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इस महीने AOI में शर्म/ ‘नो’ शर्म

शर्माना कैसा?

 

हाँ हम सब को पता है, शर्म लगना कैसा होता है l और शर्म का कितना  ज़बरदस्त प्रभाव पड़ सकता है l इतना गहरा कि हम इसके आधार पर बहुत कुछ करने लगते हैं- हम किसको मिलते हैं, क्या पहनते हैं, कहाँ जाते हैं, हमें अपने बारे में कैसा लगता है.. और ऐसा बहुत कुछ l

जब लोग हमारा मज़ाक उड़ाते हैं या हमें जज करते हैं, तो जैसे हमें शर्म सिखाई जाती है l  हम शर्म की इस भावना को दोस्तों, परिवार वालों, पड़ोस की आंटी, इन सब से और उस समाज से जिसमें हम रहते हैं, उस पॉप कल्चर से, जो हमारे इर्द गिर्द है- सबसे सीखते हैं, और अपने अंदर सोखते हैं l

अलग अलग समय और अलग अलग परिवेशों में कौन सी बात शर्मनाक है, बदल सकती है, पर ये एक बात नहीं बदलती- कि शर्म दिला कर लोगों को कण्ट्रोल करने की कोशिश की जाती है l भला ये औरतों को उनकी 'जगह दिखाने' के बहाने की जाए, या क्वीर लोगों को ये बताने को कि हमें उनकी उपस्तिथि पसंद नहीं, या फिर जिन लोगों के बदन कायदेनुसार नियमित न हों, उन्हें ये बताने को, कि वो 'कूल' नहीं हैं !

इस महीने हम उन सभी तरीकों को परखेंगे जिनसे शर्म हमारी ज़िंदगी में घुसपैठ करती है, और उन कई तरीकों को भी समझेंगे जिनसे लोगों ने इसके ज़हर को बेअसर करने की कोशिश की है l

 

सपने शर्म से ऊंचे उड़ते हैं

इस महीने के पहले हफ्ते में हमारे नए वीडियो सीरीज- #ग्रोन अपगर्ल्स ( सयानी लडकियां)- का प्रीमियर है!! ये श्रंखला हमने CREA के साथ मिलकर बनायी है l ये एक शानदार, मज़ेदार और चटपटे इंटरव्यूज की श्रंखला(सीरीज) है, जिसमें डाक्यूमेंट्री और एनीमेशन के ज़रिये, कुछ जवान लडकियां, बड़े होने के बाद की अपनी ज़िंदगी को लेकर अपने सपनों को शेयर करेंगी l कोई अगर दुनिया भर घूम कर फुटबॉल खेलना चाहती है, तो कोई  और दूकान खोलना चाहती है या फिर एक संवेदनशील पोलिसवाली बनना चाहती है l एक बालिग़ औरत होना क्या होता है, उनके सपनों के ज़रिये, इसके मतलब भी बढ़ते जाते हैं, बदलते जाते हैं l उनके सपने इतने ऊंचे उड़ते हैं की वो हर उस शर्म को नीचे -पीछे छोड़ देते हैं, जो उन्हें इसलिए दिलाई जाती है क्यूंकि उन्होंने शादी को अपना परम गोल नहीं माना.. और क्यूंकि उन्होंने अपने आस पास के लोगों द्वारा दिए गए संकुचित जीवन को न चुनकर, अपना रास्ता खुद बनाने की सोची है l

 

कुलटा कह रहे हैं तुमको? तो दोस्त बदलने का टाइम आ गया है !

“मैंने एक लड़के को चूमा- कई और लड़कों को भी - और मुझे ये अच्छा भी लगा - सो मैं कुलटा हूँ”

ये एक साफ़ साफ़ अपने मन की बात कहने वाला लेख हैl लेखिका अपने को कुलटा कहलाये जाने पर, अपने को यूं शर्मिन्दा किये जाने के अवसरों पर ध्यान देती है l उसे ये बात समझ आने लगती है कि कभी कभार जब समाज आपको आपको बुरा भला कहकर अपना छिछोरापन दिखलाता है, तो गलती आपकी नहीं होती, आपको बदलने की कोई ज़रुरत नहीं है, आपके आस पास के छिछोरे लोगों के बदलने की ज़रुरत है !

 

बॉडी को कैसा दिखना चाहिए इस बात को लेकर किसी को शर्मिन्दा करना-  छिछोरी बात है!

आपके बदन पर अगर बाल हैं तो क्या इसका मतलब है कि आपकी बॉडी सेक्सी नहीं हो सकती?

"एक भी बाल अपनी जगह पर नहीं है! और मेरे दिमाग में छाए हुए हैं सेक्स, बॉडी और वैक्सिंग के बारे में ख़याल" - इस लेख में एक औरत अपने बदन पर बाल होने से जो शर्म महसूस करती है, और उस वजह से, पागलों सी अपने को संवारने में जिस तरह जुटी रहती है,  उसपर सोचती है l फिर उसके साथ मिलने के लिए हर सूरत में उतावला उसका प्रेमी, भला उसके बदन पर बाल हों या ना हों... उसे ये सोचने पर मजबूर कर देता है कि शायद बालों का ये मसला उतना बड़ा है ही नहीं !

 

-   सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन- यानी ऐसे इन्फेक्शन/ संक्रमण जो यौन संपर्क के फैलते हैं- इनको लेकर कितना लांछन है हमारे समाज में!

"मुझे StI हुआ तो यूं लगा कि मुझे अपमानित सा किया गया है , पर सच तो ये है कि मुझे पता है कि मैं छूने, प्यार करने और सेक्स करने के बहुत लायक हूँ" इस लेख में एक जवान लड़की इस बारे में बात करती है कि STI होने से कितना लांछन जुड़ा है... पर उसने कैसे इस बेबुनियादी लांछन की परवाह न की और वापस एक्शन पर ले आई अपने आप को!

 

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