आपने क्वीयर शब्द सुना है, और आपको लगता है कि आप इसका मतलब जानते हैं। लेकिन फिर क्या आपको अचानक ऐसा भी लगने लगता है कि शायद आप इसका सही मतलब नहीं जानते? एक तरफ तो ये शब्द LGBT ग्रूप की पसंद-नापसंद के बारे में है, लेकिन दूसरी तरफ ये LGBTQI + का भी हिस्सा है। तो क्या दोनों जगह इसका मतलब अलग है? या आपने कुछ लोगों को यह कहते हुए सुना है कि 'समलैंगिक (gay) और क्वीयर में अंतर है'। या कई बार लोग कुछ 'चीजों' को भी क्वीयर बतलाते हैं हैं, - जैसे कोई फिल्म या पेंटिंग या कोई स्टाइल एलिमेंट।
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इतिहास/ हिस्ट्री
आईडिया से इंसल्ट तक
रोज़मर्रा की 'इंग्लिश' भाषा में 'क्वीयर' का मतलब होता है कुछ अलग, या अजीब, या विचित्र - लेकिन जरूरी नहीं कि ये किसी बुरी चीज की तरफ ही इशारा करे। मसलन कोई कहता है 'वाह, क्या क्वीयर आईडिया है।'
इस शब्द की हिस्ट्री क्या है? इस शब्द का इस्तेमाल किसी का मज़ाक उड़ाने के लिए किया गया हो, ऐसा तो काफी बाद में हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटैन में इसका इस्तेमाल उन मर्दों का मज़ाक उड़ाने के लिए किया जाने लगा जो या तो समलैंगिक (gay) थे या औरतों वाली प्रवृति रखते थे।
आप प्रसिद्ध लेखक और नाटककार, ऑस्कर वाइल्ड को तो जानते ही होंगे? पहली बार जब 'क्वीयर' शब्द का इस्तेमाल समलैंगिक पुरूषों के अपमान के लिए लिखित रूप में दर्ज हुआ , उस किस्से में ऑस्कर वाइल्ड का भी एक गेस्ट अपीयरेंस है। दी मारक्वेस ऑफ क्वींसबेरी (The Marquess of Queensberry)- इस पदवी के धारक, जॉन डगलस नाम के एक आदमी को पता चला कि उसका एक बेटा किसी पुरुष के साथ सम्बन्ध में है। 1894 में, उसने अपने दूसरे बेटे को एक खत लिखा। उस खत में उसने 'स्नॉब (अपने को दूसरों से बेहतर समझने वाले) क्वीयर'- शब्दों का अपमानजनक लहज़े में इस्तेमाल किया। लेकिन बाद में उसको पता चला कि उसका दूसरा बेटा भी समलैंगिक संबंध में था। और जिसके साथ उसका सम्बन्ध था, वह कोई और नहीं, बल्कि ऑस्कर वाइल्ड था! डगलस आग-बबूला हो गया और उसने वाइल्ड को बहुत अपमानित किया। वाइल्ड ने उसपर मानहानि का मुकदमा कर दिया, लेकिन बाद में फिर मुकदमा वापस ले लिया। पर ये तो उनकी कानूनी लड़ाई की बस शुरुआत ही थी। यही लड़ाई वाइल्ड की बर्बादी का कारण भी बनी । कोर्ट की सुनवाई के दौरान ही डगलस का वो खत सामने आया जिसमें 'क्वीयर' शब्द का इस्तेमाल किया गया था।
समय के साथ, कई लोग इस शब्द का इस्तेमाल अपशब्द के रूप में या अपमान करने के लिए करने लगे।
एक अपमान के मतलब को ही उलट देना और पूरी दुनिया को उल्टा-पुल्टा कर देना।
1980 के आसपास, LGBT एक्टिविस्ट्स (activists) ने इस शब्द को अपना लिया। बजाय ये मानने के कि अलग होना एक बुरी बात है, और बजाय ये मांग करने के कि उन्हें क्वीयर न बुलाया जाए, उन्होंने इस शब्द को ना सिर्फ अपना बनाया बल्कि उसके मतलब को भी पलट दिया। ये कहकर कि अगर सब हमें अपने से अलग मानते हैं तो मानें- औरों से अलग होना तो खुशी की बात है। अब क्वीयर शब्द का एक नया मतलब था। क्वीयर यानी, वो मज़बूत और काल्पनिक विचार, जो ‘नॉर्मेटिविटी’ को ना माने।
(हां, हम जानते हैं, आप सोच रहे होंगे - यार, इतनी अंग्रेजी! अब ये नॉर्मेटिविटी (normativity) क्या है?
नॉर्मेटिविटी का मतलब है वो सब जो कि समाज के बनाये गए नियमों के दायरे में आता है, या यूं कहें कि जिन्हें समाज 'नार्मल' मानता है। फिर चाहे वो हमारे पहनने-ओढ़ने का तरीका हो या कुछ 'मान्य/परिभाषित' रिश्ते बनाना। उदहारण के लिए, ये मानना कि प्यार, सेक्स और शादी नार्मल रूप में एक पुरुष और एक महिला के बीच ही होनी चाहिए। या कि एक दिन सबको शादी करनी ही है। इन तय नियमों के बीच अगर एक ऐसा रोमांटिक रिश्ता आ जाये जो दो औरतों के बीच का है, तो उसे यकीनन असामान्य और अनुचित माना जायेगा। और कहा जायेगा कि वो नोर्मेटिव नहीं है)।
बड़ी छतरी के नीचे आकर बारिश में गाना गाना
1990 में, क्वीयर नेशन (Queer Nation) नाम के एक संगठन ने न्यूयॉर्क में हो रहे प्राइड परेड में कुछ लीफलेट्स बांटे। उसका टाइटल था ' इसे क्वीयर पढ़ते हैं' (Queers Read This)। इसमें उन्होंने बताया कि वे इस शब्द का इस्तेमाल सम्मान के साथ कर रहे हैं और इस सोच से जुड़े एक बड़े समुदाय को इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका मानना था कि क्वीयर (गे की तरह) शब्द का इस्तेमाल सिर्फ मर्दों के लिए किया जाना, सही नहीं है।
लीफलेट में, क्वीयर नेशन के सदस्यों ने इस बात पर नाराज़गी जाहिर की कि LGBT समुदाय के लोगों को बेइज़त्ती और हिंसा का निशाना बनाया जा रहा था। वो इसके खिलाफ़ इज़्ज़त और निश्चय के साथ लड़ना चाहते थे, और ज़रूरत पड़ी तो हिंसा भी अपना सकते थे। एक तरह से टकराव की रणनीति अपनाने
के कारण उन दिनों वो विवादस्पद थे - और आज भी हैं। लेकिन उस पर्चे में, वे सिर्फ उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग नहीं कर रहे थे जिन्होंने उन पर हमला किया था, बल्कि अपनी सोच वाले और लोगों को अपने साथ शामिल भी करना चाहते थे। उन्होंने ये भी बताया कि क्वीयर होने का मतलब सिर्फ जेंडर या सेक्सुअलिटी का एक अलग नज़रिया नहीं था जिसे नार्मल नहीं समझा जाता है। बल्कि क्वीयर होने को और बारीकी से समझने की ज़रूरत है - एक विस्तृत फ़लसफ़े की तरह।
“क्वीयर होने का मतलब है एक अलग तरह का जीवन जीना। यह कोई ज़रूरी मुद्दा उठाने वाला, मुनाफा कमाने वाला, देशभक्ति या पितृसत्ता की दुहाई देने वाला ग्रूप नहीं है, जिसमें जो जब चाहे सम्मिलित हो जाए। यह एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, कुलीन या ऊंचे वर्ग के लोगों का खेल नहीं है। ये तंग सीमाओं में रहकर खुद का परिचय देने की बात है। यह जेंडर की ऐसे की तैसी करने वाली, राज़ से भरी बात है। ये बेल्ट के नीचे और दिल के अंदर क्या है, उसके बारे में है। यह उन रातों के बारे में है। क्वीयर होना यानी 'ज़मीन का होना ‘।क्यूंकि हम जानते हैं कि हम में से हर कोई, हर शरीर, हर योनी, हर दिल, हर गुदा और हर लिंग अपने अंदर आनंद के सागर दबाये रखता है, जिसमें अपार संभावनाएं होती हैं। हां, हम एक सेना हैं क्योंकि हमें सेना बनने की ज़रूरत है। हम एक सेना हैं क्योंकि हम सशक्त हैं। (हमारे पास लड़ने के लिए बहुत कुछ है; हम लुप्त होने का खतरा उठा रहे प्रजातियों में से सबसे अनमोल हैं)। और हम प्रेमियों की सेना है क्योंकि हम प्यार की परिभाषा को अच्छे से समझते हैं।"
ऐसा समझ लो कि 'क्वीयर' शब्द को आज भी काफी उग्र और और बहुत सारे मुद्दों को संग समेटने वाला शब्द माना जाता है- और ये सिर्फ सेक्सुअलिटी तक ही सीमित नहीं है। ये हर उस चीज़ का जश्न मनाने की चाह है, जिसे सोसाइटी के लिए इसलिए अनुचित माना जाता है, क्योंकि ये पुरानी रूढ़िवादी सोच पर सवाल उठाती है। फिर चाहे वो बात हमारे व्यवहार की हो, हमारे जेंडर या सेक्सुअलिटी की, प्यार करने के तरीकों की, हमारे आर्ट या फैशन की, या उन चीजों पर जो हमारे लिए सच में मायने रखती हैं।
जब क्वीयर एक थ्योरी बन जाता है तो वो बाकी सब चीज़ों की क्वीयरी(query) करता है, यानी उसपर सवाल करता है।
1990 में, जूडिथ बटलर, ईव सेडगविक, टेरेसा डी लॉरेटिस और जैक हैलबर्स्टम जैसे नारीवादि लोगों (फेमिनिस्ट्स) के काम से 'क्वीयर थ्योरी' का विकास हुआ। इसमें जेंडर और सेक्सुअलिटी की मदद से पावर के दोनों पहलुओं की जांच हुई, प्राकृतिक और काल्पनिक।
1997 में, राजनीतिक वैज्ञानिक, नारीवादी और एक्टिविस्ट कैथी जे कोहेन ने लिखा: “हम में से कई लोग आज भी एक नई राजनीतिक दिशा और एजेंडा की खोज में लगे हुए हैं।इसका मकसद ये नहीं कि हम भी समाज के प्रभावशाली ढांचों से अपने को जोड़ लें। बल्कि ये उन ढांचों पर सवाल उठाता है जो समाज में भेद भाव, ऊंच नीच को बढ़ावा देते हैं, जिनकी वजह से एक तबके का दूसरे पर अत्याचार बना रहता है, और बढ़ता भी रहता है। हममें से कुछ लोगों के लिए, क्वीयर सोच, गे और लेस्बियन - यानी समलैंगिक समाज - की भी परम्पराओं और राजनीति पर सवाल उठाने का मौक़ा रहा है।”
क्वीयर राजनीति ने क्वीयर नेशन के पैम्फलेट में दिए गए विचारों का विस्तार सिर्फ सेक्स, कामुकता और जेंडर को नयी नज़र से देखने के लिए ही नहीं किया। बल्कि इस समझ का इस्तेमाल दूसरे मुद्दों पर सवाल करने के लिए भी किया।
उदाहरण के लिए, यह सिर्फ हमारी अपनी आज़ादी के बारे में नहीं है। बल्कि ये सवाल उस आज़ादी के बारे में है जो सिर्फ चुनिंदा लोगों को अपना सेक्सुअल पार्टर चुनने के लिए मिलती है। ये सवाल सरकारों से है कि क्यों उन्होंने विषमलैंगिकता (heterosexuality) को ही अपने नागरिकों के लिए सही माना है। कई देशों में, सिर्फ विषमलैंगिक शादी को ही मान्यता दी जाती है, और विरासत (inheritance) के अधिकार भी कई मामलों में सिर्फ विवाहित पति-पत्नी के लिए ही लागू होते हैं। और जो लोग अविवाहित होकर भी लंबे समय से रिलेशनशिप्स में हैं, उनको इन अधिकारों में शामिल नहीं किया जाता है। लेखक और अकदमीशियन (उच्च श्रेणी के शिक्षक) जॉन डी इमिलियो ने 1983 में लिखा था कि "सिर्फ परिवार में रहने वालों को ही महत्वपूर्ण समझना और परिवार के बंधन में ना रहने वालों को अधिकारों से वंचित रखना एक प्रथा बन गयी है। इसे रोकने का एक उपाय ये है कि समुदाय के वैकल्पिक ढाँचे, जैसे - आवास/हाउसिंग, डे-केयर, मेडिकल सुविधा - तैयार किये जाएं - जिससे समाज का और भी विस्तार हो और उस समाज में सबके लिए एक सम्मानजनक और सुरक्षित स्थान हो। जैसे ही हम परिवार के घनिष्ट वातावरण से निकलकर ग्रूप्स बनाएंगे, वैसे ही परिवार से जुड़े होने की एहमियत थोड़ी कम हो जाएगी। और फिर परिवार से जुड़ी चीज़ें जो हमें भावनात्मक रूप से जोड़ती या तोड़ती थी,उसकी चिंता भी दूर होती जाएगी।” उन्होंने ऐसे कई सपोर्ट नेटवर्क (support network) बनते देखे जो खून के रिश्तों या राजकीय मंजूरी के आधार पर नहीं बने थे। बल्कि क्वीयर समूह के लोगों के नेटवर्क की तरह, एक महत्वपूर्ण राजनितिक उद्देश्य के साथ बने थे।
क्वीयर आर्ट पर एक निबंध में, लेखक और कलाकार कैसी पीटरसन ने यह लिखा कि क्वीयर गे (gay) और लेस्बियन (lesbian) का उद्देश्य सिर्फ मुख्यधारा (mainstream) में सम्मिलित होना नहीं है। "क्वीयर एक उग्र-सुधारवादी राजनैतिक (radicalized politic) और कलात्मक प्रथा (aesthetic practice) है जिसकी रुचि उन तरीकों में विविधता लाना है, जिनसे सामाजिक सृजन होते हैं। ना कि इस बात में कि जो चीज़ें चलती आ रही हैं उनमें ही कैसे अलग अलग तरह के लोगों को शामिल किया जाए। क्वीयर - गतिरोध से अलग एक आंदोलन। यथास्थिति (status quo) से अलग।"
एक बार प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और कॉमेडियन जॉन वाटर्स ने सबके बिना किसी उद्देश्य के इस मोहीम में शामिल होने का मजाक बनाते हुए कहा: "मुझे हमेशा लगता था कि समलैंगिक होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि ना ही हमें शादी करने के लिए मजबूर किया जाएगा और ना ही हमें आर्मी में भेजा जाएगा।"
लेखक,विद्वान और क्वीयर एक्टिविस्ट आर. राज राव ने 2019 में एक बातचीत के दौरान कहा: “मैं, एक क्वीयर व्यक्ति के तौर पर, नॉर्म, नार्मल, नोर्मेटिव, नोर्मेटिविटी जैसे शब्दों को अस्वीकार करता हूं। आप पूछेंगे कि मैं क्या करना चाहता हूँ?तो इसका जवाब है - मैं मानदंडता (नोर्मेटिविटी) को खत्म कर देना चाहता हूँ। मैं यथास्थिति (status quo) को - बिगाड़ देना चाहता हूँ।"
क्वीयरिंग
‘क्वीयरिंग’ का मतलब है कसौटियों पर सवाल उठाना, और सत्ता के प्रभावी स्तंभों को कटघरे में लाना।
कुछ लोगों के लिए, चीजों को उल्टा-पुल्टा करने का मतलब यह मान लेना है कि दुनिया में जितने भी बड़े बदलाव होते हैं, वह व्यक्तिगत स्तर किये जाने वाले छोटे-छोटे बदलावों से जुड़े हैं। खुद को जैसे भी चाहें वैसे व्यक्त करने की आज़ादी, किसी से भी प्यार करने की आजादी, जो आपके साथ सेक्स करना चाहता हो उसके साथ सेक्स करने कि आज़ादी, इसके अलावा और भी कई तरह की आज़ादी। इसका यह मतलब भी है कि हम यह मान लें कि हम थोड़े से अलग हैं। और अलग होना एक अच्छी चीज़ है, ना कि डरने वाली या शर्म करने वाली कोई बात। आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी ना, वैरायटी इस दी स्पाइस ऑफ़ लाइफ (विविधता में ही जिंदगी का मज़ा है)!
कई लोगों के लिए, क्वीयर होने का मतलब यह भी है कि हम जो कुछ भी करते हैं, उसका उद्देश्य प्यार, आनंद और मस्ती हो। और जो गंभीर बात हो उसको हल्के में लिया जाए और जिसे मामूली समझा जाता है, उसे गंभीरता से देखा जाए।
तो - क्या हर कोई क्वीयर है?
नहीं, हर कोई क्वीयर नहीं है, और न ही होने का दावा करता है। हालांकि लोगों के जीवन में एक क्वीयर जैसी चीज़ हो सकती है। अभी के लिए, कुछ संदर्भों में ही क्वीयर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
सेक्स (SEX) और जेंडर (GENDER) की पहचान
जब हम बड़े हो रहे होते हैं तो आमतौर पर हमें बताया जाता है कि सिर्फ दो तरह के लोग होते हैं - या तो पुरुष या महिला। अगर आपका महिलाओं वाला शरीर (उर्फ़ स्तन और योनि) है तो इसका मतलब है कि आप एक महिला हैं, और अगर आपका पुरुष वाला शरीर (उर्फ लिंग) है तो इसका मतलब है आप एक पुरुष हैं। लेकिन हर किसी के पास वैसा शरीर नहीं होता है जो निर्धारित तरीकों से जन्म के दौरान ऐलान किये गए जेंडर के साथ फिट बैठे। और हर कोई सिसजेंडर (cisgender) भी नहीं होता है- मतलब कि जिस शरीर (महिला/पुरुष) के साथ वो पैदा होते हैं, जरूरी नहीं उनका जेंडर भी वही हो। जेंडर की पहचान अब कई मायनों में की जाती है, न कि केवल जैविक/बायोलॉजिकल नज़रिये से। जेंडर पर और नज़रिये :
- इंटरसेक्स: एक व्यक्ति जो कुछ मर्द वाली और कुछ औरत वाली जैविक विशेषताओं (biological characteristics) के साथ पैदा होता है। ये विशेषताएँ जननांग (genitilia) तक ही सीमित नहीं रहती हैं। यह क्रोमोसोम्स या जनन-ग्रंथि (gonads) की विभिन्नता या कई दूसरे पहलुओं पर भी आधारित हो सकती है।
- ट्रांसजेंडर: ऐसे लोग जो पैदा होने के समय मिलने वाले जेंडर से खुद की पहचान नहीं करते हैं। ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-महिलाएं अपने जननांग और शारीरिक बनावट को बदलने के लिए सर्जरी और हार्मोन थेरेपी करवा सकते हैं। लेकिन हर ट्रांसजेंडर ऐसा नहीं करते।
- हिजड़ा: भारत और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में एक विशेष सांस्कृतिक पहचान वाले लोग, जिनमें से कईओं की पहचान 'तीसरे लिंग (third gender)' के रूप में होती है। दक्षिण एशिया में ऐसे कई समूह हैं - जैसे किन्नर, अरावनी, जोगप्पा, इत्यादि - और इन सबकी अपनी क्षेत्रीय पहचान और परंपरा होती है।
- लिंग द्रव/gender fluid - (या जेंडरक्वीयर या नॉन-बाइनरी): ऐसा शब्द जो उनके लिए इस्तेमाल होता है जिनकी जेंडर पहचान कुछ ऐसी है कि वो न ही पूरी तरह से अपने को मर्द मानते हैं और ना पूरी तरह से औरत। जैसा कि शब्द 'द्रव'/ तरल से समझ आता है, जेंडर से इनकी कोई पक्की पहचान नहीं होती है। कुछ एक ही समय में एक से ज्यादा जेंडर के होने का एहसास करते हैं, कुछ मानते हैं कि उनका कोई जेंडर ही नहीं है और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें अलग-अलग समय पर अलग-अलग जेंडर्स में होने का एहसास होता है।