुसफुसाए नहीं किया था | उनके ग्रुप के काम के बाद ,हमने साथ में सवाल किए |कुछ लोग, दूसरों से ज्यादा ऊँची आवाज़ में जवाब दे रहे थे ,पर सारे हाँ! और ना ! वाले जवाब तेज़ आवाज़ में आ रहे थे |
“ क्या हस्थमैथुन बुरा है?- ना |
क्या हम मासिक के दौरान सेक्स कर सकते हैं ? – हाँ |
क्या कंडोम १००% काम करते हैं ? – हाँ |”
ये मेरा सबसे खुला और सही अनुभव था सेक्स शिक्षा को लेकर |छात्रों ने बताया कि उनसे आज तक किसी ने सेक्स को लेकर इतने खुले में बात नहीं की थी, जिस कारण उनकी इतनी सारी अवधारणाएं थीं|
खासतौर पर महिला शरीर और सेक्स आनंद को लेकर |दुर्भाग्य से जब उन्होंने अपनी ये बात राजनीती विज्ञान के शिक्षक से की…अगले दिन, मुझे उनकी नज़र में रोष का सामना करना पड़ा| मैंने आँखें नहीं मिलाईं,मैं बस खुद में हँसी |
इस सत्र ने मुझे ये सिखाया कि यौन शिक्षा लेने के लिए कभी देर नहीं होती | बशर्ते वो सुरक्षित( हर तरह से), मज़ेदार और खोज हो की वो जगह हो जिसमें हम सेक्स शब्द का उस ही तरह आवश्यकता अनुसार उपयोग कर सकते हैं, जैसे और शब्दों का |
श्रीनिधि राघवन एक नारीवादी महिला हैं जो बहुत पढ़ती हैं ,एक अंतर्मुखी जो मानव अधिकारों का समर्थन करती हैं ,जो महिला और बालिका अधिकारों ,समानता और सेक्सुअलिटी के बारे में लिखती हैं|वो अपने को आराम देने के लिए कविताओं में खुद को छुपाती हैं |
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I look forward to reading more:)
Pretty illustrations! I think it’s great what you guys are doing! My best wishes to all of you.
This is such a beautiful read Srinidhi. To know about your experience on sex-ed classes. Educating young minds from early in their lives will add a lot to make our society happier and more peaceful! Keep up the good work. 🙂
Wonderfully written and sounds like wonderful work being done – congrats! We have found that the term ‘sex-ed’, though easier to say, does not give the complete picture and therefore prefer using the longer, more cumbersome but accurate term ‘comprehensive sexuality education’ or ‘CSE’… helps clarify that it is much more than about sex…
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