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दोस्ती: डगमगाते हुए प्यार वाली पिक्चर

Shocking - Queer people confused if their flirting is romantic or platonic!

सनसनीखेज़ खुलासा – लोकल भावी फ़िल्ममेकर्स को आईडिया आया लॉकडाउन पर लॉकडाउन के दौरान फ़िल्म बनाने का| ये ऊपर जिन फ़िल्ममेकर्स की बात हो रही है ना, वो मैं और मेरा बेस्ट फ्रेंड हैं। उस तरह हम अपने बारे में काफ़ी जागरूक थे| तो हमने डीसाइड किया कि पूरी फ़िल्म केवल पैंडेमिक के ऊपर नहीं होगी| ये फ़िल्म बाकी चीज़ों पर फ़ोकस करेगी| जिनके बारे में ज़्यादा बातें नहीं होती| जैसे इस ग्लोबल महामारी के दौरान लोगों से अलग होकर अकेलेपन के बारे में| इस फ़िल्म का कोई बजट नहीं होगा| और इसके राइटर, निर्माता, डायरेक्टर और एक्टर हम दोनों ही होंगे| हमें यकीन था कि हम एकदम लीजेंडरी काम करेंगे और ऐसा काम करेंगे जो किसी भी बिना प्रोडक्शन हाउस वाली फ़िल्म ने नहीं किया होगा| अगला सीन, इंडिया में कोविड-19 की दूसरी लहर| महान लोकल भावी फ़िल्ममेकर्स ने निर्णय किया कि वो लॉकडाउन फ़िल्म बनाने से ज़्यादा बड़ी फ़िल्म बना सकते हैं| हम दोनों बाईस साल के हैं| हर तकनीकी रूप से एडल्ट लोग| हमें ज़ीरो बजट फ़िल्म नहीं बनानी चाहिए| हम टैलेंटेड लोग हैं और हमारी फ़िल्म एक अच्छी प्रोडक्शन वाली होनी चाहिए| अभी के लिए प्रोडूसर के रूप में हमने अपने माँ बाप को ही मना पाये हैं| और जितने निराश वो पहले थे उससे कहीं ज़्यादा अब हैं| पर हम में है विश्वास, पूरा है विश्वास, उनको हम पर इस बार गर्व होगा| ये नयी फ़िल्म दो दोस्तों के बारे होगी| हम दोनों ने अपनी ही कहानी लिखने की सोची| इस फ़िल्म में गाली की भरमार होगी, थोड़ा सेक्स का तड़का होगा, और ड्रग का इस्तेमाल होगा| हे भगवान, ये फ़िल्म ओ हम अपने निर्माताओं(फ़िल्म के और हमारे भी) को तो बिल्कुल नहीं दिखा सकते|  मेरे  बेस्ट फ्रेंड ने कहा,“आखिर में ये कहानी दोस्ती की ही है| मैं चाहता हूँ कि एन्ड सीन  में हम दोनों चिल कर रहे हों| आपस में एक जॉइंट शेयर करें इस उम्मीद में कि सब ठीक ही जाएगा|”  उसकी बात सुन कर मैं थोड़ा अच्छा फ़ील  करने लगी महीने बीत गए थे जब मैंने उसे आखिरी बार देखा था| मुंबई में कोविड के केसेस बढ़ते ही जा रहे थे| मैं हर तरह से ख्याल रख रही थी| और घर से भी कम निकलती थी|  मेरा दिन ज़्यादातर सोने में, बेमतलब इंटरनेट पर शो देखने में, और काम चलाऊ काम करने में निकल जाता था| इसके अलावा डेटिंग एप्प पर लोगों को राइट और लेफ्ट(ज़्यादातर) करने में समय बीतता था| इस पैंडेमिक के पहले से ही जब रिलेशनशिप के बात आती थी तो मैं बातचीत के आगे कभी बात ले ही नहीं जा पाती थी| लम्बी लम्बी बातें, डिटेल से भरी बातें होती| तब तक जब तक दोनों में से कोई एक थक कर बातें करना बंद कर देता| या फ़िर  उनको अचानक याद आता कि  उनका दिल तो उनके बेस्ट फ्रेंड के पास है| या हम दोनों में से एक की ‘मिथुनता’ कुछ ज़्यादा ही हावी थी| और नहीं तो हम में से एक रात के तीन बजे के लिए इतनी ज़्यादा और ज़ोर से बक बक करता कि  दूसरा उसको म्यूट पर रख देता| पैंडेमिक ने बस इस बातचीत के स्टेज को और छोटा कर दिया था| और लोगों का बिना बताये गायब हो जाना और आसान| इन सब सबूतों के मद्देनज़र एक बात पक्की थी - मैं बिना प्यार के अकेले ही मरूंगी|  पर मैंने लोगों को डेटिंग एप्प पर स्वाइप करना नहीं छोड़ा| ये उम्मीद नहीं आदत थी| ये वो लड़कियाँ थीं जिन्हें या तो मैंने बीच मझधार में छोड़ दिया था या फ़िर वो जिन्होंने मुझसे बिन बताये बातें करना बंद कर दिया था|  जान पहचान वालीं क्वीयर लोग| कपल्स जो मज़े के लिए किसी तीसरे की तलाश में थे| इतना बुरा नहीं था वैसे|कुछ नए लोग भी थे| फ़िर मेरी मुलाक़ात उससे हुई| ‘ज़ी’ से| मैं ज़ी को तीन साल से जानती हूँ| हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं| उसी ने मुझे  पहली बार ‘किंग प्रिंसेस’ सुनवाया| स्कैम देखने को भी उसी ने कहा|(स्पैनिश वाला, दूसरा सीज़न थोड़ा ज़्यादा ही अतरंगी था) हम दोनों ने कई शोज़ भी साथ मे एन्जॉय किये थे| हम एक दूसरे को इन डेटिंग एप्प्स  पर देखते| और एक दूसरे को ही सुपर लाइक दे कर एक दुसरे के साथ नाकाम बातचीत के बारे में बात करते| वही नार्मल लेस्बियन बातें| जहाँ हम दिल खोल कर फ़्लर्ट करते हैं| एक दूसरे  के साथ सब शेयर करते हैं| पर ये पता नहीं होता कि ये दोस्ती वाला प्यार है या इश्क वाला लव|  मुझे तो वो बहुत ही पसंद थी। पैंडेमिक सिचुएशन थोड़ी बेहतर थी| और इसी में मुझे सुरक्षित पुणे ट्रेवल करने का मौका मिला| जहाँ मेरा बेस्ट फ्रेंड ने किराये का घर लिया हुआ था। अपने अपने शहर और घरवालों की चिक चिक से बचने का सबसे अच्छा आईडिया था। मुझे बस कपड़े का बैग लिए, उसके घर तक पहुंचना था। मेरी ख़ातिरदारी में वहाँ कोई कमी नहीं होनी थी। हमने अपनी स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू किया। हमारे किरदार निखर कर बाहर आ रहे थे। वो हम आपके जैसे ही थे। जिन्हें लोग पसंद कर सकें। हम सही मुद्दों के बारे में लिख रहे थे। शायद हमारी कहानी में दम था? नये किरदार जोड़े गए। ज़ाहिर है रोमांटिक एंगल के लिये। मेरे बेस्ट फ्रेंड ने तो अपनी लाइफ के पन्नों से ही किरदार जोड़े थे। पर मुझे लगा नहीं था कि कहानी में मुझे पार्टनर की ज़रूरत थी। पर तब भी मैंने अपने किरदार के लिये पार्टनर का रोल लिख ही दिया। किसी तरह ये मेरे किरदार का किसी को प्यार करना केयर करना जायज़ करार करता। जहाँ वो अपनी सबसे नई हुक अप स्टोरी के बारे में डिटेल से बता रहा था मैं अपनी क्वीयर कंफ्यूजन के साथ उसे सुन रही थी। 2021 में मेरा मेरे कवीयरपन को लेकर कंफ्यूज़ होना थोड़ा अजीब लगता है। मेरे जानने वालों में ज़्यादातर लोग क्वीयर हैं। क्वीयर कंटेंट बनाने वाले भी ज़्यादातर अच्छा ही कंटेंट बनाते हैं। क्वीयर के विषय पर सबसे पहली बुक, गाना, फ़िल्म भी बन चुकी है। ये मेरी खुदक़िस्मती है कि मुझे मेरी कम्युनिटी से इतना सहारा मिलता है। मुझे मेरी मदद के लिए जो वो चाहिए वो सब मिला। जैसी फ़ीलिंग्स मैं महसूस कर रही हूँ,ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ़ मेरे साथ होता है। और मुझे इसके अलावा और कुछ बात करने नहीं आता है। मैं समझ नहीं पा रहीं हूँ कि मुझे परेशानी किस चीज़ से है। और मेरे हीरो माफ़िक दिखने वाले बेस्ट फ्रेंड को समझाने जितने शब्द नहीं हैं। तो मदद के लिए मैंने ज़ी को मेसेज़ किया। मैं जानती थी वो समझेगी मेरी कंफ्यूज़न। फ़ोन के कीबोर्ड पर अंट शंट बटन दबा दिए और बेसिर पैर का मेसेज़ उसको भेज दिया। ये मेरा और उसके बीच का कोड लैंग्वेज थी। जब भी मैं ऐसा मेसेज़ करती तो वो समझ जाती की मैं कंफ्यूज़ हूँ। और आज की जेनरेशन को इसके बारे में कैसे समझाऊं, मुझे नहीं पता था। हमने कुछ दिनों से बात नहीं कि थी। दरअसल, हफ़्ते बीत गए थे बात किये। ये हमेशा होता था। हम एक दूसरे को तभी मेसेज़ करते थे जब मन करता। पर इस बार मामला थोड़ा अलग था। उसने कहा था कि अब उसकी कोई गर्लफ्रेंड है। ???!!????!!!! ये सोच के मेरा दिल थोड़ा बैठ गया। हमने अपनी स्क्रिप्ट का पहला ड्राफ्ट लगभग खत्म कर लिया था। काफ़ी ठीक ठाक ही था। सही मात्रा में झगड़े,  थोड़ा फ़नी, और काम के मुद्दों पर फ़ोकस था। अब दुविधा थी कि एन्ड कैसे किया जाये। हमारे ओरिजिनल प्लान के मुताबिक(स्पॉइलर एलर्ट) मेरे बेस्ट फ्रेंड का किरदार एक लड़ाई के बाद गुस्से से रेस्टॉरेंट के बाहर निकलता है। और उसके पीछे मेरा किरदार उसके पीछे जाता है। दो लोगों के बीच में जब कोई किसी एक के पीछे जाता है बात करने या मनाने तो मेरे हिसाब से वो दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। आपके पीछे आने वाला कोई है? जब आप दुनिया की तरफ़ पीठ फ़ेर लेते हो तो वो कौन है जो आपके कंधे पर हाथ रख आपके साथ होने का एहसास दिलाता है। स्कूल में जब आपकी बाजू बैठी दोस्त आपको कोहनी मार कर बताती थी कि उसका पेट दर्द कर रहा है। और वो उल्टी होने की उम्मीद में क्लास से भागे तो आपको उसके पीछे फ़ॉलो करना ही पड़ता है। ये बात टीचर भी जानती है और आपको इजाज़त देती है। या फ़िर कुछ साल बाद आपके बेस्ट फ्रेंड का बॉयफ्रेंड उससे मेसेज़ पर ब्रेकअप कर रहा होता है। और आप जानती हैं कि वो क्लास छोड़ कर रोने बाहर जाने वाली है। तो भले ही आप पांच लोगों का ग्रुप हो, आपको ही उसको फ़ॉलो करना है। क्योंकि आप उसकी बेस्ट फ्रेंड हैं और उसे ख़ासतौर पर आपसे ही सुनना है कि सब ठीक हो जाएगा। किसी के पीछे जाना मैं पर्सनल स्पेशल अधिकार समझती हूँ। इसलिए मेरे किरदार को भी ये करना चाहिए। पर यहीं मेरे बेस्ट फ्रेंड ने गूगली डालते हुए कहा कि मेरा नहीं उसके किरदार की प्रेमिका उसके किरदार के पीछे जाएगा। क्या? पर क्यों? भाई, तू उसको अच्छे से जानता भी नहीं है। अब हम दोनों के बीच तू लड़की लाएगा? क्या तेरे करैक्टर ने मेरे क़िरदार को एक लड़की के लिए छोड़ दिया? ये स्क्रिप्ट की गड़बड़ है या मैं इनसिक्योर महसूस कर रहीं हूँ? क्या मैं एक काल्पनिक क़िरदार से जल रही हूँ जो लिखा भी नहीं गया है? मैं जानती थी कि ऐसा लोचा ए उल्फत होना ही है। दोस्ती के ऊपर फ़िल्म बनाने के लिए अगर हम अपनी ही दोस्ती के ऊपर क़िरदार बनाएंगे तो ये तो होना ही था। अब्बास मस्तान की फ़िल्म से भी ज़्यादा पेचीदा फ़िल्म बना रहे थे हम। तो जब उसने कहा, "नहीं मेरी गर्लफ्रेंड मेरे पीछे आयेगी, तू क्यों आएगी" तो मैंने उसे कुछ ज़्यादा ही पर्सनली ले लिया। अपनी बेस्ट फ्रेंड के बजाए क्यों उसका क़िरदार चाहेगा कोई सुंदर सी लड़की जो उससे शायद प्यार भी न करती हो उसके पीछे आये। जब कहानी दोस्ती की है तो क्यों मेरा बेस्ट फ्रेंड कह रहा है कि मैं उसके पीछे ना आऊँ? उसकी बात सुनकर लगा कि कहानी एक स्ट्रेट आदमी के खुद को खोजने पर है। जिसमें मैं एक गे बेस्ट फ्रेंड का रोल निभा रही हूँ। ज़ाहिर है वो मुझे ऐसा फ़ील नहीं करवाना चाहता था। पर उस पल हमारी कहानी और हमारी ज़िंदगी आपस में इस तरह से सामान लग रहे थे कि मुझे लगा कि मैं अकेली पड़ गयी हूँ। मुझे लगा कि अपने ऊपर किरदार को लिखना एक बहुत बड़ी गलती थी। अपने दिमाग में मुझे ये खुद के बारे में ज़रूरत से ज़्यादा सोचना लगा। कोई क्रिएटिविटी नहीं थी। और काफ़ी नकली लगा। ये बात मैं चिल्ला कर बताना चाहती थी। पर मेरे बेस्ट फ्रेंड ने भी तो उसका किरदार उसने खुद पर ही बेस किया है, तो कैसे? जिसने हमेशा सही चीज़ करने की कोशिश की है। जिसने हमेशा उनका साथ दिया है जिसे वो प्यार करता है। मुझे ज़ी को तो मेसेज़ बिल्कुल ही नहीं करना चाहिये था। पता नहीं मेरा दिल क्यों बैठ गया था। इस बात पर कि मुझे अब एहसास हुआ कि मैं उसे पसंद करती हूँ या इस बात पर की उसे कोई मिल गयी और मुझे नहीं? क्यों और कैसे मैं अपने दोनों बेस्ट फ्रेंड्स से गुस्सा थी?मेरे पास कोई ठोस वजह भी नहीं थी।  वो दोनों मेरी लाइफ के सबसे बड़े और इम्पोर्टेन्ट चीजों को समझते थे। एक के साथ मैं मेरा फ़िल्मों का प्यार बाँटती थी। और दूसरे से मेरी क्वीयर नेस। दोनों ने हमेशा मेरा साथ दिया जब भी मुझे ज़रूरत थी। मैं अपनी फ़ीलिंग्स को शायद बेहतर शब्दों में ना समझा पाऊं। पर मुझे दर्द भी और बहुत स्टुपिड भी फ़ील हुआ। इसलिये नहीं कि ऐसा हो नहीं सकता। पर इस तरह का ख्याल मेरे अंदर आया ही क्यों? और ये दोनों ही ख्याल  तब आते हैं जब मैं इंस्टाग्राम पर मेंटल स्वास्थ के आंकड़ों के बारे में पढ़ती हूँ।  जिसे ना देखने की मुझे हिदायत दी गयी है। पर हूँ तो इंसान ही ना। जो शांति से कभी स्टुपिड फ़ील करना चाहता है। और फ़िर अपने दोस्तों को उसे प्यार करने को बोलता है। मुझे थोड़ा समय लगा। स्टुपिड लगा। ज़ी को लेकर जो कंफ्यूज़न थी मैंने अपने बेस्ट फ्रेंड को बताई। एक और सनसनीखेज़ समाचार: क्वीयर लोग अपनी फ्लिर्टिंग को लेकर कंफ्यूज़, क्या इसके पीछे की फ़ीलिंग रोमांटिक है या बस अच्छे दोस्त हैं। जब मैंने उसे बताया कि शायद मैं ज़ी को पसंद करती हूँ तो उसका जवाब था- मैंने पहले ही बोला था। पर हो सकता है मैं बस थोड़ी जेलस फ़ील कर रही थी। हम दोनों साथ रोते थे कि हमें कभी कोई नहीं मिलेगा। पर अब वो शायद मुमकिन कहाँ। मैं ज़ी से इसके बारे में बात नहीं करूंगी। तो इस लेख का (और मेरा) ये पार्ट ऊलजुलूल टाइपिंग वाले मेसेज़ का पार्ट बन गया। मैंने बेस्ट फ्रेंड को बताया कि मैं स्टुपिड फ़ील कर रही हूँ।  उसने मुझे स्टुपिड कहा और कहा कि हमें एंडिंग बदलनी चाहिए। ये कहानी अभी भी दोस्ती की है। शायद वो मेरे पीछे आये या मैं उसके। पुणे में वो मेरी आखिरी शाम थी। हमने कुछ देर के लिए फ़ोन और स्क्रिप्ट बाजू में रख दिया। और उसकी बालकनी में बैठ हुए नीचे सड़क पर आते जाते लोगों को देख रहे थे। और साथ एक जॉइंट शेयर कर रहे थे और ये उम्मीद थी कि सब ठीक हो जाएगा?  
आमी भंसाली मुम्बई स्थित एक लेखिका और फ़िल्ममेकर हैं
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